लाल बहादुर शास्त्री – जीवनी, निबंध, जन्म कब हुआ था, प्रधानमंत्री कब बने, किसने मारा, जीवन परिचय [ lal bahadur shastri – jayanti, birthday, death, history, essay, biography in hindi ]
लाल बहादुर शास्त्री की जीवनी
Lal Bahadur Shastri Biography in Hindi
सम्पूर्ण पृथ्वी पर, भारत-भूमि हमेशा से महापुरुषों की जन्म दात्री रही है। जब-जब इस देश को आवश्यकता पड़ी। तो कभी बुद्ध या महावीर ने जन्म लेकर, अहिंसा का संदेश दिया। उन्होंने पूरी मनुष्यता को कृतज्ञ किया। तो कभी कृष्ण की बांसुरी के सुरों ने शांति की स्थापना की। तो कभी राम ने अपने जीवन में सर्वस्व त्याग का संदेश देकर, माता-पिता, गुरुजनों की महत्ता की प्रतिष्ठा की।
किसी का रूप, पहनावा या सुंदरता अस्थाई होती है। लेकिन एक इंसान को इतिहास, उनके काम और उनके मेहनत से जानता है। आपके जीवन मूल्य, आपके आचार-विचार, आपका चरित्र ही, आपको परिभाषित करता है। बहुत से लोग अक्सर उन लोंगो का साथ छोड़ देते है। जिनका रूप व पहनावा अच्छा नही होता। जो दिखने में अच्छे नही होते।
इस दुनिया में जितने भी महान लोग हुए। वह देखने में अच्छे नहीं थे। लेकिन उनका चरित्र बहुत जबरदस्त था। आज हम जानेंगे। एक ऐसे ही इंसान को। जिनके रूप और कद का बहुत मजाक उड़ाया गया। लेकिन इन्होंने अपने काम से पूरी दुनिया को झुका दिया। सादगी भरा जीवन जीने वाले ये शख्स, एक कुशल नेतृत्व वाले गांधीवादी नेता थे।
यह वह शख्स थे। जो मात्र 18 महीने तक, भारत का प्रधानमंत्री रहे। लेकिन हमेशा के लिए, लोगों के दिलों पर अपनी छाप छोड़ गऐ। जवाहरलाल नेहरू ने एक बार इनके लिए कहा था। अत्यंत ईमानदार, दृढ़ संकल्प, शुद्ध आचरण, ऊंचे आदर्शों में पूरी आस्था रखने वाले, निरंतर सजग व्यक्तित्व का ही नाम है- लाल बहादुर शास्त्री।
ताशकंद समझौते के दौरान, पाकिस्तान की तरफ से अयूब खान और भारत की ओर से लाल बहादुर शास्त्री जी ताशकंद पहुंचते हैं। मीटिंग शुरु होने से पहले, अयूब खान से पूछा जाता है। वह लाल बहादुर शास्त्री के बारे में क्या राय रखते हैं। तब अयूब खान ने बड़े ही हास्यास्पद शब्दों में कहा।
मैं उस बौने से क्या बात करूंगा। बौना मुझसे क्या बात करेगा। वह जब यह बात शास्त्री जी तक पहुंचती है। तब शास्त्री जी इस पर प्रतिक्रिया माँगी जाती है। शास्त्री जी कहते हैं। जब हम दोनों के बीच बातचीत होगी। उस वक्त अयूब खान सर झुका कर बात करेंगे। मैं उनसे सर उठाकर बात करूंगा। इसी प्रकार जाने : The Missile Man of India – President Dr. APJ Abdul Kalam Biography।
Lal Bahadur Shastri Ji – An Introduction
लाल बहादुर शास्त्री एक परिचय | |
वास्तविक नाम | लाल बहादुर शास्त्री |
उपनाम | • शांति दूत • शास्त्री जी • गुदड़ी के लाल • माटी के लाल • नन्हे |
जन्म | 2 अक्टूबर 1904 |
जन्म स्थान | मुगलसराय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
पिता | मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव (शिक्षक) |
माता | राम दुलारी देवी |
पत्नी | ललिता देवी |
बच्चे | बेटे • हरि कृष्ण शास्त्री • अनिल शास्त्री • सुनील शास्त्री • अशोक शास्त्री बेटियाँ • कुसुम शास्त्री • सुमन शास्त्री |
शिक्षा | • श्री हरिश्चंद्र इंटर कॉलेज, वाराणसी • महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी |
शैक्षिक योग्यता | कला में स्नातक |
