Raksha Bandhan 2023 |रक्षाबंधन कब है | रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त

Raksha Bandhan – 2023
रक्षा बंधन का शुभ मुहूर्त – 2023

   हिंदू धर्म की बात की जाए या हमारे परंपरा की बात की जाए। तो हर चीज के पीछे एक आधार होता है। एक साइंस है। एक समझ है। एक मान्यता है। उसी मान्यता या समझ के हिसाब से, हम अलग-अलग पर्व और त्योहार मनाते हैं।

      तो आखिर रक्षाबंधन के पीछे क्या मान्यताएं हैं। इसके बारे में पुराण क्या कहते हैं। इसका धार्मिक महत्व क्या है। रक्षा करने और करवाने के लिए, जो पवित्र धागा बांधा जाता है। इसको रक्षा सूत्र कहते हैं। बहन अपने भाई को बांधती है। ताकि भाई की रक्षा हो।

      भाई अपनी बहन को वचन देता है कि जीवन में, जब भी तुम्हें आवश्यकता पड़ेगी। मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा। इस तरह दोनों की रक्षा होती है। यह जिस भाव से बांधा जाता है। वह भाव होता है, रक्षा सूत्र के अंदर। उस भावना के वशीभूत होकर, बहने अपने भाई को बांधती है।

      यह पवित्र पर्व श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बहनें, अपने भाई की रक्षा के लिए, उनके कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती है। अपनी भावना के साथ, अपने प्रेम के साथ, अपने व्यवहार के साथ। वही भाई अपनी बहनों को, जीवन भर की रक्षा का वचन देते हैं।

     साधारण शब्दों में कहा जाए तो, Raksha Bandhan is a bond of purity, promise and protection। रक्षा किसी भी चीज की हो सकती है। जो आपको negativity और negative विचारों से बचाती हैं। उन्हें मानसिक रक्षा की राखी। जो शारीरिक तौर physical level  पर आपकी रक्षा करते हैं।

     उन पुलिस ऑफिसर, आर्मी ऑफिसर और डॉक्टर्स को, शरीर की रक्षा की राखी। जो मित्र आपको हर मुसीबत से बचाते हैं। आपके सुख-दुख में, सबसे पहले खड़े नजर आते हैं। उन दोस्तों को, मन की रक्षा की राखी। जो मां-बाप अपना पूरा जीवन लगाकर। आपको सारी सुख और सुविधाएं देते हैं। खुद से भी पहले, आपका सोचते हैं। बस आपके लिए ही जीते हैं। उन्हें सम्मान और प्रेम की राखी।

      जो एक गुरु आपको आत्मा के लेवल पर जागृत करते हैं। आप को जड़ से चैतन्य बना देते हैं। उन गुरु को, आत्मा की रक्षा की राखी। क्योंकि यह कोई धागे की डोरी नहीं है। एक सूत्र है। जो बना ही है। तो सिर्फ प्रेम और भरोसे पर।

     लेकिन प्रश्न यह उठता है कि रिश्तो से उम्मीद तो सबको है। लेकिन निभाना किसी को नहीं है। सामने वाला निभाए, लेकिन मेरे बारे में कोई आस न लगाएं। वैसे इस instant दुनिया में, रिश्ते भी instant तरीके से निभाये जा रहे हैं। बनती है, तो निभाओ। वरना दूर से ही हाथ जोड़ जाओ।

Raksha Bandhan 2023

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रक्षा बंधन का शुभ मुहूर्त – 2023
Rakhi Badhane ka Shubh Muhurat -2023

 साल 2023 में रक्षाबंधन का महापर्व 30 अगस्त बुद्धवार को मनाया जाएगा। इस दिन रवि योग भी पड़ रहा है। जिसके कारण, इस दिन का महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है। रक्षाबंधन के त्यौहार में, भद्रा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि भद्रा काल में राखी नहीं बांधनी चाहिए।

     ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार, भद्रा काल का समय अशुभ माना जाता है। भद्रा काल में दो कार्यों को करने की मनाही होती है। एक तो श्रावणी यानी राखी का पर्व और दूसरा होलिका दहन। कुछ विशेष तिथि व शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं।

