Kailash Parvat – kahan hai, mystery, parvat ka rahasya, mount kailash, secret, facts [ कैलाश पर्वत के रहस्य, कहानी व इतिहास, शिव का निवास स्थान कैलाश ]
Kailash Parvat Mystery
कैलाश पर्वत के रहस्य
जैसा कि कहा जाता है कि ढूंढने से तो भगवान भी मिल जाते हैं। तो चलिए, आज ढूंढते हैं। देवों के देव महादेव को। हमारे प्रिय महादेव कहां रहते हैं। यह कोई नहीं जानता कि भगवान कैसे दिखते हैं। यह हमारी अवधारणा है कि भगवान का रंग रूप, किसी विशेष प्रकार का है। उस परमात्मा रूपी, रूप को पहचानना और उस तक पहुंचना केवल मुश्किल ही नहीं। बल्कि नामुमकिन भी है।
लेकिन एक रास्ता है। जिसे पाकर मनुष्य भगवान तक पहुंच सकता है। लोगों का मानना है कि भगवान शिव जो पुराणो में वर्णित है। वह आज भी हमारे बीच हैं। लेकिन उन तक पहुंचना आसान नहीं है। भोले शंकर आज भी अपने परिवार के साथ, विशाल कैलाश पर्वत पर रहते हैं। लेकिन उन तक पहुंचकर, उनके दर्शन करना नामुमकिन सा है।
पुराणों व शास्त्रों के अनुसार, कैलाश पर्वत के आसपास ऐसी शक्तियां हैं। जो उसके वातावरण में समाई हुई है। क्या आप जानते हैं कि इस दुर्गम और रहस्यमई पर्वत की चोटी तक कोई नहीं पहुंच पाया। सिवाय एक तिब्बती बौद्ध योगी मिलारेपा के। जिन्होंने 11 वीं सदी में, इस यात्रा को सफल किया था। शिव के घर कैलाश पर्वत से जुड़े अनेकों ऐसे तथ्य हैं। जिन पर महान वैज्ञानिकों द्वारा शोध किए जा रहे हैं।
लेकिन ऋषि-मुनियों के अनुसार, उस भोले के निवास के रहस्य को, भाँप पाना किसी साधारण मनुष्य के वश में है ही नहीं। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक शोध के मुताबिक, दुनिया में एक्सिस मुंडी नामक एक केंद्र बिंदु है। यह आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक बिंदु है। जहां चारों दिशा मिल जाती है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस एक्सिस मुंडी पर, अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है। आप उन शक्तियों के साथ संपर्क कर सकते है।
यह बिंदु कुछ और नहीं बल्कि कैलाश पर्वत ही है। जहां शिव की कृपा से अनेक शक्तियों का प्रवाह होता है। कैलाश पर्वत की वास्तविक विशेषताओं की बात की जाए। तो इसकी ऊंचाई 6638 मीटर है। ऊंचाई के संदर्भ में कैलाश पर्वत दुनियाभर में, मशहूर माउंट एवरेस्ट ऊंचा नहीं है। लेकिन इसकी भव्यता ऊंचाई में नहीं। बल्कि इसके आकार में है।
यदि आप कैलाश पर्वत को ध्यान से देखें। तो इसकी चोटी की आकृति बिल्कुल शिवलिंग जैसी है। जो वर्ष भर बर्फ की सफेद चादर से ढका रहता है। कैलाश पर्वत की चोटी के बाद, अगर इसके भूभाग को देखा जाए। तो यह 4 महानदियों से घिरा है। अर्थात यह 4 नदियों का उद्गम स्थल भी है। जिनमें सिंधु, ब्रह्मपुत्र, सतलज व करनाली है।
कैलाश पर्वत के बारे में तिब्बती धर्मगुरु कहते हैं कि इसके चारों ओर अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है। यह शक्तियां आम नही बल्कि अद्भुत है। ऐसा माना जाता है कि आज भी कुछ तपस्वी शक्तियों के माध्यम से, आध्यात्मिक गुरुओं के साथ संपर्क करते हैं। चलिए जानते हैं। इस कैलाश पर्वत के रहस्य व गूढ़ संसार के बारे में। इसी प्रकार जाने : भगवान शिव जी से जुड़े रहस्य। Mysterious Facts of Lord Shiva।
