Ganesh Chaturthi – Kab Hai, 2024 date, Chaturthi date, start and end date, vrat katha, visarjan date [ गणेश चतुर्थी कब है, क्यों मनाया जाता है, व्रत कैसे करें, पूजा विधि और व्रत कथा, स्थापना विधि, शुभ मुहूर्त ]
Ganesh Chaturthi 2024
Ganesh Chaturthi Kab Hai
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटी समप्रभा,
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व-कार्येशु सर्वदा।
गणेश उत्सव पूरे भारतवर्ष में बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।यह उत्सव गणेश चतुर्थी से प्रारंभ होकर, अनंत चतुर्दशी तक मनाया जाता है। जो अनंत चतुर्दशी को गणेश जी की प्रतिमा के विसर्जन के साथ समाप्त होता है।
गणेश उत्सव का त्यौहार भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इसकी धूम महाराष्ट्र से लेकर, देश के अन्य राज्यों में भी देखने को मिलती है। इस हिंदू त्यौहार का धार्मिक महत्व तो है,ही। इसके साथ-साथ, इसे राष्ट्रीय एकता का प्रतीक भी माना जाता है।
हिंदू सभ्यता में बहुत से देवी देवता हैं भगवान गणेश उनमें बौद्धिक माने जाते हैं अर्थात बुद्धि के स्वामी हैं। श्री गणेश जी, शिव जी और माता पार्वती के पहले पुत्र हैं। हिंदू धर्म में ऐसा कोई कार्य नहीं होता जो गणपत के पूजन के बगैर आरंभ किया था किया जाता हो गणेश जी को हिंदू धर्म में प्रथम पूजनीय माना गया है। इसी प्रकार जाने : Ganesh Chalisa। Ganesh Ji ki Aarti। गणेश जी के 108 नाम। गणेश जी के मंत्र।
गणेश चतुर्थी विशेष – 2024
गणेश चतुर्थी – एक नजर | |
पर्व | • गणेश चतुर्थी • विनायक चतुर्थी • गणेश उत्सव |
मुख्य देव | भगवान गणेश |
पर्व का शुभारंभ | 07 सितम्बर 2024 दिन – शनिवार |
हिंदी पंचाग | माह – भाद्रपद तिथि – शुक्लपक्ष की चतुर्थी |
स्थापना का शुभ मुहूर्त | 07 सितम्बर 2024 मध्याह्र काल में 11:03 से 07 सितम्बर को 13:34 बजे तक |
चतुर्थी अवधि | 06 सितम्बर 2024 मध्याह्र काल में 03:01 से 07 सितम्बर 2024 को 17:37 बजे तक |
महत्व | जीवन में सुख, शांति एवं समृद्दि |
प्रतिमा की विशेषता | • मिट्टी की मूर्ति • सूंड बाई ओर मुड़ी हुई • वाहन मूषक का होना जरूरी |
प्रमुख सामग्री व भोग | • दूर्वा घास • पान • मोदक • लड्डू |
अन्य सामग्री | • पंचामृत • लाल कपड़ा • रोली • अक्षत • कलावा • जनेऊ • इलायची • नारियल • चांदी का वर्क • सुपारी • लौंग • पंचमेवा • घी • कपूर • चौकी • गंगाजल |
मुख्य मंत्र | ॐ गं गणपतए नमः |
पर्व का प्रमुख राज्य | महाराष्ट्र |
अन्य राज्य | • गुजरात • कर्नाटक • तेलंगाना • उत्तर प्रदेश • आंध्र प्रदेश • मध्य प्रदेश |
गणपति विसर्जन | अनंत चतुर्दशी |
गणपति विसर्जन तिथि | 16 सितंबर 2024 |
गणपति उत्सव की पौराणिक मान्यताये
Mythological Beliefs of Ganpati Uttsav
पहली मान्यता- पुराणों और हिंदू शास्त्रों के अनुसार, भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को भगवान श्री गणेश का जन्म हुआ था। शिव पुराण के अनुसार, माता पार्वती ने अपने शरीर पर लगे। हल्दी के उपटन से गणेश जी की मूर्ति बनाई। उसमें प्राण डाल दिए। फिर उस बालक को द्वार पर पहरा देने के लिए कहा। जब शिवजी माता पार्वती के स्नान स्थान पर प्रवेश करने लगे।
