नाग पंचमी |नाग पंचमी कब है | नाग पंचमी क्यों मनाई जाती है (2023)

Nag Panchami – 2023
नाग पंचमी – 2023

 क्यों की जाती है, नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा। सावन शुक्ल पंचमी को, नाग पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। विषधारी नाग को, हिंदू धर्म में देवता के समान माना जाता है। क्योंकि संपूर्ण सृष्टि के पालनहार व पालनकर्ता श्री हरि विष्णु जी शेषनाग पर विश्राम करते हैं।

      भगवान श्रीराम के 14 वर्ष के वनवास में, शेषावतार लक्ष्मण जी पूरे समय उनकी सेवा करते रहें। भगवान श्री कृष्ण के जन्म के बाद, मथुरा से गोकुल ले जाते समय। भयंकर वर्षा से बचाने के लिए, श्री कृष्ण जी के ऊपर शेषनाग जी ने अपने फनो का छत्र बनाकर,  सुरक्षा प्रदान की।

      देवों के देव भगवान महादेव के गले में भी नागों का हार है। नाग पंचमी के ही दिन,  सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी ने शेषनाग जी को संपूर्ण पृथ्वी को, अपने फन पर धारण करने का महान कार्य सौंपा था। अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन में, वासुकी नाग को रस्सी के रूप में देवताओं और दैत्यों ने उपयोग किया था।

     ज्योतिष शास्त्र में नाग के स्वरूप राहु और केतु के बीच, जब सभी ग्रह आ जाते हैं। तो कालसर्प योग बनता है। हमारे शरीर के अंदर मूलाधार चक्र में पीठ की रीढ़ की शुरू में, कुंडलिनी शक्ति स्थित है। जो सर्पाकार कुंडली मारे बैठी है। मानव का जन्म भी कुंडलिनी शक्ति से ही होता है।

    संभोग में कुंडलिनी शक्ति की ही ऊर्जा वीर्य के रूप में मूलाधार चक्र से निकलती है। जिससे संतान की उत्पत्ति होती है। कुंडलिनी शक्ति सर्प के आकार की लहर धार है। इसी बात को ध्यान में रखकर, हमारे पूर्वजों ने नाग पंचमी जैसे वैज्ञानिक  पृष्ठभूमि वाले त्यौहार की रचना की।

नाग पंचमी - 2023

नाग पंचमी – 2023 का शुभ मुहूर्त
Nag Panchami – 2023 Ka Subh Muhurat

    सनातन परंपरा में विभिन्न लोकों का जिक्र मिलता है। जिनमें देव लोक, पाताल लोक, स्वर्ग लोक व मृत्युलोक सहित करीब 10 लोकों का जिक्र मिलता है। जिसमें मृत लोग, जहां पर हम मौजूद हैं। उस पर गंधर्व लोग, नाग लोक, देवलोक आदि आते है।

     इन्हीं कारणों के चलते, नागों को देव तुल्य माना जाता है। नाग पंचमी के दिन, सच्चे मन से नागों की पूजा करने से, सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। सनातन धर्म में नाग पंचमी का विशेष महत्व है। नाग पंचमी हर वर्ष श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाती है।

     इस दिन नागों की पूजा की जाती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, सर्पों को पौराणिक काल से ही देवता के रूप में पूजा जाता रहा है। इसलिए नाग पंचमी के दिन नाग पूजन का अत्यधिक महत्व है। इस दिन नागों की पूजा करने से, सांपों के डसने का भय नहीं रहता है।

नाग पंचमी 2023

शुभ मुहूर्त

नाग पंचमी की तिथि

21 अगस्त 2023

दिन – सोमवार

पंचमी तिथि प्रारंभ

21 अगस्त 2023

रात 12 बजकर 21 मिनट

पंचमी तिथि समाप्त

22 अगस्त 2023

दोपहर 2 बजे

नाग पंचमी पूजा मुहूर्त

21 अगस्त 2023

प्रातः 6:05 से शुरू होकर प्रातः 10:21 तक

अभिजित मुहूर्त

प्रातः 11:58 से दोपहर 12:50

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नाग पंचमी का वैज्ञानिक महत्व
Scientific Significance of Nag Panchami

