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10 Avatars of Lord Vishnu in Hindi
भगवान विष्णु के दशावतार की कथा
ब्रह्मांड की रचना से लेकर उसके अंत तक के पीछे त्रिमूर्ति को माना जाता है। ब्रह्मा इसकी रचना करते हैं। विष्णु जी इसके अंत होने तक, इसका संरक्षण करते हैं। शिवजी इसका अंत करते हैं।
ऐसी मान्यता है कि जब भी इस धरा मनुष्य, अपने कर्मों से भटककर, अधर्म की राह पर चलने लगता है। तब स्वयं विष्णु जी इस धरती पर अवतार लेते हैं। श्रीमद्भागवत गीता में भी, श्री कृष्ण जी ने इस बात की पुष्टि की है।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
अर्थात जब-जब धर्म की हानि और अधर्म का उत्थान हो जाता है। तब-तब सज्जनों के परित्राण और दुष्टों के विनाश के लिए, मैं विभिन्न युगों में उत्पन्न होता हूं। धर्म ग्रंथों के आधार पर, भगवान विष्णु ने दशावतार लिए हैं। पहले तीन अवतार सतयुग में, चार त्रेता युग में, दो द्वापर युग में और अंतिम दो इस युग में अवतरित होगा।

भगवान विष्णु के दशावतार
मत्स्य अवतार
सबसे पहला भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार, जो सतयुग में हुआ। पुराणों के अनुसार, भगवान श्री हरि विष्णु ने सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए। मत्स्य के रूप में पहला अवतार लिया था। यह उनके दशावतार में, पहला अवतार माना जाता है। सतयुग के अंत में, राजा सत्यव्रत हुए थे। एक दिन राजा सत्यव्रत नदी में स्नान करके, भगवान सूर्य को जलांजलि दे रहे थे।
तभी उनकी अंजलि में, एक छोटी-सी मछली आ गई। उन्होंने सोचा कि इसे वापस जल में डाल दूं। लेकिन मछली ने राजा से कहा। आप मुझे जल में मत डालिए। वरना बड़ी मछलियां, मुझे खा जाएंगी। तब राजा सत्यव्रत ने, उस मछली को अपने राजमहल में रख लिया। जब मछली एक दिन में बड़ी हो गई। तब राजा ने उसे अपने सरोवर में रख दिया।
लेकिन शीघ्र ही मछली और बड़ी हो गई। राजा को समझ में आ गया कि यह कोई साधारण जीव नहीं है। उन्होंने उस मछली से, अपने वास्तविक स्वरूप में आने की प्रार्थना की। राजा की प्रार्थना को सुनकर, साक्षात चार भुजाधारी भगवान श्री हरि विष्णु प्रकट हुए। उन्होंने कहा कि यह मेरा मत्स्य अवतार है। भगवान ने सत्यव्रत से कहा। सुनो सत्यव्रत, आज से 7 दिन बाद प्रलय होगी।
संपूर्ण लोक जल में डूब जाएगा। तब मेरी प्रेरणा से, एक विशाल नौका तुम्हारे समीप आएगी। तब तुम सप्तर्षियों, औषधियों, समस्त बीजों व प्राणियों के सूक्ष्म शरीर को लेकर। उसमें बैठ जाना। जब तुम्हारी नाव डगमगाने लगेगी। तब मैं इसी मत्स्य रूप में, तुम्हारे पास आऊंगा। उस समय तुम वासुकी नाग से, उस नाव को मेरे सींग से बांध देना।
उस समय तुम जो प्रश्न पूछोगे। तब मैं तुम्हें उत्तर दूंगा। इससे मेरी वास्तविक महिमा, जो परमब्रह्मा है। तुम्हारे हृदय में प्रकट हो जाएगी। तब समय आने पर, मत्स्य रूप धारण करके। भगवान विष्णु ने, राजा सत्यव्रत को तत्व ज्ञान का उपदेश दिया। इस सृष्टि को प्रलय के जल से बचाया। भगवान की यह कथा मत्स्य पुराण के नाम से प्रसिद्ध है।
भगवान विष्णु के दशावतार
वराह अवतार
