Pitra Paksh| Shradh| Pitra Paksh Kab Se Hai| पितृपक्ष श्राद्ध पक्ष – महत्व

Pitra Paksh – Kab Se Hai, Kya Mahatva Hai, Shradh, Dates [ श्राद्ध पक्ष, पितरों को कैसे खुश करें, वर्जित कार्य, महत्व, क्या नहीं करना चाहिए, पूजा कैसे करें ]

हमारे हिंदू समाज में न सिर्फ देवी देवताओं को, बल्कि हमारे पितृ जनों को भी ईश्वर का दर्जा दिया जाता है। कहा जाता है कि जब ब्रह्मा जी ने, स्वर्ग लोक और पाताल लोक की रचना की थी। तब उन्होंने पितरों के लिए, पितृलोक भी बनाया था। जहां हम सभी के पितृजन, मृत्यु के पश्चात वास करते हैं। पितृ पक्ष के इस महीने में पितृजन, पितृलोक से धरती पर अपने परिजनों से मिलने आते हैं।

इसके साथ ही, वह अपने प्रियजनों के हाथ का ही भोजन ग्रहण करते हैं। जो उन्हें तृप्ति प्रदान करता है। जिससे वह प्रसन्न होकर, हमें आशीर्वाद देकर।  पुनः पितृलोक लौट जाते हैं। किंतु अगर धरती पर, उन्हें तृप्ति प्राप्त न हो। प्रियजनों द्वारा उनका पोषण न किया जाए। तो पितृ रुष्ट होकर, पितृलोक लौट जाते हैं। जिससे उस परिवार पर, पितृ दोष लग जाता है।

हिंदू धर्म में तीन प्रकार के ऋण को सबसे महत्वपूर्ण बताया गया है। जो हैं – देव ऋण,  ऋषियों का ऋण और पितृ ऋण। जिसमें पितृ ऋण को महत्त्व, सबसे अधिक है। पितृपक्ष पितरों का उद्धार करने के लिए, मनाया जाने वाला त्यौहार है। जो आश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर अमावस्या तिथि तक मनाया जाता है। इसी प्रकार जाने : जन्म से मृत्यु तक के सोलह संस्कार

Pitra Paksh

Pitra Paksh
पितरों को कैसे खुश करें

16 दिनों तक चलने वाला, पितृ पक्ष पूर्वजों की आत्माओं की शांति का त्यौहार है। इस समय पितृ ऋण से मुक्ति पाने के लिए श्राद्ध किए जाते हैं। पितृपक्ष में श्राद्ध पितरों को मुक्ति दिलाने के लिए किया जाता है। हमारे धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि अंतिम संस्कारों, उन 16 संस्कारों में सबसे अंतिम है। जो सनातन धर्म मुख्य है।

ऐसा माना गया है कि मनुष्य जैसे कर्म धरती पर करता है। उसे वैसा ही लोक प्राप्त होता है। जैसे जो व्यक्ति धर्म-कर्म, अच्छे काम करता है। उसे स्वर्ग मिलता है। लेकिन जो व्यक्ति बुरे काम करता है। उन्हें नर्क प्राप्त होता है। सनातन धर्म के अनुसार, जब व्यक्ति का अंतिम संस्कार किया जाता है। तो उसे पितरों से मिलाया जाता है। उसके बाद वह पितृ रूप में रहता है।

उसे उस लोक में, तब तक रहना पड़ता है। जब तक उसे गति नहीं मिलती। यह भी माना जाता है कि सभी पितृ अपने पुत्रों के पास आते हैं। ताकि उन्हें तर्पण मिले। जो उन्हें संतुष्ट कर देता है। उसे पितृ आशीर्वाद देते हैं। जबकि जिससे उन्हें कुछ नहीं मिलता। वह क्रोधित और दुखी होकर, उन्हें श्राप भी देते हैं।

Pitra Paksh – Shradh Dates 2024
कब से है, जाने महत्वपूर्ण तिथियां

अगर हमारे पूर्वज न होते, तो आज हम भी न होते। हर किसी को अपने पूर्वजों से चाहे वह आपके पिता या दादा हो। उनसे कुछ न कुछ संपत्ति जरूर मिलती है। जिसे हम पुश्तैनी संपत्ति कहते हैं। ऐसे में, अपने पूर्वजों को पितृपक्ष में, समय-समय पर धन्यवाद जरूर देना चाहिए। यह धन्यवाद देने का मौका, आपको पितृपक्ष में मिलता है।

