Origin of the Swastika in Hindi | स्वस्तिक का सनातन धर्म मे महत्व

Importance of Swastika in Hindi। Swastika Kya hai। Origin of the Swastika Sign। स्वस्तिक का क्या अर्थ है। स्वस्तिक बनाने का सही तरीका ।  स्वस्तिक का महत्व। स्वस्तिक की उत्पत्ति कैसे हुई। स्वस्तिक चिन्ह कैसे होता है। स्वस्तिक चिन्ह कहां से लिया गया है। Swastik Mantra in Hindi। Swastik Kaise Banaye। Swastik Importance in Hindi। History of Swastik in Hindi। Swastik Meaning in Hindi।

 सामान्यतया किसी भी पूजा-अर्चना या धार्मिक कार्य में, हम स्वास्तिक का निशान बनाकर, स्वस्तिवाचन करते हैं। किसी भी पूजन कार्य का शुभारंभ बिना स्वस्तिक को बनाए नहीं किया जाता।  स्वस्तिक श्री गणेश का प्रतीक चिन्ह है। शास्त्रों के अनुसार, श्री गणेश प्रथम पूजनीय हैं। अर्थात स्वस्तिक का पूजन करने का यही अर्थ है। कि हम श्री गणेश का पूजन कर, उनसे विनती करते हैं।

       हमारा पूजन कार्य सफल हो। इसके  साथ ही स्वस्तिक धनात्मक ऊर्जा का भी प्रतीक है। इसे बनाने से, हमारे आसपास की नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है। स्वस्तिक का चिन्ह वास्तु के अनुसार ही कार्य करता हैं। इसे घर के बाहर भी बनाया जाता है। जिससे स्वस्तिक के प्रभाव से,  हमारे घर पर किसी की बुरी नजर नहीं लगती। घर में हमेशा सकारात्मक वातावरण बना रहता है।

Origin of the Swastika Sign

स्वस्तिक चिन्ह क्या है
What is the Swastika Symbol

 गणेश पुराण के अनुसार, स्वस्तिक सभी बाधाओं को दूर करने वाला, भगवान श्री गणेश का एक रूप है। ऋग्वेद के एक सूत्र में, स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक चिन्ह भी कहा गया है। वही कुछ विद्वानों का मानना है कि स्वस्तिक चिन्ह भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र का प्रतीक है। स्वस्तिक को समृद्धि का निशान भी माना जाता है। 

      स्वस्तिक सनातन धर्म का एक सांकेतिक चिन्ह है। स्वस्तिक एक विशेष आकृति होती है। जिसको किसी भी शुभ काम से पहले बनाया जाता है। स्वस्ति का मतलब, कल्याण होता है। स्वस्तिक का मतलब होता है। कल्याण करने वाला। शुभता देने वाला। ऐसा माना जाता है कि स्वस्तिक चारों दिशाओं से शुभ और मंगल को अपनी और आकर्षित करता है।

      स्वस्तिक बनाते समय इसकी रेखाएं और कोण बिल्कुल सही होने चाहिए। भूलवश भी उल्टे स्वस्तिक का निर्माण व प्रयोग न करें। स्वस्तिक के उल्टे उपयोग से  गंभीर परिणाम हो सकते हैं। लाल और पीले रंग के स्वस्तिक को, सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

स्वस्तिक का सनातन धर्म मे महत्व
Swastika - Importance in Sanatan Dharma

   हिंदू, बौद्ध व जैन धर्मों के अलावा,  दुनिया के कई इलाकों में स्वस्तिक के चिन्ह का बहुत महत्व है। किसी भी मांगलिक कार्य को शुरू करने से पहले, स्वस्तिक का चिन्ह बनाने की प्रथा है। आखिर यह चिन्ह  इतना मंगलकारी क्यों है। हर एक सनातन धर्मी को, इसकी जानकारी होनी ही चाहिए।

        सनातन संस्कृति का सबसे मंगलकारी चिन्ह ‘स्वस्तिक’ अपने आप में विलक्षण है। स्वस्तिक का अर्थ सु एवं अस्ति के मिश्रण योग को माना जाता है। जहां सु का अर्थ ‘शुभ’, तो अस्ति का अर्थ ‘होना’ होता है। संस्कृत व्याकरण के अनुसार, जब सु एवं अस्ति को संयुक्त किया जाता है। तब जो नया शब्द बनता है। वह है – स्वस्ति। अर्थात शुभ हो, कल्याण हो।

     भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक को विष्णु, सूर्य, सृष्टि चक्र तथा संपूर्ण ब्रह्मांड व बैकुंठ का प्रतीक माना गया है। कुछ विद्वानों ने इसे गणेश का प्रतीक भी माना है। इस कारण यह प्रथम वंदनीय भी माना जाता है। यह मांगलिक चिन्ह, अनादि काल से संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त रहा है। अत्यंत प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में, स्वस्तिक को मंगल प्रतीक माना जाता रहा है।

      विघ्नहर्ता गणेश की उपासना, धन-वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के साथ, शुभ-लाभ, स्वस्तिक तथा बही खाते की पूजा की परंपरा है। इसे भारतीय संस्कृति में, विशेष स्थान प्राप्त है। इसीलिए किसी भी जातक की कुंडली बनाते समय या कोई मंगल व शुभ कार्य करते समय। सबसे पहले स्वस्तिक को ही बनाया जाता है। हिंदू धर्म के अतिरिक्त, दुनिया के बहुत सारे देशों में। कई हजारों सालों से, इसका इस्तेमाल किया जाता रहा है।

स्वस्तिक चिन्ह के प्रकार
Types of Swastika Symbol

   स्वस्तिक प्राचीन काल से, भारत में मंगलकारी माना जाता रहा है। किसी भी शुभ कार्य से पहले स्वस्तिक चिन्ह को अंकित करके। इसकी पूजा की जाती है। स्वस्तिक दो प्रकार के होते हैं।

स्वस्तिक या दक्षिणावर्त स्वस्तिक- स्वस्तिक दक्षिणावर्त या clockwise होता है। यह हमारे द्वारा पूरे भारत में उपयोग किए जाने वाला व पूजे जाने वाला शुभ चिन्ह है। स्वस्तिक निर्माण या निर्मिती को दर्शाता है। साथ ही उसे बढ़ावा देता है। यह सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत है।

स्वास्तिक या वामावर्त स्वस्तिक – स्वास्तिक वामावर्त या anti-clockwise होता है। स्वास्तिक विनाश या विपत्ति को दर्शाता है। उसे ही बढ़ावा देता है। यह नकारात्मकता को बढ़ावा देता है। जर्मनी के  तानाशाह हिटलर ने, अपने ध्वज में इसी वामावर्त स्वस्तिक का प्रयोग किया था।

स्वस्तिक बनाने का सही तरीका
Swastika - The Right Way to Make

Swastik banane ka Sahi Tarika

स्वस्तिक की आठ रेखाएं धरती, अग्नि, जल, वायु, आकाश, मस्तिष्क, भावनाएं और आभास का प्रतिनिधित्व करती है। इसके चार मुख्य हाथ चारों की ओर इशारा करते हैं। जो चार युगों का भी प्रतिनिधित्व करते हैं – सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग।

    स्वस्तिक के 4 बिंदु जीवन के चार आश्रमों को दर्शाते हैं – ब्रम्हचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं सन्यास। स्वस्तिक के चार हाथ, बिंदुओं सहित 4 जातियों का प्रतिनिधित्व करते हैं- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र।

         अगर इसे पुरुषार्थ के मतलब से समझा जाए। तो पहली स्थिति में 4 तरह के कर्म बताए गए हैं। जो मनुष्य को जीवन में करने चाहिए। यह है – धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष।

       इसके बाद दूसरी स्थिति में, हमारी चार मुक्ति को दर्शाया गया है। यह चार मुक्ति मोक्ष को पाने की स्थिति है। जो इस प्रकार हैं – सालोक्य, सामीप्य, सारूप्य और सायुज्य।

      अब तीसरी स्थिति में, हमारे चार अंत: करण आते हैं। यह अंत:करण वह होते हैं।  जो हमारी बुद्धि निर्णय करती है। यह चार अंतः करण हैं – मन, बुद्धि, अहंकार और चित।

     चौथी स्थिति में, भक्ति के चार स्तंभों को दर्शाया जाता है। यह भक्ति के चार स्तंभ इस प्रकार हैं – श्रद्धा, विश्वास, प्रेम और समर्पण।

      इस प्रकार हमारा पूर्ण स्वस्तिक बनता है। इसके निर्माण में, किसी भी लाइन को क्रॉस नहीं किया जाता है। जब यह 16 इंद्रियां, हमारे ब्रह्म स्थान पर मिलती हैं। तब  जो चिन्ह बनता है। उसे ही स्वस्तिक कहा जाता है।

       ब्रह्म स्थान स्वस्तिक के बीच का वह स्थान है। जहां पर चारों रेखाएं आकर मिलती है कोई भी सकारात्मक ऊर्जा जब केंद्रित हो जाती है तो उसका बहु आयामी इफेक्ट मिलता है

