महात्मा गांधी की जीवनी | Mahatma Gandhi ka Jivan Parichay

महात्मा गांधी की जीवनी, जीवन परिचय, निबंध, जयंती। [Mahatma Gandhi ka Jivan Parichay] (Biography, Essay, History, Information, Wife, Children)

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“जब जब तेरा बिगुल बजा जवान चल पड़े

मज़दूर चल पड़े थे और किसान चल पड़े

हिंदू और मुसलमान सिख पठान चल पड़े

कदमों पे तेरे कोटि-कोटि प्राण चल पड़े 

फूलों की सेज छोड़के, दौड़े जवाहर लाल

साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल

दे दी हमें आज़ादी बिना खड़ग बिना ढाल

साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल

रघुपति राघव राजा राम

मन में थी अहिंसा की लगन तन पे लंगोटी

लाखों में घूमता था लिए सत्य की सोटी

वैसे तो देखने में थी हस्ती तेरी छोटी

लेकिन तुझपे झुकती थी हिमालय की चोटी 

दुनिया में तू बेजोड़ था इन्सान बेमिसाल

साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल

दे दी हमें आज़ादी बिना खड़ग बिना ढाल

साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल

रघुपति राघव राजा राम”

        महात्मा गांधी जिनका शुमार दुनिया के सर्वकालिक, महान हस्तियों में किया जाता है। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में बापू की भूमिका बेमिसाल थी। उनका जीवन  सहजता और सरलता का दर्पण था। जिसके माध्यम से उन्होंने दुनिया को शांति, सद्भाव और अहिंसा का रास्ता दिखाया।

         आधुनिक भारत के निर्माण में महात्मा गांधी की भूमिका अतुलनीय है। अपने पूरे जीवन में, वे समावेशी, समतामूलक और विविधताओं से भरे समाज के पक्षधर रहे। उन्होंने सामाजिक और आर्थिक शोषण से लड़ने के लिए, लोगों को मजबूत बनाने की दिशा में काम किया। समाज को कमजोर करने वाली बुराइयों को, भरपूर चुनौती दी।

       गांधीजी दूरदर्शी थे। वे पुरुषार्थ में विश्वास रखते थे। उनका जीवन-दर्शन आज भी, सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरणा प्रदान करता है। मानव जाति के लिए, उनका सबसे बड़ा और सबसे शक्तिशाली योगदान, सत्य और अहिंसा का संदेश है। इन दो सिद्धांतों को महात्मा गांधी के, सामाजिक व राजनीतिक दर्शन की बुनियाद माना जा सकता है।

         इन्हें ही गांधी जी ने, एक सिक्के के दो पहलू कहा था। उनके लिए सत्य, साक्षात ईश्वर था। जिसकी प्राप्ति उनके जीवन का, अंतिम उद्देश्य था। उन्होंने अहिंसा को सत्य का स्वाभाविक परिणाम बताया था। वह कहते थे कि सत्य की उपेक्षा के कारण ही अहिंसा, अत्याचार व अन्याय जैसी बुराइयां ने जन्म लिया है।

 सत्य इन बुराइयों के खिलाफ, सबसे कारगर अस्त्र साबित हो सकता है। उनका विचार था कि बुराई पर बुराई, हिंसा से हिंसा और क्रोध से क्रोध पर विजय प्राप्त नहीं की जा सकती। यदि हम ऐसा करते हैं। तो हम केवल आग में घी डालते हैं। अगर अहिंसक साधनों के माध्यम से, उत्पीड़न का विरोध किया जाए। तो ही परिवर्तन संभव है।

महात्मा गांधी की जीवनी

महात्मा गांधी की जीवनी

वास्तविक नाम (Real Name)मोहनदास करमचंद गांधी
उपनाम (Nick Name)महात्मा, राष्ट्रपिता व बापू
जन्म-तिथि (Date of Birth)2 अक्टूबर 1869

जन्म-स्थान (Birth Place)
पोरबंदर राज्य, काठियावाड़ एजेंसी, बॉम्बे प्रेसिडेंसी, ब्रिटिश भारत
पिता (Father)करमचंद गांधी (दीवान पोरबंदर राज्य के)
माता (Mother)पुतलीबाई गांधी (गृहणी)

विद्यालय (School)
• राजकोट का प्राथमिक स्कूल 
• अल्फ्रेड हाई स्कूल, राजकोट
महाविद्यालय (College)• सामलदास कॉलेज, भावनगर राज्य 
• इनर टेंपल, लंदन यूसीएल फैकेल्टी आफ लॉ यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन
शैक्षिक योग्यता (Education)बैरिस्टर
भाई-बहन (Siblings)• लक्ष्मी दास करमचंद गांधी (भाई)
• करसनदास गांधी (भाई)
• रलियताबेन गांधी (बहन)
पत्नी (Wife)कस्तूरबा गांधी
बच्चे (Children)• हरिलाल (बेटा)
• मणिलाल (बेटा)
• रामदास (बेटा)
• देवदास (बेटा)
व्यवसाय (Profession)• राजनीतिज्ञ 
• पत्रकार 
• निबंधकार 
• क्रांतिकारी 
• वकील 
• शांति दूत 
• दार्शनिक
प्रसिद्धि (Famous For)भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेता
नारा (Famous Quote)• करो या मरो 
• भारत छोड़ो
मृत्यु-तिथि (Date of Death)30 जनवरी 1948
मृत्यु-स्थान (Death Place)नई दिल्ली, भारत
मृत्यु का कारण (Death Reason)हत्या (गोली लगने से)
समाधि स्थल (Samadhi Sthal)राजघाट, दिल्ली

महात्मा गांधी का प्रारंभिक जीवन

    हरी-भरी पहाड़ियों, सुहावने वन-उपवन और लहलहाते खेतों से भरी भारत-भूमि। पूर्व में सुनहरी किरणों से प्रकाशित है। इसकी तीनों दिशाओं में, नारियल वृक्षों से भरे हुए तट, सागर की लहरों से अठखेलियां करता रहता है। इसके पश्चिम किनारे पर ओमान का समुद्र, सौराष्ट्र के पोरबंदर शहर की चट्टानों से लगातार टकराता रहता है।