तब गणेश जी ने उन्हें रोक दिया। इस पर क्रोधित होकर, शिव जी ने त्रिशूल से उस बालक का सिर धड़ से, अलग कर दिया। तब माता पार्वती के क्रोधित होने पर, शिव जी ने उस बालक के शरीर पर, नवजात हाथी का सर लगा दिया। तभी से उन्हें गजानन कहा जाने लगा। तब से उनके जन्मोत्सव का त्यौहार, बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
दूसरी मान्यता- एक समय माता पार्वती और भगवान भोलेनाथ नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे। तभी माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से, समय व्यतीत करने के लिए, चौपड़ खेलने को कहा। भगवान महादेव चौपड़ खेलने के लिए, माता पार्वती के साथ तैयार हो गए। लेकिन इस खेल में वहाँ हार-जीत का फैसला करने वाला कोई अन्य नही था। इसलिए, भगवान शंकर ने नर्मदा के पास तिनके से, एक पुतले को बनाया। फिर इसकी प्राण प्रतिष्ठा कर, उससे कहा तुम चौपड़ में, हमारी हार-जीत का फैसला करना।
जब चौपड़ का खेल शुरू हुआ। तो संयोगवश, इस खेल में तीन बार माता पार्वती ही जीती। खेल समाप्त होने पर, जब बालक से परिणाम पूछा गया। तब बालक ने महादेव को ही विजयी बताया। यह सुनकर, माता पार्वती ने क्रोधित होकर। उस बालक को एक श्राप दे दिया। उन्होंने कहा तुम्हारा एक पैर टूट जाएगा और तुम कीचड़ में ही पड़े रहोगे। तब बालक ने अज्ञानता वश हुई भूल की माफी मांगी।
इस पर माता ने कहा। जब गणेश पूजन के लिए, नागकन्या आएंगी। तो उनके कहे अनुसार, तुम भी गणेश जी का पूजन करो। ऐसा करने से, तुम मुझे प्राप्त करोगे। यह कहकर, माता पार्वती भगवान भोलेनाथ के साथ कैलाश पर्वत पर चली गई। जब नागकन्याएं आई। तो बालक ने उनके बताए अनुसार, पूजन किया। जिससे प्रसन्न होकर श्री गणेश जी ने बालक से मनवांछित फल मांगने को कहा। फिर बालक ठीक होकर कैलाश पर्वत पहुंचा। लेकिन पार्वती जी उस समय भोलेनाथ से भी मुक्ति विमुख थी।
बालक ने महादेव को अपने ठीक होने की कथा सुनाई। तब भोलेनाथ ने माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए। 11 दिन तक श्री गणेश जी की पूजा की। तो इसके प्रभाव से, पार्वती जी वापस आ गई। महादेव ने माता पार्वती को, उन्हें मनाने के लिए किया गया, उपाय बताया। तो फिर माता पार्वती ने भी अपने रुष्ट पुत्र कार्तिकेय से मिलने के लिए यही उपाय किया। उन्होंने 11 दिनों तक श्री गणेश जी का पूजन किया। इसके प्रभाव से कार्तिकेय जी भी वापस आ गए।
कार्तिकेय जी ने यह व्रत विश्वामित्र जी को बताया। विश्वामित्र जी ने 11 दिन तक, गणेश जी को प्रसन्न किया। उन्होंने जन्म से मुक्त होकर, गणेश जी से ब्रह्म ऋषि होने का वरदान मांगा। गणेश जी ने उनकी यह मनोकामना पूर्ण की। इस प्रकार गणेश चतुर्थी का व्रत सभी मनोकामनाओ को पूर्ण करने वाला, व्रत भी कहा जाता है। इसी प्रकार जाने : सनातन परंपराओं के पीछे का वैज्ञानिक कारण। Science Behind Sanatan Rituals,Tradition and Culture।
गणपति उत्सव के सामाजिक परंपरा की शुरुआत
Beginning of Social Tradition of Ganpati Uttsav