भगवान विष्णु का वराह अवतार भी सतयुग में हुआ था। धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान विष्णु ने दशावतारों में, अपना दूसरा अवतार, वराह रूप में लिया था। उनके इस अवतार के साथ, कुछ इस प्रकार की कथा जुड़ी हुई है। दैत्य हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को ले जाकर, क्षीर सागर में छुपा दिया। तब देवताओं की प्रार्थना पर, भगवान विष्णु ब्रह्मा की नाक से वराह के रूप में प्रकट हुए।
भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर, सभी देवी-देवताओं ने उनकी स्तुति की। सबके आग्रह पर भगवान वराह ने, पृथ्वी को ढूंढना शुरू किया। अपनी थूथनी की सहायता से, उन्होंने पृथ्वी का पता लगा लिया। फिर समुद्र के अंदर जाकर, अपने दांतो के ऊपर पृथ्वी को रखकर बाहर निकल आए।
जब हिरण्याक्ष ने यह देखा। तो उसने वराह रूपी भगवान विष्णु को, युद्ध के लिए ललकारा। दोनों में भीषण युद्ध हुआ। अंत में भगवान वराह ने, दैत्य हिरण्याक्ष का वध कर दिया। इसके बाद भगवान वराह ने अपने खुरों से जल को स्तंभित कर, पृथ्वी को स्थापित कर दिया।
भगवान विष्णु के दशावतार
नरसिंह अवतार
भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार धारण कर, अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की। दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यप का वध किया। धर्म ग्रंथों के अनुसार, दैत्यों का राजा हिरण्यकश्यप, अपने आपको भगवान से अधिक शक्तिशाली मानने लगा था। उसने मनुष्य, देवता, पक्षी, पशु, न दिन में न रात में, न धरती पर न आकाश में, न अस्त्र से न शस्त्र से। न मरने का वरदान ब्रह्मा जी से प्राप्त किया था।
उसके राज्य में जो भी, भगवान विष्णु की पूजा करता। उसको वह दंड देता था। उसका पुत्र प्रह्लाद बचपन से ही, भगवान विष्णु का परमभक्त था। यह बात जब हिरण्यकश्यप को पता चली। तो वह बहुत क्रोधित हुआ। उसने प्रह्लाद को समझाने का प्रयास किया। लेकिन प्रह्लाद नहीं माना। तब हिरण्यकश्यप उसे मृत्युदंड देने लगा। हर बार प्रह्लाद भगवान विष्णु के चमत्कार से बच जाता।
हिरण्यकश्यप की बहन होलिका थी। जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था। वह प्रह्लाद को लेकर, धधकती हुई अग्नि में बैठ गई। तब भगवान श्री हरि विष्णु की कृपा से, प्रह्लाद बच गए। लेकिन होलिका जल गई। जब हिरण्यकश्यप ने स्वयं प्रह्लाद को मारने का निश्चय किया। तब भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया। खंबे से प्रकट होकर, अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का वध कर दिया।
भगवान विष्णु के दशावतार
कूर्म या कच्छप अवतार
भगवान विष्णु ने इस अवतार में देवताओं और दानवों की सहायता की थी। भगवान विष्णु के कूर्म अवतार को कच्छप अवतार भी कहते हैं। एक बार महाऋषि दुर्वासा ने देवताओं के राजा इंद्र को, श्राप देकर उसे श्री हीन कर दिया था। तब इंद्र भगवान विष्णु के पास गए। उनके सहायता मांगी।
तब भगवान ने उन्हें समुद्र मंथन करने के लिए कहा। इंद्र भगवान विष्णु के कहे अनुसार, दैत्यों और देवताओं के साथ मिलकर, समुद्र मंथन करने को तैयार हुए। समुद्र मंथन करने के लिए, मंदराचल पर्वत को और नागदेव वासुकी को नेति बनाया गया। देवताओं और दैत्यों ने अपना मतभेद भुलाकर, मंदराचल पर्वत को उखाड़ा। फिर उसे समुद्र की ओर ले चले।
लेकिन वे उसे दूर तक नहीं ले जा सके। तब भगवान विष्णु ने मंदराचल को समुद्र के तट पर रख दिया। देवता और दैत्य मंदराचल पर्वत को समुद्र में डाला। नागराज वासुकी को नेति बनाकर, मंथन करने की कोशिश की। लेकिन मंदराचल के नीचे कोई आधार नहीं था। इस कारण वह समुद्र में डूबने लगा।