        पोरबंदर विशेषतौर पर, व्यापारिक केंद्र रहा है। वैष्णव संप्रदाय गांधी कुटुंब के वंशज, इस शहर में बसे थे। मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 की सुबह, यहीं पर हुआ था। मोहन के दादा उत्तमचंद गांधी पोरबंदर के दीवान थे। मोहन के पिता करमचंद को, उत्तमचंद के बाद दीवान बनाया गया। पिता की तरह वे भी सिद्धांत प्रेमी थे। वे धन कि नहीं, नेकी की कद्र करते थे।

       मोहन की माता पुतलीबाई धर्मिष्ठा और तेजस्विनी थी। वह कठोर व्रत लेती और उनको ठीक से पूरा करती थी। मोहन के चरित्र निर्माण में, उनका प्रभाव अधिक था। 6 साल की उम्र में, मोहन को पास की पाठशाला में दाखिल करवाया गया। वह साधारण, लेकिन नियमित विद्यार्थी थे। विनयशील और चंचल होते हुए भी, वह हठेले थे।

      गांधी परिवार में तुलसी रामायण का पाठ नियमित होता था। छोटे मोहन को भूतों के डर से बचने के लिए, उनकी मां ने राम नाम का जप करना सिखाया। तभी से उनके जीवन में राम नाम की महिमा बढ़ती गई। मोहन जब 7 वर्ष के थे। तभी उनके पिता नौकरी छोड़कर, राजकोट गए। यहां करमचंद गांधी रियासत के दीवान नियुक्त हुए। इसी प्रकार जाने : गौतम बुद्ध का जीवन परिचयGautam Buddha Biography in Hindi।

मोहनदास की शिक्षा

राजकोट में मोहन और करसनदास प्राथमिक पाठशाला में दाखिल हुए। श्रवण की पितृ भक्ति का उन पर, गहरा असर पड़ा। विद्यालय में मोहनदास ने हरिश्चंद्र नाटक देखा। जिसे देखकर उन्हें कठिनाइयां झेलकर भी, सत्य का पालन करने की प्रेरणा मिली। सन 1887 में, मोहनदास गांधी ने अहमदाबाद केंद्र से, मैट्रिक की परीक्षा पास की।

       इसके बाद वह भावनगर के श्यामल दास कॉलेज में दाखिल हुए। लेकिन पहले ही सत्र के अंत में, कानून की पढ़ाई करने विलायत जाने लिए, उन्होंने कालेज छोड़ दिया। उनके बड़े भाई लक्ष्मीदास ने उन्हें विलायत भेजने के लिए, पैसे का इंतजाम किया।

      उनकी मां ने मांस, मदिरा और स्त्री संग से दूर रहने की प्रतिज्ञा लेने पर ही। उन्हें विदेश जाने की इजाजत दी। इस प्रतिज्ञा ने उन्हें विलायत में, कई प्रलोभनों से बचाया। उन्होंने 4 सितंबर 1888 को, बम्बई से विदेश को प्रस्थान किया। 6 नवंबर 1888 को बैरिस्टर बनने के लिए, मोहनदास ने इनर टेंपल में दाखिला लिया।

       मोहनदास परीक्षा में सफल हुए और 10 जून 1891 को बैरिस्टर बने। 5 जुलाई के समुद्री तूफान वाले दिन, बैरिस्टर मोहनदास गांधी बम्बई पहुंचे। लेकिन घर लौटने की उनकी सारी खुशी, गम में बदल गई। उनकी मां जिनसे मिलने के लिए, वह अधीर थे। वह चल बसी थी। इसी प्रकार जाने :  Lal Bahadur Shastri Biography in Hindiशास्त्री जी के जीवन के अंतिम पल का सच।

मोहनदास गांधी का विवाह

 करमचंद गांधी के अभिन्न मित्र गोकुलदास माखन्जी, एक सूती कपड़े के व्यापारी थे।  उन्होंने अपनी बेटी कस्तूरबाई माखन्जी का विवाह मात्र 13 वर्ष की उम्र में मोहनदास से करवा दिया। लेकिन शादी के बाद, कुछ सालों तक उनका वैवाहिक जीवन उथल-पुथल भरा रहा।

      शादी के वक्त कस्तूरबा अनपढ़ और थोड़ा स्वतंत्र स्वभाव की थी। जो मोहनदास को पसंद नहीं था। इस कारण मोहनदास ने पत्नी के ज्यादा सजने-सवरने और बाहर निकलने पर रोक लगानी चाहिए। लेकिन कस्तूरबा पर, इसका ज्यादा प्रभाव पड़ा। 1885 में कस्तूरबा गर्भवती हुई। लेकिन जन्म के बाद ही, उनकी पहली संतान का देहांत हो गया।

      फिर 1888 में, उन्होंने अपने बड़े बेटे हरिलाल को जन्म दिया। उस समय गांधी जी कानून की पढ़ाई के लिए लंदन गए थे। जिस कारण उन्होंने अकेले ही बेटे की परवरिश की। इसके बाद कस्तूरबा ने तीन और बेटों मणिलाल, रामदास और देवदास को जन्म दिया। इसी बीच मोहनदास अपनी पत्नी को 1896 में, दक्षिण अफ्रीका ले गए।

     यहां पर कस्तूरबा ने अपना क्रांतिकारी रूप अपनाना शुरू किया। दक्षिण अफ्रीका में गरीब और पिछड़े वर्ग पर अत्याचार करके, काम कराने के विरोध में। सबसे पहले आवाज उठाने वाली कस्तूरबा गांधी ही थी। जिसके लिए, उन्हें वहां 3 महीने के लिए जेल भी जाना पड़ा। इसी प्रकार जाने : विशाल हिन्दू ह्रदय सम्राट  Yogi Adityanath की सम्पूर्ण जीवन गाथा

महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष

गांधीजी ने वकालत करने, अदालतों का  अनुभव लेने और हिंदुस्तानी कानून का अभ्यास करने के लिए। मुंबई सदर अदालत में वकालत की दरखास्त दी। 1893 में पोरबंदर के एक व्यापारी पीढ़ी का मुकदमा लड़ने के लिए, 1 साल के इकरार नामें पर अफ्रीका के लिए रवाना हुए।

      वे डरबन पहुंचे। वहां की रंगभेद नीति से गांधीजी स्तब्ध रह गए। डरबन की अदालत में उन्हें पगड़ी उतारने का हुक्म दिया गया। यह अपमान गांधी जी से बर्दाश्त नहीं हुआ। वह अदालत छोड़ कर चले गए। अखबारों ने उन्हें बिन बुलाया मेहमान कहा। 1 साल के बाद, हिंद लौटने से पहले उन्होंने अखबार में पढ़ा।

       दक्षिण अफ्रीका की सरकार हिंदुओं  का मताधिकार छीनने के लिए, एक बिल लाने वाली है। बस यही से रंगभेदी महान आंदोलन का आरंभ हुआ। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका को अपना लिया। साथियों के सहयोग से उन्होंने नेडाल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की। जिसका उद्देश्य था। हिंदुओं की कठिनाइयां दूर करना। गोरों से उनके संबंध बेहतर बनाना।

       5 जून 1896 को 26 साल का यह नौजवान, बड़ी जिम्मेदारियों को लेकर स्वदेश के लिए रवाना हुआ। हिंदुस्तान में, उन्होंने बड़े-बड़े राजनीतिक केंद्रों का दौरा किया। न्यायमूर्ति रानाडे ने उनकी बातों को गौर से सुना। सर फिरोजशाह मेहता उनसे पिता के समान प्यार से मिले। लोकमान्य तिलक ने, उनकी पूरी मदद करने का वादा किया।

     नडाल से एक जरूरी तार मिलने के कारण, नवंबर 1896 में कस्तूरबा के साथ डरबन रवाना हो गए। हिंदुस्तानियों को बाहर निकालने के कारण, उन्हें जहाज से डरबन के बाहर उतरना पड़ा। सेवा भाव की लगन के कारण, उन्होंने एक छोटे से अस्पताल में काम किया। 1899 में डच व अंग्रेजों की लड़ाई में, गांधी जी ने साम्राज्य से वफादार रहकर। अंग्रेजों का साथ दिया।

      घायलों की सेवा करने वाली एक हिंदुस्तानी टुकड़ी बनाकर, मोर्चों पर ले गए। साम्राज्य के वफादारों की तारीफ की गई। उन्हें पदक दिए गए। 6 साल दक्षिण अफ्रीका में रहने के बाद, वतन लौटते वक्त, हम वतनों ने गांधी जी को प्रेम से सम्मान पत्र और कीमती तोहफे दिए।

महात्मा गांधी की दक्षिण अफ्रीका से स्वदेश वापसी

1901 में स्वदेश लौटने पर, गांधीजी कोलकाता गए। जहाँ वे पहली बार कांग्रेस अधिवेशन में शामिल हुए। कांग्रेस नगर में खुद सफाई का काम करके, उन्होंने स्वयंसेवकों को स्वच्छता के सबक सिखाया। स्थाई रूप से ठिकाना बनाने से पहले, उन्होंने देश भर का दौरा किया।

      मुसाफिरों की कठिनाइयां समझने के लिए, उन्होंने तीसरे दर्जे में सफर किया। मुंबई में दफ्तर खोलने के बाद, उन्होंने गोखले जी को सूचना दी। वे अभी व्यवस्थित हुए ही थे। कि नडाल से हम वतनों का अचानक तार मिला। उन्होंने नडाल पहुंचकर, महसूस किया। कि ट्रांसपाल में रहकर, उन्हें आखिर तक लड़ना होगा।

      उन्होंने जोहानेसबर्ग में दफ्तर खोला। फिर सदर अदालत से मंजूरी पाकर, वकालत शुरू की। हिंदुस्तानियों की समस्याएं सुलाने के लिए, 1903 में ‘साप्ताहिक इंडियन ओपिनियन’ अखबार 4 भाषाओं में शुरू किया। 10 जनवरी 1908 को गांधीजी, पहली बार सविनय भंग के लिए जेल गए।

       सत्याग्रह के सफल होने पर, उन्होंने समझा। सत्याग्रह अनमोल शस्त्र है। उसमें हार या निराशा के लिए स्थान नहीं। जब गांधी जी ने महसूस किया। कि दक्षिण अफ्रीका में उनका कर्तव्य पूरा हो गया है। लोगों का सुख-दुख बांटकर, उन्होंने यहां 21 साल बिताए।

     उन्होंने अपने जीवन का ध्यये सिद्ध किया। गांधीजी और कस्तूरबा ने स्वदेश आने के लिए, 18 जुलाई 1914 को दक्षिण अफ्रीका हमेशा के लिए छोड़ दिया। गांधी जी 9 जनवरी 1915 को, जब मुंबई बंदरगाह पर उतरे। तो उनका शानदार स्वागत हुआ। इसी प्रकार जाने : Bhagat Singh Biography – शहीद-ए-आजम भगत सिंह की अनसुनी Life Story।

महात्मा गांधी द्वारा सत्याग्रह आश्रम की स्थापना

गांधीजी ने त्याग और सेवा के वातावरण में रहने की इच्छा से। 25 मई 1916 को अमदाबाद के पास, गोचरक में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की। आश्रम के 25 अनुयायियों ने सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, स्वदेशी, खादी और अस्पृश्यता निवारण का व्रत लिया।

       1917 में गांधी जी को बिहार के चंपारण में, कुचले हुए नील किसानों की सेवा करने का मौका मिला। जब गांधी जी वहां आए। तो किसानों में नई आशा पैदा हुई। जांच समिति की सिफारिश के मुताबिक, लाजमी तौर पर की जाने वाली नील की खेती बंद कर दी गई। 100 साल पुराना नील का दाग धुल गया।