गणपति बप्पा का त्यौहार, हमारे देश के बड़े त्योहारों में से एक है। एक समय ऐसा भी था। जब गणपति का त्यौहार मनाने पर, पूरे देश मे पाबंदी लगी थी। जब भारत में British Rule था। तब ऐसा कोई भी त्यौहार मनाने में पर पाबंदी लगी थी। ब्रिटिश सरकार ऐसा कोई भी काम नहीं होने देती थी। जिसकी मदद से, भारत के लोग कही पर भी इकट्ठे हो सके। अंग्रेजों ने इसे रोकने के लिए, धारा 144 का कानून बनाया। जिसके तहत 4 से अधिक लोग कहीं पर भी इकट्ठे नहीं हो सकते थे।
इन परिस्थितियों में, लोकमान्य बालगंगाधर तिलक जी ने सन 1893 में गणपति का त्यौहार सार्वजनिक रूप से मनाने का, एक अभियान चलाया। तब हम अपने घरों में तो पूजा कर सकते थे। लेकिन इसकी सार्वजनिक रूप से शुरुआत 1893 में हुई। इसके तहत उन्होंने गांव-गांव में गणपति मंडल बनवाए। उनका कहना था कि ब्रिटिश सरकार कुछ भी कहे। लेकिन हमें यह त्यौहार सार्वजनिक रूप से मनाना ही है।
उस समय हमारे पूरे समाज में भय का माहौल था अंग्रेजी सरकार ने आतंक भी फैला रखा था। लोकमान्य जी को लगता था। जब तक भारत के लोगों के दिलों से यह डर नहीं जाएगा। तब तक यह लोग अंग्रेजी सरकार का विरोध नहीं करेंगे। तब उनके मन में आया कि कोई धार्मिक काम, सार्वजनिक रूप से करवाया जाए। क्योंकि हम सभी की धर्म में बहुत गहरी आस्था होती है
गणपति उत्सव व गणपति मंडल बनाने के पीछे, लोकमान्य तिलक के दो उद्देश्य थे। पहला एक तो गांव के लोगों का संगठित होना, बहुत जरूरी है। दूसरा गांव के लोगों के दिलों से डर निकलना बहुत जरूरी है। उन्होंने लोगों को बताया कि गणपति विघ्नहर्ता है। तो अंग्रेज हुकूमत हमारे साथ जो भी दुर्व्यवहार करती है। उसको दूर करने का काम गणपति करेंगे। जिससे लोगों में हिम्मत आना शुरू हुई।
लोकमान्य तिलक का अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध करने का छेड़ने का, यह एक जरिया बना। तभी से पूरे महाराष्ट्र और धीरे-धीरे भारत के अन्य राज्यों में भी, गणपति पूजा सार्वजनिक रूप से मनाने की प्रथा प्रचलित हो गई। इसी प्रकार जाने : Jagannath Puri Mandir ki Kahani। जगन्नाथ मंदिर बनने की पूरी कथा।
गणेश चतुर्थी का शुभारंभ व स्थापना का शुभ मुहूर्त
गणेश चतुर्थी या विनायक चतुर्थी का पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास की चतुर्थी तिथि से लेकर चतुर्दशी तक मनाया जाता है। इस साल गणेश चतुर्थी का पर्व 07 सितम्बर 2024 दिन शनिवार को मध्यान्ह काल 11:03 से प्रारंभ होगा। इस पर्व का समापन 16 सितंबर को होगा। अर्थात गणपति विसर्जन 28 सितंबर तक रहेगा।
गणपति की स्थापना चतुर्थी के दिन की जाती है। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि की शुरुआत 06 सितंबर 2024 को दोपहर 03:01 पर आरंभ होगी। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी की समाप्ति 07 सितंबर 2024 सांय 05:37 पर समाप्त होगी। आप किसी भी शुभ मुहूर्त में गणेश चतुर्थी का प्रारंभ कर सकते हैं।
गणेश प्रतिमा कैसी होनी चाहिए
- हमें शास्त्रों के अनुसार, गणेश प्रतिमा लानी चाहिए। गणेश जी की मिट्टी से बनी, मूर्ति ही लानी चाहिए।
- गणेश जी की प्रतिमा बैठी मुद्रा में होनी चाहिए। ऐसी प्रतिमा की पूजा से घर में स्थाई धन का लाभ होता है।
- गणेश जी के कंधे पर जनेऊ जरूर होना चाहिए। ऐसी प्रतिमा बहुत शुभ मानी जाती है।
- बाई तरफ मुड़ी सूंड वाले गणपति को वक्रतुंड कहा जाता है। उनकी पूजा करने से, यह शीघ्र प्रसन्न होते हैं। साथ ही संकटों से छुटकारा मिलता है।
