Who is Sudha Murthy|सुधा मूर्ति का जीवन परिचय|सुधा मूर्ति की कहानी

Who Is Sudha Murthy – Biography Of Sudha Murthy। Sudha Murthy Story। Sudha Murthy Family। Sudha Murthy Books। सुधा मूर्ति का जीवन परिचय। सुधा मूर्ति। सुधा मूर्ति की कहानी। सुधा मूर्ति बायोग्राफी। सुधा मूर्ति के माता-पिता। सुधा मूर्ति कौन है। सुधा मूर्ति की शिक्षा। सुधामूर्ति ने टेल्को कंपनी से त्यागपत्र क्यों दे दिया?

 हमारा प्यारा भारत आजाद तो हुआ, लेकिन आजाद होकर भी पूर्ण रूप से आजाद नहीं था। क्योंकि उस समय पुरुष प्रधानता की अधिक महत्वता थी। जिसके कारण महिलाओं को पूर्णतया आजादी नहीं थी। डर एक ऐसा एहसास है। जो हम सबको जिंदगी में कभी न कभी तो जरूर होता है। ऊंचाई का डर, अंधेरे का डर, हारने का डर। इसके साथ ही, सबसे बड़ा लोग क्या कहेंगे। इस बात का डर।

       भीड़ से अलग चलने का डर, कुछ अलग कुछ नया करने का डर। क्योंकि जब आप भीड़ से अलग चलते हैं। कुछ नया करते हैं। तो आपको अपने रास्ते पर अकेले ही चलना पड़ता है। अपने रास्ते पर अकेले चलने के लिए, बिना किसी सहारे के, अपनी मुश्किलें हल करने के लिए, बहुत हिम्मत चाहिए। जो शायद हर किसी में नहीं होती। लेकिन हम सबने यह सुना ही है कि डर के आगे जीत है।

       एक ऐसी ही लड़की जिसने लोग क्या कहेंगे। इसकी परवाह नहीं की। जिसने अपने रास्ते पर अकेले चलने की हिम्मत की। यही लड़की आगे चलकर, महिला सशक्तिकरण की मिसाल बनी। यह वही लड़की है, जिसका नाम सुधा मूर्ति है। यह एक शिक्षक, लेखक और इन्फोसिस की चेयरपर्सन हैं। जो हमेशा सरल, सादगी भरा और साधारण जीवन जीती है। साथ ही लोगों को भी साधारण जीवन जीने के लिए प्रेरित करती हैं।

      वह इन मूल्यों को दूसरों को ही अपनी जिंदगी में अपनाने के लिए नहीं कहती। बल्कि उन्होंने अपने बच्चों को भी इन्हीं मूल्यों के साथ पाला है।

who is sudha murthy

Who is Sudha Murthy
सुधा मूर्ति कौन है

सामाजिक कार्यकर्ता, लेखिका व इंफोसिस फाउंडेशन की अध्यक्ष 

सुधा मूर्ति

पूरा नाम

• सुधा नारायण मूर्ति 

• सुधा कुलकर्णी

प्रसिद्ध नाम

सुधा मूर्ति

जन्मतिथि

19 अगस्त 1950

जन्म स्थान

शिग्गाँव, कर्नाटका

माता-पिता

• डॉ आर. एच कुलकर्णी (पिता) 

• विमला कुलकर्णी (माता)

 

भाई-बहन

भाई – श्रीनिवास कुलकर्णी  (एस्टॉनोमर)

बहन – सुनंदा कुलकर्णी (गायनेकोलॉजिस्ट) 

बहन – जयश्री देशपांडे (सोशल एक्टिविस्ट)

कॉलेज

• बी.वी.बी कॉलेज आफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, कर्नाटक 

• भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कर्नाटका

 

शैक्षिक योग्यता

• बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक)

• मास्टर ऑफ़ इंजीनियरिंग (कंप्यूटर साइंस)

 