       देश को व्यक्तिगत सत्याग्रह का पहला सबक मिला। 1917 में गोचरक गांव में महामारी फैलने के कारण, गांधीजी अपना आश्रम साबरमती के किनारे ले गए। दवाई न लेने और दूध न पीने की प्रतिज्ञा के कारण। उनकी सेहत सुधर नहीं पाती थी। आखिरकार, कस्तूरबा की बात मानकर, उन्होंने बकरी का दूध पीना शुरू किया। इसी प्रकार जाने : स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय। नरेन्द्रनाथ दत्त से स्वामी विवेकानंद बनने तक का सफर।

रोलेट एक्ट व जलियांवाला बाग हत्याकांड

फरवरी 1919 को दमनकारी रौलट बिल के प्रकाशन से, गांधीजी चौक उठे। इस कानून का उद्देश्य नागरिकों के अधिकारों को कुचलना व क्रांति की आवाज को दबाना था। देशभर में इसका सख्त विरोध हुआ। इस बिल के लिए, गांधीजी ने वायसराय को लिखा। वह इसके विरोध में सविनय कानून भंग करेंगे।

       विधानसभा के हिंदी सदस्यों के विरोध के बावजूद, 18 मार्च को काला कानून किसी तरह से मंजूर करवाया गया। गांधी जी के आदेश के अनुसार, 6 अप्रैल को सत्याग्रह दिन के रूप में मनाया। देश जाग उठा था। अंधाधुंध गिरफ्तारियां से जेलखाने भर गए। 13 अप्रैल को ब्रिगेडियर जनरल डायर, सिपाहियों के साथ अमृतसर की सकरी गलियों से कुच करता हुआ आगे बढ़ा।

     शहर के ठीक मध्य में स्थित जलियांवाला बाग में, वह छोटी खिड़की से  कत्लेआम के पक्के इरादे के साथ दाखिल हुआ। बाग में दाखिल होते ही, उसने फौज को शांतिमय सभा पर, बिना किसी चेतावनी दिए। गोली चलाने का हुक्म दिया। गोलियों की बौछार तब तक जारी रही। जब तक कारतूस कुछ खत्म नहीं हो गए।

      375 बेसहारा मर्द और औरतों का खात्मा कर दिया गया। 1000 से ज्यादा लोग जख्मी हुए। इस हत्याकांड से गांधी जी को बहुत सदमा पहुंचा। भयभीत जनता जब हिंसात्मक कार्रवाई पर उतर आई। जब गांधी जी ने महसूस किया। कि पूरी तरह तैयारी किए बिना, जनता को सविनय भंग का आदेश देने में, उन्होंने बहुत बड़ी भूल की है। फिर 18 अप्रैल 1919 को सत्याग्रह स्थगित कर दिया गया। इसी प्रकार जाने : Prithviraj Chauhan Biography in Hindiपृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी व मृत्यु का पूरा सच।

कांग्रेस में गांधी युग का आरंभ

दिसंबर 1919 अमृतसर कांग्रेस ने मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में, गांधी जी के स्वदेशी का मंत्र और प्राचीन हस्त उद्योगों के पुनरुत्थान के प्रस्ताव को मंजूर किया। क्योंकि भारत की प्रगति हल और चरखे पर निर्भर थी। गांधी जी ने कहा, चरखा राष्ट्र के लिए जरूरी है।

      गांधीजी ने खिलाफत आंदोलन में, मुसलमानों का साथ दिया। यह आंदोलन  ब्रिटेन की तुर्किस्तान पर लादी हुई, गैर इंसानियत शर्तों के विरुद्ध था। खिलाफत आंदोलन ने गांधीजी के अहिंसात्मक असहयोग को अचूक शर्त के रूप में अपनाया। गांधीजी ने ऐलान किया कि 1 अगस्त को असहयोग शुरू होगा।

       उसी रात को 12:40 पर, गांधी जी के आधार स्तंभ लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का देहांत हो गया। शोकाकुल गांधी जी ने कहा, एक नर केसरी चल बसा। स्वराज के मंत्र का लोकमान्य ने जिस लगन से प्रचार किया। वैसा पहले किसी ने नहीं किया था। सारे देश के दिलों-दिमाग पर स्वराज की भावना छाई हुई थी।

      दिसंबर 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में, 1 साल में स्वराज हासिल करने का गांधीजी का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ। कांग्रेस को आम जनता की ताकत पर, एकजुटता बनाने के लिए। संविधान में उनके सुझाव मान लिए गए। इस तरह कांग्रेस के इतिहास में, गांधी युग का आरंभ हुआ। 

      हिंदुस्तान का लगातार दौरा करते हुए। गांधी जी देश की सबसे विकट समस्या गरीबी को कभी नहीं भूले। उनका कहना था कि एक राष्ट्र के नाते, हिंदुस्तान एक चरखे के लिए जी और मर सकता है। गांधीजी की इच्छा के अनुसार, चरखे को स्वराज के झंडे में स्थान मिला। इस तरह 1921 में, राष्ट्र ध्वज का जन्म हुआ। इसी प्रकार जाने : कबीर दास का जीवन परिचयचलिए खुद में कबीर को और कबीर में खुद को ढूंढते हैं।

विदेशी कपड़ों का बहिष्कार

 31 जुलाई 2021 को गांधी जी ने मुंबई में, विदेशी कपड़ों को जलाकर आंदोलन शुरू किया। गांधीजी के लिए यह होली, दिल और दिमाग की सब कमजोरियों को जलाने वाली। अंतर्मन के आग का प्रतीक थी। देशभर में जगह-जगह होलियाँ जलाई गई।     

 गांधीजी ने मदुरई में टोपी और कुर्ते का त्याग करने का निर्णय किया। क्योंकि करोड़ों हिंदुस्तानी विदेशी कपड़े फेंककर, नए कपड़े नहीं खरीद सकते थे। 21 सितंबर की सुबह, उन्होंने सिर में मुंडवाकर, खादी धारण की। इस तरह वह हमेशा के लिए, खद्दर धारी बन गए। 

