बिरसा मुंडा इतिहास | Who was Birsa Munda | Birsa Munda Jayanti

बिरसा मुंडा इतिहास – मुंडा कौन थे, पूरा नाम क्या है, जन्म कब हुआ था, धर्म, निबंध, जयंती, नारा [ Who was Birsa Munda, Biography In Hindi, History, Jayanti ]

जीवन बड़ा नहीं, बल्कि महत्वपूर्ण होना चाहिए। जिंदगी लंबी नहीं, वरन जबरदस्त होनी चाहिए। आप 50 साल जिए, लेकिन कोई भी ऐसा महत्वपूर्ण काम न करें। जिससे कि कोई आपको याद करें। वैसे तो जल, जंगल और जमीन की लड़ाई  सदियों पुरानी है। इस लड़ाई में अनगिनत नायक आए और चले गए। लेकिन यह लड़ाई आज भी बदस्तूर जारी है।

यह बात एक ऐसे नायक की है। एक ऐसे करिश्माई विद्रोही नेता की है। जिनके एक बुलावे पर, हजारों लोग इकट्ठा हो गए। जिन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया। इन्होंने केवल 25 साल की जिंदगी बिताई। लेकिन इन्हीं 25 सालों में, इन्हें भगवान का दर्जा मिल गया। इस तरह की घटनाएं, किसी के भी जीवन को बदलने के लिए पर्याप्त होती हैं।

इनका कहना था, मैं केवल देह नहीं। मैं जंगल का पुश्तैनी दावेदार हूं। पुश्ते और उनके दावे मरते नहीं। मैं भी मर नहीं सकता। मुझे कोई जंगलों से बेदखल नहीं कर सकता। इन्ही जंगलों से जुड़ा, एक शब्द आदिवासी है। जो आदि और वासी दो शब्दों से मिलकर बना है। जिसका अर्थ मूल निवासी होता है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 8.6% आबादी आदिवासियों की है।

भारत में सदियों से आदिवासी लोग रहते आए हैं। समय-समय पर भारत पर, कई विदेशी आक्रांताओ ने आक्रमण किए। जिन आक्रमण का सामना, भारतीयों ने किया। आज हम ऐसे ही एक महानायक आदिवासी के बारे में जानेंगे। जिन्होंने भारतीय इतिहास में अपनी जगह सुनिश्चित की। ऐसे ही एक महापुरुष बिरसा मुंडा है। इसी प्रकार जाने : Draupadi Murmu Biography in Hindi। राष्ट्रपति भवन तक का पूरा सफर।

बिरसा मुंडा इतिहास

Birsa Munda – An Introduction

बिरसा मुंडा 
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के जननायक
पूरा नामबिरसा मुंडा
उपनाम• दाऊद 
• बिरसा
• धरती बाबा 
• विस्वपिता पिता का अवतार
जन्मतिथि15 नवंबर 1875 (दिन बृहस्पतिवार)
जन्म स्थानगांव-उलिहातू, जिला-खूंटी, झारखंड
पिता का नामसुगना मुंडा (मसीह दास)
माता का नामकर्म हटू मुंडा (करनी मुंडा)
प्रारंभिक शिक्षासाल्गा गांव में
उच्च प्राइमरी शिक्षाचाईबासा इंग्लिश मीडियम स्कूल
वैवाहिक स्थितिअविवाहित
भाई-बहन• कोमता मुंडा (बड़ा भाई)
• दस्निकर (बड़ी बहन) 
• चंपा (बड़ी बहन)
शिक्षक व गुरु• जयपाल नाग (प्रारंभिक शिक्षक)
• आनंद पांडे (धार्मिक गुरु)
प्रसिद्धि• बिरसा मुंडा ‘मुंडा आंदोलन’ के क्रांतिकारी जननायक रूप में। 
• झारखंड के लोग, इन्हें ‘भगवान बिरसा’ मानने लगे थे।
जिनके स्पर्श करने से ही रोग दूर हो जाते हैं।
आंदोलन के प्रमुख कारण• खूंटकट्टी व्यवस्था की समाप्ति और बेठ बेकारी
• मिशनरियों का कोर आश्वासन और मोह भंग
• अदालतों से निराशा 
• छोटा नागपुर वन सुरक्षा कानून
बिरसा मुंडा का नारा‘अबुआ ढिशुम, अबुआ राज’ यानी हमारा देश हमारा राज ‘उलगुलान’ (जल-जंगल-जमीन पर दावेदारी)
लिखी गई किताबगांधी से पहले गांधी, Gandhi Before Gandhi
बिरसा मुंडा जयंती15 नवंबर 2023
मृत्यु तिथि9 जून 1900
मृत्यु स्थानरांची सेंट्रल जेल, रांची, झारखंड
मृत्यु का कारणहैजा की बीमारी के कारण

