Benefits of Havan | हवन का वैज्ञानिक महत्व | हवन करने की विधि एवं मंत्र

 Benefits of Havan – वैज्ञानिक महत्व, चमत्कारिक लाभ, वैदिक हवन विधि व मंत्र, प्रयुक्त होने वाले अवयव, हवन में स्वाहा का महत्व।

अलग-अलग धर्मों में, अलग-अलग समय पर, बहुत ही बड़े-बड़े संतों ने इस पृथ्वी पर जन्म लिया। हर धर्म में उन संतो ने, अपने-अपने धर्मों को मानने वालों को। कुछ बातें Metaphoric भाषा में बताई। Metaphor का मतलब होता है। अपनी बात को बेहतर तरीके से समझाने के लिए, दो example  को आपस में जोड़ देना।

सनातन धर्म में भी metaphoric language बहुत इस्तेमाल की जाती है। अब यज्ञ या हवन को ही ले लीजिए। कुछ लोग प्रतिदिन हवन किया करते हैं। वहीं कुछ लोग कभी-कभी शुभ अवसरों पर हवन में बैठा करते हैं। हवन की जो साइंस है। हवन का जो विज्ञान है। वह किस तरफ इशारा करता है।

जब भी हवन किया जाता है। तो उसमें मुख्य रूप से तीन चीजें होती है। अग्नि और अग्नि में डालने वाली सामग्री तथा घी। अगर हम अग्नि को देखें। उसके स्वभाव को देखें। तो अग्नि की लपट हमेशा ऊपर की तरफ और आसमान की तरफ होती है। अग्नि की लपट कभी भी नीचे नहीं जाती।

अग्नि की दूसरी विशेषता है। अग्नि में जो भी डाल दिया जाता है। वह शुद्ध हो जाता है। यानी कि अग्नि अशुद्धियों को जला देती है। अब अगर इसे हम metaphor भाषा में देखें। तो हमारे ऋषि-मुनियों ने बताया। जो हमारी चेतना है। उसको हमेशा अग्नि की तरह देखना चाहिए।

उसको हमेशा ऊपर उठाने का प्रयास करते रहना चाहिए। जितनी भी अशुद्धियां हैं। उन सबको जलाकर, अपने आपको सतत शुद्ध बनाने का प्रयास प्रतिदिन करना चाहिए। तीसरी चीज जो हवन में इस्तेमाल की जाती है। वह घी होता है। इसी प्रकार जाने : सनातन परंपराओं के पीछे का वैज्ञानिक कारणScience Behind Sanatan Rituals,Tradition and Culture।

Benefits of Havan - Havan Mantra

Benefits of Havan
हवन एवं यज्ञ क्या होता है

यज्ञ एवं हवन के विषय में, अनेक प्रकार की भ्रांतियां फैली हुई है। जानकारी के अभाव में एवं अज्ञानता के कारण। लोगों को यह समझने में समस्या है। हवन और यज्ञ यह दोनों चीजें एक नहीं है। हवन और यज्ञ में अत्यधिक अंतर है। जबकि हवन एवं यज्ञ दोनों ही एक माध्यम है। शरीर की नाड़ियों एवं चक्र में, किसी भी प्रकार से ऊर्जा प्रदान करने के।

Benefits of Havan
हवन क्या होता है

 हवन के माध्यम से, जो औषधियां उसमें उपयोग होती हैं। उसकी गंध हमारे शरीर में जाती है। उसके कारण जो सुसुप्त चक्र होते हैं। उन पर बहुत आंशिक प्रभाव पड़ता है। जिससे व्यक्ति को, जो भी शारीरिक रोग हैं। जो कि बाहरी कोष अर्थात अन्यमय कोष से संबंधित हैं। उनमें लाभ जरूर मिलता है।

कई बार हवन में, कुछ ऐसी औषधियों का प्रयोग होता है। जिससे बीमारियां जड़ से खत्म हो जाती है। हवन का पूर्ण अर्थ है। जिसमें लकड़ी, अग्नि, औषधि व जल इत्यादि का उपयोग किया जाता है। फिर एक पूर्ण संगठित तरीके से, अग्नि प्रज्वलित की जाती है। उसमें आवाहन किया जाए। फिर उसमें समस्त चीजों का तर्पण या मार्जन किया जाए।