 जिन लोगों को भाग्य का साथ नहीं मिलता। मेहनत करते हैं और उसका फल नहीं मिल पाता। पूरे जीवन में कष्ट ही कष्ट भरा रहता है। तो यह पितृ दोष का कारण हो सकता है। चाहे आपको अपने पितरों को धन्यवाद देना हो। या पितृदोष से छुटकारा पाना चाहते हैं। इन दोनों ही परिस्थितियों में, पितृपक्ष आपके लिए एक अच्छा समय है।

पितृपक्ष हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में आता है। आश्विन मास के पूरे कृष्ण पक्ष को ही, पितृपक्ष कहा जाता है। 2024 में पितृपक्ष का आरंभ अश्विन मास की प्रतिपदा तिथि से शुरू होगा। जो कि 17  सितंबर 2024 को है। वहीं मातृ नवमी गुरुवार 26 सितंबर 2024 को होगी। पितृपक्ष की समाप्ति बुधवार 02 अक्टूबर सितंबर 2024 को होगी। इसी प्रकार जाने : जानिए चारों वेदों मे क्या हैचारों वेदों का रहस्य।

पितृपक्ष 2024महत्वपूर्ण तिथियाँ
तारीख़तिथि व नक्षत्र
17 सितम्बर 2024
मंगलवार
भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा व अश्विन, कृष्ण प्रतिपदा
18 सितम्बर 2024
बुधवार
अश्वनी, कृष्ण द्वितीया
19 सितम्बर 2024
गुरुवार
अश्वनी, कृष्ण तृतीया
20 सितम्बर 2024
शुक्रवार
अश्वनी, कृष्ण चतुर्थी
21 सितम्बर 2024
शनिवार
अश्वनी, कृष्ण पंचमीभरणी नक्षत्र
22 सितम्बर 2024
रविवार
अश्विनी, कृष्ण षष्ठी
23 सितम्बर 2024
सोमवार
अश्विनी, कृष्ण सप्तमी
24 सितम्बर 2024
मंगलवार
अश्विन, कृष्ण सप्तमी
25 सितम्बर 2024
बुधवार
अश्विन, कृष्ण अष्टमी
26 सितम्बर 2024
गुरुवार
अश्विन कृष्ण  नवमी
27 सितम्बर 2024
शुक्रवार
अश्वनी, कृष्ण दशमी
28 सितम्बर 2024
शनिवार
अश्विन, कृष्ण एकादशी
29 सितम्बर 2024
रविवार
अश्विन, कृष्ण द्वादशी
30 सितम्बर 2024
 सोमवार
अश्वनी, कृष्ण त्रयोदशीमेघा नक्षत्र
01 अक्टूबर 2024
मंगलवार
अश्वनी, कृष्ण चतुर्दशी
02 अक्टूबर 2024
बुधवार
अश्वनी, कृष्ण अमावस्या
विशेष : श्राद्ध कर्म में तर्पण दोपहर 12:00 बजे के बाद ही करना चाहिए।

Pitra Paksh
पितृ पक्ष की मान्यता व पौराणिक कथा

 पितृपक्ष की महिमा को लेकर, कई कथाएं प्रचलित हैं। जिनका पाठ तर्पण करते हुए, किया जाना चाहिए। इसमें सबसे ज्यादा कर्ण की कथा कही जाती है। जो महाभारत काल से सुनी जा रही है। उनकी इस कथा का वर्णन, इस प्रकार मिलता है –

 महाभारत के युद्ध में, वीरगति को प्राप्त होने के बाद। जब कर्ण की आत्मा स्वर्ग में पहुंची। तो उन्हें भोजन में सोना-चांदी, हीरे, जवाहरात परोसे गए। इस पर कर्ण ने, इंद्र देव से, इसका कारण पूछा। तब इंद्रदेव ने उन्हें बताया। तुमने अपने जीवन काल में सोना-चांदी, हीरे-जवाहरात आदि दान किए हैं।