बिरसा मुंडा का प्रारंभिक जीवन

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के खूंटी जिले के उलिहातू  गांव में हुआ था। इनका बचपन का नाम दाऊद मुंडा था। इनका जन्म एक गरीब मुंडा जनजाति परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम कर्म हटू मुंडा था। उनके पिता का नाम सुगुना मुंडा था। जो एक खेतिहर मजदूर थे। इनके परिवार में चार भाई-बहन थे। इनके एक बड़ा भाई कोमता मुंडा थे।

इनकी दो बड़ी बहने भी थी। जिनका नाम दस्निकर और चंपा था। इनका जन्म बृहस्पतिवार को हुआ था। मुंडा मान्यता के अनुसार, इनका नाम बिरसा दिया गया था। साथ ही लोगों ने यह भी भविष्यवाणी की थी। कि एक दिन  बिरसा ब्रिटिश साम्राज्य को भारत राज्य से  उखाड़ फेकेंगे। भारत में एक बार फिर से युद्ध शांति कायम होगी।

उन दिनों रोजगार की बहुत समस्या थी। जिसके कारण उनके माता-पिता उलिहातू गांव से रोजगार की तलाश में, बिरसा के चाचा के यहां कुरूमबड़ा गांव चले आते हैं। जहां उनके पिता को, एक जमीदार के यहाँ नौकरी मिल जाती है। बिरसा मुंडा को बचपन में भेड़, बकरी व गाय चराने का काम मिलता है।     

लेकिन वह बचपन में, बहुत शरारती होने के कारण, भेड़ बकरियों को छोड़कर। पेड़ पर बैठकर बांसुरी बजाया करते थे। इनकी शरारतों के कारण, माता-पिता बहुत तंग थे। उन्होंने परेशान होकर, बिरसा को उनके मामा आयुभटू भेज दिया। इसी प्रकार जाने : कबीर दास का जीवन परिचयचलिए खुद में कबीर को और कबीर में खुद को ढूंढते हैं।

बिरसा मुंडा के समय भारत की सामाजिक स्थिति

अंग्रेज आदिवासियों का शोषण किया करते थे। उस समय अंग्रेज, रेलवे का निर्माण कर रहे थे। जिसके कारण, वे जबरदस्ती आदिवासियों की जंगल और जमीन को काट लिया करते थे। ब्रिटिश सरकार, जमीदार, ठेकेदार व बड़े व्यवसाई मिलकर, आदिवासियों की जमीन हड़प रहे थे। आदिवासियों को अपनी खेती करने के लिए भी, जमीदारों को कर व भूमिगत उपज का हिस्सा देना होता था।

आदिवासी जनता अंग्रेजी हुकूमत, जमीदार, सेठ-साहूकार और व्यवसायियों से लगातार शोषित हो रही थी। आदिवासी लोग इनके नौकर हुआ करते थे। आदिवासियों को शादी समारोह, जन्म व मृत्यु भोज करने के बदले भी टैक्स देना होता था। वे जमीदारों के लिए, पालकी बनाया करते थे। वे पालकी को कंधों पर ले जाने का भी काम किया करते थे।

जंगलों की जबरन कटाई की जाती थी। जानवरों को जब्त किया जा रहा था। अंग्रेजों को जब भी मांसाहार खाने की इच्छा होती थी। तो वह किसी का भी पशु जैसे बकरा, गाय आदि उठा ले जाया करते थे। कोई अगर इसके खिलाफ आवाज उठाता था। तो जान से मार देना, उस दौरान आम बात हुआ करती थी।

