Lord Shiva | भगवान शिव से जुड़े 5 रहस्य | 108 Names of Lord Shiva

Lord Shiva – mystery and power, 108 names, who can defeat. who is the father. facts [ भगवान शिव से जुड़े रहस्य, जुड़े तथ्य, 108 नाम व उनका अर्थ, अज्ञात तथ्य  व रोचक रहस्य ]

जब कभी हम अपने चारों ओर प्रकृति व आकाश में टिमटिमाते तारों को देखते हैं। तो हम कौतूहल से भर जाते हैं। इन सब की उत्पत्ति कैसे हुई। इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई। हमारी उत्पत्ति कैसे हुई। अगर हम अपने ग्रंथों का वैज्ञानिक विश्लेषण करें। तो हमें इनका जवाब जरूर मिलेगा।

हिंदू धर्म की शुरुआत शिव से होती है।  लेकिन यह शिव कौन है। शिव भगवान हैं। जिन्होंने हमें बनाया। तो फिर उन्हें किसने बनाया अर्थात शिव को किसने पैदा किया। इन सबका जवाब भी, हमारे ग्रंथों में मिलता है। एक बार एक संत ने, भगवान शिव से  पूछा। आपके पिता कौन हैं। शिव ने कहा, ब्रह्मा मेरे पिता है।

संत ने फिर पूछा, आपके दादा कौन हैं। शिव ने उत्तर दिया। विष्णु मेरे दादा हैं। संत ने फिर से पूछा। अगर ब्रह्मा जी आपके पिता हैं और विष्णु आपके दादा हैं। तो आपके परदादा कौन हैं। शिव ने उत्तर दिया। मैं खुद ही अपना परदादा हूं।

इस कहानी को ध्यान से समझने पर, हमें पता लगेगा। कि इसमें एक चक्र सा बनता है। जिसकी न तो कोई शुरुआत है। न ही कोई अंत है। अगर हम Big Bang Theory को माने। तो हमारा ब्रह्मांड एक बिंदु से बना है। जिसमें अचानक ही विस्फोट हुआ। फिर हमारी सृष्टि का निर्माण हुआ।

 लेकिन इस बिंदु से पहले क्या था। इस बिंदु के पहले भी, तो कुछ रहा होगा। हमारा विज्ञान हमे बताता है। कि इस बिंदु से पहले कुछ नहीं था। एक निराकार, अंतहीन जिसे खत्म नहीं किया जा सकता। कुछ ऐसा ही था। दूसरे शब्दों में, कुछ घटित ही नहीं हुआ था। यह निराकार स्वरूप वाला, एक शून्य  था। जो किसी रहस्यमय तरीके से असीम क्षमता वाली ऊर्जा से भरा हुआ था। यानी वह शिव था।

शिव का भी यही अर्थ होता है। जिसे खत्म न किया जा सके। हमारी modern science ने भी इसे proof किया है। हर वस्तु कुछ नहीं से आई है। अंत में कुछ नहीं में मिल जाएगी। अर्थात हमारी सृष्टि की हर वस्तु शिव से ही आई है। अंत में शिव में ही मिल जाएगी। शिव पूरे ब्रह्मांड में है। जिनका कोई अंत नहीं है। दूसरे शब्दों में, शिव ही ब्रह्मांड हैं।

भगवान शिव, अपने आप मे रहस्यमय है। इन्हें हम भगवान शंकर, शिव, भोलेनाथ, महादेव, नीलकण्ठ जैसे बहुत से नामों से जानते है। भगवान शंकर की पूजा सारी सृष्टि में की जाती है। उन्हें देवों के देव भी कहा जाता है। उनका स्वर्ग छोड़कर कैलाश पर्वत पर आना,अजीबोगरीब वेषभूषा,शरीर पर साँपो का होना अपने मे बहुत से रहस्यों को समेटे हुए है। इसी प्रकार जाने : Bhagwan Shiv Ke 12 Jyotirling Ki Kathaउत्पत्ति कब और कैसे हुई।

भगवान शिव से जुड़े 5 रहस्य

भगवान शिव जी के जन्म का रहस्य
Mystery of Lord Shiva’s Birth

भगवान शिव को अनादि माना जाता है। जिसका अर्थ होता है। जिसकी न कोई शुरुआत है और न ही कोई अंत। जिनके न तो कोई माता-पिता है। न ही जन्म की कोई तिथि। इसीलिए शिव पुराण में, भगवान शिव को स्वयं-भू कहा गया है।

