Somvar Vrat Katha|Solah Somvar Vrat Katha | सोमवार व्रत के नियम |सोमवार व्रत के लाभ

Somvar Vrat Katha Solah Somvar Vrat Katha 16 Somvar Vrat Katha Sawan Somvar Vrat Katha Somvar Vrat Katha In Hindi 16 Somvar Vrat  सोमवार व्रत कथा। सोलह सोमवार व्रत कथा। सावन सोमवार व्रत कथा। 16 सोमवार व्रत के फायदे। सोमवार व्रत के नियम। सोमवार व्रत के लाभ।16 सोमवार व्रत कथा

 सोमवार के दिन रखे जाने वाला व्रत, भगवान शिव को समर्पित होता है। भगवान शिव ज्ञान के लौकिक गुरु हैं। वे ब्रह्मांड की सभी बुराइयों का नाश करने वाले हैं। सोमवार के दिन अगर हम भगवान शिव की उपासना करते हैं। तो वह शीघ्र प्रसन्न होकर, हमें मनोवांछित वरदान देते हैं। नए घर में प्रवेश, विवाह संबंधित कार्य तथा खेल संबंधी कार्यों के लिए, यह दिन सबसे उपयुक्त होता है।

        धर्म ग्रंथों के अनुसार, सावन माह को सबसे पावन माह माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस माह में भगवान शिव कैलाश पर्वत से पृथ्वी की तरफ आते हैं। इस माह में सोमवार का दिन, भगवान भोलेनाथ का सबसे प्रिय दिन होता है। सावन में सृष्टि अपनी कृपा बरसाती है। यह महीना सभी जीवो के लिए, कल्याणकारी माना जाता है। नारद पुराण के अनुसार, तीन प्रकार के सोमवार व्रत होते हैं। जैसे- सामान्य सोमवार व्रत, सोलह सोमवार व्रत और सावन सोमवार व्रत।

      इन तीनों सोमवार व्रत की विधि, पूजन, व्रत, उद्यापन और दान एक समान होते हैं। अगर आप भी सोलह सोमवार का व्रत आरंभ करना चाहते हैं। तो यह व्रत सावन के सोमवार से प्रारंभ कर सकते हैं। इसके अलावा भी सोमवार का कोई भी व्रत आरंभ करना चाहते हैं। तो इसकी शुरुआत सावन माह से ही करें। इससे उसका फल अनंत होता है।

       ऐसी मान्यता है कि माता सती ने सावन माह में ही कठोर तप किया था। जिसके परिणामस्वरूप, भगवान शिव  को हर जन्म में अपने पति के रूप में प्राप्त किया। सोमवार के व्रत को कोई भी कर सकता है। अविवाहित कन्या सुंदर वर सुंदर  और संपन्न घर पाने के लिए, यह व्रत करती है।

वही विवाहित स्त्री अपने लंबे और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए, यह व्रत करती है। पुरुष इस व्रत को सुखी और शांतिपूर्ण जीवन बिताने के लिए करते हैं।

Somvar Vrat Katha

सोमवार व्रत के लाभ - 16 सोमवार व्रत के फायदे
Somvar Vrat ke Fayde

सावन का महीना भगवान शिव को पूरी तरह समर्पित है। भगवान शिव इस माह में भगवान गणेश और माता गौरी के साथ भूलोक पर निवास करते हैं। इसलिए सावन में व्रत का अत्यंत महत्व है। इससे हमारे जीवन में चारों ओर से खुशहाली भर जाती है। सावन माह में सोमवार व्रत करने की क्या फायदे होते हैं। इसको अध्यात्म की दृष्टि से समझते हैं।

1. मनवांछित वर की प्राप्ति अगर आप अविवाहित हैं। आप चाहती हैं कि आपको मनवांछित वर की प्राप्ति हो। तो आपको सोमवार का व्रत रखना चाहिए। क्योंकि इसी व्रत के द्वारा, माता गौरी ने भगवान शिव का वरण किया था। इसलिए आपको मनवांछित वर की प्राप्ति के लिए, इस व्रत को करना चाहिए।