सरकारी अधिकारी व जमींदारों के खिलाफ, अगर कोई आदिवासी मुकदमा दायर करता था। तो दोनों पक्षों के खर्च की भरपाई, आदिवासियों को ही करनी होती थी। इन्हीं सब माहौल के बीच में, बिरसा मुंडा बड़े हो रहे थे।

बिरसा मुंडा की शिक्षा

बिरसा ने यहीं पर साल्गा क्षेत्र के, एक विद्यालय में 2 वर्ष तक पढ़ाई की। जहाँ उनके शिक्षक जयपाल नाग थे। बिरसा की प्रारंभिक शिक्षा साल्गा में हुई थी। धीरे-धीरे बिरसा को किताबें पढ़ने का शौक हो गया। उनके पास हमेशा कोई न कोई पुस्तक जरूर होती थी। इनकी पढ़ाई के प्रति रुचि देखकर, उनके शिक्षक ने सलाह दी। कि आप ईसाई मिशनरी स्कूल में जाकर, आगे की पढ़ाई करें।

यहां से अच्छी शिक्षा, आपको वहां पर मिलेगी। बिरसा मुंडा 2 साल के बाद, वापस अपने घर लौट आए। बिरसा मुंडा ने इस दौरान, अंग्रेजों के अत्याचार को बहुत नजदीक से देखा। अंग्रेजों और जमींदारों के जुर्म का सिलसिला, लगातार बढ़ता जा रहा था। वहीं दूसरी तरफ बिरसा मुंडा धीरे-धीरे बड़े हो रहे थे। इसके बाद, बिरसा आगे की पढ़ाई के लिए, चाईबासा इंग्लिश मीडियम स्कूल में चले गए।       

यहां पर पढ़ने के लिए, इन्हें ईसाई धर्म अपनाना पड़ा। ईसाई धर्म अपनाने के बाद, इनका नाम बिरसा डेबिट पड़ गया। जो बाद में बिरसा दाऊद बन गए। बिरसा के गुरु जयपाल नाग ने, इन्हें अपने धार्मिक ग्रंथ को पढ़ने के लिए प्रेरित किया था। उन्होंने कहा कि आप अपनी संस्कृति को, कभी मत भूलना। जिस से प्रेरित होकर, वह अपने साथ भगवत गीता और रामायण लेकर गए थे। जहां वह छुप-छुपकर इसे पढ़ा करते थे।

अंग्रेजो के द्वारा जिस तरह से आदिवासी समाज शोषित हो रहा था। बिरसा इस बात से भली-भांति परिचित थे। इसीलिए बचपन से ही उनकी सोच थी। कि एक दिन वह आदिवासी समाज को जरूर मुक्त करवाएंगे। इसीलिए वह मिशनरी स्कूल में गए थे। ताकि वे उनका ज्ञान ले सकें। वे ज्ञान के माध्यम से जान सकें। अंग्रेज क्या नीति अपनाते हैं।

यह सब जानने के लिए, वह मिशनरी  स्कूल में आए थे। इस स्कूल में छात्रों को, अपने धर्म और संस्कृति के खिलाफ भड़काया जाता था। वे कहते थे कि आदिवासी समाज में, धोखेबाज लोग रहते हैं। छल-कपट करते हुए, वे गुलाम बन जाते हैं। अगर तुम इस धर्म को अपनाओगे। तो राजा बन जाओगे। इस प्रकार के प्रवचन  ईसाई स्कूलों में सिखाए जाते थे।

इन्होंने 4 वर्षों तक, इस सबको बर्दाश्त किया। 4 साल बाद, जब उन्हें लगा कि उनका ज्ञान पर्याप्त हो गया है। तो वह चाईबासा स्कूल में, अपने शिक्षक से भिड़ गए। उन्होंने अपने शिक्षक से कहा कि हमारे आदिवासी समाज की संस्कृति और शिक्षा गलत नहीं है।