भगवान शिव की एक बहन असवारी भी थी। जिन्हें माता पार्वती के आग्रह करने पर, भगवान शिव ने अपनी माया से बनाया था। देवी असवारी का शरीर बहुत विचित्र था। उनकी त्वचा जानवरों जैसी थी। माता पार्वती ने बाद में, परेशान होकर,भगवान शिव से आग्रह किया कि वो उन्हें,उनके ससुराल भेज दे। इसी प्रकार जाने : कैलाश पर्वत की कहानी, इतिहास व रहस्यक्यों है कैलाश पर्वत अजेय।

कैलाश पर्वत का महत्व
Importance of Mount Kailash

आज से लगभग 15-20 हजार साल पहले, जब वाराह काल की शुरुआत हुई थी। तब पहली बार देवी-देवताओं ने पृथ्वी पर कदम रखे थे। यह समय हिम युग का था। सारी धरती बर्फ से ढकी हुई थी। तब भगवान शिव ने कैलाश को, अपना निवास बनाया था। जिस जगह कैलाश पर्वत स्थिति है। उस जगह को पुराण में धरती का केंद्र बताया गया है।

कैलाश के ठीक नीचे भगवान विष्णु का निवास माना जाता है। जिसे पाताल कहते है। कैलाश के ठीक ऊपर स्वर्ग है। जो ब्रह्मा जी का निवास स्थान है। धरती के इसी केंद्र से भगवान शिव, ब्रह्मा, विष्णु ने सृष्टि की रचना की शुरुआत की थी। वैज्ञानिकों ने भी माना है कि तिब्बत ही सबसे प्राचीन भूमि है।

क्यों होती है शिवलिंग की पूजा
Why is Shivlinga Worshiped

 भगवान शिव की आराधना में शिवलिंग का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि कुँआरी कन्या को शिवलिंग की पूजा करना वर्जित है। क्योंकि भगवान शिव हमेशा ज्ञान-ध्यान की अवस्था मे होते है। ऐसे में कुँआरी कन्या के द्वारा, उनका ध्यान भंग हो सकता है। वो उनके क्रोध का कारण बन सकती है।

हिन्दू धर्म के अनुसार,खण्डित मूर्ति का पूजन वर्जित माना जाता है। लेकिन खण्डित शिवलिंग चाहे, जितना भी टुटा क्यों न हो। उसे उसी प्रकार पूजा जा सकता है। केतकी के फूल से शिव की पूजा नही की जाती। एक कथा के अनुसार, केतकी के फूल को झूठ का प्रतीक माना जाता है।

शिव की पूजा बेलपत्र से की जाती है। लेकिन इसमें भी ध्यान रखा जाता है कि बिना पानी के बेलपत्र नही चढ़ाना चाहिए। भगवान शिव की पूजा में शँख का प्रयोग नहीं किया जाता। क्योंकि शिव जी ने शंखचूड़ नामक असुर का विनाश किया था। शँख को उसी का प्रतीक माना जाता है।

शंखचूड़ भगवान विष्णु का भक्त था। इसलिए उनकी पूजा में शँख का प्रयोग किया जाता है। न ही तुलसी चढ़ाई जाती है। जलन्धर नामक असुर की पत्नी वृन्दा के अंश से, तुलसी का जन्म हुआ था। बाद में भगवान विष्णु ने तुलसी से विवाह कर लिया था। इसी कारण तुलसी को शिव पर नही चढ़ाया जाता है।

इसी प्रकार, तिल को भी नही चढ़ाया जाता है। क्योंकि तिल को भगवान विष्णु के मैल से उतपन्न हुआ माना जाता है। इसी प्रकार जाने :  एक शब्द जिसमे छिपा है, आपकी हर समस्या का समाधान। ॐ का महत्व समझे

भगवान शिव जी के आभूषण व उनके महत्व
Lord Shiva – Ornaments and Their Importance

 भगवान शिव के आभूषण,अन्य देवताओं से भिन्न है। उनका अपना अलग महत्व भी है। शिव के गले मे विराजमान सर्प, वास्तव में नागों के दूसरे राजा वासुकी जी है। जिनका प्रयोग समुद्र मन्थन में किया गया था। जिन्हें नागों के पहले राजा, शेषनाग कहा जाता है।