 हिंदू संस्कृति में पशु-पक्षी, वृक्ष, वनस्पति, नदी, पहाड़ों, ग्रह-नक्षत्र तक। सभी के साथ  आत्मीय संबंध जोड़ने का प्रयत्न किया है। हमारे यहां गाय, कोयल, बैल, पेड़-पौधों जिनमें बरगद, नीम, तुलसी, पीपल आदि की पूजा की जाती है।

     वही जब नाग पंचमी के दिन, नागों की पूजा की जाती है। तो हमारी संस्कृति की विशिष्टता अपनी चरम प्रकाष्ठा पर पहुंच जाती है। नागों की पूजा करना कुछ ऐसा है। कि दुनिया के लोगों को इस पर विश्वास दिलाना बहुत मुश्किल है।

     क्योंकि गाय, नदी, बैल, तुलसी व बरगद इत्यादि का पूजन करके। उनके साथ आत्मीयता बनाने का हम प्रयत्न करते हैं। क्योंकि वह उपयोगी हैं। लेकिन नाग हमारे किस उपयोग में आता है। इसका जवाब बहुत रोचक और वैज्ञानिक है। सांप जैसे जहरीले जीव को, एक देव के रूप में स्वीकार करने से, आर्यों के विशाल हृदय के दर्शन होते है।

      सांपों में कुछ विशेषता जरूर पाई जाती है। भारत एक कृषि प्रधान देश है। वही साँप हमारे खेतों का रक्षण करता है। इसीलिए उसे क्षेत्रपाल भी कहते हैं। जीव-जंतु, चूहे  इत्यादि फसल को नुकसान पहुंचाने वाले तत्व हैं। उनका नाश करके, सांप हमारे खेतों को हरा-भरा रखता है। इसके अलावा  सांप एक संकेतक प्रजाति है।

    इसका मतलब यह है कि आबोहवा बदलने पर, सबसे पहले वही प्रभावित होते हैं। इसलिए इस लिहाज से, उनकी उपस्थिति हमारी मौजूदगी को सुनिश्चित करती है। हम इनके महत्व को प्रत्यक्ष अनुभव नहीं करते। जबकि सच्चाई यह है कि हम उनके बगैर कीटों और चूहों से परेशान हो जाएंगे।

       हमारे पूर्वज असल में विज्ञान के ज्ञाता थे। सांप का अस्तित्व प्रकृति और हमारे अस्तित्व के लिए बहुत जरूरी है। इसीलिए नाग पंचमी जैसे पर्व द्वारा, जनमानस में यह संदेश दिया जाता है। कि सांप भी हमारे लिए पूजनीय है। इसलिए उसे मारा न जाए।

नाग पंचमी की पूजन सामग्री
Nag Panchami Ki Pujan Samagree

   नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा की जाती है। कुछ लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन सच्चे मन से व्रत रखता है। भगवान शिव और नाग देवता की पूजा करता है। तो उसकी सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।

     नाग पंचमी के दिन इस बात का ध्यान रखें कि शिवलिंग और नाग देवता को दूध पीतल के लोटे से चढ़ाएं। जबकि जल चढ़ाने के लिए, तांबे के लोटे का इस्तेमाल करें। जानते हैं कि नाग पंचमी की पूजा में किन-किन सामग्री की आवश्यकता होती है-

● नाग देवता की मूर्ति या फोटो। अगर आप मिट्टी के नाग देवता की मूर्ति बनाते हैं। तो मिट्टी की जरूरत होगी। कुछ लोग दीवार पर कोयले या गोबर से भी नाग बनाकर पूजा करते हैं।