गलत तुम हो, तुम हमारे देश में जल, जंगल और जमीन पर कब्जा करने के लिए आए हो। इतना बोलकर, बिरसा मुंडा चाईबासा स्कूल छोड़कर, अपने गांव वापस आ गए। इसी प्रकार जाने : Mahatma Gandhi ka Jivan ParichayMahatma Gandhi Biography in Hindi।

बिरसा मुंडा द्वारा सामाजिक कुरीतियों का बहिष्कार

बिरसा मुंडा जब अपने गांव पहुंचते है। तो उस वक्त देश में, अकाल का दौर था। घर में एक अन्य का दाना भी नहीं था। लोग जंगली फलों को खाकर, जीवन यापन करते थे। उसी से बिरसा मुंडा ने भी अपनी भूख मिटाई। उस वक्त अकाल का दौर, अपनी चरम पर था। कोई न कोई आदिवासी, भूख के कारण मारा जा रहा था।

वहीं दूसरी ओर चारों तरफ अंधविश्वास भी फैला हुआ था। जब किसी व्यक्ति की पत्नी का या किसी महिला का देहांत हो जाता था। तो उसके साथ सोने-चांदी के आभूषण, उस मृत शरीर के साथ जमीन में  दफन कर दिए जाते थे। बिरसा मुंडा घर की तकलीफ और भाई-बहन को भूख से तड़पता देखकर बहुत व्यथित हुए।

उन्हें लगा कि यह तो अंधविश्वास है।  एक तरफ जहां लोग भूख से मर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ लोग मृत शरीर के साथ, कर्जा लेकर भी आभूषण दफन कर रहे हैं। तभी एक दिन बिरसा मुंडा ने, आधी रात को दफन किए गए। एक मृत शरीर से  आभूषण निकाल लिए। उसे किसी साहूकार के पास बेचकर, उसके बदले अनाज ले आए।

जब उनकी मां को इस बात का पता  चला। तो वह बिरसा मुंडा पर अत्यधिक क्रोधित हुई। उन्होंने बिरसा को घर से बाहर निकाल दिया। उनकी माँ का मानना था कि हम लोग भूखे मर जाएंगे। लेकिन इस तरह से परम्पराओं को नष्ट नही होने देंगे। न हीं चोरी मक्कारी करेंगे।

बिरसा मुंडा की तपस्या और भगवान के रूप में पहचान

बिरसा मुंडा को इन बातों से बहुत दुख हुआ। फिर वह घर छोड़कर, जंगल में चले गए। वह जंगल में जाकर, उन्होंने ध्यान व तपस्या करने लगे। उसी समय उन्हें ‘सिंमोगा’ के दर्शन हुए। ‘सिंमोगा’ जिन्हें आदिवासियों के सबसे बड़े देवताओं में से एक माना जाता है। वह बिरसा मुंडा को आशीर्वाद देते हैं। तुम ही इन आदिवासियों के जननायक हो।

आगे चलकर, तुम्ही इन्हें शोषित होने से बचाने व उन्हें जगाने का काम करो। इसके बाद बिरसा मुंडा, अपने आप गांव वापस लौट आए। गांव आने के बाद, एक चमत्कार हुआ। वह अब पूरी तरह से बदल चुके थे। वह अब चंचल से शांत स्वभाव के हो गए थे। उनकी बातों में गंभीरता नजर आने लगी।

अब उनकी बातों को, लोग बड़े ध्यान से सुनते। बिरसा मुंडा जिस व्यक्ति को छू लेते थे। तो उनके छूने मात्र से ही, उसकी सभी बीमारियां दूर हो जाती थी। वह जंगल की जड़ी-बूटियों के द्वारा भी, उन्होंने बहुत सारी लाइलाज बीमारियों का भी इलाज किया। उनकी ख्याति धीरे-धीरे इतनी बढ़ गई। कि लोग उन्हें ‘धरती बाबा’ या ‘बिरसा भगवान’ बोलने लगे। इसी प्रकार जाने :  Lal Bahadur Shastri Biography in Hindi शास्त्री जी के जीवन के अंतिम पल का सच।