विभिन्न देशों मे स्वस्तिक का महत्व
Swastik - Significance in Different Countries

   भारत जापान व चाइना जैसे पूर्वी देशों में, स्वस्तिक को शांति, समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। स्वस्तिक का हजारों वर्षों से, दुनियाभर की विभिन्न सभ्यताओं में प्रयोग किया जाता रहा है।

      ग्रीक सभ्यता यूरोप की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है। जहां से मिले मिट्टी के बर्तनों में, स्वस्तिक को उकेरा गया है। अतः कहा जा सकता है कि प्राचीन ग्रीक सभ्यताओं में स्वस्तिक के बारे में पता था।

      मिनोअन सभ्यता यूरोप की सबसे प्राचीन सभ्यता है। यह ग्रीक सभ्यता से भी अधिक पुरानी है। मिनोअन सभ्यता से प्राप्त सिक्कों में स्वस्तिक चिन्ह का प्रयोग किया गया था। यहां के प्राचीन स्वर्ण आभूषणों पर भी, स्वस्तिक चिन्ह बनाया जाता था।

      इसी तरह यूरोप और अफ्रीका कि कई सभ्यताओं में स्वस्तिक का चिन्ह पाया जा सकता हैं। अफ्रीका के इथोपिया में रॉकचर्च, जो 800 साल से भी अधिक पुराना है। इसकी दीवारों पर स्वस्तिक का चिन्ह मिलता है।

     इस तरह दुनियाभर के तमाम प्राचीन सभ्यताओं में, स्वस्तिक के चिन्ह का उपयोग देखने को मिलता है।अतः हम कह सकते है कि इसका हजारों साल पुराना इतिहास है।

    स्वस्तिक को नेपाल में हेरंब, मिस्र में एक्टोन तथा वर्मा में महा पिएन्ने कहते हैं। ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड के मावरी आदिवासी भी स्वस्तिक को मंगल प्रतीक के रूप में पूजते हैं।

       सिंधु-सरस्वती सभ्यता में भी स्वस्तिक चिन्ह मिले हैं। सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में प्राप्त मुद्रा व बर्तनों में, स्वस्तिक का चिन्ह खुदा हुआ मिला है। उदयगिरि और खंडगिरि की गुफाओं में भी स्वस्तिक के चिन्ह मिले हैं।

      इसके अलावा ऐतिहासिक साक्ष्यों जैसे मोहनजोदड़ो, हड़प्पा संस्कृति, अशोक के शिलालेखों, रामायण, हरिवंश पुराण, तथा महाभारत आदि में, अनेकों बार स्वस्तिक का उल्लेख मिलता है।

स्वस्तिक चिन्ह मे रंगों का महत्व
Swastik - Significance of Colors in Symbol

अधिकतर स्वस्तिक चिन्ह लाल रंग से बनाया जाता है। लेकिन स्वस्तिक के रंगों का भी अलग-अलग महत्व है। जब स्वस्तिक हल्दी के द्वारा, घर के ईशान या उत्तर दिशा में बनाते हैं। तो इससे घर में सुख-समृद्धि और शांति का वास होता है।

      घर में किसी शुभ काम के लिए, लाल रंग से स्वस्तिक बनाया जाता है। जिसमें केसर, सिंदूर, रोली व कुमकुम आदि का प्रयोग किया जाता है। गृह प्रवेश या अन्य किसी शगुन के कार्य में, लाल सिंदूर से  स्वस्तिक को बनाया जाता है।

     वही पीला स्वस्तिक अच्छी सेहत के लिए बनाते हैं। अगर किसी को बुरी नजर लग गई है। या व्यवसाय अच्छा नहीं चल रहा है। या घर पर आर्थिक परेशानियां हो। तो ऐसे में, घर के मुख्य द्वार पर, कोयले से स्वस्तिक बनाया जाता है।

       रात में अच्छी नींद और बूरे सपनों से बचने के लिए। रात को सोने से पहले, तर्जनी उंगली पर, लाल रंग से स्वस्तिक बनाकर सोए। ऐसा करने से, अच्छी नींद तो  आती ही है। साथ ही बुरे सपने भी नहीं आते हैं।

स्वस्तिक के मुख्य तथ्य
Top Facts of Swastik

 स्वस्तिक प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में शुभ कार्यों का प्रतीक माना गया है। स्वस्तिक सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण मांगलिक प्रतीक चिन्ह है। किसी भी शुभ कार्य से पहले स्वस्तिक बनाया जाता है। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले, स्वस्तिक चिन्ह बनाकर, उसका पूजन किया है। स्वस्तिक एक संस्कृत शब्द है। जिसका अर्थ होता है। अच्छा करने वाला।