2. आत्मा का पवित्र व शिवमय में होना शिवमय होने का अर्थ है कि शिव में लीन होकर, अपनी आत्मा को पवित्र करना। इस व्रत से ब्रह्मांड के सूक्ष्म जीवो की तरफ हमारा ध्यान जाता है। हम पूरी तरह से शिवमय हो जाते हैं।

3. मन को स्थिर करने के लिए हम बिगड़े कार्यों को बनाने के लिए, बहुत सारे पूजा अनुष्ठान करते हैं। लेकिन हमारा मन चंचल होता है। कभी-कभी इन पूजा-पाठ से विचलित भी हो जाता है। इसे दूर करने के लिए, आप सोमवार का व्रत कर सकते हैं। क्योंकि मन का कारक चंद्रमा होता है। जो हमारे मन में अलग-अलग विचार पैदा करता है। अगर हमारे विचार उत्तम हो। हमारे विचारों में शुद्धि हो। हमारी सोच सकारात्मक हो। तो कठिनाइयां अपने आप दूर हो जाती हैं।

4. बुरे ग्रहों का सकारात्मक प्रभाव भगवान शिव की आराधना करने से, हमारे जो बुरे ग्रह होते हैं। वह स्वयं सकारात्मक हो जाते हैं। उनसे होने वाले बुरे परिणाम धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं।

5. विघ्नों का हरण सोमवार का व्रत करने से हमारे जो भी विघ्न बाधाएं होती हैं उन्हें भगवान गणेश पूर्ण रूप से नष्ट कर देते हैं हमारे चारों ओर खुशहाली भर जाती हैं।

6. मनोरोगों से मुक्ति सोमवार का व्रत रखने से मानसिक कष्ट व विकार दूर हो जाते हैं। आपकी समस्त मानसिक परेशानियां दूर होती है। सोमवार का व्रत रखने से आपकी माता को सुख की प्राप्ति होती है।

7. कमजोर चंद्रमा होने पर लाभ यदि आपकी कुंडली में चंद्रमा कमजोर है। तो आपको सोमवार का व्रत रखना चाहिए। क्योंकि सोमवार के देव, चंद्रदेव बताए गए हैं। सोमवार का व्रत रखने से चंद्रदेव प्रसन्न हो जाते हैं। यदि आपके इष्ट भगवान शंकर है। तो भी आपको सोमवार का व्रत रखना चाहिए।

सोमवार व्रत के नियम
Sawan Somvar Vrat Ke Niyam

 सोलह सोमवार व्रत के साथ-साथ, इसके नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है। जिसके परिणामस्वरूप, सुखदाई परिणाम प्राप्त होते हैं।

1. यदि आप सौम्य सोमवार का व्रत रख रहे है। तो इन्हें कम से कम 10 की संख्या में रखना चाहिए।

2. यदि आप सावन के सोमवार रख रहे हैं। तो इन्हें सोलह सोमवार रखने चाहिए।

3. सोमवार का व्रत शुरू करने के लिए चैत्र, वैशाख, सावन, कार्तिक और मार्गशीर्ष के माह को सबसे उत्तम बताया गया है।

4. इन सभी महीनों के शुक्ल पक्ष के पहले सोमवार या जेष्ठ सोमवार से, आपको व्रत की शुरुआत करनी चाहिए।

5. प्रात:काल उठकर स्नानादि करने के पश्चात, पूजा करनी चाहिए। 

6. दूध,दही व जल से भगवान का अभिषेक करना चाहिए। चावल की बनी खीर से भगवान शिव को भोग लगाना चाहिए। 

7. सफेद रंग का चंदन भगवान शिव को अर्पित करें व स्वयं भी लगाएं। श्वेत पुष्प भी अर्पित करना चाहिए। अक्षत चढ़ाने चाहिए। 

8. प्रदोष काल में भी भगवान शिव का अभिषेक कर सकते हैं। यानी कि दिन के तीसरे पहर में, जो साय: 4:00 बजे से लेकर सूर्यास्त माना जाता है।