बारडोली आंदोलन व साइमन कमीशन का विरोध

गांधी जी की प्रेरणा से जागृत हुए। बारडोली के सभी किसानों ने, बड़े हुए लगान के खिलाफ। वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में आंदोलन शुरू किया। देश में फैली हुई, राष्ट्रीयता की भावना से प्रेरित होकर, जनसमूह ने साइमन कमीशन का काले झंडे और लौट जाओ के नारे से स्वागत किया।

      यह कमीशन हिंदुस्तान के वैधानिक सुधार के सिलसिले में, देश का दौरा कर रहा था। पंजाब में साइमन कमीशन के विरोध में, एक बुजुर्ग नेता लाला लाजपत राय के सीने पर लाठी से वार किया गया। कुछ ही दिन बाद, उनका देहांत हो गया। इसी प्रकार जाने : कृष्ण प्रेम दीवानी मीरा बाई का जीवन परिचय। मीरा बाई का इतिहास।

पूर्ण स्वराज की मांग

31 दिसंबर 1929 की रात को ठीक 12:00 बजे, नए साल के शुरू होते ही, गांधीजी के पूर्ण स्वराज का ऐतिहासिक प्रस्ताव मंजूर हुआ। इंकलाब जिंदाबाद के जबरदस्त नारों के साथ, आजादी का झंडा लहराया गया। हिंदुस्तान के आजादी की पुकार, दुनिया भर में गूंजने लगी। 26 जनवरी 1930 के दिन को स्वतंत्र दिन मनाकर। आंदोलन की तैयारियां शुरू कर दी गई।

       गांधीजी ने 11 मुद्दों का एक घोषणा पत्र प्रकाशित किया। जिसमें उन्होंने लिखा कि शराबबंदी, जमीन महसूल और फौजी खर्च को घटाना और नमक कर रद्द करना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा हवा और पानी को छोड़कर, नमक ही मनुष्य के लिए सबसे जरूरी चीज है।

महात्मा गांधी – नमक सत्याग्रह आंदोलन

12 मार्च 1930 को गांधीजी ने फैसला किया कि वह खुद समुद्र से नमक उठाकर। सविनय भंग की शुरुआत करेंगे। उनके साथ अहिंसा में श्रद्धा रखने वाले चुने हुए आश्रम वासी थे। उन्होंने स्त्री और पुरुष दोनों का आह्वान किया उत्साह से भरे लोगों का जनसमूह उमड़ पड़ा गांधीजी आश्रम से रवाना होकर हुए। उनकी मंजिल 241 मील दूर, समुद्र के किनारे बसा हुआ दांडी गांव था।

       5 अप्रैल को, यात्री दल 24 दिनों की यात्रा पूरी कर, दांडी आ पहुंचा। गांधीजी ने गंभीरता से आगे बढ़ते हुए। मुट्ठी भर नमक उठाकर, जालिम कानून तोड़ दिया। नमक कानून टूटते ही, देशभर में एक नई शक्ति का संचार हुआ। देशभर में नमक सत्याग्रह जोरों पर जारी रहा। 4 मई की आधी रात को गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया। 

विदेशी कपड़ों का बहिष्कार और शराब के अड्डों पर जोरदार पहरे लगा दिए गए। किसानों ने जोश के साथ, लगान न देने का आंदोलन शुरू किया। इन घटनाओं से राष्ट्र की शक्ति में, लोगों का विश्वास बढ़ा। देश बगावत के लिए तुला हुआ था। इस दौरान कांग्रेस समितियां गैरकानूनी ठहराई गई। हिंदुस्तान कैद खाना बन गया। लेकिन फिर भी सरकार, लोगों को झुका नहीं पाई। इसी प्रकार जाने : Kailash Satyarthi ऐसे समाजसेवी, जो लाखों बच्चों मे एक उम्मीद की किरण है।  

गांधी-इरविन समझौता

लॉर्ड इरविन से मिलने गांधीजी दिल्ली आए। वे डॉ अंसारी के घर ठहरे। 3 हफ्ते के दौरान, 8 मुलाकातों के बाद, 5 मार्च 1931 को गांधी-इरविन करार पर दस्तखत हुए। इस समझौते में पूर्ण स्वराज के ध्येय का प्रश्न वैसा ही था। गांधी जी ने कहा, किस पक्ष की जीत हुई है। यह कहना मुनासिब नहीं।

     जेलों के दरवाजे खोल दिए गए। हजारों सत्याग्रहियों की रिहाई पर, लोगों ने उनका स्वागत किया। मार्च के तीसरे हफ्ते में, गांधी जी और उनके साथियों का मुंबई में अभूतपूर्व स्वागत हुआ। गांधीजी ने समझौते का महत्व समझाया। अब एक नया युग शुरू हुआ है। अब हमें एक नया रुख अपनाना है। सत्याग्रहियों को लड़ाई और शांति दोनों के लिए तैयार रहना चाहिए।

       गांधीजी ने ऐलान किया। मैं ऐसे स्वराज की कल्पना भी नहीं कर सकता। जिसके शासन में मजदूरों और किसानों का हिस्सा न हो। गांधी जी के जोरदार मिन्नतों  के बावजूद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दे दी गई। भगत सिंह की शहादत का कराची कांग्रेस अधिवेशन में  पहुंचते ही, गांधी जी का नौजवानों ने काले झंडों से स्वागत किया। गांधीवाद मुर्दाबाद और भगत सिंह जिंदाबाद के नारे लगाए।

महात्मा गांधी – गोलमेज सम्मेलन में शामिल

  कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन सरदार वल्लभ भाई पटेल के अध्यक्षता में, 29 मार्च 1931 को आरंभ हुआ। इस अधिवेशन में पता चला। गांधी जी की प्रतिष्ठा चरम सीमा पर थी। गांधी-इरविन समझौता को मंजूरी देकर। कांग्रेस ने गोलमेज परिषद के लिए, गांधीजी को एकमात्र प्रतिनिधि नियुक्त किया।