व्यवसाय | • स्वतंत्रता संग्राम सेनानी • सामाजिक कार्यकर्ता • शिक्षक • राजनीतिज्ञ |
राजनीतिक पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
प्रमुख पद | • कांग्रेस महासचिव (1951) • भारत गणराज्य के रेल मंत्री (1952) • परिवहन एवं संचार मंत्री (1957) • वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के प्रभारी 1958 • भारत के गृहमंत्री (1961) • भारत के प्रधानमंत्री (6 जून 1964 से जनवरी 1966) |
प्रमुख नारा | “जय जवान, जय किसान“ |
सम्मान | भारत रत्न (मरणोपरांत- 1966) |
मृत्यु | 11 जनवरी 1966 |
मृत्यु स्थान | ताशकंद, सोवियत संघ (अब उज़्बेकिस्तान में) |
मृत्यु का कारण | हृदयाघात (घोषित कारण) षड्यंत्र के तहत मृत्यु (संदिग्ध) |
समाधि स्थल | विजय घाट, नई दिल्ली |
शास्त्री जी का प्रारम्भिक जीवन
Early Life of Shastri ji
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को हुआ। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे, मुगलसराय में हुआ। जो वाराणसी से महज 7 किलोमीटर की दूरी पर है। शास्त्री जी के पिता मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव पेशे से एक शिक्षक थे। शास्त्री जी की माता का नाम राम दुलारी श्रीवास्तव था।
शास्त्री जी का प्रारंभिक जीवन अत्यंत संघर्षपूर्ण रहा। जब वह 2 वर्ष के थे। तभी उनके पिता का निधन हो गया। वह अपने परिवार में सबसे छोटे थे। इसलिए घर के सभी सदस्य, उन्हें नन्हे कहकर बुलाते थे। पति की मृत्यु के बाद, उनकी माता अपने पिता के घर मिर्जापुर आ गई। शास्त्री जी का बचपन, अपने नाना हजारीलाल के यहां बिता। मिर्जापुर के प्राइमरी विद्यालय से ही, शास्त्री जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की।
कठिन एवं संघर्षपूर्ण परिस्थितियों में भी, उनकी माता ने उन्हें आदर्श, संस्कार एवं उच्च विचार प्रदान किए। जिसके चलते उन्होंने आगे चलकर देश का नेतृत्व किया। मिर्जापुर में उच्च शिक्षा की उचित व्यवस्था नही थी। जिसके कारण, शास्त्री जी को अपने चाचा के यहां वाराणसी आना पड़ा।
वाराणसी में उन्होंने श्री हरिशचंद्र इंटरमीडिएट कॉलेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद उन्होंने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि (समकक्ष स्नातक) प्राप्त की। तभी से वह अपने नाम के आगे, शास्त्री लिखने लगे। शास्त्री जी का व्यवहार एकदम सरल व सादगीपूर्ण था। ईमानदारी एवं उच्च आदर्श उनके खून में रचे-बसे थे। इसी प्रकार जाने : Mahatma Gandhi ka Jivan Parichay। Mahatma Gandhi Biography in Hindi।
शास्त्री जी की स्वतन्त्रता आंदोलन मे हिस्सेदारी
Shastri’s Participation in the Freedom Movement
जब वह मात्र 11 वर्ष के थे। तभी से उनका मन अंग्रेजो के खिलाफ चल रहे। आंदोलनों की ओर आकर्षित होने लगा था। बचपन में ही शास्त्री जी ने मन बना लिया था। वह भी आजादी की लड़ाई में, अपना योगदान देंगे। शास्त्री जी शुरू से ही महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थे। वह महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानते थे।
उच्च शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात, जब उन्होंने अपनी माता राम दुलारी देवी को यह बताया। वह भारत की आजादी की लड़ाई में, अपना जीवन समर्पित करना चाहते हैं। तो यह सुनकर, उनकी मां को अत्यधिक निराशा हुई। क्योंकि उनके जीवन की एक आस उन्हीं से थी। लेकिन वह जानती थी। उनके पुत्र ने जो फैसला कर लिया है। वह उसे बदलेगा नहीं।