सोमवार व्रत कथा
Somvar Vrat Katha

  ऐसा माना जाता है कि सावन के सोमवार को व्रत रखने से, दांपत्य जीवन खुशियों से भर जाता है। सावन के सभी सोमवार को व्रत रखकर, भगवान शिव की पूजा करने से घर की कलह का नाश होता है। रोगों से मुक्ति मिलती है। पति-पत्नी के संबंधों में मधुरता बढ़ती है। देवों के देव महादेव को प्रसन्न करने के लिए, सोलह सोमवार का व्रत, एक उत्तम व्रत माना जाता है। तो जानते हैं, इस सोलह सोमवार की व्रत कथा को।

माता पार्वती द्वारा पुजारी को श्राप

 एक बार भगवान शिव, मां पार्वती के साथ भ्रमण करते हुए, मृत्युलोक के अमरावती में पहुंचे। यहां के राजा ने भगवान शिव जी का एक विशाल मंदिर बनवा रखा था। शिवजी और मां पार्वती इसी मंदिर में रहने लगे। एक दिन मां पार्वती ने, भगवान शिव से चौसर खेलने की इच्छा जाहिर की। पार्वती जी की इच्छा जानकर, शिव जी उनके साथ चौसर खेलने बैठ गए।

        चौसर का खेल आरंभ होते ही, वहां का पुजारी मंदिर में आ गया। पार्वती जी ने पुजारी से पूछा कि हे पुजारी जी, यह बताइए कि आज इस चौसर में किसकी जीत होगी। ब्राह्मण ने अनुमान लगाया और कहा कि महादेव जी की। लेकिन चौसर में शिवजी की पराजय हुई। मां पार्वती जी  जीत गई। तब माता पार्वती ने ब्राह्मण को झूठ बोलने पर, उसे कोढ़ी होने का श्राप दे दिया।

       शिवजी और पार्वती जी उस मंदिर से कैलाश लौट गए। पार्वती जी के श्राप के कारण, पुजारी कोढ़ी हो गया। नगर के स्त्री-पुरुष, उस पुजारी की परछाई से भी दूर रहने लगे। तब राजा ने पुजारी को किसी पाप के कारण कोढ़ी हो जाने पर, मंदिर से निकाल दिया। उसकी जगह दूसरे ब्राह्मण को पुजारी बना दिया गया। कोड़ी पुजारी मंदिर के बाहर ही बैठकर, भिक्षा मांगने लगा।

      कई दिनों के पश्चात स्वर्ग लोक की कुछ अप्सराएं, उस मंदिर में पधारी। उन्होंने कोढ़ी को देखकर, इसका कारण पूछा। निसंकोच पुजारी ने उन्हें मां पार्वती द्वारा श्राप देने की पूरी कहानी सुना दी। तब अप्सराओं ने पुजारी जी से, सोलह सोमवार का विधिवत व्रत रखने को कहा। पुजारी द्वारा पूजन विधि पूछने पर, अप्सराओं ने कहा।

अप्सराओं द्वारा बताई गई पूजन विधि

 सोमवार के दिन सूर्योदय से पहले उठो। स्नानादि से निवृत्त हो, स्वच्छ वस्त्र पहनो। आधा सेर गेहूं का आटा लो। उसके तीन भाग करो। फिर भी का दीपक जलाकर,  गुड, नैवेद्य, बेलपत्र, चंदन, अक्षत, फूल और जनेऊ का जोड़ा लेकर प्रदोष काल में भगवान शिव जी की पूजा अर्चना करो। पूजा के पश्चात 3 अंगों में से, एक अंग भगवान शिव को अर्पण करो। एक आप ग्रहण करो। शेष एक अंग को, वहां उपस्थित स्त्री-पुरुषों और बच्चों में बांट दो।

       इस तरह व्रत करते हुए, जब सोलह सोमवार बीत जाए। तो सहत्रवें सोमवार को एक पाव आटे की बाटी बनाकर, उसमें घी और गुड़ मिलाकर, चूरमा बनाओ। फिर भगवान शिव जी को भोग लगाकर, वहां उपस्थित स्त्री-पुरुष और बच्चों को प्रसाद बांट दो। इस तरह सोलह सोमवार व्रत करने और व्रत कथा सुनने से, भगवान शिव जी तुम्हारे कोढ़ को नष्ट करके, तुम्हारी सभी मनोकामनाएं पूरी कर देंगे। इतना कहकर वह अप्सराएं स्वर्ग लोक को चली। 