यह देखकर भगवान विष्णु ने विशाल कछुए का रूप धारण किया। उन्होंने समुद्र में मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर आधार दिया। भगवान कूर्म की पीठ पर मंदराचल पर्वत तेजी से घूमने लगा। इस प्रकार, समुद्र मंथन का कार्य पूर्ण हुआ।
भगवान विष्णु के दशावतार
वामन अवतार
भगवान विष्णु का पांचवा वामन अवतार है। सभी देवता त्रेतायुग में, जब प्रह्लाद के पौत्र दैत्यराज बली ने स्वर्ग लोक पर अधिकार कर लिया। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास सहायता के लिए पहुंचे। भगवान विष्णु ने कहा कि वे स्वयं देवमाया आदिति के गर्भ से अवतार लेंगे। फिर उन्हें स्वर्ग का राज्य दिलाएंगे।
कुछ समय बाद, भगवान विष्णु ने वामन के रूप में अवतार लिया। एक बार राजा बली जब महायज्ञ कर रहे थे। तब भगवान वामन बली की यज्ञशाला में गए। उन्होंने राजा बलि से, तीन पग धरती दान में मांगी। राजा बली के गुरु शुक्राचार्य, भगवान की लीला को समझ गए। उन्होंने बली को दान देने से मना कर दिया।
लेकिन बली ने भगवान वामन को 3 पग धरती देने का संकल्प कर लिया था। तब भगवान वामन ने विशाल रूप धारण किया। उन्होंने एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्गलोक को नापा। जब तीसरा पग रखने को, कोई स्थान नहीं बचा। तो बली ने भगवान वामन को, अपने सर पर पग रखने को कहा।
बली के सिर पर पग रखने से, वह पाताललोक चला गया। बली की दानवीरता देखकर, भगवान ने उसे पाताललोक का स्वामी बना दिया। फिर श्रावणी मतवन्तर में, इंद्र का पद प्रदान करने का वचन दिया। इस प्रकार भगवान वामन ने देवताओं की सहायता की। उन्हें स्वर्ग पुनः लौटाया।
भगवान विष्णु के दशावतार
परशुराम अवतार
भगवान विष्णु का अगला परशुराम अवतार है। भगवान परशुराम के जन्म की कथा, कुछ इस प्रकार है। प्राचीन समय में महेशमति नगरी पर, शक्तिशाली हैहयवंशी क्षत्रिय कार्त्तवीर्यअर्जुन (सहस्त्रार्जुन) का शासन था। वह बहुत अभिमानी और अत्याचारी था।
एक बार अग्निदेव ने, उससे भोजन कराने का आग्रह किया। तब सहस्त्रार्जुन ने घमंड में आकर कहा। आप जहां भी चाहे। वहां से भोजन प्राप्त कर ले। समस्त पृथ्वी पर मेरा राज्य है। तब अग्निदेव ने वनों को जलाना शुरू कर दिया। एक वन में, उसी समय ऋषि आपव तपस्या कर रहे थे। अग्निदेव ने उनके आश्रम को भी जला दिया।
इससे क्रोधित होकर ऋषि ने, सहस्त्रार्जुन को श्राप दिया। भगवान विष्णु परशुराम के रूप में जन्म लेंगे। न सिर्फ सहस्त्रार्जुन बल्कि समस्त अभिमानी क्षत्रियों का सर्वनाश करेंगे। इस प्रकार भगवान विष्णु ने भार्गव कुल में जमदग्नि के पांचवें पुत्र के रूप में जन्म लिया।
भगवान विष्णु के दशावतार
श्रीराम अवतार
भगवान विष्णु का सातवां अवतार, त्रेतायुग में भगवान श्रीराम का अवतार है। त्रेतायुग में, राक्षसराज रावण का बहुत आतंक था। सभी देवता, उससे डरते थे। उसके वध के लिए, भगवान विष्णु ने राजा दशरथ के यहां, माता कौशल्या के गर्भ से पुत्र के रूप में जन्म लिया। इस अवतार में भगवान विष्णु ने, अनेक राक्षसों का वध किया।