शिक्षा पूरी करने के बाद ही, वह भारत सेवा संघ से जुड़ गए थे। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों एवं आंदोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही। जिसमें सन 1921 का असहयोग आंदोलन। सन 1930 का सविनय अवज्ञा आंदोलन। सन 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन। सन 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन प्रमुख था। इन सभी आंदोलनों में, वे कई बार जेल भी गए।
द्वितीय विश्व युद्ध में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ‘आजाद हिंद फौज’ को ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया। ऐसे में गाँधी जी ने मौके की नजाकत को भांपते हुए। 8 अगस्त 1942 को मुंबई की एक सभा से अंग्रेजों को ‘भारत छोड़ो’ का नारा दिया। इसके साथ ही भारतीयों को ‘करो या मरो’ का नारा दिया। 9 अगस्त 1942 के दिन, शास्त्री जी ने इलाहाबाद पहुंचकर। ‘मरो नहीं मारो’ का आव्हान जनता से किया।
उनके इस नारे ने क्रांति की दावानल को पूरे देश में प्रचंड रूप दे दिया। 11 दिन तक भूमिगत रहते हुए, शास्त्री जी ने इस आंदोलन को चलाया। शास्त्री जी को 19 अगस्त 1942 को अंग्रेज सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। शास्त्री जी के राजनीतिक गुरुओं में पुरुषोत्तम दास टंडन और पंडित गोविंद बल्लभ पंत के अतिरिक्त जवाहरलाल नेहरू भी शामिल थे।
शास्त्री जी का विवाह
Shastri’s Marriage And Children
1928 में शास्त्री जी का विवाह मिर्जापुर में रहने वाले, गणेश प्रसाद जी की पुत्री ललिता देवी से हुआ। शास्त्री जी दहेज प्रथा के खिलाफ थे। इसलिए उन्होंने अपने विवाह में, कोई भी दहेज नही लिया। ललिता शास्त्री ने जीवन भर शास्त्री जी के आदर्श व मूल्यों का सम्मान किया। इसके साथ ही उन्होंने हर कदम पर उनका साथ दिया।
लाल बहादुर शास्त्री व ललिता शास्त्री के 6 संताने थी। जिनमें चार पुत्र व दो पुत्रियाँ थी। इनमें से 2 पुत्र अभी भी जीवित हैं अनिल शास्त्री कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता हैं। जबकि सुनील शास्त्री अब भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो चुके हैं।
शास्त्री जी का आज़ादी के बाद योगदान
Contribution of Shastri Ji After Independence
भारत की स्वतंत्रता के पश्चात, लाल बहादुर शास्त्री को संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया। उत्तर प्रदेश में गोविंद बल्लभ पंत के मंत्रिमंडल में, शास्त्री जी को पुलिस एवं परिवाहन मंत्री बनाया गया। शास्त्री जी ने परिवहन मंत्री के रूप में, भारत की प्रथम महिला कंडक्टर की नियुक्ति की।
शास्त्री जी ने जब पुलिस मंत्रालय का कार्यभार संभाला। तब भीड़ को नियंत्रित करने के लिए लाठीचार्ज की जगह, पानी की बौछार करने जैसे महत्वपूर्ण फैसले किए। जो उनकी मानवीय संवेदनाओं को दर्शाते हैं।
1951 में जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का महासचिव नियुक्त किया। शास्त्री जी की मेहनत, उनकी स्वच्छ छवि अथवा उनके कुशल नेतृत्व का ही कारण था। जिसने कांग्रेस पार्टी को 1952, 1957 तथा 1962 के चुनावों में भारी बहुमत दिलाया। इसी प्रकार जाने : गौतम बुद्ध का जीवन परिचय। Gautam Buddha Biography in Hindi।
जवाहर लाल नेहरू के बाद कौन ?