व्यवसाय

• शिक्षिका 

• लेखक 

• सामाजिक कार्यकर्ता

• व्यवसायी

प्रसिद्धि

इंफोसिस फाऊंडेशन की अध्यक्ष व सह-संस्थापक

पति

एन. आर नारायण मूर्ति (इंफोसिस के सह-संस्थापक)

विवाह तिथि

10 फरवरी 1978

 

बच्चे

बेटा – रोहन मूर्ति (मूर्ति क्लासिकल लाइब्रेरी ऑफ़ इंडिया के संस्थापक)

बेटी – अक्षिता मूर्ति (वेंचर कैपिटलिस्ट)

दामाद

ऋषि सुनक (यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री)

 

अवार्ड 

व 

सम्मान

2000 : कर्नाटका राज्योत्सव, राज्य पुरस्कार

2001 : ओजस्विनी पुरस्कार

2004 : राजा लक्ष्मी पुरस्कार

2006 : आरके नारायण अवार्ड 

2006 : पद्मा श्री अवॉर्ड

2011 : अत्तिमाब्बे अवार्ड 2018 : क्रॉसवर्ड रेमंड बुक अवार्ड्स

2019 : आईआईटी कानपुर अवार्ड

2023 : पदम भूषण

इनकम

₹320 करोड़ (लगभग)

नेटवर्थ

₹788 करोड़ (लगभग)

सुधा मूर्ति का प्रारंभिक जीवन

 सुधा मूर्ति का जन्म 19 अगस्त 1950 को कर्नाटका के हुबली के पास, शिंगगांव में हुआ था। इनका बचपन एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार गुजरा। जो धर्मनिष्ठ होने के साथ-साथ, संस्कारो से युक्त था।  सुधा मूर्ति के पिता एक डॉक्टर थे। जिनका नाम डॉ आर एस कुलकर्णी था। इनकी माता का नाम विमला कुलकर्णी था। परिवार के शिक्षित माहौल ने हीं, उन्हें कुछ बड़ा व अलग करने के लिए प्रेरित किया।

       बचपन से ही सुधा का सपना था कि वह एक इंजीनियर बने। क्योंकि सुधा को बचपन से ही साइंस में अधिक रूचि थी। लेकिन पिता चाहते थे कि वह एक डॉक्टर बने। सुधा मूर्ति के परिवार में, उनके अतिरिक्त दो बहने और एक भाई भी थे। जिनमें उनके भाई श्रीनिवास कुलकर्णी, एक प्रसिद्ध खगोल शास्त्री हैं। जबकि उनकी एक बहन सुनंदा कुलकर्णी स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं। इनकी दूसरी बहन जयश्री देशपांडे एक सामाजिक कार्यकर्ता है।

सुधा मूर्ति का शिक्षा में संघर्ष

   सुधा मूर्ति एक ऐसी लड़की थी। जिन्होंने लोग क्या कहेंगे, इसकी बिल्कुल भी परवाह नहीं की। उन्होंने अपने रास्ते पर अकेले चलने की हिम्मत की। सुधा जी बी.वी.बी कॉलेज आफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, कर्नाटक में एकमात्र अकेली लड़की थी। इस इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश के दौरान, अध्यापकों ने भी उनका मजाक उड़ाया। बस किसी तरह प्रवेश तो मिल गया। लेकिन वहां पढ़ना कठिन था। क्योंकि उस समय के दौर में, कोई भी लड़की इंजीनियरिंग नहीं करती थी। 

       यह बात आज के आधुनिक युग की न होकर, 60 के दशक की है। जब लड़कियां लंबे-लंबे बाल रखती थी। चोटी बनाती थी। तब सुधा जी बॉब हेयर कट में घूमती थी। उस समय इंजीनियरिंग करना, सिर्फ लड़कों तक ही सीमित था। लेकिन सुधा जी को यह बात रास नहीं आई। पूरे इंजीनियरिंग कॉलेज में, सिर्फ सुधा जी ही एक लड़की थी। जिसके कारण कैंपस में, एक भी वूमेन टॉयलेट तक नहीं था। 