- दाई ओर सूंड वाले गणपति को सिद्धिविनायक कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि दाई ओर सूंड वाले गणपति, हटी स्वभाव के होते हैं। उनकी पूजा करने से, वह देर से प्रसन्न होते हैं।
- गणेश जी की प्रतिमा के एक हाथ में अंकुश, एक हाथ में दंत, एक हाथ में लड्डू और एक हाथ आशीर्वाद देते हुए मुद्रा में होना चाहिए। इससे घर में समृद्धि आती है।
- गणेश जी के साथ, उनका वाहन मूषकराज अवश्य होना चाहिए।
गणपती स्थापना की पूजन सामग्री
गणेश जी के घर पर आने के बाद। उनकी स्थापना पूरी श्रद्धानुसार व खुशी-खुशी कीजिये। स्थापना करते समय आवश्यक सामग्री इस प्रकार है।
- फूल
- कलश – मिट्टी का लोटा।
- जल-पात्र
- पांच फल
- अक्षत – हल्दी और कुमकुम मिले चावल।
- हल्दी
- कुमकुम
- चंदन
- गुलाल व अबीर
- नारियल दो
- सुपारी 5
- हल्दी की गांठ
- कपूर
- लॉग
- गुड़ व चना
- जनेऊ
- चाँदी का सिक्का
- लाल वस्त्र
- मौली
- चौकी
- गणेश जी के श्रृंगार का सामान
- दूर्वा घास
- आम के पत्ते
- पान के पत्ते
- सूखा नारियल
- शंख
- गंगा जल
- भोग – 11 या 21 मोदक
- पंचामृत
- दूध, शहद, दही, शक्कर।
कैसे गणपति स्थापना विधि-विधान से करे
1. सबसे पहले जिस स्थान पर, गणेश जी की स्थापना करनी है। उसे पूर्ण रूप से साफ सुथरा करें।
2. मुख्य द्वार पर घर की महिला के द्वारा, दोनों तरफ कुमकुम से स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं।
3. धूप बत्ती जलाकर, पूरे घर को शुद्ध करें। मन ही मन श्री गणेशाय नमः का उच्चारण करें।
4. श्री गणेश जी की प्रतिमा खरीदते ही उसे लाल बस तुमसे वस्त्र से ढक दें फिर पूजा प्रारंभ होने के समय ही इस वस्त्र को हटाना चाहिए।
5. घर में प्रवेश के समय, ढोल-नगाड़े बजाए जाने चाहिए। ताकि मन और तन सब प्रसन्न हो जाएं।
6. जहां स्थापना करनी हो। वह उत्तर दिशा होनी चाहिए। फिर पाटे पर लाल वस्त्र बिछाकर। उस पर श्री गणेश जी को विराजमान करें।
7. कलश में जल भरकर, उसमें अक्षत व कुमकुम भरकर रख दें। नारियल व अशोक के पत्ते रखकर, कलश की स्थापना करें।
8. इसके पश्चात विधि-विधान से पूजन-अर्चना फल, पुष्प, इत्र, धूप, दीप इत्यादि रखें।
9. मोदक से गणेश जी का भोग लगाएं।
10. फिर ॐ गं गणपतए नमः मंत्र का श्रद्धा के साथ जाप करें। इसके बाद गणेश जी की आरती करें। यह क्रम विसर्जन तक नियमित रूप से बना रहना चाहिए। इसी प्रकार जाने : सनातन धर्म का अर्थ व उत्पत्ति। सनातन धर्म क्या है। Sanatan Dharm in Hindi।
क्यों होता है – गणपति विसर्जन
गणेश चतुर्थी को मनाने वाले सभी श्रद्धालु, इस दिन स्थापित की गई। गणपति की प्रतिमा को 11 दिन, अनंत चतुर्दशी पर विसर्जित करते हैं। इस पर प्रकार गणेश उत्सव का समापन किया जाता है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जब महर्षि वेदव्यास जी ने। महाभारत की कथा 10 दिनों तक, गणेश जी को सुनाई थी। तब उन्होंने अपने नेत्र बंद कर लिए थे। जब 10 दिन बाद आंखें खोली। तो पाया कि गणेश जी का तापमान बहुत अधिक हो गया था। फिर उसी समय महर्षि वेदव्यास जी ने गणेश जी को निकट स्थित, एक कुंड में स्नान करवाया।