Who After Jawaharlal Nehru ?
27 मई 1964 को प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अंतिम सांस ली। उनकी मृत्यु के पश्चात सवाल उठने लगा। नेहरू के बाद कौन? नेहरू की मृत्यु के बाद, प्रधानमंत्री का पद भरना आवश्यक था। इसलिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलजारी लाल नंदा को केयरटेकर प्रधानमंत्री बना दिया गया। यह तब तक अस्थाई प्रबंध था।
जब तक नेहरू का उत्तराधिकारी नही मिलता। इसे चुनने की जिम्मेदारी के कामराजन पर आ गई। जो उस वक्त कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष थे। कामराजन के सामने चुनौती थी। कैसे सर्वसम्मति से प्रधानमंत्री को चुनाव किया जाए।
प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार मोरारजी देसाई थे। जो नेहरू जी के कैबिनेट में फाइनेंस मिनिस्टर रह चुके थे। शास्त्री जी ने वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर को दो नामों का सुझाव दिया। जिनमें एक जयप्रकाश नारायण और दूसरी श्रीमती इंदिरा गांधी थी। कामराजन का धड़ा नहीं चाहता था। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। लेकिन मोरारजी देसाई चाहते थे कि प्रधानमंत्री चुनने का काम कांग्रेस संसदीय दल करें।
के. कामराजन ने नेताओं की आम राय जानने के साथ-साथ, कांग्रेस में आम राय बनाने की जिम्मेदारी भी ले ली। वह लगातार, कांग्रेस के नेताओं की राय जानने में लगे रहे। अंततः मोरारजी देसाई ने भी कांग्रेस की आम राय को सहमति दे दी। 6 जून 1964 को कांग्रेस संसदीय दल ने लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री के रूप में चुन लिया।
शास्त्री जी के प्रधान मंत्री के रूप मे दायित्व
Responsibilities of Shastri Ji as Prime Minister
के कामराजन ने अपनी राजनीति व राजनीतिक छवि से, देश की बागडोर शास्त्री जी के हाथों में सौप दी। लेकिन उन्होंने कांग्रेस पार्टी को प्रधानमंत्री के पद से ऊपर रख दिया। जिसका नतीजा यह हुआ। लाल बहादुर शास्त्री, कोई भी बड़ा फैसला कांग्रेस पार्टी से पूछे बगैर नहीं ले सकते थे।
9 जून 1964 को लाल बहादुर शास्त्री ने भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। यह कामराजन के फैसले का ही कारण था। जब लोग नेहरू के सामने शास्त्री जी को बहुत कमजोर प्रधानमंत्री कहने लगे। लेकिन कामराजन का यही प्लान था। नेहरू के बाद, कांग्रेस पार्टी हमेशा प्रधानमंत्री के पद से ऊपर रहे। अभी शास्त्री जी को 3 महीने ही हुए थे। तभी उनकी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। यह प्रस्ताव तो संसद में गिर गया।
1964-65 में अनाज की कमी साफ दिखाई पड़ने लगी। इसके ऊपर चारों ओर से विरोधियों की आलोचनाएं। शास्त्री जी को परेशान कर रही थी। शास्त्री जी के सामने सबसे बड़ी चुनौती खाद्यान्न एवं वस्तुओं की कीमत पर नियंत्रण करना था। उन्होंने इन पर लगाम लगाने की योजना बनाई। उन्होंने एक बड़ा नारा लोगों को दिया। यह नारा था, हफ्ते में एक दिन उपवास का।