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कैलाश क्यो है भगवान शिव का निवास
कैलाश पर्वत पर भगवान शिव का निवास स्थान है। यह बात हर किसी को सर्वविदित है। इस बात का वर्णन शिव पुराण, मत्स्य पुराण व स्कंद पुराण में मिलता है। इन सभी ग्रंथों में कैलाश पर्वत से, संबंधित तथ्यों को उजागर करने के लिए, अलग से लिखा गया है। इसमें कैलाश पर्वत की पौराणिक महिमा का वर्णन मिलता है।
इन पुराणों में इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। कि इस कैलाश पर्वत पर ही भगवान शिव का निवास है। वही मन में एक कौतूहल उठता है। कि भगवान शिव ने अपने रहने के लिए, कैलाश पर्वत को ही क्यों चुना। इस बात के पीछे क्या रहस्य है। एक्सिस मुंडी को ब्रह्मांड का केंद्र या दुनिया की नाभि भी माना जाता है।
यह आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक बिंदु है। यहां चारों ओर से दसों दिशाएं मिल जाती है। यह नाम एक्सिस मुंडी दुनिया के सबसे पवित्र कैलाश पर्वत से संबंधित है। यह वह स्थान है। जहां अलौकिक शक्तियों का प्रवास होता है। आप उन शक्तियों के साथ संपर्क भी कर सकते हैं। रसिया के वैज्ञानिकों ने, उस स्थान को कैलाश पर्वत ही बताया है।
इस संबंध में संत-महात्माओं का कहना है। कैलाश पर्वत के धरती के केंद्र में स्थित होने के कारण ही। संभवतया भगवान शिव ने कैलाश पर्वत को अपना निवास स्थान बनाया। ताकि वह इस स्थान से पूरी सृष्टि का संचालन कर सकें। इसी प्रकार जाने : Bhagwan Shiv Ke 12 Jyotirling Ki Katha। उत्पत्ति कब और कैसे हुई।
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कैलाश पर्वत पर किसी के न चढ़ पाने का रहस्य
कहा जाता है कि जहां भगवान हैं। वहां किसी मानव का पहुंचना कठिन है। इसीलिए कैलाश पर्वत परम देवत्व का स्थान है। जहां किसी व्यक्ति का पहुंच पाना संभव नहीं है। ऐसा भी कहा जाता है कि इस पर्वत की अदृश्य शक्तियां स्वयं नहीं चाहती है। कि कोई मानव इस पर चढ़ सके।
यह परम आश्चर्य ही है। कि कैलाश पर्वत से ऊंचे माउंट एवरेस्ट पर, तो लोग पहुंच चुके हैं। लेकिन इस पर्वत के रहस्यमई शक्तियों के द्वारा, रोके जाने के कारण। कोई कैलाश पर्वत पर नहीं चढ़ पाता है। अनेक लोगों ने कैलाश पर्वत पर चढ़ने का प्रयास किया। लेकिन वे सभी असफल रहे।
कैलाश पर्वत के रहस्य को, हजारों किलोमीटर दूर से ही लोगों महसूस किया। उन्हें आभास हुआ कि इस पर्वत पर कोई अलौकिक रोशनी है। जो दुनिया में कहीं और नहीं है। कैलाश पर्वत पर न पहुँचने के पीछे, बहुत सी कहानियां प्रचलित हैं।
शिव जी का निवास स्थान होने के कारण, कोई जीवित व्यक्ति यहाँ नही पहुँच पाता है। मरने के बाद, जिसने कभी कोई पाप न किया हो। वही कैलाश फतेह कर सकता है। इन दंत कथाओं का पता लगाने के लिए, 1999 में रूस ने पर्वतारोहियों की एक टीम बनाई। इस टीम में भौतिक विज्ञान, भू विज्ञान के विशेषज्ञ और इतिहासकार शामिल थे।
इस टीम ने यह दावा किया कि कैलाश पर्वत एक विशाल मानव निर्मित पिरामिड है। जिसका निर्माण प्राचीन काल में किया गया था। यह पिरामिड कई छोटे-छोटे पिरामिडों से घिरा हुआ है। जो कि पारलौकिक गतिविधियों का केंद्र है। यह गीजा के पिरामिडों से भी जुड़ा हुआ है।