       गांधीजी को लंदन पहुंचने के लिए, खास पासपोर्ट दिया गया। गांधीजी किसी राजनीतिक बहस के लिए नहीं। बल्कि हिंदुस्तान की जनता के स्वनिर्माण के अधिकार को स्थापित करने और दुनिया के  साथ दोस्ती बढ़ाने जा रहे थे। उनके साथ दो और प्रतिनिधि सरोजनी नायडू और मदन मोहन मालवीय जा रहे थे।

        सेंट जेम्स महल में हुई, गोलमेज परिषद की समिति में, गांधी जी की वाणी में नवजागृति हिंदुस्तान की ललकार सुनाई दी। पूर्ण स्वराज का हमारा ध्यये अटल है। बालिक मताधिकार और जाति समानता पर गांधीजी ने जोर दिया। हिंदुस्तान और बर्तानिया के बीच गौरव पूर्व समझौते का समर्थन किया। गोलमेज परिषद निष्फल रही। इसी प्रकार जाने : वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की Biography, जिन्होंने कभी भी अपना शीश नही झुकाया।

महात्मा गांधी -क्रिप्स मिशन की विफलता

   दिसंबर 1941 में सत्याग्रही कैदी रिहा कर  दिए गए। प्रथम विश्व युद्ध के आग के शोले गांधीजी की श्रद्धा की कसौटी बन गए। गांधी जी ने कहा, युद्ध अनैतिक है। इसी दौरान सर स्टैनफोर्ड क्रिप्स बर्तानिविय मंत्रिमंडल की दरखास्त लेकर, हिंदुस्तानी प्रतिनिधियों के साथ, सुशासन के बारे में चर्चा करने के लिए आए।

    गांधीजी 27 मार्च 1942 को दिल्ली  आए। क्योंकि क्रिप्स उनसे मिलने के लिए उत्सुक थे। दरखास्त में बंटवारे की अनिश्चित और अनगिनत शर्तों का विरोध करते हुए। गांधी जी ने पूछा। अगर आपको यही देना था। तो आए ही क्यों। दरखास्त को निरर्थक बताकर, गांधीजी वापस सेवाग्राम को रवाना हो गए।

क्रिप्स की दरखास्त को हिंदुस्तान के सभी  राजनैतिक दलों ने अस्वीकार कर दिया। क्रिप्स का उद्देश्य सफल नहीं हुआ।

महात्मा गांधी – हिंद छोड़ो आंदोलन

 हिंद छोड़ो आंदोलन की रूपरेखा गांधीजी के मन में स्पष्ट होने लगी। हिंदुस्तान की गुलामी उसे अपने बचाव के लिए, कमजोर बना रही है। गांधीजी की इस मान्यता से कांग्रेस कार्यकारिणी ने एलान किया। बर्तानिया हुकूमत हिंद से खत्म होनी चाहिए। स्वतंत्र की प्रभा से ही जनता में, आक्रमण का सामना करने की शक्ति पैदा होगी।

      देशभर के नेता मुंबई में इकट्ठा हुए। जहां हिंद छोड़ो प्रस्ताव के समर्थन में, कांग्रेस की सभा बुलाई गई थी। 7 अगस्त 1942 को लोगों की उदासी और निष्क्रियता प्रतिकार की भावना में बदल गई। मौलाना आजाद ने समझाया। हिंद छोड़ो के मायने हैं। हुक्मरानी खत्म करो। स्वराज जब आएगा। तो उसके अधिकार आवाम के हाथ में होंगे।

हिंद छोड़ो प्रस्ताव पेश करते हुए, जवाहरलाल नेहरू ने विश्वास दिलाया । यह न संकुचित राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित है। न ही कोई धमकी। बल्कि आजाद हिंदुस्तान का सहकार के लिए निवेदन है। सरदार पटेल ने कहा, लोगों का सहकार पाने के लिए, यह भावना जगानी चाहिए। कि यह उनका अपना युद्ध है।

      तालियों की गड़गड़ाहट में शोषित प्रजा की आवाज बुलंद करता हुआ। हिंद छोड़ो का प्रस्ताव, भारी बहुमत से पास हुआ। इसके विरोध में केवल 13 सदस्य थे। गांधीजी ने ऐलान किया कि आंदोलन शुरू करने से पहले, वे समझौते के लिए पूरी कोशिश करेंगे। आखिर में उन्होंने कहा- “जंगे आजादी के अहिंसक सिपाही के लिए  मेरा मंत्र है- करो या मरो।” इसी प्रकार जाने : Netaji Subhash Chandra Bose Motivational Biography in Hindi।

महात्मा गांधी – नजरबंद व कस्तूरबा की मृत्यु

 9 अगस्त 1942 की सुबह गांधी जी को पुणे के आगा खान महल में, नजर बंद कर दिया गया। कांग्रेस कार्यकारिणी के सभी सदस्यों को अहमदनगर के चांद बीबी के किले में रखा गया। भारत में क्रांति की लहर फैल गई। देश प्रेम ने लोगों को आंदोलन के लिए प्रेरित किया। करेंगे या मरेंगे का नारा गूंजने लगा।

        नजर कैद में गांधीजी अपनी 74 साल की पत्नी को, कुछ समय पढ़ाने में बिताते। लेकिन यह ज्यादा दिन तक नहीं चला। कस्तूरबा का स्वास्थ्य तेजी से बिगड़ने लगा। बंदी अवस्था में, 22 फरवरी 1944 को उनका निधन हो गया। इस तरह गांधीजी और कस्तूरबा के 62 साल के दांपत्य जीवन का अंत हो गया। 

    6 मई 1944 को गांधी जी का स्वास्थ्य बिगड़ने की वजह से, बिना शर्त उनकी रिहाई की गई। जिससे हिंदुस्तान ने चैन की सांस ली। 11 मई को गांधीजी स्वास्थ्य सुधारने के लिए, गांधीग्राम में आए। पूरा आराम पाने के लिए, उन्होंने 15 दिनों का मौन व्रत किया।