तभी इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिख कर कहा। त्रिमूर्ति भवन जो प्रधानमंत्री निवास है। उसे जवाहरलाल नेहरू स्मारक के रूप में परिवर्तित किया जाए। क्योंकि प्रधानमंत्री के लिहाज से वह काफी बड़ी जगह है।
जवाहरलाल नेहरू की बात अलग थी। क्योंकि उनसे मिलने बहुत से लोग आते थे। इस बात ने शास्त्री जी को आहत किया। लेकिन फिर भी, शास्त्री जी ने इंदिरा गांधी को अपने कैबिनेट में इनफार्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग मिनिस्टर बनाया। इसी प्रकार जाने : Prithviraj Chauhan Biography in Hindi। पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी व मृत्यु का पूरा सच।
शास्त्री जी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद किश्तों पर कार ली
शायद ही आप यकीन करेंगे। शास्त्री जी जब प्रधानमंत्री बने। तब उनके पास अपना घर तो दूर, अपनी कार भी नहीं थी। अपने बच्चों के अनुरोध पर उन्होंने कार लेने का फैसला किया। अनिल शास्त्री के अनुसार, जब उन्होंने शास्त्री जी से कहा कि अब तो आप भारत के प्रधानमंत्री हो गए हैं। लेकिन अभी भी, हम सभी स्कूल टांगे से या किराए की गाड़ी से जाते हैं। अब आपको कार खरीद लेनी चाहिए।
तब शास्त्री जी अपने निजी सचिव वेंकटरमन से कार खरीदने की इच्छा जाहिर की। सचिव ने शास्त्री जी को बताया कि फिएट कार का दाम ₹12000 है। लेकिन उस वक्त उनके बैंक में मात्र ₹7000 ही थे। तब अनिल शास्त्री ने कहा। आपके पास पैसे नहीं है। तो कार हम लोग नहीं खरीदते हैं।
लेकिन शास्त्री जी ने कहा कि मैंने तुम लोगों को वचन दिया है। तो मैं कुछ करके गाड़ी खरीद लूंगा। फिर उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक (PNB) से ₹5000 का कर्ज लिया। इस लोन की किश्ते, उनकी मृत्यु के बाद, ललिता शास्त्री ने अपनी पेंशन से अदा की।
भारत – पाकिस्तान 1965 का युद्ध
Indo – Pakistan War of 1965
अभी चीन से लड़ाई को 3 साल ही गुजरे थे। भारतीय सेना अपना मनोबल जुटा ही रही थी। तभी मई 1965 में पाकिस्तान ने कच्छ के रण पर हमला कर दिया। इस इलाके में पहले से कोई भी सीमा विवाद नहीं था। लेकिन इस हमले में पाकिस्तान ने, भारत के कंजर कोट पर कब्जा कर लिया।
जून 1965 में भारत को अंतरराष्ट्रीय दबाव की वजह से पाकिस्तान से समझौता करना पड़ा। इस समझौते के तहत भारत को 75 sq. mile जमीन पाकिस्तान को देनी पड़ी। इस वजह से, प्रधानमंत्री शास्त्री की तीखी आलोचना भी हुई। क्या शास्त्री जी फैसला लेने में असमर्थ थे। क्या वह लडाई को टालना चाहते थे। कच्छ के रण पर समझौता, उनकी लड़ाई को टालने की कोशिश थी। 5 अगस्त तक शास्त्री जी समझ गए थे। युद्ध को रोकना अब नामुमकिन है।
चीन से लड़ाई के अभी महज 3 साल ही हुए थे। भारत पर एक बार फिर युद्ध का खतरा मंडरा रहा था। पिछली लड़ाई के जख्म अभी भरे भी नही थे। पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान और विदेश मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की योजना थी। कश्मीर पर कब्जा करने का, इससे बेहतर मौका फिर नहीं मिलेगा। उनका सोचना था कि इस वक्त भारत के प्रधानमंत्री भी कोई फैसला लेने में सक्षम नही है।
ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम के तहत, 1 सितंबर 1965 की सुबह पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर के छम्ब पर हमला कर दिया। छम्ब पर हमले का मतलब था। जम्मू कश्मीर का शेष भारत से कट जाना। छम्ब में अब भारतीय सेना भी पाकिस्तान सेना के दबाव में आती जा रही थी। इस वक्त बड़े फैसले लेने का समय था। जम्मू कश्मीर पर कब्जा न होने के लिए, हवाई हमले की जरूरत थी। रक्षा मंत्री वाई बी चौहान को छम्ब के हालात से आगाह किया गया। रक्षा मंत्री चौहान ने बिना कैबिनेट की सलाह, हवाई हमले का फैसला ले लिया।
एयरफोर्स के इस्तेमाल से भारतीय फौज के पैर उखड़ने से बच गए। लेकिन कुछ समय के लिए ही। पाकिस्तान ने अपनी पूरी ताकत जम्मू कश्मीर और छम्ब में झोंक रखी थी। अब जम्मू-कश्मीर को बचाना नामुमकिन लग रहा था। आधी रात को सेनाध्यक्ष ने प्रधानमंत्री से मिलने का वक्त मांगा। आधी रात को आर्मी चीफ चौधरी और शास्त्री जी की मुलाकात हुई।
शास्त्री जी ने एक बड़ा फैसला लेते हुए। पंजाब व राजस्थान की तरफ से, अंतरराष्ट्रीय सीमा को पार करने का फैसला लिया। यह एक अहम फैसला था। लेकिन उनके इस दृढ़ फैसले ने, इतिहास का रुख बदल दिया। 7 से 20 सितंबर तक सियालकोट में भयंकर युद्ध हुआ। भारतीय सेना ने पाकिस्तान के 97 अमेरिकी पैटर्न टैंक को नेस्तनाबूद कर दिया। 28 टैंकों पर कब्जा कर लिया।
भारतीय सेना लगातार पंजाब की सीमा को पार कर लाहौर तक पहुंच गई। कश्मीर के हाजी पीर इलाके पर भी भारत का कब्जा हो गया। सियालकोट पर, भारत कभी भी कब्जा कर सकता था। आखिर में, यूनाइटेड नेशन के दखल के बाद। 20 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने युद्धविराम पर प्रस्ताव पारित किया।
अन्ततः 22 सितंबर को युद्ध विराम का आदेश जारी हो गया। इस वक्त तक, लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व में, पाकिस्तान की 710 Sq. Km की जमीन भारत के कब्जे में थी। जो आधे दिल्ली के बराबर की जमीन थी। इससे भी बड़ी बात। पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर लाहौर पर कब्जा चंद छड़ो में ही सकता था। लाहौर पर कब्जा नहीं करना भी, शास्त्री जी का बड़ा फैसला था। जिस पर आज भी बहस होती है। इसी प्रकार जाने : वीर सावरकर की जीवनी। वीर सावरकर की माफी का सच। Veer Savarkar Jayanti।
शास्त्री जी व अयूब खान के बयान
Shastri Ji and Ayub Khan’s Statements
26 सितंबर 1965 को दिल्ली के रामलीला मैदान में एक सभा को संबोधित करते हुए। लाल बहादुर शास्त्री ने कहा। “अयूब खान ने यह ऐलान किया था। वे दिल्ली तक चहल कदमी करते हुए पहुंच जाएंगे। वह बहुत बड़े आदमी हैं। मैंने सोचा उन्हें, दिल्ली तक पैदल चलने की तकलीफ क्यों दी जाए। हम ही लाहौर की तरफ बढ़कर, उनका इस्तकबाल कर लेते हैं।”
इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री की छवि देश और विदेश में, एक दृढ़ इच्छाशक्ति वाले नेता के रूप में उभरी। ऐसा लगने लगा था। यह एक ऐसे नेता हैं। जो देश को हर मुश्किल से निकाल सकते हैं।
शास्त्री जी का प्रसिद्ध नारा
Famous Slogan of Shastri Ji
21 अक्टूबर 1965 को इलाहाबाद के पुरवा गांव में शास्त्री जी ने एक सभा को संबोधित किया। जिसमें उन्होंने कहा, आज जहां जवान अपना खून बहा रहे हैं। वही मैं किसानों से निवेदन करना चाहता हूं। वह भी पूरी तरह से अपनी मेहनत करें। तब उन्होंने यह दो नारे पूरे देश को दिए। जय जवान, जय किसान। जिसका पूरे देश ने समर्थन किया।
ताशकंद समझौता – 1966
Tashkent Pact -1966
सितंबर महीने में युद्ध विराम खत्म ही हुआ था। दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने थी। सीमा पर गोलाबारी होती रहती थी। तत्कालीन सोवियत रूस ने, मध्यस्थता की। सोवियत रूस ने ताशकंद में शांति वार्ता के लिए, भारत व पाकिस्तान की बैठक बुलाई। बैठक की तारीख 4 जनवरी 1966 तय की गई।
4 जनवरी से 10 जनवरी 1966 तक ताशकंद में सोवियत संघ के प्रधानमंत्री Akeley Kosygin की मौजूदगी में। भारत के प्रधानमंत्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति के बीच कई दौर की बातचीत हुई। शास्त्री जी और अयूब खान के बीच कई मुद्दों पर असहमति थी। इस वजह से समझौता आखिरी तक अटका रहा। बातचीत लगभग टूट गई।
10 जनवरी 1966 को दोनों देश समझौते के करीब पहुंचे। इस समझौते के अनुसार,
1. दोनों देश एक-दूसरे कें अंदरूनी मामले में दखलंदाजी नहीं करेंगे।
2. भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे के खिलाफ शक्ति का प्रदर्शन नहीं करेंगे।
3. दोनों देश अपने झगड़ों को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाएगे।
4. दोनों देशों को 15 फरवरी तक, अपनी-अपनी सेनाएं, 5 अगस्त की सीमा रेखा पर लौटानी थी। सेनाए युद्ध से पहले की स्थिति में वापस जाएगी।
इसका मतलब था। कश्मीर और दूसरे इलाके जिनमें भारत को बढ़त मिली थी। वह कायम नहीं रहती। समझौते में कहीं कश्मीर की चर्चा नहीं थी। इन समझौतों के साथ प्रधानमंत्री शास्त्री और राष्ट्रपति अयूब खान ने दस्तखत किए। समझौते के बाद ताशकंद में एक पार्टी रखी गई थी।
इस पार्टी में शामिल होने के बाद, शास्त्री जी सोने चले गए। अनिल शास्त्री के अनुसार, उस रात सोने से पहले शास्त्री जी ने घर पर हाल-चाल लेने के लिए फोन किया। दूसरे दिन यानी कि 11 जनवरी 1966 को देश को सूचित किया गया।
हमारे प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का हृदय गति रुक जाने से देहांत हो गया। ताशकंद समझौते के बाद लाल बहादुर शास्त्री खुद नहीं। बल्कि उनका पार्थिव शरीर भारत वापस आया। इसी प्रकार जाने : रानी लक्ष्मी बाई की कहानी। जानिए गौरवगाथा एक नए अंदाज़ में।
शास्त्री जी की मृत्यु या हत्या ?