राखी बांधने का शुभ समय – 2023

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ

30 अगस्त बुद्धवार को सुबह 10:58 पर

पूर्णिमा तिथि समाप्त

31 अगस्त गुरुवार को सुबह 7:05 तक

उदया तिथि के अनुसार राखी का पर्व 30 अगस्त को मनाया जाएगा

राखी बांधने का मुहूर्त प्रारंभ

30 अगस्त सुबह 5:50 से

राखी बांधने का मुहूर्त समाप्त

30 अगस्त शाम 6:03  तक

भद्रा मुख का समय

30 अगस्त सुबह 10:58 से

भद्रा समाप्ति का समय

30 अगस्त रात्रि 09:01 तक

अन्य शुभ मुहूर्त

30 अगस्त रात्रि 09:01 से 31 अगस्त प्रातः 07:05 तक

राखी बांधने का सही तरीका व पूजा विधि

    रक्षाबंधन पर बहने राखी बांधती हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। आपको जानना जरूरी है कि राखी बांधने की सही विधि क्या है। रक्षाबंधन के दिन सुबह-सुबह उठकर स्नान करें। साफ कपड़े पहने। इसके बाद घर को साफ करें। चावल के आटे से चौक पूरकर, मिट्टी के छोटे से घट की स्थापना करें।

      चावल, कच्चे सूत का कपड़ा, सरसों, रोली, को एक साथ मिलाएं। फिर पूजा की थाली को तैयार कर, दीप जलाएं। पूजा की थाली में मिठाई रखें। रक्षा सूत्र बांधते वक्त भाई को पूर्व दिशा में बताएं बैठे हैं बैठाए भाई को तिलक लगाते वक्त बहन का मुख पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए।

      राखी बांधते वक्त सबसे जरूरी है कि भाई का सर ढका हुआ हो। इसके बाद, सबसे पहले भाई को तिलक करते हैं। ऐसा करते वक्त ध्यान रखिए। कि तिलक करते वक्त, दाहिने हाथ की अनामिका उंगली से ही करना चाहिए। तिलक लगाने के बाद, भाई को कुमकुम लगाएं। इसके बाद अक्षत जरूर लगाएं। जिसका मतलब होता है कि यह अधूरा न रहे।

       इतना कर लेने के बाद, आप भाई को राखी बांधे। लेकिन इस दौरान यह ध्यान रखना चाहिए कि भाई का हाथ खाली न हो। अक्सर बहने, भाई को खाली हाथ राखी बांध देती हैं। ऐसा नहीं करें। जब भी राखी बांधे। उस दौरान उनके हाथ में कुछ भी जैसे नारियल थमा दे। राखी बांधने के बाद, भाई का मुंह मीठा करवाइए।

      भाई की लंबी उम्र के लिए, उसकी आरती उतारिए। शगुन के तौर पर भाई अपनी बहन को पैसे या उपहार आदि कुछ देते हैं। इसके बाद बहन को दो बहुत ही जरूरी काम करने चाहिए। पहला पीली सरसों से उसे अपने भाई की नजर उतारनी चाहिए।

      इसके बाद एक तांबे के लोटे में, गंगाजल लेकर। भाई के ऊपर झिड़कना चाहिए। जो कि तमाम तरह के रोगों की मुक्ति के लिए किया जाता है। एक बात और ध्यान देने वाली है कि पूजा की थाली के दीपक को तुरंत नहीं बुझाना चाहिए। बल्कि इसे घर के मंदिर में रख दीजिए। अब भाई को चरण स्पर्श कर बहन से आशीर्वाद लेना चाहिए।

      भाई को राखी बांधते वक्त, एक मंत्र भी पढ़ा जाता है। जो इस प्रकार है-

येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः । तेन त्वां मनुबध्नामि, रक्षंमाचल माचल:।।

इस मंत्र का अर्थ है। जिस रक्षा सूत्र से महान शक्तिशाली राजा बलि को बांधा गया था। उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधती हूं। हे रक्षे राखी तुम अडिग रहना। तुम अपने रक्षा के संकल्प से कभी विचलित न होना।

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रक्षाबंधन से जुड़े तार्किक व वैज्ञानिक तथ्य