महात्मा गांधी – सत्ता के तबादले पर चर्चा

  बरतानिया मजदूर सरकार की ओर से पैथीक लारेंस, स्टैफर्ड क्रिप्स और ए जी अलेक्जेंडर का प्रतिनिधिमंडल। सत्ता के तबादले की शर्तों पर चर्चा करने के लिए हिंदुस्तान आया। प्रतिनिधिमंडल ने अपना कार्य, मुख्य राजकीय पक्ष के नेताओं की मुलाकात से शुरू किया।

     लॉरेंस के बुलावे पर गांधीजी दिल्ली पहुंचे। प्रतिनिधिमंडल से बाकी बातचीत का केंद्र शिमला निश्चित किया गया। मौलाना अबुल कलाम आजाद, जवाहरलाल नेहरू, खान अब्दुल गफ्फार खान और सरदार वल्लभभाई पटेल परिषद को, कांग्रेस के विचार समझाने शिमला पहुंचे।

     प्रतिनिधिमंडल के इरादों में पूरे भरोसे के साथ, गांधीजी उनके सलाहकार की हैसियत से शिमला पहुंचे। वायसराय के महल में, बातचीत का दौर चलता रहा। लेकिन राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच, कोई समझौता न हो सका। परिषद असफल हो गई। इसी प्रकार जाने : महान गणितज्ञ और खगोल शास्त्री आर्यभट्ट का जीवन परिचय, जानकार आपको गर्व होगा।

महात्मा गांधी – हिंदुस्तान में आर जी हुकूमत कायम

 शिमला परिषद के निष्फल होने पर, प्रतिनिधिमंडल ने अपनी योजना पेश की। इसमें सुरक्षा, आर्थिक और शासन संबंधी दृष्टि से देश के बंटवारे को नामंजूर कर दिया गया। समस्या हल करने के लिए, उन्होंने अखंड हिंदुस्तान में, आर जी सरकार कायम करने का प्रस्ताव रखा। इसके बाद विधान परिषद स्थापित करने का सुझाव भी दिया।

  मुस्लिम लीग ने ऐलान किया। आर जी हुकूमत की मुखालफत करने के लिए, 16 अगस्त 1946 के दिन को डायरेक्ट एक्शन डे के रूप में मनाया जाए। जिसका नतीजा कोलकाता का खूनी हत्याकांड था। जुनून से पागल इंसान कत्लेआम पर उतर आए।

      कई दिनों की बहस के बाद, 2 सितंबर 1946 को, आरजी हुकूमत कायम कर दी गई। जिसकी बागडोर जवाहरलाल नेहरू ने  संभाली। देश के दुखद घटना पर गांधी ने अपनी व्यथा व्यक्त की। ऐसा लगता है कि देश से इंसानियत मिटती जा रही है। खून के बदले खून का नारा जंगी है। मैं अगर हिंसा को रोक न सका। तो मेरे जीवन का कोई अर्थ नहीं है।

महात्मा गांधी – लार्ड माउंटबेटन योजना व भारत विभाजन

गांधी जी को हिंदुस्तान के नए  वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन का बुलावा आया। गांधीजी फौरन नई दिल्ली आए। यहां वह भंगी बस्ती में ठहरे। वायसराय के महल में, उन्होंने लॉर्ड और लेडी माउंटबेटन से मुलाकात की। वायसराय ने कहा- “मेरा काम हिंदुस्तानियों के हाथ में सत्ता सौंपना है।”

       गांधी जी ने यह स्पष्ट किया। मैं हिंदुस्तान के किसी भी तरह के, बंटवारे का विरोध करता हूं। मार्च 1947 के आखिरी हफ्ते में, दिल्ली के लाल किले पर चहल-पहल हो गई। जब अंतर एशिया परिषद का पहला अधिवेशन हुआ। एशिया के नवजागरण के प्रतीक समान, इस परिषद में 22 देशों के करीब 250 प्रतिनिधि जमा हुए।

       गांधी जी का व्यथित मन, हिंदुस्तान के होने वाले बंटवारे से और व्यथित था। अकेले गांधी जी मंद स्वर में बोले- “आने वाली पीढ़ियां जान ले। हिंदुस्तान के बंटवारे में गांधी का कोई हाथ नहीं था।” 3 जून 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग से, 15 अगस्त 1947 को दो स्वतंत्र राज्य कायम करने की योजना के लिए सहमति प्राप्त की।

      कांग्रेस कार्यकारिणी हिंदुस्तान के बंटवारे के खिलाफ थी। फिर भी देश में हो  रहे, खून-खराबे को रोकने के लिए। इस योजना को स्वीकार कर लिया। गांधीजी हिंदुस्तान के बंटवारे का जोरदार विरोध करते रहे। कार्यकारिणी के पक्ष में 157 लोग और विपक्ष में 29 लोग थे। गुलामी का अंधेरा पार करके, हिंदुस्तान की सुहानी भोर देख रहा था। इसी प्रकार जाने : Founder of Microsoft – Bill Gates के सफलता की पूरी कहानी।

महात्मा गांधी – भारत की स्वतंत्रता

संविधान सभा ने वही ध्वज अपनाया। जिसके नीचे स्वतंत्रता का संग्राम हुआ था। चरके की जगह, भारतीय संस्कृत के प्रतीक धर्म चक्र ने ली। 14 अगस्त 1947 की आधी रात सदियों की नींद और स्वतंत्रता के अविरल संग्राम के बाद। राष्ट्र का पुनर्जन्म हुआ।

       स्वतंत्रता के सृजक महात्मा गांधी को अंजलि अर्पित करके। संविधान सभा ने हिंदुस्तान के शासन के लिए, सत्ता धारण की। 15 अगस्त के शुभ दिन लोग नवयुग का स्वागत करने के लिए, इकट्ठे हुए। उन्होंने शांतिमय ढंग से, सत्ता का तबादला होते हुए देखा। आजाद हिंदुस्तान की जनता की सहमत से लॉर्ड माउंटबेटन राष्ट्र सर्वप्रथम गवर्नर जनरल बने।