बिरसा मुंडा का नारा व आंदोलन

बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों व जमींदारों के खिलाफ कई बड़े विद्रोह किए। जिसने ब्रिटिशों की नाक में दम कर दिया। पोरहट क्षेत्र में पहले से, एक आदिवासी मुंडा विद्रोह चल रहा था। बिरसा मुंडा ने उस विद्रोह में भाग लिया। 1894 में बिरसा मुंडा एक प्रमुख व मजबूत युवा शक्ति के रूप में उभरने लगे। अंग्रेज लगातार भारतीयों को तरह-तरह के नियमों से जकड़ रहे थे।

तब बिरसा मुंडा ने उराव, मुंडा, खड़िया आदि जनजाति के सरदारों से मुलाकात की। फिर साथ मिलकर, अंग्रेज और जमींदारों के खिलाफ विद्रोह करने की ठानी। 1 अक्टूबर 1894 को बिरसा मुंडा ने प्रमुख विद्रोह किया। जिसके तहत, उन्होंने अंग्रेजों को लगान देना बंद करवा दिया। उन्होंने कहा, हम आदिकाल से इन जंगलों में रहते आ रहे हैं। धर्म परिवर्तन कर बाहरी लोग, हमसे हमारा जंगल नहीं छीन सकते।

जिस प्रकार भारत के जमींदार व जागीरदार ब्रिटिशों के सामने झुक गए। वैसे हम आदिवासियों को नहीं झुकना है। हम आदिवासी हैं। हमें हमारे हक के लिए खड़ा होना होगा। बिरसा मुंडा ने नारा दिया- “अबुआ राज एते जाना, महारानी राज टुंडू जाना” जिसका अर्थ था, “रानी का राज खत्म हो और हमारा राज स्थापित हो।” बोलो उलगुलान यानी क्रांति जारी रहे।

बिरसा मुंडा को अंग्रेजों द्वारा कैद

जब आम भारतीयों ने ब्रिटिशों को लगान देना बंद कर दिया। तो ब्रिटिशों ने बिरसा मुंडा को पकड़ने का अभियान चलाया। बिरसा मुंडा भूखे-प्यासे भारतीयों को, ब्रिटिश और जमींदारों के खिलाफ खड़ा कर रहे थे। वे प्राकृतिक संपदा से ही,अपनी भूख मिटाते थे। बिरसा मुंडा अंग्रेजों के लिए, खतरनाक साबित हो रहे थे। 1895 में बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर, हजारीबाग जेल में डाल दिया गया।

लेकिन अब तक बिरसा मुंडा के प्रयासों के फलस्वरुप, उनके बहुत से अनुयाई बन गए थे। जब वह जेल में थे। तब भी उनके अनुयाई, लगातार आम भारतीयों को जागरूक कर रहे थे। उस वक्त भी ब्रिटिशों को लगान नहीं मिल पाया। 2 साल की कैद के बाद, बिरसा मुंडा को रिहा कर दिया गया। जेल से निकलने पर, बिरसा मुंडा का आदिवासियों ने भव्य स्वागत किया। इसी प्रकार जाने :  Lal Bahadur Shastri Biography in Hindi शास्त्री जी के जीवन के अंतिम पल का सच।

बिरसा मुंडा के अनुयायियों और अंग्रेजों के बीच युद्ध

बिरसा मुंडा ने अपना आंदोलन जारी रखा। 1897 में बिरसा मुंडा ने 400 अनुयायियों के साथ मिलकर, खूंटी पुलिस थाने पर हमला कर दिया। 1898 में तांगा  नदी के किनारे, बिरसा मुंडा के अनुयायियों और अंग्रेजी सेना के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध में बिरसा मुंडा की विजय  हुई। इस युद्ध मे अंग्रेजों की बंदूकें, बिरसा  के धनुष बाणों के आगे टिक न पाई। लेकिन इसके बाद, बिरसा मुंडा के बहुत से अनुयायियों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया।