      150 सहपाठियों के कक्षा में, वह अकेली लड़की थी। जिन पर हर सुबह और लंच ब्रेक पर, उनकी पीठ पर स्याही फेंकी जाती थी। तो कभी क्लास के दौरान, उनकी तरफ कागज के बने हवाई जहाज। लेकिन उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी। उनका मानना था कि सामने वाला चाहे, कितना ही परेशान कर ले। हम क्या हैं और कैसे हैं। यह उन्हें भी अच्छी तरह पता था। सुधा जी को परेशान करने वाले, उनके सहपाठियों को भी पहले से पता होता था।

     जब एग्जाम के रिजल्ट बुलेटिन बोर्ड पर लगाए जाते थे। तब सुधा जी का नाम सबसे ऊपर होता था। वह पढ़ाई में काफी होशियार थी। सुधा जी ने इंजीनियरिंग कॉलेज में टॉप किया था। जिसके कारण उन्हें कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने, स्वर्ण पदक से नवाजा था। इसके बाद उन्होंने कंप्यूटर साइंस में मास्टर डिग्री के लिए, आईआईटी बेंगलुरु को चुना। यहां पर भी, उन्होंने सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया।

सुधा मूर्ति का नौकरी के लिए संघर्ष

   सुधा मूर्ति ने जब इंजीनियरिंग में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी कर ली। तब इन्हें कहीं भी नौकरी नहीं मिल रही थी। तभी एक दिन अखबार में, उनकी नजर टाटा ग्रुप के नौकरी के विज्ञापन पर पड़ी। यह बात 1974 की है। यहां पर केवल पुरुषों के लिए वैकेंसी निकली थी। यह बात सुधा मूर्ति को बहुत अजीब लगी। कि कब तक महिला और पुरुषों में भेद होता रहेगा। शैक्षिक योग्यता और काबिलियत होने के बावजूद, केबल महिला होने के आधार पर क्यों अप्लाई नहीं कर सकती।

     तभी उन्होंने टाटा ग्रुप के चेयरमैन, जेआरडी टाटा को एक पत्र लिखा। उन्होंने लिखा कि आज महिलाएं वह सारे काम कर सकती है। जो एक पुरुष कर सकता है। चाहे वह शिक्षा हो या नौकरी। तो फिर आपको ऐसा भेदभाव नहीं करना चाहिए। महिलाओं को भी समान अवसर देना चाहिए। फिर जेआरडी टाटा ने उनका लेटर पढ़कर, उन्हें  इंटरव्यू के लिए बुला लिया।

इसके बाद उनके इंटरव्यू से प्रभावित होकर, टेल्को में नियुक्त कर लिया गया। वह कंपनी की पहली महिला टेक्निकल ऑफीसर बनी। सुधा जी के करियर की शुरुआत यहीं से हुई। यही पर इनकी मुलाकात नारायण मूर्ति से भी हुई। जो आज इंफोसिस के मालिक है।

सुधा मूर्ति व नारायण मूर्ति की प्रेम कहानी

 टेल्को कंपनी में सुधा मूर्ति और नारायण मूर्ति के एक कॉमन फ्रेंड प्रसन्ना थे। जो उस समय टेल्को में ट्रेनिंग कर रहे थे। प्रसन्ना जानते थे कि सुधा को किताबे पढ़ना बहुत पसंद है। इसलिए वह अक्सर सुधा जी को  किताबे लाकर देते थे। उन किताबों पर नारायण मूर्ति का नाम लिखा होता था। एक बार नारायण मूर्ति ने, अपने सभी मित्रों को एक होटल में, डिनर पर आमंत्रित किया। जिसमें सुधा भी शामिल थी।