         ध्वज फहराने के बाद, भारत की जनता के प्रथम सेवक ने, लाल किले से 5 लाख लोगों को संबोधित किया। आज हमारा ध्यान सबसे पहले राष्ट्रपिता की ओर जाता है। जिन्होंने स्वतंत्रता की ज्योति जलती रखी। अंधकार को दूर करके, प्रकाश फैलाया।

विभाजन के बाद कौमी फसाद

कौमी फसाद के नक्कारे दूर से सुनाई देने लगे। एक बहुत बड़े प्रदेश में नफरत की आग भड़क रही थी। लाखों लोगों पर जुल्मों सितम हो रहे थे। पीढ़ियों से जुड़े संबंधों को  तोड़कर, बहुत बड़ी तादाद में लोग बेघर हो गए। वे सुरक्षा की खोज में चल पड़े।

       अक्टूबर 1947 में हालात ने एक संगीन मोड़ लिया। जम्मू-कश्मीर रियासत ने हिंदुस्तान या पाकिस्तान में रहने के फैसले  में देर की। तो सीमा प्रांत के कबायलियों ने हमला कर दिया। जो रियासत को ताकत के बल पर, पाकिस्तान में मिलाने की चाह रखते थे। कत्लेआम से दहशत फैल गई।

       26 अक्टूबर को लोगों की सम्मति से, रियासत भारतीय संघ में शामिल हो गई। कबायलियों का सामना करने के लिए, फौजी मदद मांगी गई। हिंदुस्तानी फौज हवाई जहाज से भेजी गई। हमला फौरन रोक दिया गया। इसी प्रकार जाने :Mother Teresa- Saint From Kolkataऐसा सच जो आप नही जानते।

महात्मा गांधी का आमरण उपवास व हत्या

धर्मनिरपेक्ष राज्य और कौमी एकता दोनों खतरे में थी। दिल्ली को कौमी नफरत से बचाने के लिए गांधी जी ने आमरण उपवास का निर्णय लिया। उन्होंने अपने आपको ईश्वर के हवाले कर दिया। उनकी भावनाएं थी। कि लाचार होकर, हिंदुस्तान का सर्वनाश होते देखूं। उससे बेहतर है कि मैं शरीर त्यागकर, मुक्ति पाऊँ।

       चिंता भरी घड़ियां जैसे-जैसे बितती गई। उपवास वाला शरीर धीरे-धीरे निर्बल होता गया। सभी जातियों के लोग, सोच विचार में पड़ गए। कर्तव्य की भावना जागृत होने से, सभी जातियों के बिछड़े दिल, फिर से मिले। तब गांधीजी ने 18 जनवरी 1948 को उपवास तोड़ दिया।

      उनकी प्रार्थना सभा में, गांधी जी की हत्या करने के लिए। एक हिंदू शरणार्थी ने बम फेंका। लेकिन गांधीजी सकुशल ही रहे। ईश्वर पर अटल विश्वास रखने के कारण। उन्होंने दूसरा कोई संरक्षण लेने से इनकार कर दिया। 30 जनवरी 1948 को गांधी जी ने वह पत्र मंगवाए। जिनका जवाब देना बाकी था।

      सरदार पटेल से बातें करते-करते, उन्होंने शाम को 4:30 बजे खाना खाया। फिर वे संध्या की प्रार्थना के लिए उठे। प्रार्थना की धुन में लीन, गांधीजी ईश्वर से लो लगाने चल पड़े तभी नाथूराम गोडसे ने अजातशत्रु गांधीजी के कोमल शरीर में गोलियां दाग दी।

      संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपना झंडा झुका दिया। सारी मानवता ने एक होकर, शोक प्रकट किया। प्रेम और विश्व बंधुत्व से सबको एक सूत्र में बांधने के लिए, शांतिदूत ने अपना बलिदान दे दिया। वो लोगों के दिलों में समा कर, उनके लिए एक मिसाल बन गए। वह भारत के गौरवमय अतीत और उज्जवल भविष्य, दोनों के सर्वश्रेष्ठ प्रतीक थे।

महात्मा गांधी के अनमोल वचन

  1. “सत्य कभी ऐसे कारण को क्षति नहीं पहुंचाता जो उचित हो।”
  2. “भूल करने में पाप तो है ही, परंतु उसे छुपाने में उससे भी बड़ा पाप है।”
  3. “स्वयं को जानने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है स्वयं को औरों की सेवा में डुबो देना।”
  4. “जहाँ प्रेम है वहां जीवन है।”
  5. “विश्वास करना एक गुण है, अविश्वास दुर्बलता कि जननी है।”
  6. “पाप से घृणा करो, पापी से प्रेम करो।”
  7. “अक्लमंद काम करने से पहले सोचता है और मूर्ख काम करने के बाद।”
  8. “व्यक्ति की पहचान उसके कपड़ों से नहीं अपितु उसके चरित्र से आंकी जाती है।”
  9. “पूंजी अपने-आप में बुरी नहीं है, उसके गलत उपयोग में ही बुराई है। किसी ना किसी रूप में पूंजी की आवश्यकता हमेशा रहेगी।”
  10. “हो सकता है आप कभी ना जान सकें कि आपके काम का क्या परिणाम हुआ, लेकिन यदि आप कुछ करेंगे नहीं तो कोई परिणाम नहीं होगा।”
  11. “भविष्य, आज आप जो कर रहे हैं उस पर निर्भर करता है।”
  12. “आपको ही बदलाव बनना पड़ेगा अगर आप इस दुनिया में कुछ बदलाव देखना चाहते हो।”
  13. “मनुष्य विचारों का उत्पाद है। वह जो भी सोचता है वही बन जाता है।”
  14. “अगर जनता का समर्थन ना भी हो तो भी सत्य खड़ा रहता है, यह आत्म निर्भर है।”
  15. “हर कोई जो इच्छा रखता है अपने अंदर की आवाज को सुन सकता है। यह प्रत्येक व्यक्ति में है।”

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