1899 के आसपास, बिरसा मुंडा ने 7000 पुरुष व महिलाओं का संगठन बनाया। फिर एक बार पुनः आंदोलन किया। यह आंदोलन जल्द ही झारखंड के बहुत से हिस्सों में फैल गया। सब तरफ एक ही आवाज गूंज रही थी। “अबुआ दिशुम – अबुआ राज”, यानि हमारा देश हमारा राज। उलगुलान जारी रहे। उन्होंने इसी तरह अपना आंदोलन जारी रखा।

बिरसा मुंडा ने आदिवासी को अपने मूल पारंपरिक आदिवासी धार्मिक व्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए जोर दिया। 5 जनवरी 1900 को बिरसा के अनुयायियों ने जेल में, दो सिपाहियों की हत्या कर दी। 7 जनवरी 1900 को खूंटी पुलिस स्टेशन पर हमला किया। यहां पर भी एक कांस्टेबल की हत्या कर दी। इसके साथ ही स्थानीय दुकानदारों के घरों को भी तोड़ दिया।

तब कमिश्नर ए. फोबोस और डिप्टी कमिश्नर एस.सी स्ट्रीटफील्ड को 150 बंदूकधारी के साथ, खूंटी विद्रोह के दमन के लिए भेजा गया। साथ ही बिरसा को पकड़ने के लिए, इनाम रखा गया। 19 जनवरी को डोगरी पहाड़ी पर संघर्ष हुआ। जिसमें अंग्रेजों ने कई महिलाओं और बच्चों को मार दिया।

बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी व हत्या

जनवरी 1900 को बिरसा मुंडा अंग्रेजों के चुंगल में फंस गए। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें रांची के कारागार में रखा गया। बिरसा मुंडा के कमर और पैरों में लोहे की जंजीरें बांधी गई। उनके भोजन में धीरे-धीरे जहर मिलाया जाने लगा। जिसके कारण भारत के अमर क्रांतिकारी व जननायक बिरसा मुंडा ने, मात्र 25 वर्ष की आयु में, 9 जून 1900 को रांची के कारागार में शहीद हो गए। इसी प्रकार जाने : Bhagat Singh Biography – शहीद-ए-आजम भगत सिंह की अनसुनी Life Story।

बिरसा मुंडा जयंती
Birsa Munda Jayanti

बिरसा मुंडा जी की याद में, प्रतिवर्ष 15 नवंबर को, उनकी जयंती देशभर में मनाई जाती है। जयंती का आधिकारिक समारोह, झारखंड की राजधानी रांची में, उनकी समाधि स्थल पर होता है। आज उनके नाम पर ‘बिरसा मुंडा एयरपोर्ट रांची‘, ‘बिरसा इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी सिंदरी’, ‘बनवासी छात्रावास कानपुर’, ‘सिधो कान्हो बिरसा विश्वविद्यालय, पुरुलिया’ की स्थापना की गई।

इसके अलावा ‘बिरसा मुंडा इंटरनेशनल हॉकी स्टेडियम, राउलकेला’, ‘बिरसा मुंडा ट्राईबल विश्वविद्यालय की भी स्थापित की गई। भारतीय सेना की बिहार रेजीमेंट में, ‘बिरसा मुंडा की जय’ का नारा लगाया जाता है। 2004 में एक हिंदी फिल्म ‘उलगुलान-एक क्रांति’ बनाई गई थी।

इसके बाद 2008 में, बिरसा के जीवन पर आधारित  ‘गांधी से पहले गांधी’ एक फिल्म बनी थी। रमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता महाश्वेता  देवी का ऐतिहासिक उपन्यास ‘अरण्ड अधिकार’ लिखा था। जिसके लिए उन्हें 1980 में, बंगाली अकादमी साहित्य पुरस्कार मिला था। यह उपन्यास बिरसा के जीवन और मुंडा विद्रोह पर आधारित है।

उलगुलान के महानायक की याद में, बिरसा मुंडा की 150 फीट ऊंची मूर्ति है। बिरसा मुंडा के कारण ही, 1908 में ब्रिटिशों ने एक अधिनियम बनाया। इसके अंतर्गत एक आदिवासी की जमीन, कोई गैर आदिवासी नहीं ले सकता।

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