उन्होंने यह भी दावा किया कि वहां समय बहुत तेजी से गुजरता है। एक पर्वतारोही ने अपनी किताब में लिखा था। इस पर्वत पर रहना असंभव था। वहां किसी अनजान वजह से दिशा भ्रम होता है। दिशा का ज्ञान नहीं रहता। वहां पर चुंबकीय कंपास भी धोखा देने लगता है। यह जगह बहुत ही ज्यादा रेडियो एक्टिव है।
कुछ समय पहले, रूस के एक पर्वतारोही सेर्गेय चिसत्यकोव ने कैलाश पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की। वह पर्वत के नजदीक तक पहुंच गए। लेकिन वह ऊपर चढ़ाई किए बगैर ही, वापस लौट आए। जब से उनसे इसकी वजह पूछी गई। तो उन्होंने कुछ चौंकाने वाली बातें बताई। उन्होंने कहा कि जब वह कैलाश पर्वत के नजदीक पहुंचे। तो अचानक उनका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
वह उस पर्वत के ठीक सामने खड़े थे। जिस पर उन्हें चढ़ाई करनी थी। लेकिन उनका शरीर एकदम से, कमजोर पड़ गया था। उनके दिमाग में यह ख्याल आने लगा कि उन्हें इस पर्वत पर नहीं चढ़ना चाहिए। यह सोचकर वह तुरंत वहां से वापस लौट आए। जैसे ही वह इस पर्वत से थोड़ा दूर हुए। उनकी स्थिति पुनः सामान्य हो गई। इसी प्रकार जाने : स्वस्तिक का सनातन धर्म मे क्या महत्व है। Origin of the Swastika Sign।
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कैलाश पर्वत की पवित्र ध्वनियों का रहस्य
कैलाश पर्वत के बर्फ से ढके हुए 21,778 फुट ऊंचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर का यह तीर्थ है। इस प्रदेश को मानसखंड भी कहा जाता है। कैलाश पर्वत से डमरु और ॐ की आवाज प्रति ध्वनित होती है। कैलाश पर्वत को ॐ पर्वत के रूप में भी जाना जाता है। तीर्थ यात्रियों का कहना है कि कैलाश पर्वत के क्षेत्र में पहुंचने पर ॐ की ध्वनि सुनाई पड़ती है।
इस स्थान पर एक अद्भुत शांति की अनुभूति होती है। यदि आप कैलाश पर्वत या मानसरोवर झील के क्षेत्र में जाएंगे। तो आपको लगातार एक आवाज सुनाई देगी। जैसे कि आसपास कोई एरोप्लेन उड़ रहा हो। लेकिन ध्यान से सुनने पर, यह आवाज डमरु या ॐ की ध्वनि जैसी होती है।
वैज्ञानिक कहते हैं। हो सकता है कि यह आवाज बर्फ के पिघलने की हो। यह भी हो सकता है कि प्रकाश और ध्वनि का इस तरह का समागम होता है। यहां से ॐ की ध्वनि सुनाई देती हो। वही मानसरोवर झील के पिघलने पर, मृदंग की आवाज आती है। गर्मी के दिनों में, जब मानसरोवर झील की बर्फ पिघलती है। तो एक प्रकार की आवाज भी सुनाई देती है।
श्रद्धालुओं का मानना है कि यह मृदंग की आवाज है। मान्यता यह है कि मानसरोवर झील में एक बार डुबकी लगाने और यम द्वार की 11 परिक्रमा लगाने वाला व्यक्ति मृत्यु के बाद रुद्र लोक पहुंच जाता है। इसी प्रकार जाने : एक शब्द जिसमे छिपा है, आपकी हर समस्या का समाधान। ॐ का महत्व समझे।
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कैलाश पर्वत के प्र्थ्वी का केंद्र बिन्दु होने का रहस्य
भौगोलिक स्थिति के अनुसार, कैलाश पर्वत जिस स्थान पर स्थित है। वह हमारे धरती का केंद्र बिंदु है। यही वह स्थान है। जहां पृथ्वी को संचालित करने वाली तमाम शक्तियां प्रवाहित होती हैं। यही वह स्थान है। जहां से विश्व मे बहने वाली सभी नदियां का उद्गम होता है। कैलाश पर्वत की चारों दिशाओं से, 4 नदियों का उद्गम हुआ है। यह नदियां हैं – ब्रह्मपुत्र, सिंधु, सतलाज और करनाली।