       सुधा जी उनकी पर्सनालिटी से प्रभावित हुई। उस समय तक नारायणमूर्ति ने कितनी यात्राएं की है। उनमें कितनी समझ व नॉलेज है। इन सबके बावजूद, वह कितने जमीन से जुड़े हुए व्यक्ति हैं। नारायण मूर्ति अंतर्मुखी थे। लेकिन वे दूरदर्शी थे। उनके पास एक उद्देश्य था। वही सुधा जी बहिर्मुखी थी। पैसे के मैनेजमेंट में माहिर थी। जब नारायण मूर्ति और सुधा खाना खाने जाते। तो वे बिल को आधा-आधा कर देते।

     धीरे-धीरे वह दोनों एक-दूसरे की, काबिलियत को अच्छी तरह से समझने लगे। करीब 3 साल एक-दूसरे से मिलने के बाद, नारायणमूर्ति ने सुधा को शादी के लिए प्रपोज किया। उस समय नारायण मूर्ति रिसर्च असिस्टेंट के पद पर कार्यरत थे। उनकी कमाई भी बहुत कम थी। इसलिए सुधा के पिता ने, इस रिश्ते को स्वीकार नहीं किया। लेकिन इसके बाद, जब नारायणमूर्ति ने Patni Computer में जनरल मैनेजर के पद पर काम करना शुरू किया।

      तब उनके पिता ने इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया। 1978 में दोनों की शादी हुई। इस शादी में भी केवल नारायण मूर्ति और सुधा का परिवार ही शामिल था। इस शादी का कुल खर्च भी मात्र ₹800 था। इस पैसे को भी सुधा और नारायण मूर्ति ने आधा-आधा बांट लिया। इनके दो बच्चे रोहन मूर्ति और अक्षता मूर्ति है।

इंफोसिस की शुरुआत में सुधा मूर्ति का योगदान

शादी के बाद लोन लेकर, नारायण मूर्ति और  सुधा मूर्ति ने एक घर खरीदा। नारायणमूर्ति सॉफ्टवेयर बनाना चाहते थे। इसी घर के छोटे से कमरे में इंफोसिस की शुरुआत हुई। इसमें नारायण मूर्ति के 6 मित्र शामिल थे। जो पटनी कंप्यूटर में काम करते थे। शुरुआत तो  हो गई। लेकिन नारायण मूर्ति के पास पैसा नहीं था। सुधा जी जो पैसे के मैनेजमेंट  माहिर थी। उन्होंने जो ₹10000 बचा कर रखे थे। नारायणमूर्ति को दिया।

      सुधा जी ने उनसे कहा, मैं तुम्हें केवल यही मदद दे सकती हूं। मैं तुम्हें 3 साल की छुट्टी भी देती हूं। तुम पूरे लगन और जी जान से अपने सपने का पूरा करो। परिवार की आर्थिक और हर जरूरत को मैं देख लूंगी। लेकिन यह छुट्टी, तुम्हे सिर्फ 3 सालों के लिए ही मिली है। इंफोसिस को शुरुआती सालों में, कोई फायदा नहीं हुआ। यहां तक कि नारायणमूर्ति के कई साथी उनका साथ छोड़ कर चले गए।

      लेकिन सुधा जी को उन पर पूरा भरोसा था कि नारायणमूर्ति जरुर सफल होंगे। नारायणमूर्ति का भी कहना था कि वह उद्देश्य के पीछे भाग रहे थे। पैसे के पीछे नहीं। फिर जब उद्देश्य सही होता है। मेहनत सही दिशा में होती है। तब इंफोसिस जैसी कंपनी खड़ी होती है। पैसा तो अपने आप आता है। हांलाकि सुधा जी भी इंजीनियर है। लेकिन उन्होंने कभी भी एंप्लॉय की तरह, इंफोसिस को ज्वाइन नहीं किया।

सुधा मूर्ति जी की सादगी

 यूँ तो सुधा मूर्ति किसी पहचान की मोहताज नहीं है। लेकिन इनकी सादगी बहुत से लोगों को भ्रमित कर देती है। लोग पहचान कर भी, इन्हें देख कर यकीन नहीं कर पाते। कि यह सुधा मूर्ति है। कुछ ऐसा ही लंदन के हवाई अड्डे पर हुआ। जब एक अधिकारी, यह विश्वास ही नहीं कर पा रहा था। कि वह सुधा मूर्ति ही हैं। उसे लग रहा था कि यह कोई मजाक है। सुधा मूर्ति जी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की सास हैं। उनकी बेटी अक्षता मूर्ति की शादी ऋषि सुनक के साथ हुई है। 