वहाँ जो भी साधक उपस्थित होते हैं। उनमें जो गन्ध अंदर की तरफ जाती है। उससे जो भी उनके चक्र में प्रभाव आता है। उससे उन्हें जो भी प्राप्ति होती है। वह हवन कहलाता है। इसी प्रकार जाने : जन्म से मृत्यु तक के सोलह संस्कार

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यज्ञ क्या होता है

यज्ञ का अर्थ क्या है। इसमें ‘य’ का अर्थ विस्तार करने से है। ‘ज्ञ’ का अर्थ है, ज्ञान का अर्थात जब ज्ञान का विस्तार हो। उसको यज्ञ कहा जाता है। यह कैसे संभव हो सकता है। ज्ञान का विस्तार किस प्रकार से संभव है। यह श्रीमद्भगवद्गीता के चौथे अध्याय के 29वें श्लोक में दिया हुआ है।

जब प्राण एवं अपान का आपस में, घर्षण होता है। तो इस घर्षण को यज्ञ कहा गया है। घर्षण को महाभारत में, धृष्टद्युम्न से भी दर्शाया गया है। तो इसका पूर्ण अर्थ है कि जब आपकी प्राण वायु और अपान वायु  में आपस में घर्षण होगा। तब उस घर्षण से, जो ऊर्जा उत्पन्न होगी। वही यज्ञ है।

यह ऊर्जा आपके समस्त चक्रों में, ऊर्जा का प्रभाव बढ़ा देगी। आपके समस्त सुप्त चक्रों में ऊर्जा का प्रवाह होने लगेगा। किसी चीज को यज्ञ बताया गया है। यही हवन और यज्ञ के बीच का मूल अंतर है।

Benefits of Havan
यज्ञ के प्रकार

हमारे पुराणों में कुछ यज्ञ ऐसे बताए गए हैं। जो काफी विशेष तौर पर किए जाते हैं। वैसे तो, हमारे पुराणों में पांच प्रकार के यज्ञ बताए गए है। जो इस प्रकार हैं-

● ब्रह्म यज्ञ

● पितृ यज्ञ

● देव यज्ञ

● विश्वकर्म यज्ञ

● अतिथि यज्ञ

 यह सारे यज्ञ शायद ही किसी को, अपने जीवन में करने का सौभाग्य प्राप्त हो। लेकिन इन सभी में एक यज्ञ ऐसा है। इसे हम देव यज्ञ कहते हैं। इस यज्ञ को हम हमेशा कर सकते हैं। इसे हम अग्निहोत्र के नाम से भी जानते हैं।

जन्मेजय ने वेदव्यास जी से देवी के यज्ञ के संबंध में कुछ प्रश्न किए। जन्मेजय ने कहा कि आप देवी भगवती जगदंबा के अनुष्ठान विधि के बारे में बताएं। तब व्यास जी ने भगवती के यज्ञ की अनुष्ठान विधि बताते हुए कहा। भगवती के यज्ञ तीन प्रकार के होते हैं।

●सात्विक- संत, ज्ञानी, महात्मा, सद्गुणी जीव सात्विक यज्ञ करते हैं।

●राजसिक- तुम जैसे राजा महाराजा लोग राजसिक से यज्ञ करते हैं।

●तामसिक- राक्षस व दैत्य आदि तामसिक यज्ञ करते हैं। जिसमें पशुओं की बलि दी जाती है।

वैदिक काल में होने वाले महत्वपूर्ण यज्ञ इस प्रकार हैं-

●राजसूय यज्ञ

●अश्वमेध यज्ञ

●वाजपेय यज्ञ

●अग्निष्टोम यज्ञ।

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हवन में प्रयुक्त होने वाली सामग्री

यज्ञ करते समय, हमें किन-किन सामग्री की आवश्यकता होती है। यह सामग्रियां यज्ञ में, महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अतः इनके बारे में जानना आवश्यक है। हवन में प्रयोग होने वाली सामग्री इस प्रकार हैं-

• हवन कुंड

• अग्नि के लिए – आम की लकड़ी, उपला, कपूर, माचिस।

हवन सामग्री में प्रयुक्त होने वाले अवयव
काले तिलसाबुत चावल (तिल की आधी मात्रा)जौ (चावल की आधी मात्रा)
गुड़/ शक्कर/ खांडगुग्गुलपंचमेवा
गाय का देसी घीबेल फल सूखा हुआभोजपत्र
कमल गट्टाचंदनचुराकेशर,
अगर-तगरइलायचीजायफल
जावित्रीछड़ीलाबालछड़
पानड़ी