इन नदियों से ही गंगा, सरस्वती व चीन की अन्य नदियां भी निकलती है। कैलाश के चारों दिशाओं में चार जानवरों के मुख हैं। जिनमें से इन नदियों का उद्गम होता है। इसके पूर्व में अश्व मुख है। पश्चिम में हाथी का मुख है। उत्तर में सिंह मुख है। दक्षिण में मोर का मुख है।
ये नदियां अपने निर्मल जल से पूरी धरती को पवित्र कर देती है। यहां पर पश्चिम में मानसरोवर झील है। जो दुनिया की सबसे ऊंचाई पर स्थित मीठे पानी की झील है। इसका आकार सूर्य की तरह है। जबकि दक्षिण में राक्षसताल झील है। जो दुनिया में सबसे ऊंचाई पर स्थित, खारे पानी की झील है। इसका आकार चंद्रमा के समान है।
ऐसा कहा जाता है कि मानसरोवर झील भगवान शिव का आशीर्वाद है। जिसके स्पर्श मात्र से रोग, शोक और भय से मुक्ति मिलती है। साथ ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। वही राक्षसताल झील का जल मनुष्य के लिए विष तुल है।
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कैलाश पर्वत पर रंग-बिरंगी रोशनी का रहस्य
यह दावा किया गया है कि कई बार कैलाश पर्वत पर 7 तरह की रंग-बिरंगी रोशनी आकाश में चमकती हुई देखी गई हैं। नासा के वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है। हो सकता है। यहां चुंबकीय बल के कारण ऐसा होता हो। यहां का चुंबकीय बल आसमान से मिलकर, कई बार इस तरह की चीजों का निर्माण करता हो। लेकिन कुछ भी हो। यह रहस्य आज भी दुनिया के सामने रहस्य ही है।
कैलाश पर्वत को घन पर्वत और रजत गिरी भी कहते हैं। मान्यता है कि यह पर्वत स्वयंभू है। कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण रूप में माना जाता है। यह 4 धर्म तिब्बती, बौद्ध, जैन और हिंदू धर्म का आध्यात्मिक केंद्र है।
जैन धर्म में इसे अस्तापादा कहा गया है। बौद्ध धर्म में से तइस कहा गया है। जबकि बौद्ध धर्म में से इसे कंग रिमपोचे कहा गया है। इसी वजह से इन सभी धर्मों की कैलाश पर्वत से अटूट आस्था जुड़ी हुई है। इसी प्रकार जाने : सनातन परंपराओं के पीछे का वैज्ञानिक कारण। Science Behind Sanatan Rituals,Tradition and Culture।
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कैलाश पर्वत पर समय के तेजी से बीतने का रहस्य
कैलाश पर्वत पर चढ़ने की कोशिश करने वालों का दावा है। कि इस पर्वत के आसपास का समय, दुनिया के किसी भी हिस्से के मुकाबले ज्यादा तेजी से बीतता है। पर्वतारोहियों का कहना है कि कैलाश पर्वत पर, उनके बाल और नाखून तेजी से बढ़ने लगते हैं। आमतौर पर धरती के बाकी हिस्सों में, जहां दो हफ्तों में बाल और नाखून जितने बढ़ते हैं।
उनके कैलाश पर्वत पर सिर्फ 12 घंटों में उतने बढ़ जाते हैं। जो कि किसी चमत्कार से कम नहीं है। कैलाश पर्वत पर चढ़ने वाले बहुत से लोगों का कहना है। कैलाश पर्वत पर स्थान, चमत्कारिक रूप से खुद ही बदलने लगते हैं। उनके अनुसार जब भी लोग, आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं। तो खराब मौसम की वजह से, रास्ता खराब हो जाता है।
जब भी वह लोग आगे बढ़ते हैं। तो कुछ समय बाद ही, वे उसी जगह पर वापस आ जाते हैं। कैलाश पर्वत का एक और रहस्य यह भी है। कि यहां सूरज ढलने के बाद, पहाड़ की परछाई से, स्वास्तिक का चिन्ह बन जाता है। जो कि हिंदू धर्म का चिन्ह माना जाता है। इतना ही नहीं, जब पर्वत पर बर्फ गिरती है। तब दक्षिण दिशा से देखने पर, यहां ॐ का चिन्ह बन जाता है।
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