      पुजारी ने अप्सराओं के कथनानुसार ही सोलह सोमवार का विधिवत व्रत किया। फलस्वरूप भगवान शिव जी की अनुकंपा से, उसका कोढ़ नष्ट हो गया। राजा ने उसे फिर से मंदिर का पुजारी बना दिया। वह मंदिर में भगवान शिव की पूजा करते हुए, आनंद से जीवन व्यतीत करने लगा।

माता पार्वती के सोलह सोमवार का व्रत

  कुछ दिनों के बाद, पृथ्वी का भ्रमण करते हुए। भगवान शिव और माता पार्वती उस मंदिर में पधारे। पुजारी को स्वस्थ्य देखकर, मां पार्वती ने आश्चर्य से उसके रोग मुक्त होने का कारण पूछा। तो पुजारी ने उन्हें सोलह सोमवार व्रत करने की पूरी कथा सुनाई। पार्वती जी व्रत की बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुई। उन्होंने पुजारी से व्रत की विधि पूछकर, स्वयं सोलह सोमवार का व्रत प्रारंभ किया।

      पार्वती जी अपने पुत्र कार्तिकेय के नाराज होकर, दूर चले जाने से बहुत चिंतित थी। वे कार्तिकेय को लौट आने के बहुत सारे उपाय कर चुकी थी। लेकिन कार्तिकेय जी लौटकर, उनके पास नहीं आ रहे थे। सोलह सोमवार का व्रत करके, पार्वती जी ने भगवान शिव से, कार्तिकेय के लौट आने की प्रार्थना की। व्रत समापन के तीसरे दिन  सचमुच कार्तिकेय जी वापस लौट आए।

      कार्तिकेय जी ने अपनी मां से हृदय परिवर्तन के संबंध में पूछा। हे माता, आपने  ऐसा कौन सा उपाय किया था। जिससे मेरा  क्रोध नष्ट हो गया। मैं वापस लौट आया। तब पार्वती जी ने, कार्तिकेय जी को सोलह सोमवार के व्रत की कथा सुनाई। कार्तिकेय अपने एक ब्राह्मण मित्र ब्रह्म दत्त के परदेस चले जाने से बहुत दुखी थे। उन्होंने उसके वापस लौट आने के लिए, 16 सोमवार के द्वारा, अपनी कामना प्रकट की। 

        व्रत के समापन के कुछ दिनों बाद ही, उनका मित्र लौट आया। ब्राह्मण ने कार्तिकेय जी से कहा। प्रिय मित्र तुमने ऐसा कौन सा उपाय किया था। जिससे परदेश में मेरे विचार एकदम परिवर्तित हो गए। मैं तुम्हारा स्मरण करते हुए, लौटाया आया।  कार्तिकेय जी ने भी अपने मित्र को सोलह सोमवार की व्रत की कथा और विधि सुनाई। ब्राह्मण मित्र व्रत के बारे में सुनकर बहुत खुश हुआ।

ब्राह्मण ब्रह्मदत्त द्वारा सोलह सोमवार का व्रत

ब्रह्मदत्त ने भी सोलह सोमवार का व्रत किया। व्रत का समापन करने के बाद, ब्रह्मदत्त विदेश यात्रा पर निकला। वहां नगर के राजा हर्षवर्धन की बेटी राजकुमारी गुंजन का स्वयंवर हो रहा था। वहां के राजा ने प्रतिज्ञा की थी कि एक हथिनी यह माला जिसके गले में डालेगी। वह अपनी पुत्री का विवाह उसी से करेंगे। ब्राह्मण भी उत्सुकता वश महल में चला गया। वहां कई राज्यों के राजकुमार बैठे थे।