● लकड़ी की चौकी या पटा

● लाल या पीला कपड़ा

● जल, पुष्प, माला, रोली, चंदन, अक्षत।

● पंचामृत में दूध, दही, घी, शहद, शक्कर व पंचमेवा।

● धूप, दीपक, बेलपत्र, पान, दूर्वा

● फल, धान, धान का लावा

● गाय का गोबर

● भोग लगाने के लिए कच्चा दूध, दही, खीर या सिवई या मालपुआ आदि।

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नाग पंचमी की पूजन विधि
Worship Method of Nag Panchami

 आप अगर नाग पंचमी के दिन व्रत रखते हैं। तो आपको चतुर्थी के दिन से ही व्रत का पालन करना होगा। चतुर्थी के दिन एक बार, सात्विक भोजन करें। इस दिन तामसिक भोजन का त्याग करें। इस दिन से ही पूर्णतया ब्रह्मचर्य का पालन करें। अगर आप चाहें तो, निर्जल या फलाहारी व्रत रख सकते हैं।

      इस दिन उपवास करके एक समय, एक अनाज का भोजन करना चाहिए। नाग पंचमी के दिन अनंत, वासुकी, पदम, महापद्मा, तक्षक, कुलीर, करकट, शंख कालिया और पिंगल नामक अष्टनागों की पूजा की जाती है। नाग पंचमी के दिन प्रातः काल साफ-सफाई करके, स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद  प्रसाद में सेवई, खीर, मालपुआ का प्रसाद बनाएं।

      अब लकड़ी की चौकी पर, पीला या लाल वस्त्र बिछा लें। इस पर नाग देवता की मूर्ति या फोटो स्थापित कर दें। आप नागदेव की प्रतिमा को दूध, घी, शहद व चीनी यानी पंचामृत से स्नान कराएं। फिर शुद्ध जल से स्नान करवाएं। इसके बाद रोली, चंदन अक्षत चढ़ाएं। फूल-माला अर्पित करें। इसके बाद फल व प्रसाद का भोग लगाएं।

     इसके बाद धूप व दीपक जलाकर, नाग पंचमी की कथा पढ़े व सुनाएं। आप इस नाग पंचमी की पूजा में, इस मंत्र का 108 बार जाप करें।

‘ॐ कुरुकुल्ले हुं फट् स्वाहा’

    आप इसके अलावा इस मंत्र का भी जप कर सकते हैं।

ॐ भुजंगेशाय विद्महे,

सर्पराजाय धीमहि,

तन्नो नाग: प्रचोदयात्।।

     इसके अलावा आप शिव पंचाक्षर मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ का भी जप कर सकते हैं। फिर आप नाग देवता की आरती करके, हाथ जोड़कर घर की सुख-शांति के लिए प्रार्थना करें। इस तरह विधिवत पूजा को संपन्न करें।

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नाग पंचमी की पौराणिक कथा
Nag Panchami Ki Pauranik Katha

 मां मनसा देवी, जिन्हें नाग माता कहा जाता है। वह समस्त संसार के नागों की मां है। उनकी कृपा पाने से, व्यक्ति को कभी नाग दंश का सामना नहीं करना पड़ता। वही कालसर्प दोष से मुक्ति मिल जाती है। मां मनसा देवी को, भगवान शिव और माता पार्वती की पुत्री माना गया है। इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है। इसीलिए इनका नाम मनसा पड़ा।

      एक बार मां पार्वती और शिव कैलाश पर्वत पर स्थित, एक दिव्य तालाब पर नृत्य कर रहे थे। देवा दी देव महादेव और आदिशक्ति मां पार्वती के अलौकिक नृत्य से एक तेज उत्पन्न हुआ। जो तालाब में स्थित कमल पुष्पों के पत्तों पर जा गिरा। तालाब में स्थित सर्प उसके तेज को देखकर, उसके निकट आने लगे।