लेकिन कभी भोजन का दान नहीं दिया। तुम्हारे पुत्र भी महाभारत के युद्ध में मारे जा चुके हैं। इसलिए तुम्हारे निमित्त, किसी ने भी तर्पण और भोजन आदि दान नहीं दिया। तब कर्ण ने इंद्र को बताया। उन्हें अपने पूर्वजों के बारे में, कोई जानकारी नहीं थी। इस वजह से, वह कभी कुछ दान ही नहीं कर पाए। यह जानकर इंद्र ने कर्ण को, उनकी गलती सुधारने का मौका दिया।

फिर 16 दिन के लिए, उन्हें पृथ्वी पर वापस भेजा। जब कर्ण 16 दिन के लिए, पृथ्वी पर वापस आए। तब उन्होंने अपने पूर्वजों को याद करते हुए। विधि-विधान से उनका तर्पण किया। साथ ही ब्राह्मणों को भोजन करवाकर, दान-दक्षिणा देकर, उन्हें विदा किया। इन्हीं 16 दिनों की अवधि को, पितृपक्ष कहा जाता है। तभी से यह श्राद्ध प्रक्रिया प्रारंभ हुई।

Pitra Paksh
गयाजी का महत्व व कथा

वायु पुराण के अनुसार, आर्यवर्त के पूर्वी क्षेत्र में, कोलाहल नाम के पर्वत पर। गया नामक असुर ने, हजारों वर्ष तक घोर तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रभावित होकर, भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी को उसे वरदान देने के लिए कहा। ब्रह्मा जी सभी देवताओं के साथ, गयासुर के पास पहुंचे। उन्होंने गयासुर से, वरदान मांगने को कहा।

गयासुर ने वर मांगा कि समस्त देवताओं, ऋषियों और मुनियों का सभी पूण्य उसे प्राप्त हो जाए। उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए। लोग उसके दर्शन मात्र से ही, पाप मुक्त हो जाएं। इस पर ब्रह्मा जी सहित, सभी देवताओं ने तथास्तु कह दिया। देवताओं के वरदान का यह परिणाम हुआ। जो भी उसके दर्शन करता। वह पाप मुक्त होकर पवित्र हो जाता था।

गयासुर के पास आने वाला, हर जीव स्वर्ग को जाने लगा। विधि के विधान को समाप्त होता हुआ देखकर। ब्रह्मा जी गयासुर के पास गए। उन्होंने कहा हे परम पुण्य गयासुर, मुझे ब्रम्ह यज्ञ करना है। तुम्हारे समान पुण्य भूमि, मुझे कहीं और नहीं मिलेगी। इसलिए तुम अपने इस शरीर को मुझे प्रदान करो। गयासुर ने यज्ञ के लिए, ब्रह्मा जी को अपना शरीर दे दिया। जब यज्ञ प्रारंभ हुआ। तो उसका शरीर हिलने लगा। ब्रह्मा जी ने नाभि प्राण से, उसे संतुलित किया।

विष्णु जी ने गयासुर की छाती पर, अपने चरण रखें। अपनी गदा से गयासुर के, कंपन को संतुलित किया। श्री हरि विष्णु जी की चरण छाप पड़ने पर, गयासुर का अंहकार नष्ट हो गया। उसने मारते समय, विष्णु जी से वरदान मांगा। इस यज्ञ क्षेत्र में, विष्णु पाद पर, जिसका भी श्राद्ध हो। उसे  सद्गति मिले। भगवान विष्णु ने गयासुर की, इस मंगल कामना का आदर किया। फिर उसे भी सद्गति दी।

साथ ही वरदान भी प्रदान किया। तभी से उस संपूर्ण तीर्थ क्षेत्र का नाम, गयाजी पड़ गया। ब्रह्मा जी ने उस भूमि को, श्राद्ध कर्म की भूमि घोषित कर दिया। वहां तर्पण करने से पितरों की तृप्ति होती है। वायु पुराण में, तो यह भी कहा गया है। गया की ओर मुख करके तर्पण करने से, पितरों को मुक्ति मिल जाती है। जो भी गया में, अपने पितरों का पिंडदान करता है। उसके पितृ तृप्त हो जाते हैं। गया में श्राद्ध कर्म करने से, पितरों को बैकुंठ की प्राप्ति होती है।

पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध और तर्पण करना। अत्यंत आवश्यक माना जाता है। यदि कोई व्यक्ति ऐसा नहीं करता। तो उसे अपने पितरों का श्राप लगता है। लेकिन शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध कर्म के बाद जितना जरूरी ब्राह्मण और भांजे को भोजन करवाना होता है। उतना ही जरूरी कौंवे को भोजन करवाना भी होता है। इसी प्रकार जाने : सनातन धर्म का अर्थ व उत्पत्तिसनातन धर्म क्या है। Sanatan Dharm in Hindi।

Pitra Paksh
श्राद्ध कर्म में कौवे का महत्व

 ऐसा माना जाता है कि कौए इस समय, हमारे पितरों का रूप धारण करके पृथ्वी पर उपस्थित रहते हैं। इसके पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। देवराज इंद्र के पुत्र जयंत ने ही, सबसे पहले कौए का रूप धारण किया था। यह कथा त्रेतायुग की है। जब भगवान श्रीराम ने अवतार लिया। जयंत ने कौवे का रूप धारणकर, माता सीता के पैर में चोंच मारी।

 तब भगवान श्रीराम ने, तिनके का बाण चलाकर। जयंत की आंख फोड़ दी। तब जयंत ने, अपने किए की माफी मांगी। उस समय श्रीराम ने, उसे यह वरदान दिया। तुम्हें अर्पित किया गया, भोजन पितरों को मिलेगा। तभी से श्राद्ध में कौए को भोजन करवाने की परंपरा चली आ रही है। यही कारण है कि श्राद्ध पक्ष में, कौए को भोजन पहले करवाया जाता है।

पितृपक्ष में न तो कौए को मारा जाता है। न ही उन्हें कहीं से भगाया जाता है। यदि कोई व्यक्ति ऐसा करते हैं। तो उन्हें पितरों के श्राप के साथ-साथ, अन्य देवी-देवताओं के क्रोध का भी सामना करना पड़ता है। उन्हें जीवन में कभी भी, किसी प्रकार की सुख और शांति की प्राप्ति नहीं होती।

Pitru Paksha
किस दिन किनका श्राद्ध किया जाता

श्राद्ध का अर्थ है। अपने मित्र परिजनों को याद करना। उन्हें तृप्त करने का प्रयास करना। यह जानना बेहद जरूरी है कि श्राद्ध किस प्रकार करना चाहिए। क्योंकि पिता, माता, विष्णु ऋषियों आदि का श्राद्ध करने का दिन अलग-अलग होता है। जैसे पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन किया जाता है। माता का श्राद्ध नवमी के दिन किया जाता है।       अगर घर में किसी की अकाल मृत्यु हुई हो। जैसेकि दुर्घटना में मौत हुई हो। तो उनका श्राद्ध शरद चतुर्दशी के दिन किया जाता है। महान आत्माओं या ऋषि-मुनियों का श्राद्ध द्वादशी के दिन किया जाता है।

अगर आपको किसी परिजन की मृत्यु की तिथि याद नहीं है। या वह आपके परिवार का कोई अन्य सदस्य हो। या फिर वह आपका रिश्तेदार नहीं, बल्कि जानने वाला हो। तो उसका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है। इसी प्रकार जाने : भगवान शिव जी से जुड़े रहस्यMysterious Facts of Lord Shiva।

Pitra Paksh
कैसे करें श्राद्ध कर्म, जाने सम्पूर्ण विधि

सबसे पहले आपको एक लोटे में शुद्ध जल लेना है। फिर उसमें थोड़ा सा दूध डालें। इसके बाद थोड़ी मात्रा में काले तिल, जौ व सबूत चावल डालें। इस पूरे मिश्रण में सफेद या पीले रंग का चंदन अवश्य डालें। फिर कुशा की सहायता से, जल को थोड़ा सा मिला लें।