1. अनेक धर्मों में स्वस्तिक का महत्व है। हिंदू धर्म में स्वस्तिक का बहुत अधिक महत्व है। स्वस्तिक के चिन्ह को घर के दरवाजे पर बनाने से। ऐसा माना जाता है। सभी कार्य सफल होते हैं। दाहिने हाथ से शुरू होने वाला स्वस्तिक, भगवान विष्णु और सूर्य का प्रतीक है। 

     इसी प्रकार बाएं हाथ से शुरू होने वाला स्वस्तिक, मां काली का प्रतीक है। जैन धर्म में स्वस्तिक 7वें तीर्थंकर भगवान सुपार्श्वनाथ के चिन्ह को दर्शाता है। इसी प्रकार बौद्ध धर्म में, स्वस्तिक भगवान बुद्ध के पद चिन्ह व उनके हृदय को दर्शाता है। बौद्ध धर्म में स्वस्तिक की लिखावट, हिंदू और जैन धर्म से अलग है।

2. जर्मनी में स्वस्तिक प्रतिबंधित है। 19वीं शताब्दी के मध्य तक, जर्मनी संगठित नहीं था। तब वहां के युवाओं को संगठित करने के लिए और उनकी बेरोजगारी को खत्म करने के लिए। राष्ट्रवादी नेता हिटलर ने नाजी पार्टी का निर्माण किया।

      उन्होंने अपने झंडे में स्वस्तिक चिन्ह का प्रयोग किया। क्योंकि स्वस्तिक चिन्ह जर्मनी आर्यन के इतिहास का, अभिन्न अंग हुआ करता था। लेकिन बाद में, हिटलर के द्वारा किये गए, कुकर्मों के कारण। आज जर्मनी में स्वस्तिक चिन्ह प्रतिबंधित है।

3. स्वस्तिक कितना पुराना है। इसका प्रमाण Archaeological Evidence के अनुसार, सिंधु घाटी सभ्यता में भी स्वस्तिक चिन्ह का प्रयोग किए जाने का प्रमाण मिला था। साथ ही साथ यह इतना पुराना है। कि इसका उपयोग हिमयुग में भी किया जाता था। जिसका प्रमाण यूक्रेन देश में मिला था।

4. योगा में स्वस्तिक का क्या महत्व है। स्वस्तिक का उपयोग, हठयोग की मुद्रा में बैठने की स्थिति में भी किया जाता है। जिसे स्वस्तिकासन कहते हैं। स्वस्तिक चार तत्वों का प्रतिनिधित्व भी करता है। जो पृथ्वी, वायु, जल और अग्नि है।

5. स्वस्तिक के बारे में वैज्ञानिकों की खोज है। स्वस्तिक को energy scale से मापा गया। जिसे Bovis Biometer या Bioscale भी कहा जाता है। एक स्वस्थ व्यक्ति की एनर्जी 8000 से 10000 bovis होती है।

    जबकि ॐ की एनर्जी 1 लाख bovis होती है। इसी प्रकार किसी भी size के स्वस्तिक की एनर्जी 10 लाख bovis होती है। यानी कि ॐ से 10 गुना ज्यादा। आप समझ सकते हैं कि स्वस्तिक की एनर्जी इतनी ज्यादा है। इसीलिए हमारे शास्त्रों में भी, स्वस्तिक को इतना महत्व दिया गया।

6. कजाकिस्तान की बहुसंख्यक जनता मुस्लिम है। यहां पर स्वस्तिक चिन्ह को राष्ट्रीय चिन्ह माना जाता है।

7. अमेरिका के सुप्रसिद्ध ब्रांड कोका-कोला ने भी, स्वस्तिक चिन्ह का प्रयोग अपने प्रोडक्ट्स में किया था।

8. जब स्वस्तिक को घर के मुख्य द्वार पर अंकित किया जाता है। तो यह स्वस्तिक चिन्ह, चारों दिशाओं से शुभता को घर में प्रवेश करवाता है। स्वस्तिक सौभाग्य का भी प्रतीक है। जो हर दिशा से देखने पर, एक सामान दिखाई देता है।

9. स्वस्तिक के मध्य भाग को, भगवान विष्णु की नाभि माना गया है। जिससे सृष्टि कार ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई है। यह चारों रेखाएं ब्रह्मा जी के चार मुखों को भी दर्शाती हैं।

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