 एक दंतकथा के अनुसार, भगवान शिव बासुकी से इतना प्रसन्न हुए। कि उन्होंने बासुकी को अपने आभूषण के रूप में गले मे रहने का वरदान दिया। शिव पुराण के अनुसार, एक बार राजा दक्ष ने चंद्रमा को नष्ट होने का श्राप दिया। तब उनके श्राप से बचने के लिये,चन्द्रमा ने शिव की तपस्या की।

 उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर,भगवान शिव ने उनकी रक्षा करते हुए। उन्हें अपनी जटाओं में रहने का वरदान दिया। शिव जी का डमरू, उनके साथ ही प्रकट हुआ माना जाता है। प्रारंभ में जब देवी सरस्वती प्रकट हुई। तो उन्होंने अपनी वीणा से ध्वनि को जन्म दिया। उनकी ध्वनि में संगीत व सुर नही थे।

तब शिव जी ने नृत्य करते हुए। 14 बार डमरू बजाया। इसी ध्वनि के नाद से ही, सँस्कृत के व्याकरण और वाणी की उत्तपत्ति हुई। डमरू के संगीत से ही छन्द व ताल का जन्म हुआ। संगीत के सात स्वर है। जो आते-जाते रहते है। उनके केंद्रीय स्वर नाद में ही है। शिव जी का डमरू नाद साधना का प्रतीक माना गया है। उनके डमरू को ब्रम्हा स्वरूप माना गया है।

शिव पुराण के अनुसार, शिव जी एक बार ब्रह्मांड भृमण के दौरान, एक जंगल मे जा पहुंचे। यह जंगल कई ऋषि-मुनियों का निवास था। उनके निर्वस्त्र होने के कारण, ऋषियों की पत्नी उनकी ओर आकर्षित होने लगी। तब ऋषियो ने शिव जी को न पहचानते हुए। उनके मार्ग में एक गड्डा खोद दिया। जिससे वो उसमे गिर जाए। फिर उनके ऊपर बाघ को छोड़ देंगे।

हुआ भी ऐसा ही, शिव जी गड्डे में गिर गए। लेकिन उन्होंने ऋषीयो की मनोदशा समझते हुए। बाघ को मारकर, उसकी खाल पहनकर बाहर निकले। जब ऋषियो ने उनको पहचाना। तो उन्होंने अपने कार्य के लिए उनसे क्षमा माँगी। इसी प्रकार जाने : सनातन धर्म का अर्थ व उत्पत्तिसनातन धर्म क्या है। Sanatan Dharm in Hindi।

भगवान शिव जी से जुड़े रोचक रहस्य
Lord Shiva – Mysterious Facts

भगवान शिव को त्रिनेत्रधारी व त्रिलोचन भी कहा जाता है। शिव जी के तीसरे नेत्र का खुलना। विनाशकारी माना जाता है। शिव के त्रिनेत्र तीन गुणों को दर्शाते हैं। उनका दायाँ नेत्र सदोगुण को, बायाँ नेत्र रजोगुण को दर्शाता है। तो वहीं मस्तक के ललाट पर स्थित तीसरा नेत्र तमोगुण को दर्शाता है।

ऐसा कहा जाता है कि यदि भगवान शिवजी ने अपनी तीसरी आँख खोल दी। तो सम्पूर्ण पृथ्वी का विनाश हो जाएगा। इसीलिए भगवान शिव को संहार का देव भी माना जाता है। शिव के इस तीसरे नेत्र से सत्य कभी भी नही छिप सकता। इसी कारण शिव परमब्रह्म भी कहलाये जाते है।

देवों और असुरों के बीच अक्सर युद्ध होते रहते थे। किसी भी संकट के समय देवता और राक्षस भगवान शिव को ही बुलाते थे। कई बार देवताओं व असुरों ने भगवान शिव के साथ युद्ध किया। लेकिन हर बार जीत शिव जी की ही हुई। अंत मे देवता व राक्षसों दोनों ने ही भगवान शिव को अपना आराध्य माना। इसी कारण भगवान शिव को देवाधिदेव महादेव कहा जाता है।