अब एक थाली के ऊपर, अपना दाहिना हाथ रखें। हथेली के बीचो-बीच कुशा को रखकर, अंगूठे से दबा ले। आपकी चारों उंगलियां सामने की ओर खुली होनी चाहिए। यह मुद्रा विशेष रुप से, पितृ तर्पण के लिए प्रयोग की जाती है।

अब अंजुरी में जल लेकर, तीन बार अंगूठे की तरफ से तर्पण करें। जिसमें प्रथम ब्रह्मा जी के लिए, दूसरी विष्णु जी के लिए, और तीसरी शिव जी को दी जाती है। क्योंकि हम उन्ही की संतान हैं। उन्हीं से हम उत्पन्न हुए हैं। सारी सृष्टि को चलाने वाले, यही त्रिदेव हैं। इसलिए प्रथम तर्पण उन्हीं को दिया जाता है।

अब इसके पश्चात सात चिरंजीवी को तर्पण देना चाहिए। जिसमें प्रथम अश्वत्थामा, दूसरे बली, तीसरी व्यास जी,  चौथे हनुमान जी, पाँचवे विभीषण जी,  छठे कृपाचार्य जी को और अंत में परशुराम जी को दी जाती है। उसके बाद आपको अपने पितरों का ध्यान करना है। फिर जिनको तर्पण दिया जाना है। उनका ध्यान करके, उनके गोत्र का नाम ले।

फिर तीन बार अंजुरी दीजिए। जिनको आप तर्पण देना चाहते हैं। उनको याद करके, ऐसे ही तीन बार तर्पण दें। इसके साथ ही, आपको अपने मन में विचार करना है, कि हमारी जो श्रद्धा है। उसके अनुसार हम आपको तर्पण दे रहे हैं। कृपया इस अंजुरी को स्वीकार करें। इस जल को स्वीकार करें। अपनी कृपा हम पर बनाए रखें। इस प्रकार से आप तर्पण कर सकते हैं।

अब बचे हुए जल को ऐसी जगह प्रवाहित करें। जहां पर अशुद्धि न हो या फिर इसे किसी वृक्ष के नीचे प्रवाहित कर दें। इसके बाद अपने पितरो से प्रार्थना करें। वह सदैव पितृपक्ष में, हमारे घर में पधारे। हमें अपना आशीर्वाद प्रदान करें। हमारे पितृ  दोषों को दूर करें। सभी अनिष्टों को अपने साथ, अपने धाम ले जाएं। हमें अच्छा फल प्रदान करें। इसी प्रकार जाने : भगवान विष्णु की उत्पत्ति का रहस्यMystery of God Vishnu।

Pitra Paksh
श्राद्ध के दिनों मे क्या करें और क्या ना करें

 ऐसा कहा जाता है कि हमारे पितृ अपने श्राद्ध वाले दिन, हमारे दरवाजे पर किसी भी रूप में आ सकते हैं। इसलिए अगर इन दोनों, आपके घर कोई भी जीव या मनुष्य आता है। तो उसे ऐसे ही न जाने दें। उसे भोजन और जल दे। इन दिनों पशु-पक्षियों को भी खाने को दें।

इन दिनों कुछ चीजों का सेवन करना निषेध माना गया है। जैसे मसूर की दाल, प्याज, लहसुन, मूली आदि। इसके अलावा, इस समय मांस-मछली और शराब का सेवन नहीं करना चाहिए। इन दिनों ब्राह्मण को भोजन कराने का भी विशेष महत्व है। इसके साथ ही उन्हें दक्षिणा भी देनी चाहिए। इसके साथ ही आप जरूरतमंदों को भी भोजन कराएं।

इन दिनों क्रोध, काम, लोभ, तृष्णा, लालच आदि के विचार। अपने मन में न आने दे। घर में जो भी आये। उसका सत्कार करें। उन्हें प्यार से भोजन कराएं। धर्मग्रंथों के अनुसार, पितृपक्ष के समय प्रयाग, गया या बद्रीनाथ में श्राद्ध या पिण्डदान किया जाए। तो पितरों को मुक्ति मिलती है। किंतु अगर वहां जा पाए। तो आप अपने घर पर भी, इसे कर सकते हैं।

आपको इसे भी जानना चाहिए :

Leave a Comment