     तभी एक सजी-धजी हथिनी सूड़ में जयमाला लेकर वहाँ आई। हथिनी ने ब्राह्मण के गले में, जयमाला डाल दी। जिसके फलस्वरूप, ब्राह्मण का विवाह राजकुमारी के साथ हो गया। एक दिन उसकी पत्नी ने पूछा कि आपने ऐसा कौन सा शुभ कार्य किया था। जो उस हथिनी ने राजकुमारों को छोड़कर, आपके गले में जयमाला डाल दी। ब्राह्मण में सोलह सोमवार के व्रत की विधि बताई। अपने पति से सोलह सोमवार के महत्व जानकर, राजकुमारी ने पुत्र कामना से सोलह सोमवार का व्रत किया। 

        निश्चित समय पर, भगवान शिव जी की अनुकंपा से, राजकुमारी ने एक सुंदर, सुशील व स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया। उसके पुत्र का नामकरण, गोपाल के नाम से हुआ। बड़े होने पर गोपाल में भी, अपनी मां से प्रश्न तैयार किया। मैंने तुम्हारे ही घर में जन्म लिया। इसका क्या कारण है। माता गुंजन ने सोमवार व्रत की जानकारी दी। व्रत का महत्व जानकर, गोपाल ने भी व्रत करने का संकल्प लिया।

सोलह सोमवार के व्रत से राज्य की प्राप्ति

गोपाल जब 16 साल का हुआ। तो उसने राज्य पाने की इच्छा से, सोलह सोमवार का  विधिवत व्रत किया। व्रत के समापन के बाद, गोपाल घूमने के लिए समीप के नगर में गया। वहां के वृद्ध राजा ने गोपाल से प्रसन्न होकर, अपनी राजकुमारी मंगला का विवाह उससे कर दिया। सोलह सोमवार के व्रत करने से, गोपाल खुशी के महल में जीवन व्यतीत करने लगा। 2 वर्ष पश्चात, वृद्ध राजा का निधन हो गया। तब गोपाल को, उस नगर का राजा बना दिया गया।

      इस तरह सोलह सोमवार का व्रत करने से, गोपाल के राज्य पाने की इच्छा पूर्ण हो गई। राजा बनने के बाद भी, गोपाल विधिवत सोलह सोमवार का व्रत करता रहा। सहत्रवें सोमवार को व्रत के समापन पर, राजा ने अपनी पत्नी मंगला से कहा। वह व्रत की सारी सामग्री लेकर, वह समीप के मंदिर में पहुंचे। वह पति की आज्ञा का उल्लंघन करते हुए। सेवकों से पूजन की सामग्री भेज दी। वह स्वयं मंदिर में नहीं गई।

राजा ने जब राजा ने भगवान शिव की पूजा पूरी की। तो आकाशवाणी हुई- ‘हे राजन तेरी रानी ने सोलह सोमवार के व्रत का अनादर किया है।’ इसलिए रानी को महल निकाल दे। वरना तेरा सब वैभव नष्ट हो जाएगा।

सोलह सोमवार व्रत के अनादर का परिणाम

 राजा ने आकाशवाणी सुनकर, तुरंत महल में पहुंचा और सेवकों को आदेश दिया। रानी को दूर किसी नगर में छोड़ आओ। सैनिकों ने राजा की आज्ञा का पालन करते हुए। तत्काल उसे घर से निकाल दिया। रानी भूखी प्यासी नगर में भटकने लगी। रानी को उस नगर में एक बुढ़िया मिली। वह बुढ़िया सूत कातकर, बाजार में बेचने जा रही थी। लेकिन उस बुढ़िया से सूत उठ नहीं रहा था।

       बुढ़िया ने रानी से कहा। यदि तुम मेरा तो सूत उठाकर, बाजार तक पहुंचा दो। सूत बेचने में मेरी मदद करो। तो मैं तुम्हें धन दूंगी। रानी ने बुढ़िया की बात मान ली। लेकिन जैसे ही रानी ने सूत की गठरी को हाथ लगाया। तभी जोर की आंधी चली। गठरी खुल जाने से, सारा सूत आंधी में उड़ गया। बुढ़िया ने उसे फटकार कर भगा दिया।