मानव स्वभाव की सबसे पहली गहरी समझ,भगवान शिव को ही है। इसी कारण उन्हें जगतगुरु भी कहा गया है। सबसे पहले योग की शिक्षा देने वाले, भगवान शिव ही है। इसी लिये उन्हें आदियोगी भी कहा गया है। शिव ने योग के विस्तार के लिए, सात ऋषियों को चुना था। जिन्हें उन्होंने योग के सात सूत्र बताये थे।

ये सप्तऋषि थे। जिन्होंने योग को पूरी दुनिया मे फैलाया था। बाद में पतञ्जलि ने इनको 200 सूत्रों में समेट कर योगशास्त्र की रचना की थी। सप्तर्षियों के बाद, परशुराम व रावण भी भगवान शिव के परम शिष्य माने जाते है।

भगवान शिवजी के पास अनेकों शस्त्र थे। उन्होंने इन सभी को अन्य देवताओं में बांट दिया था। अपने पास सिर्फ़ त्रिशूल को ही जगह दी। शिवजी के पास धनुष व चक्र भी थे। जिसका आविष्कार स्वयं उन्होंने किया था। श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र को सबसे शक्तिशाली माना जाता है। बहुत कम लोग ही जानते है कि इसे भी शिवजी ने ही बनाया था। जिसे भगवान विष्णु को दे दिया।

बाद में यह माता पार्वती, फिर परशुराम को दे दिया गया। अंत मे परशुराम से ही यह श्रीकृष्ण तक पहुंचा। शिवजी ने अपने पास सिर्फ त्रिशूल ही रखा। जो सृष्टि के आरंभ में, ब्रह्मनाद के समय उनके साथ ही प्रकट हुआ था। भगवान शिवजी का त्रिशूल रज, तम व सद्गुणों के साथ प्रकट हुआ था। जो सृष्टि के संतुलन में सामंजस्य बनाये रखते है।

भगवान शिवजी का नाम अपने आप में, एक महाशक्ति है। शिवजी का मंत्र ऊँ नमः शिवाय को महामन्त्र माना गया है। इसमें पाँच मन्त्रो का समावेश होता है। इसके जप व सुनने मात्र से ही, सम्पूर्ण तंत्र शुद्व होता है। इसी प्रकार जाने : भगवान विष्णु की उत्पत्ति का रहस्यMystery of God Vishnu।