मर्यादा का पालन करते हुए। वह मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम कहलाए। भगवान श्रीराम पिता के कहने पर, वनवास गए। वनवास भोंगते समय, रावण उनकी पत्नी सीता को हरण करके ले गया। सीता की खोज में भगवान लंका तक पहुंचे। वहां भगवान श्रीराम और रावण का घोर युद्ध हुआ। जिसमें रावण मारा गया। इस प्रकार भगवान विष्णु ने, राम के रूप में अवतार लेकर, देवताओं को भयमुक्त किया।
भगवान विष्णु के दशावतार
श्रीकृष्ण अवतार
द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया। उन्होंने अधर्मियों का नाश किया। भगवान श्री कृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ। उनके पिता का नाम वासुदेव था। उनकी माता का नाम देवकी था। भगवान श्री कृष्ण ने इस अवतार में, अनेक चमत्कार किए। उन्होंने दुष्टों का सर्वनाश किया।
कंस का वध किया। महाभारत के युद्ध में, भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथी बने। उन्होंने दुनिया को गीता का ज्ञान प्रदान किया। भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को राजा बनाकर। धर्म की स्थापना की। भगवान विष्णु का यह अवतार, सभी अवतारों में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।
भगवान विष्णु के दशावतार
बुद्ध अवतार
भगवान विष्णु का बुद्ध अवतार कलयुग में हुआ। बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध भी, भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। एक समय दैत्यों की शक्ति बहुत अधिक बढ़ गई थी। देवता भी उनके भय से भागने लगे थे। राज्य की कामना से, दैत्यों ने देवराज इंद्र से पूछा। हमारा साम्राज्य स्थिर रहे। इसका क्या उपाय है।
तब इंद्र ने शुद्ध भाव से बताया कि सुशासन के लिए, यज्ञ और वेदविहित आचरण जरूरी है। तब दैत्य वैदिक आचरण और महायज्ञ करने लगे। जिससे उनकी शक्ति बढ़ने लगी। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने, सभी देवताओं के हित के लिए बुद्ध का रूप धारण किया।
उनके हाथ में एक मर्जिनी थी। जिससे वह मार्ग को देखते हुए चलते थे। इस प्रकार भगवान बुद्ध दैत्यों के पास पहुंचे। उन्हें उपदेश दिया कि यज्ञ करना पाप है। यज्ञ से जीव हिंसा होती है। यज्ञ की अग्नि से कितने ही प्राणी भस्म हो जाते हैं।
भगवान बुद्ध के उपदेश से दैत्य बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने यज्ञ और वैदिक आचरण करना छोड़ दिया। जिसके कारण की शक्ति कम हुई। तब देवताओं की शक्ति पुनः बढ़ने लगी।
भगवान विष्णु के दशावतार
कल्कि अवतार
धर्म ग्रंथों के अनुसार, कल्कि अवतार कलयुग और सतयुग के संधिकाल में होगा। यह अवतार 64 कलाओं से युक्त होगा। पुराणों के अनुसार, उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के संभल नामक स्थान पर विष्णुयशा नामक तपस्वी ब्राह्मण के घर, भगवान कल्कि पुत्र रूप में जन्म लेंगे। कल्कि अपने देवदत्त नामक घोड़े पर सवार होकर। संसार के समस्त पापियों का विनाश करेंगे।
धर्म की पुनः स्थापना करेंगे। इसके बाद सतयुग का प्रारंभ होगा। भगवान विष्णु को सभी देवताओं में, सबसे अधिक पूजनीय कहा जाता है। सबसे अधिक दयालु और कृपा करने वाला कहा जाता है। उनका सरल स्वभाव है।
जिसके कारण वह समय-समय पर अवतार लेकर, दुष्टों का नाश करते हैं। धार्मिक मनुष्यों की रक्षा करते हैं। धर्म की स्थापना करते हैं। भगवान के इन प्रमुख दशावतारों का भी यही उद्देश्य है।
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