       उन्होंने उस तेज को अपनी कुंडलियों में समेट लिया। जिनसे एक सर्प कन्या मनसा देवी का जन्म हुआ। शिव पार्वती अपनी कन्या को लेकर, कैलाश गए। मनसा देवी अपने भाई वासुकी के साथ, कैलाश पर्वत पर निवास कर रही थी। महाभारत के अनुसार, जब समुद्र मंथन में हलाहल नामक विष निकाला गया। तो शिव जी ने उसका पान करके, समस्त सृष्टि की रक्षा की।

       ऐसा माना जाता है कि देवी मनसा ने इस हलाहल विष को, शिव के कंठ में रोक दिया था। इस पर शिवजी मनसा पर अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्हें यह वरदान दिया गया कि समस्त संसार मनसा देवी की पूजा करेगा। मनसा देवी का प्रसंग महाभारत में बताया गया है। इसके अनुसार, अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को श्रंगी ऋषि ने श्राप दिया था।

      उनकी मृत्यु तक्षत सांप के डसने से हो जाएगी। फिर 7 दिन बाद, राजा परीक्षित तक्षत सर्प के डसने से, परलोक चले गए। उनकी मृत्यु के पश्चात, परीक्षित के पुत्र जनजेय ने, अपने 6 भाइयों के साथ मिलकर। सर्प जाति के विनाश के लिए, सरपेष्ठी यज्ञ किया। इस यज्ञ से बचने के लिए, सभी नाग सृष्टि वासुकी के पास चले गए।

      तब शिव जी की आज्ञा से वासुकी ने अपनी बहन मनसा का विवाह, जरत्कारु  ऋषि के साथ कर दिया। मां मनसा और जरत्कारु से आस्तिक नाम की संतान हुई। फिर आस्तिक मुनि ने संसार के सभी सर्पों  को सरपेष्ठी यज्ञ से बचा लिया। मां मनसा देवी के भारत में कई मंदिर मौजूद है। जिनमें हरिद्वार स्थित मां मनसा देवी का मंदिर है।

      ऐसा माना जाता है कि मनसा देवी की पूजा करने से, व्यक्ति कालसर्प दोष से मुक्ति पाता है। मां मनसा का वर्णन, कई प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। उन्हें पुराणों में विषहरि भी कहा गया है। मां मनसा के 7 नामों के जप से, मनुष्य की किसी भी सर्प का भय नहीं रहता। वह नाम इस प्रकार हैं – जरत्कारु, जगगौरी, मनसा, सिद्धि योगिनी, वैष्णवी, नाग भगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जरत्कारु प्रिया, आस्तिक माता और विषहरि।

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नाग पंचमी की अन्य पौराणिक कथा
Other Mythology of Nag Panchami

    एक छोटे से गांव में, विधवा स्त्री दूध बेचा करती थी। उसकी एक बहुत ही सुंदर कन्या थी। वह कन्या बहुत ही संस्कारी और सरल स्वभाव की थी। उस विधवा स्त्री का नियम था कि वह दूध को उबालकर, ठंडा करके। उसे अपने घर के आंगन में रख देती थी।

     फिर अपने द्वार पर लगी घंटी बजाती थी। घंटी की ध्वनि तरंगों से आसपास रहने वाले नाग समझ जाते थे। कि उनके लिए आंगन में दूध रखा है। इसीलिए वह रोज  आंगन में दूध पीने जाते थे। नागों का उस स्त्री के साथ, माता के समान रिश्ता बन गया था। उस विधवा ने अपनी बेटी से कहा। जब मैं नहीं रही। तो तुम इन सर्पों के लिए, रोज ठंडा दूध रख दिया करना।