 इंटरनेट के इस युग में अक्सर हम अपनी मान्यताएं, प्रथाएं, रीति-रिवाज, पर्व, त्योहारों को illogical या outdated मानने की भूल कर देते हैं। उन्हीं भूल करने वालों के लिए, यह कुछ facts हैं।

     रक्षा सूत्र बनाने के लिए केसर, अक्षत, सरसों के दाने, दूर्वा, चंदन और रेशम के लाल कपड़े का प्रयोग होता था।

रेशम को एंटीबायोटिक माना जाता है।

केसर को वात कफ नाशक व पेन किलर माना गया है।

सरसों को skin disease से रक्षा के साथ-साथ, hair problems व body detoxify करता है।

दूर्वा यानी दूव खासतौर पर acidity, diabetes, menstrual problem, constipation और obesity में बहुत फायदेमंद रहता है।

चंदन को शीतल माना जाता है। जो मस्तिष्क में serotonin और beta endorphins नामक केमिकल्स को बैलेंस करता है।

      आज सोने से लेकर चांदी तक की  राखियां बाजारों में उपलब्ध हैं। जिनकी बहुत अधिक बिक्री भी होती है। रक्षाबंधन तो प्रेम का रिश्ता है। वहां हीरे की चमक और सोने की खनक का भला क्या काम।

 इसलिए आप भी इस बार एक logical और scientific रक्षा-सूत्र बनाइए। आप इन सब चीजों से, खुद घर पर राखी बना सकते हैं।

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रक्षाबंधन से जुड़ी पौराणिक मान्यताए

एक समय की बात है। दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि से 100 यज्ञ करने को कहा। इसका फल यह था कि जो व्यक्ति लगातार 100 यज्ञ करेगा। उसको देवराज इंद्र का पद सदा के लिए मिल जाएगा। यह सुनकर देवताओं में खलबली मच गई। उन सब लोगों की चिंता बढ़ने लगी।

    जब 99 यज्ञ पूरे हुए। तो सब देवताओं ने मिलकर, भगवान विष्णु से सहायता मांगी। तब भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर, धरती पर आए। जब दानवों के राजा बलि ने अपने 100 यज्ञ पूरे कर लिए। तो उन्होंने कहा कि उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हो। राजा बलि की ऐसी मनोइच्छा जानकर, देवराज इंद्र का सिंहासन डोलने लगा।

      तब देवराज इंद्र की बात सुनकर, भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर, राजा बलि के यहां भिक्षा मांगने पहुंच गए। क्योंकि राजा बलि अपने दिए गए। वचन को हर हाल में पूरा करते थे। इसीलिए भगवान विष्णु उनके पास याचक के रूप में पहुंच गए। जब बामन बने भगवान विष्णु से बलि ने कुछ मांगने को कहा।

       तब भगवान विष्णु ने तीन पग भूमि मांग ली। राजा बलि ने उन्हें तीन पग भूमि दान देते हुए कहा। कि आप अपने तीन पग नाप ले। भगवान बोले कि हे राजन मुझे यज्ञ करने के लिए भूमि चाहिए। जो मैं अपने पैरों से तीन पग में नाप सकूं। इस पर राजा बलि हंसने लगे। वह बोले कि हे ब्राह्मण देवता, आपको तो मांगना भी नहीं आता।

      आप तीनों लोकों के स्वामी राजा बलि के समक्ष खड़े हैं। मैं आपको इतना दान दे सकता हूं। कि पूरे जीवन काल में, फिर किसी से कुछ मांगने की इच्छा नहीं होगी। इसलिए आप हमसे जो चाहे मांग सकते हैं। मैं आपको वचन देता हूं। आपकी हर इच्छा पूरी होगी। राजा बलि के वचन मिलते ही, वामन बने भगवान विष्णु ने विशाल रूप धारण कर लिया।

      उन्होंने एक पग में स्वर्ग, दूसरे में धरती नाप ली। अब वह तीसरा पग कहां नापते। इसलिए राजा बलि ने अपने वचन का पालन करने हेतु, तीसरा पग अपने सर पर रखने दिया। राजा बलि की दानशीलता देखकर भगवान विष्णु उन पर प्रसन्न हुए। उन्होंने वर मांगने को कहा। तब राजा बलि ने भगवान विष्णु से ऐसा वर मांगा। जिसके कारण भगवान विष्णु को बैकुंठ छोड़कर, पाताल लोक में पहरा देना पड़ा।