       हाल ही में वह अपनी बेटी और दामाद से मिलने लंदन पहुंची थी। तब उनके पहनावे और सादगी को देखकर, एक इमिग्रेशन ऑफिसर यह मानने को तैयारी नहीं था कि लंदन में उनका पता ’10 डाउनिंग स्ट्रीट’ है। जो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री का आधिकारिक आवास है। उस अधिकारी ने अविश्वसनीय रूप से देखा। उसने पूछा कि क्या आप मजाक कर रही हैं। तब उन्होंने कहा, मैं सच कह रही हूं।

       यह सुनने के बाद, वह अधिकारी पूरी तरह से हक्का-बक्का था। उसके हो होश उड़ गए थे। उसे यकीन करना मुश्किल हो रहा था। कि सामने सादी-सी साड़ी में खड़ी महिला, कोई और नहीं। बल्कि उनके देश को चलाने वाले प्रधानमंत्री की सास है। सुधा मूर्ति का मानना है कि दिखावे में धोखा हो सकता है। लोगों के रूप रंग के आधार पर, उनके बारे में राय बनाना आसान है। लेकिन वे धारणाएं, अक्सर गलत साबित हो सकती हैं।

सुधा मूर्ति - एक बेस्ट सेलिंग राइटर

सुधा मूर्ति ने 1.5 मिलियन से भी ज्यादा किताबें अब तक बेची हैं। इनमें चिल्ड्रन बुक्स, शॉर्ट बुक्स, शॉर्ट स्टोरीज, टेक्निकल बुक्स,  24 नॉवेल, नॉनफिक्शन बुक्स शामिल है। सुधा मूर्ति द्वारा लिखी गई कुछ प्रमुख किताबें इस प्रकार हैं –

• महाश्वेता 

• वाइज एंड अदरवाइज

• डॉलर बहु 

• हाउस का कार्डस

• यशस्वी

• बुद्धिमान और अन्यथा  

• बकुला धीरे-धीरे गिरता है

• तीन हजार टांके

• खोए हुए मंदिर का जादू

• नागिन का बदला

• द गोपी डायरीज

• उल्टा राजा

• समुद्र कैसे खारा हो गया

सुधा मूर्ति का समाज में योगदान

 आज सुधा मूर्ति भारत की सबसे अमीर महिलाओं में से एक हैं। लेकिन फिर भी वह सादगी से भरा जीवन जीती हैं। उन्होंने समाज के लिए, बहुत से काम किए। सुधा मूर्ति जी इंफोसिस की चेयरपर्सन होने के साथ-साथ। इंफोसिस फाउंडेशन के माध्यम से पब्लिक हाइजीन, हेल्थ केयर, एजुकेशन, वुमन एंपावरमेंट व आर्ट एंड कल्चर में बहुत बड़ा योगदान दिया है। आज भी उनका यह योगदान निरंतर जारी है।

सुधा मूर्ति की इनकम व नेटवर्थ

 साधारण, सौम्य और सादगी भरा जीवन जीने वाली, सुधा मूर्ति की सालाना इनकम लगभग ₹320 करोड़ आंकी जाती है। वहीं अगर उनकी कुल सम्पति की बात की जाए। तो उनके पास लगभग ₹788 करोड़ की सम्पत्ति हैं। उनके द्वारा अर्जित की गई संपत्ति में उनकी किताबें, लघु कथाएं और  इंफोसिस फाउंडेशन से अर्जित की गई रॉयल्टी है। एक चौंकाने वाली बात यह भी है कि उन्होंने लगभग 24 साल पहले साड़ी खरीदी थी।

Must Watch 🤣

Video Thumbnail

Leave a Comment