      यह तुम्हारे भाई हैं। कुछ समय बाद वह कन्या बड़ी हुई। तब उसकी मां ने उसका विवाह, दूसरे गांव के मुखिया के सबसे छोटे बेटे से कर दिया। मुखिया के सात बेटे थे। सभी की शादियां हो चुकी थी। घर में 7  बहुओं में से, सबसे छोटी बहू की सबसे संस्कारी और आज्ञाकारी थी। कुछ समय बीतने के बाद, श्रावण का महीना शुरू हुआ।

      घर की सभी बहुएं बहुत ही खुश थी। क्योंकि उनके भाई, उन्हें मायके ले जाने वाले थे। वह पूरा महीना अपने मायके में आराम से व्यतीत करने वाली थी। घर की सबसे बड़ी बहू, सबसे छोटी बहू के पास आकर कहती है। तुम्हारा तो कोई भी नहीं है। अब तुम क्या करोगी। पूरा सावन यही बैठकर काम करना पड़ेगा। यह सुनकर छोटी बहुत दुखी हुई और रोने लगी।

     वह रोते हुए, एक पेड़ के पास जाकर बैठ गई। तभी अचानक उस पेड़ से एक  विशालकाय नाग बाहर आए। उन्होंने छोटी बहू को बहन कहकर पुकारा। उसने कहा कि तुम्हारी मां मुझे रोज दूध पिलाती थी। इसीलिए तुम मेरी बहन हो। दुखी मत होना। मैं तुम्हें अपने घर नाग लोक लेकर चलता हूं। यह सुनकर छोटी बहू बहुत आनंदित हुई।

    वह नाग देवता के साथ, नाग लोक गई। वहां पर नाग देवता के छोटे-छोटे सर्प हुए थे। जिन्हें नाग माता रोज ठंडा दूध पिलाया करती थी। एक दिन नाग माता ने, छोटी बहू को सर्पों को दूध पिलाने के लिए कहा। तब छोटी बहू ने गलती से, सर्पों को गर्म दूध पिला दिया। जिससे उन सर्पों के फन जल गए। गुस्से में आकर, वह सर्प छोटी बहू को डसने ही वाले थे। तभी माता ने उन्हें रोक दिया।

      फिर कुछ दिन बाद, नाग देवता छोटी बहू को ससुराल छोड़ने गए। उनसे यह वादा किया कि वह अगले सावन को भी उसे लेने आएंगे। इधर वे छोटे सर्प बड़े हो रहे थे। वह छोटी बहू से बदला लेना चाहते थे। उन्होंने सोचा कि इस बार सावन के महीने में, वह छोटी बहू के घर जाएंगे। उसे वही डस लेंगे।

     सावन का महीना शुरु हो गया था। छोटी बहू को पता था। उसके भाई आने वाले हैं। इसीलिए उसने एक दिन पहले ही, अपने भाइयों के लिए ठंडा दूध, मीठी रोटी, फल, दाल सब बनाकर रख दिया था। जिससे कि जैसे पहले उसने उनका मुंह जला था। वह सब कुछ न हो। उसने अपने भाइयों के स्वागत के लिए सर्प रंगोली भी बनाई थी।

        जैसे ही वह आए, उन पर सुगंधित फूलों की वर्षा की। उन्हें कुमकुम का तिलक किया। फिर उन्हें ठंडा दूध, मीठी रोटी और सारे फल खिलाएं। उसने अपनी गलती के लिए, माफी भी मांगी। उसके सर्प भाइयों को विश्वास हो गया कि उनका मुंह छोटी बहू से गलती से जल गया था। इसलिए सब ने खुश होकर, छोटी बहू को बहुत ही सुंदर साथ मोतियों का हार दिया।

     उसे वचन भी दिया कि जो भी हमें तुम्हारी तरह, प्रेम से ठंडा दूध पिलाएगा।  हम उसे सर्प दोष से मुक्त करेंगे। तब से श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को, नाग पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। जिसमें सारी औरतें नाग देवता को भाई मानकर, उनके लिए ठंडा दूध, मीठी रोटी, फल, फूल आदि से उनकी पूजा करती है।

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