पूर्ण आहुति के लिए –

• पान

• छोटी सुपारी

• मौली धागा

अग्नि पूजा के लिए –

• जल

• अक्षत

• चंदन

• पुष्प

Benefits of Havan
हवन करने की विधि एवं मंत्र

हवन करने से पहले आपको, स्वयं को पवित्र कर लेना चाहिए। इसके लिए आप कुशा की मदद से, तीन बार अपने ऊपर जल छिड़किये। इसके बाद, आचमन कीजिए। आचमन के लिए उल्टे हाथ से सीधे हाथ में, तीन बार जल डालकर। अपने मुख में स्पर्श कीजिए।

अब हाथ धोकर, हवन कुंड की पूजा कीजिए। चंदन, अक्षत व पुष्प अर्पित कीजिए। इसके बाद अग्नि देवता को आवाहन करते हुए। अग्नि प्रज्वलित कीजिए। अब आप हवन करने के लिए, बीच की दो उंगलियों का ही प्रयोग करें। अब आप हवन शुरू कर सकते हैं। हवन में प्रयोग होने वाले मंत्र इस प्रकार हैं।

ॐ आग्नेय नमः स्वाहा

ॐ गणेशाय नमः स्वाहा

ॐ गौरियाय नमः स्वाहा

ॐ वरुणाय नमः स्वाहा

ॐ दुर्गाय नमः स्वाहा

ॐ महाकालिकाय नमः स्वाहा

ॐ हनुमते नमः स्वाहा

ॐ भैरवाय नमः स्वाहा

ॐ कुल देवताय नमः स्वाहा

ॐ स्थान देवता नमः स्वाहा

ॐ जयंती मंगलाकाली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा

स्वधा नमस्तुति स्वाहा

ॐ ब्रह्मामुरारी त्रिपुरान्तकारी भानु: क्षादी:  भूमि सुतो बुधश्च: गुरुश्च शक्रे शनि राहु केतो सर्वे ग्रहा शांति कर: स्वाहा

ग्रह शांति के पश्चात अगला मंत्र गुरुओं के लिए बोला जाएगा।

ॐ गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वर:

गुरु साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः स्वाहा

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌ मृत्युंजाय नमः स्वाहा

ॐ शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे,  सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते॥

इसके बाद अगर आप चाहे, तो दुर्गा जी के  निर्वाण मंत्र को बोलते हुए। अपनी इच्छा अनुसार 5-7-11 बार हवन कर सकते हैं। यह मंत्र इस प्रकार है-

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमः स्वाहा

अब सभी आहुतियां पूरी होने के बाद, आप पूर्णाहुति करेंगे। पूर्णाहुति करने के लिए, आपको पान, छोटी सुपारी में मौली धागा बांधना है। चम्मच में घी लेना है। फिर पान सुपारी इसमें रखना है। अब सात पूर्णाहुति का मंत्र बोलते हुए। पूर्णाहुति करनी है। पूर्णाहुति का मंत्र है-

ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् , पूर्ण मुदच्यते,

पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवा वशिष्यते स्वाहा।

पूर्णाहुति मंत्र के साथ, आपका हवन पूर्ण होता है। पूर्णाहुति करने के बाद, आप क्षमा याचना कीजिए। आपसे हवन या पूजा-पाठ में, जो गलतियां हुई हो। उसके लिए सभी देवी-देवता क्षमा करें। क्षमा याचना के बाद, आपका हवन संपूर्ण होता है। इसी प्रकार जाने : स्वास्तिक चिन्ह स्वास्तिक का महत्वस्वस्ति का अर्थ स्वास्तिक चिन्ह कैसे बनाएं

Benefits of Havan
हवन में स्वाहा के उच्चारण का महत्व

हवन करते समय या मंत्रों के अंत में स्वाहा का उच्चारण क्यों किया जाता है। यदि स्वाहा का उच्चारण न किया जाए। तो क्या होगा। यह प्रसंग सृष्टि के समय का है। देवताओं को भोजन प्राप्त नहीं हो रहा था। जिससे उनमें दुर्बलता आ गई। तब सभी देवता ब्रह्मा जी के पास गए।

ब्रह्मा जी से विनती करते हुए कहा कि हम सभी देवताओं को भोजन नहीं प्राप्त हो रहा है। जिस कारण हम बहुत दुखी हैं। हमारे भोजन की व्यवस्था करने की कृपा करें। देवताओं के दुख का निवारण करने के लिए, ब्रह्मा जी ने भगवान श्रीकृष्ण की शरण ली।