जिससे उनके शरीर का तापमान कम हो गया। इसलिए गणपति स्थापना के अगले 10 दिन तक, गणेश जी की पूजा की जाती है। फिर 11वें दिन जल में, गणेश जी की प्रतिमा को विसर्जित किया जाता है। गणेश विसर्जन इस बात का भी प्रतीक है। कि यह शरीर मिट्टी से बना है। अंत में मिट्टी में ही मिल जाना है।
गणेश चतुर्थी पर क्या नही करना चाहिए
1. गणेश चतुर्थी के दिन भूलकर भी चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए। लेकिन चंद्रमा को अर्क दिए बिना गणेश चतुर्थी के व्रत का समापन न करें। आप नजर को नीचे रखकर ही चंद्रमा को अर्क दे। अगर भूलवश चंद्रमा के दर्शन हो जाए। तो जमीन से पत्थर का टुकड़ा उठाकर, पीछे की ओर फेंक दे।
2. गणेश चतुर्थी की पूजा में किसी भी व्यक्ति को नीले और काले रंग के कपड़े नहीं पहनना चाहिए। आप पूजा में लाल पीले और सफेद रंग के कपड़े धारण करें।
3. गणेश जी की पूजा के वक्त, तुलसी के पत्ते नहीं चढ़ाने चाहिए। क्योंकि तुलसी जी ने गणेश को श्राप दिया था। इससे घोर विपत्ति आती है मानहानि भी होती है
4. गणेश जी की नई मूर्ति की ही स्थापना करें। पुरानी मूर्ति का विसर्जन कर दे। क्योंकि गणेश जी की घर में, दो मूर्तियां भी नहीं होनी चाहिए।
5. यह भी विशेष ध्यान रखें कि अगर गणेश जी की मूर्ति के पास अंधेरा हो। तब उनके दर्शन नहीं करें। ऐसे दर्शन को अशुभ माना जाता है।
6. गणेश जी का पीठ दर्शन कदापि न करें। क्योंकि भगवान गणेश की पीठ पर दरिद्रता का वास रहता है। इसलिए कभी भी भगवान गणेश के पीठ दर्शन नहीं करनी चाहिए।
7. गणेश जी की मूर्ति घर में खड़ी मुद्रा में व विषम संख्या में नहीं रखनी चाहिए। इससे घर का नाश हो जाता है। इसी प्रकार जाने : नाग पंचमी की पूजन विधि, शुभ मुहूर्त, व्रत व कथा। Nag Panchami 2024।
गणेश जी के 108 नाम
गणेश जी के 108 नाम | |||
बालगणपति | भालचन्द्र | बुद्धिनाथ | धूम्रवर्ण |
एकाक्षर | एकदंत | गजकर्ण | गजानन |
गजनान | गजवक्र | गजवक्त्र | गणाध्यक्ष |
गणपति | गौरीसुत | लंबकर्ण | लंबोदर |
महागणपति | महाबल | महेश्वर | मंगलमूर्ति |
मूषकवाहन | निदीश्वरम | प्रथमेश्वर | शूपकर्ण |
शुभम | सिद्धिदाता | सुरेश्वरम | सिद्धिविनायक |
वक्रतुंड | अखूरथ | अलंपत | अमित |
अनंतचिदरुपम | अवनीश | अविघ्न | भीम |
भुवनपति | भूपति | बुद्धिप्रिय | बुद्धिविधाता |
देवांतकनाशकारी | चतुर्भुज | देवदेव | देवव्रत |
देवेन्द्राशिक | धार्मिक | दूर्जा | द्वैमातुर |
ईशानपुत्र | एकदंष्ट्र | गद | गणाध्यक्षिण |
गुणिन | हरिद्र | हेरंब | कपिल |
कृष्णपिंगाक्ष | कवीश | कीर्ति | कृपाकर |
क्षेमंकरी | क्षिप्रा | मनोमय | मृत्युंजय |
मूढ़ाकरम | मुक्तिदायी | नमस्तेतु | नादप्रतिष्ठित |
पीतांबर | नंदन | पाषिण | प्रमोद |
पुरुष | रक्त | रुद्रप्रिय | सर्वदेवात्मन |
सर्वसिद्धांत | सर्वात्मन | शांभवी | शशिवर्णम |
शुभगुणकानन | श्वेता | सिद्धिप्रिय | स्कंदपूर्वज |
स्वरुप | सुमुख | तरुण | उद्दण्ड |
वरगणपति | उमापुत्र | वरप्रद | वरदविनायक |
वीरगणपति | विघ्नहर | विघ्नहर्ता | विद्यावारिधि |
विघ्नविनाशन | विघ्नराज | विकट | विघ्नराजेन्द्र |
विघ्नविनाशाय | विनायक | विश्वमुख | विघ्नेश्वर |
योगाधिप | यज्ञका | यशस्कर | यशस्विन |
Ganesh Chaturthi – 2024
HAPPY GANESH CHATURTHI WISHES
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