Mystery of Shastri’s Death
साधारण जीवन जीने वाले व्यक्ति की, असाधारण मृत्यु पूरे देश के लिए एक रहस्य है। शास्त्री जी की मृत्यु का राज आज भी पूरी तरह से सामने नहीं आ पाया। शास्त्री जी के प्रेस सचिव और मशहूर पत्रकार कुलदीप नैयर, अपनी किताब Beyond the Line में। उस रात की एक-एक घटना को विस्तार से लिखा हैं। नैयर, शास्त्री जी की मौत के वक्त ताशकंद में ही थे। कुछ ऐसी बातें, ऐसे तथ्य जो शास्त्री जी के मौत पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं।
1. ताशकंद समझौते वाले दिन, अचानक रात के 1:30 पर शास्त्री जी की तबीयत खराब हुई। उनके कमरे में न कोई बर्जर था। न ही वह टेलीफोन था। डॉक्टर का कमरा भी, उनके कमरे से काफी दूर था। शास्त्री जी खुद अपने निजी सचिव रामनाथ के कमरे में पहुंचे उनकी हालत देखकर उन्हें वापस उनके कमरे में लाया गया
2. शास्त्री जी डॉक्टर चुंग, जो उनके पर्सनल डॉक्टर थे। उनसे कुछ कहना चाह रहे थे। उस समय, उनकी आवाज नहीं निकल रही थी। वह बार-बार बिस्तर के पास रखें। थरमस की ओर इशारा कर रहे थे।
3. शास्त्री जी की मौत के बाद उनका अंतिम संस्कार इंदिरा गांधी दिल्ली में नहीं करने देना चाहती थी इसके बाद ललिता शास्त्री ने आमरण अनशन की चेतावनी दे दी तब उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में हुआ।
4. शास्त्री जी की मौत के बाद, उनके पूरे परिवार को चुप कराने की कोशिश की गई। उनका पूरा शरीर नीला पड़ चुका था। शरीर में जहर का होना ही, नीला पड़ने का कारण होता है। लेकिन इसकी पुष्टि नहीं की गई।
5. ललिता शास्त्री ने बताया कि एयरपोर्ट पर, उनके परिवार के किसी भी सदस्य को शव के पास जाने की इजाजत नहीं दी गई। यहां तक की उनको नहलाने के वक्त भी, पास नहीं जाने दिया गया। उनका पूरा शरीर बुरी तरह के फूल गया था।
6. शास्त्री जी के पेट पर प्लस (+) के जैसे चीरे एक निशान था। किसी को नहीं पता था कि यह निशान कहां से आया।
7. ललिता शास्त्री ने थरमस के पानी में कुछ मिला होने की बात कही। क्योंकि शास्त्री जी ने अंतिम समय में, उसी से पानी पिया था। वह बार-बार थरमस की ओर इशारा भी कर रहे थे। जिसे उनके सम्मान के साथ वापस नहीं लाया गया। उसे ताशकंद में ही गायब कर दिया गया। उनके समान के साथ, उनकी निजी डायरी भी वापस नही आई।
8. शास्त्री जी के शव का न तो ताशकंद न ही भारत में पोस्टमार्टम कराया गया।
9. समाजवादी नेता राजनारायण ने इंदिरा गांधी सरकार पर सबसे गंभीर आरोप लगाया। यह वही राजनारायण हैं। जिन्होंने 1977 के चुनाव में रायबरेली से इंदिरा गांधी को करारी शिकस्त दी थी। उन्होंने कहा, शास्त्री जी को उनके इशारे पर मरवाया गया है। जो खुद प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। इंदिरा गांधी का नाम इस लिस्ट में सबसे ऊपर आता है।
10. कांग्रेस के करीबी रहे टी एन कौल, जो उस समय सोवियत संघ में भारत के राजदूत थे। वह उस दौरान वहीं पर मौजूद थे। उनके रसोइए मोहम्मद चांद ने ही आखरी बार शास्त्री जी का खाना बनाया था।
11. मोहम्मद चांद जिस पर शास्त्री जी की हत्या का आरोप लगा था। उसे ही बाद में, राष्ट्रपति भवन का रसोईया नियुक्त कर दिया गया।
12. शास्त्री जी की मौत के चश्मदीद गवाह व राजदार, डॉक्टर चुंग और उनके निजी सचिव रामदास की संदिग्ध हालात में, सड़क हादसे में मृत्यु हो गई।
13. जम्मू कश्मीर के पूर्व महाराज और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉक्टर कर्ण सिंह ने अपनी आत्मकथा में बताया। इंदिरा गांधी और शास्त्री जी के संबंध कभी अच्छे नहीं थे। इस बात की पुष्टि प्रसिद्ध इतिहासकार इंदर मल्होत्रा व वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने भी अपनी किताब में की।
शास्त्री जी की मौत के पीछे किसी व्यक्ति विशेष का हाथ था। यह कहना गलत होगा। लेकिन इन अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर भी देश की जनता के सामने जरूर आने चाहिए।
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