तब श्री कृष्ण ने ब्रह्मा जी को, भगवती की मूल प्रकृति की उपासना करने का आदेश दिया। उसी समय भगवती भुनेश्वरी की कला से, भगवती स्वाहा प्रगट हुई। उन्होंने ब्रह्मा जी कहा- हे ब्रह्मा जी, मैं आपसे प्रसन्न हूं। वर मांगो। ब्रह्मा जी ने भगवती से कहा। हे देवी, तुम अग्नि की दाहिका शक्ति यानी अग्नि को जलाने वाली शक्ति होने की कृपा करो।

जो प्राणी तुम्हारे नाम का उच्चारण करते हुए। देवताओं के लिए, हवन पदार्थ अग्नि में डालें। वह देवताओं को प्राप्त हुआ हो। हे भगवती! आप अग्नि की गृह स्वामिनी बनो। देवता और मनुष्य सदैव तुम्हारी पूजा करेंगे। उसी समय से अग्नि में हवन करते समय, मंत्र के अंत में स्वाहा का उच्चारण किया जाता है। इसी प्रकार जाने : Sanatan Dharm me Vivah Ke Prakarहिंदू विवाह के 8 प्रकार व उद्देश्य।

Benefits of Havan
यज्ञ या हवन के वैज्ञानिक लाभ

  यज्ञ एक अनुष्ठान होता है। जो किसी खास उद्देश्य या मनुष्य के द्वारा किए गए, पापों से मुक्ति के लिए या मानव जीवन या विश्व शांति के लिए किया जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए। तो यज्ञ या हवन, इंसान और प्रकृति दोनों के लिए काफी फायदेमंद है।

       आइए जानते हैं। यज्ञ या हवन के वैज्ञानिक लाभ के बारे में। The National Botanical Research Institute (NBRI) द्वारा किए गए, एक शोध में पता चला है। इसके साथ ही फ्रांस के वैज्ञानिक ट्रेले ने हवन पर रिसर्च की। जिसमें उन्हें पता चला कि हवन मुख्यता आम की लकड़ी से ही क्यों किया जाता है।

1. जब आम की लकड़ी जलती है। तो फॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है। जो खतरनाक जीवाणुओं को मारकर, वातावरण को शुद्ध करती है।

2. टौटीक नामक वैज्ञानिक ने भी हवन  रिसर्च की। उन्होंने पाया यदि आधा घंटा हवन में बैठा जाए। या फिर हवन के धुए से, शरीर का संपर्क हो। तो टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं। शरीर शुद्ध हो जाता है।

3. वैज्ञानिकों ने पाया कि गुड़ को जलाने पर भी, फार्मिक एल्डिहाइड गैस उत्पन्न होती है।

4. यज्ञ के दौरान उठने वाले धुए से, वायु में मौजूद हानिकारक जीवाणु 94% तक नष्ट हो जाते हैं।

5. इससे वातावरण शुद्ध होता है। इससे बीमारियां फैलने की आशंका काफी हद तक कम हो जाती है।

6. शोध में पता चला है कि हवन और यज्ञ का धुँआ, वातावरण में 30 दिन तक बना रहता है। जिसकी वजह से जहरीले कीटाणु नहीं पनप पाते हैं। मनुष्य के स्वास्थ्य में भी काफी असरदार साबित होता है।

7. यज्ञ में प्रयोग किए जाने वाले पदार्थ के मिश्रण से एक विशेष प्रकार का गुण तैयार होता है जो जलने पर वायुमंडल में एक विशिष्ट प्रभाव पैदा करता है।

8. वैदिक मंत्रों के उच्चारण की शक्ति से उस प्रभाव में और अधिक वृद्धि होती है।

9. वैज्ञानिक अब तक कृत्रिम वर्षा कराने में सफल नहीं हुए हैं। लेकिन देखा गया है कि यज्ञ और हवन द्वारा, यह संभव हो पाया है।

10. हमारे शास्त्रों के अनुसार, हमारे शरीर की रचना पंचमहाभूत से हुई है। जिसमें पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश यह पंचमहाभूत कहलाते हैं। इनसे ही हम सभी का शरीर बना है। यज्ञ करने से, इन पंचमहाभूतों की शुद्धि होती है। इनकी तृप्ति होती है। यह संतुष्ट रहते हैं।

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