     रानी चलते-चलते एक तेली के घर में पहुंची। उस तेली ने तरस खाकर, रानी को घर में रहने को कह दिया। तभी भगवान शिव के प्रकोप से, तेली के तेल से भरे मटके, एक-एक करके फूटने लगे। फिर तेली ने भी उसे भगा दिया। रानी चलते चलते एक नदी पर पहुंची। अपनी प्यास बुझाने के लिए, जैसे ही उसने नदी के जल को छुआ। तो नदी सूख गई। रानी अपने भाग्य को कोसती हुई, आगे बढ़ी। 

       रानी ने एक पेड़ के नीचे बैठकर, आराम करना चाहा। तो पल भर में उनके पत्ते टूटकर बिखर गए। पेड़ और नदी की यह दशा देखकर, वहाँ के ग्वाले बहुत हैरान हुए। वे उसे पास के मंदिर में, पुजारी जी के पास ले गए। रानी के चेहरे को देखते ही, पुजारी समझ गए। कि यह अवश्य किसी बड़े घर की है। भाग्य के कारण दर-दर भटक रही है। पुजारी जी ने रानी से कहा, पुत्री तुम चिंता न करो। तुम मेरे साथ इस मंदिर में रहो।

कुछ ही दिनों में सब ठीक हो जाएगा। पुजारी जी की बातों से, रानी को बहुत सांत्वना मिली। रानी उस मंदिर में रहने लगी। रानी भोजन बनाती। तो सब्जी जल जाती, आटे में कीड़े पड़ जाते, जल से बदबू आने लगती। पुजारी भी रानी के दुर्भाग्य से बहुत चिंतित होते हुए बोले, हे पुत्री अवश्य ही तुमसे कोई अनुचित काम हुआ है। जिसके कारण देवता तुमसे इतने नाराज हैं। उनकी नाराजगी के कारण ही, तुम्हारी यह दशा हुई है।

सोलह सोमवार के व्रत से दुर्भाग्य से सौभाग्य की प्राप्ति

  पुजारी की बात सुनकर, रानी ने अपने पति के आदेश पर, मंदिर में न जाकर शिवजी की पूजा न करने की सारी कथा सुनाई। पुजारी जी ने कहा, अब तुम कोई चिंता न करो। कल सोमवार है और कल से ही सोलह सोमवार का व्रत करना शुरू कर दो। भगवान शिव जी अवश्य ही तुम्हारे दोषों को क्षमा कर देंगे। पुजारी जी की बात मानकर, रानी ने सोलह सोमवार के व्रत प्रारंभ कर दिए।

      रानी ने सोमवार का व्रत करके, शिवजी की विधिवत पूजा अर्चना की। साथ ही व्रत कथा सुनने लगी। जब रानी ने सत्रहवें  सोमवार को विधिवत व्रत का समापन किया। तो उधर उनके पति राजा के मन में, रानी की याद आई। राजा ने तुरंत सैनिकों को रानी को ढूंढकर लाने को भेजा। रानी को ढूंढते हुए, सैनिक मंदिर में पहुंचे। रानी से लौटकर चलने के लिए कहा। पुजारी ने सैनिकों से मना कर दिया।

       सैनिक निराश होकर लौट गए। उन्होंने लौटकर राजा को सारी बात बताई। राजा स्वयं उस मंदिर में पुजारी के पास पहुंचे। रानी को महल से निकाल देने के कारण, पुजारी जी से क्षमा मांगी। पुजारी जी ने राजा से कहा- यह सब भगवान शिवजी के प्रकोप के कारण हुआ है। इतना कहकर उन्होंने रानी को विदा किया। राजा के साथ रानी महल में पहुंची। महल में बहुत खुशियां  मनाई गई। पूरे नगर को सजाया गया।

राजा ने ब्राह्मणों को अन्न, धन और वस्त्र का दान दिया। नगर में निर्धनों को वस्त्र बांटे गए। रानी सोलह सोमवार का व्रत करते हुए, महल में आनंदपूर्वक रहने लगी। भगवान शिव जी के अनुकंपा से, उसके जीवन में सुख ही सुख भर गया। सोलह सोमवार के व्रत करने और कथा सुनने से, मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। जीवन में किसी तरह कोई कमी नहीं होती। स्त्री-पुरुष आनंदपूर्वक जीवन-यापन करते हुए, मोक्ष को प्राप्त होते हैं।

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