भगवान शिव के 108 नाम व उनका अर्थ
108 Names of Lord Shiva

भगवान शिव जी के नाम व अर्थ
शिव के नामनाम का अर्थ
महेश्वरमाया के अधीश्वर 
शम्भूआनन्द स्वरूप वाले
पिनाकीपिनाक धनुष धारण करने वाले
शशिशेखरचंद्रमा धारण करने वाले
वामदेवअत्यंत सुंदर स्वरूप वाले
विरुपाक्षविचित्र अथवा तीन आंख वाले
कपर्दीजटा धारण करने वाले
नीललोहितनीले व लाल रंग वाले
शंकरसबका कल्याण करने वाले
शूलपाणीहाथ मे त्रिशूल धारण करने वाले
खटवांगीखटिया का एक पाया रखने वाले
विष्णुवल्लभभगवान विष्णु के अति प्रिय
शिपिविष्टसितुहा में प्रवेश करने वाले
अंबिका नाथदेवी भगवती के पति
श्रीकंठसुंदर कंठ वाले
भक्तवत्सलभक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले
भवसंसार के रूप में प्रकट होने वाले वाले
शर्वकष्टों को नष्ट करने वाले
त्रिलोकेशतीनों लोकों के स्वामी
शितिकंठसफेद कंठ वाले
उग्रअत्यंत उग्र रूप वाले
शिवाप्रियपार्वती के प्रिय
कपालीकपाल धारण करने वाले
कामारीकामदेव के शत्रु
सुरसूदनअंधक दैत्य को मारने वाले
गंगाधरगंगा को जटाओं में धारण करने वाले
ललाटाक्षमाथे पर आंख धारण किये हुए
महाकालकालों के भी काल
कृपानिधिकरुणा की खान
भीमभयंकर या रुद्र रूप वाले
परशूहस्तहाथ मे फरसा धारण करने वाले
मृगपाणीहाथ में हिरण धारण करने वाले
जटाधरजटा रखने वाले
कैलाशवासीकैलाश पर निवास करने वाले
कवचीकवच धारण करने वाले
कठोरअत्यंत मजबूत देह वाले
त्रिपुरान्तकत्रिपुरासुर का विनाश करने वाले
वृसांकबैल चिन्ह की ध्वजा वाले
वृषभारूढ़बैल पर सवार होने वाले
भस्मोदधूलितविग्रहभस्म लगाने वाले
सामप्रियसामगान से प्रेम करने वाले
स्वरमयीसातों स्वरों में निवास करने वाले
त्रयीमूर्तिवेद रूपी विग्रह करने वाले
अनीश्वरजो स्वयं ही सबके स्वामी है
सर्वज्ञसब कुछ जानने वाले
परमात्मासब आत्माओं में सर्वोच्च
सोमसूर्याग्नि लोचनचंद्र, सूर्य व अग्निरूपी आंख वाले
हविआहुति रूपी द्रव्य वाले
यज्ञमययज्ञ स्वरूप वाले
सोमउमा के सहित रूप वाले
पंचवक्त्रपांच मुख वाले
सदाशिवनित्य कल्याण रूप वाले
विश्वेश्वरविश्व के ईश्वर
वीरभद्रवीर तथा शांत स्वरूप वाले
गणनाथगणों के स्वामी
प्रजापतिप्रजा का पालन पोषण करने वाले
हिरण्यरेतास्वर्ण तेज वाले 
दुर्धर्षकिसी से न हारने वाले
गिरीशपर्वतों के स्वामी
गिरिश्वरकैलाश पर्वत पर रहने वाले
अनघपापरहित या पुण्य आत्मा
भुजंगभूषणसांपो व नागों के आभूषण धारण करने वाले
भर्गपापों का नाश करने वाले
गिरिप्रियपर्वत को प्रेम करने वाले
कृतिवासागजचर्म पहनने वाले
पुरारातिपुरों का नाश करने वाले
भगवानसर्वसमर्थ ऐश्वर्य संपन्न
प्रमथाधिपप्रथम गणों के अधिपति
मुत्युञ्जयमुत्यु को जीतने वाले
सूक्ष्मतनुसूक्ष्म शरीर वाले
जगदव्यापीजगत में व्याप्त होकर रहने वाले
अव्यक्तइंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले
सहस्राक्षअनन्त आँख वाले
सहस्त्रपादअनन्त पैर वाले
अपवर्गप्रदमोक्ष देने वाले
अनन्तदेशकाल वस्तु रूपी परिच्छेद से रहित
तारकतारने वाले
परमेश्वरप्रथम ईश्वर
गिरिधन्वामेरु पर्वत को धनुष बनाने वाले
शिवकल्याण स्वरूप
हरपापों को हरने वाले
जगतगुरूजगत के गुरु
व्योमकेशआकाश रूपी बाल वाले
महासेंनजनककार्तिकेय के पिता
चारुविक्रमसुंदर पराक्रम वाले
रुद्रउग्र रूप वाले
भूतपतिभूत प्रेत व पंचभूतों के स्वामी
स्थाणुस्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले
अहिबृद्धन्यकुंडलिनी धारण करने वाले
दिगम्बरनग्न, आकाश रूपी वस्त्र वाले
अष्टमूर्तिआठ रूप वाले
अनेकात्माअनेक आत्मा वाले
सात्विकसत्व गुण वाले
शुद्वविग्रहदिव्यमूर्ति वाले
शाश्वतनित्य रहने वाले
खण्डपरशुटूटा हुआ फरसा धारण करने वाले
अजजन्म रहित
पाशविमोचनबंधन से छुड़ाने वाले
म्रडसुखस्वरूप वाले
पशुपतिपशुओं के स्वामी
देवस्वयं प्रकाश रूप
महादेवदेवों के देव
अव्ययखर्च होने पर भी न घटने वाले
हरिविष्णु समरूपी
पुष्दन्तभितपूषा के दांत उखाड़ने वाले
अव्यग्रव्यथित न होने पर
दक्षाध्वरहरदक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले
भगनेत्रभीदभग देवता की आंख फोड़ने वाले

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