      उधर श्री हरि विष्णु का वियोग माता लक्ष्मी सहन नहीं हो रहा था। माता लक्ष्मी इसके निवारण के लिए, भगवान शिव के पास गई। शिव जी ने कहा कि राजा बलि वचनबद्ध पुरुष है। अगर माता लक्ष्मी राजा बलि को किसी बंधन में बांधे दे। तो वह श्रीहरि को वापस बैकुंठ ला सकती है। माता लक्ष्मी की सहायता के लिए, भगवान शिव में अपने नाग वासुकी को उनके साथ जाने का आदेश दिया।

      माता लक्ष्मी नाग कन्या का रूप धारण कर, पाताल लोक पहुंचती हैं। वे राजा बलि के पास पहुंचकर, सहायता के लिए अनुग्रह करती है। वासुकी जो रक्षा के लिए आए थे। वह एक रक्षा सूत्र में बदल जाते हैं। माता लक्ष्मी इस रक्षा सूत्र को, राजा बलि को बांध देती है। राजा बलि माता लक्ष्मी को वचन देते हैं। वह सदैव की रक्षा करेंगे। उन्हें मनचाहा फल प्रदान करेंगे।

      तब माता लक्ष्मी अपने देवी स्वरूप में आती हैं। उनसे श्रीहरि को मांग लेती है। तब राजा बलि उनसे कहते हैं कि आज से जो भी स्त्री, किसी पुरुष को रक्षा सूत्र बांधकर,  मन से भाई मानकर। अपनी रक्षा का वचन मांगेगी। तो भाई बहन की रक्षा करने के लिए, बंधन में बंध जाएगा।

     इस तरह वासुकी नाग रूपी रक्षा सूत्र, भाई की कलाई पर बांधने से। भाई की सारी बलाए टल जाएगी। तब से सावन माह की पूर्णिमा को, हर बहन अपने भाई को नाग रूपी मजबूत रक्षा सूत्र। उसकी कलाई पर  बांधती है। भाई उस रक्षा के बंधन में बंध जाता है। इसीलिए इसे रक्षाबंधन का पर्व कहा जाता है।

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रक्षाबंधन से जुड़ी अन्य पौराणिक मान्यताएं

 एक अन्य मान्यता के अनुसार, शिशुपाल जो भगवान कृष्ण का चचेरा भाई था। भगवान कृष्ण ने उसकी 99 गलतियां माफ करने का वचन दिया था। जब शिशुपाल ने 100वीं गलती की। तो श्री कृष्ण ने क्रोध में  आकर, अपना सुदर्शन चक्र उस पर चला दिया। जिससे उसकी मृत्यु हो गई।

      लेकिन तभी भगवान कृष्ण के उंगली में चोट लग गई। यह देखकर, द्रोपदी ने बिना सोचे-समझे अपनी साड़ी के कोने को  फाड़कर, श्री कृष्ण की उंगली पर बांध दिया। तब भगवान श्री कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार करते हुए कहा। तुमने मेरे कष्ट में मेरा साथ दिया।

      मैं तुमसे वादा करता हूं कि मैं भी तुम्हारे कष्ट में तुम्हारा साथ दूंगा। इस तरह उन्होंने द्रौपदी को रक्षा का वचन दिया। इस घटना  से ही रक्षाबंधन की शुरुआत हुई। बाद में, जब कौरवों ने भरी सभा में द्रोपदी का चीर हरण किया। तो भगवान श्री कृष्ण ने द्रोपदी की लाज को बचाकर। अपना वादा पूरा किया। तब से बहने अपने भाइयों को रक्षा सूत्र बांधती हैं।

    एक अन्य मान्यता के अनुसार, मध्यकालीन इतिहास में एक ऐसी घटना मिलती है। चित्तौड़ रानी कर्णवती ने हुमायूं को राखी भेजकर, चित्तौड़गढ़ की रक्षा करने का वचन लिया। हुमायूं ने कर्णवती की राखी स्वीकार कर ली। फिर उसके सम्मान की रक्षा के लिए, गुजरात के बादशाह से युद्ध किया।

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