Bhagwan Vishnu | भगवान विष्णु के रहस्य | Bhagwan Vishnu Ke Naam

Bhagwan Vishnu – भगवान विष्णु के रहस्य, उत्पत्ति कैसे हुई, नाग शय्या, गरुण व सुदर्शन चक्र, 4 महीने तक सोने का रहस्य।

Bhagwan Vishnu
भगवान विष्णु के रहस्य – उत्पत्ति कैसे हुई

हमारी पृथ्वी व खूबसूरत कुदरत, लाखों रंग व छटाएं। नाना प्रकार की वनस्पतियां व जीव। मन को मोह लेने वाले, ऐसे दृश्य जो कहीं और न हो। इन सबके बीच हंसता खिलखिलाता जीवन। जिनमें लाखों-करोड़ों धड़कने, एक साथ धड़ककर जीवन को महसूस करती है। वहीं दूसरी ओर यह ब्रह्मांड, जिसमें मौजूद हैं। अनगिनत रंग-बिरंगे तारे, ग्रह व नक्षत्र।

ऐसे हजारों दृश्य जो भौतिकी के नियमों को बहुत की अनदेखा करते हैं। इन हैरान कर देने वाले और कल्पना से परे ब्रह्मांड के रचयिता। हमारी पौराणिक कथाओं के अनुसार ब्रह्मा जी हैं। सृष्टि के पालनकर्ता विष्णु जी हैं। इस समस्त कायनात की रक्षा करने वाले, देवों के देव महादेव हैं। ईश्वर के इन तीनों रूपों को, हमारे ग्रंथों में त्रिदेव कहा गया है। जिनका हमारे धार्मिक ग्रंथों में विस्तार वर्णन मिलता है।

हिंदू धर्म में भगवान विष्णु को त्रिदेवों में स्थान प्राप्त है। हिंदू धार्मिक ग्रंथों की मान्यताओं के आधार पर, धरती पर बढ़ते पापों को खत्म करने के लिए। भगवान स्वयं संसार में, अवतार के रूप में जन्म लेते हैं। लेकिन उन भगवान विष्णु की उत्पत्ति कैसे हुई। इस बारे में बहुत रहस्य है।

कुछ धार्मिक मान्यताओं के आधार पर, भगवान विष्णु का न तो कोई आदि है। और न ही अंत। वह समय के पहले से उपस्थित हैं। वह समय के बाद भी रहेंगे। पुराणों और कथाओं में भगवान विष्णु के जन्म व उत्पत्ति को लेकर कई मत प्रचलित हैं।

भगवान विष्णु को हिंदू धर्म में, इस सृष्टि का पालनहार कहा जाता है। वह समय-समय पर, अधर्म का नाश करने के लिए। पृथ्वी पर अवतरित होते रहते हैं। अगर वेदों का अध्ययन किया जाए। तो भगवान विष्णु को समझना इतना भी आसान नहीं है।

हम सभी जान जानते हैं कि अनंत शक्ति के तीन रूप हैं – ब्रह्मा, विष्णु और महेश। परमसत्य परमात्मा 10वें आयाम में निवास करते है। जो बिना आकर, बिना रंग-रूप के है। उन्हें सदाशिव, सदाविष्णु या अनंत शक्ति भी कहा जाता है। इसी प्रकार जाने : भगवान शिव जी से जुड़े रहस्यMysterious Facts of Lord Shiva।

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भगवान विष्णु की उत्पत्ति की कहानी

 शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने ही विष्णु को उत्पन्न किया है। आदिकाल में, भगवान शिव और माता आदिशक्ति वार्तालाप कर रहे थे। तब भगवान सदाशिव ने, माता आदिशक्ति से कहा। हे देवी! मैं चाहता हूं कि इस भूमंडल पर कोई दूसरा व्यक्ति भी हो। तब माता दुर्गा ने कहा। हे प्रभु! आपकी सोच में, संशय कैसा।

आप सृष्टि के पालनहार हैं। आपने सृष्टि की भलाई के लिए ही ऐसा सोचा होगा। उस समय भगवान सदाशिव ने माता आदिशक्ति के कथन को सुनकर। अपने वाम अंग पर स्पर्श किया। जिससे एक पुरुष की उत्पत्ति हुई। उसके तेज से संपूर्ण ब्रह्मांड प्रकाशमय हो गया। उस शक्ति के प्रभाव से, भगवान विष्णु की उत्पत्ति हुई।

वह अद्वितीय थे। कमल जैसे नयन,  चार भुजा वाले और कौस्तुभ मणि से सुशोभित थे। सर्वत्र व्यापत होने के कारण, उनका नाम विष्णु पड़ा। तब भगवान सदाशिव ने कहा। कि लोगों को सुख देने के लिए ही, मैंने तुमको उत्पन्न किया है। कार्य साधना के लिए, तुम तप करो। लेकिन भगवान शंकर के दर्शन नहीं हुए। फिर उन्होंने तप किया।

उनके शरीर से तमाम जल की धाराएं निकली। हर तरफ पानी-पानी हो गया। तभी उनका नाम नारायण पड़ा। उन्हीं से सभी तत्वों की उत्पत्ति हुई। कथानुसार सबसे पहले प्रकृति की उत्पत्ति हुई। फिर 3 गुण सत, रज और तम आए। उसके बाद  शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध की उत्पत्ति हुई। फिर पंचभूत जल, आकाश, पृथ्वी, अग्नि और वायु की उत्पत्ति हुई।

वेदों में सृष्टि की रचना करने वाले को विश्वकर्मा कहा गया है। एक ऐसा देव जो कलाकृतियां बनाने में निपुण है। जिसकी नाभि पर हिरण्यगर्भा नाम का सोने का अंडा था। इस सोने के अंडे से पूरे तत्वों व सृष्टि की रचना हुई। लेकिन धीरे-धीरे विश्वकर्मा, एक विशेषण बन गए। फिर विश्वकर्मा की जगह, यह उपाधि भगवान विष्णु को दी गई।

भगवान विष्णु की नाभि में जो हिरण्यगर्भा नाम का अंडा मौजूद था। वह ब्रह्मा में परिवर्तित हो गया। एक तरफ वेदों में जहाँ भगवान विष्णु का जिक्र बहुत कम है। वही वेदव्यास जी ने विष्णु पुराण, गरुड़ पुराण और भागवत पुराण आदि में भगवान विष्णु का वर्णन किया है। उन्होंने भगवान विष्णु को 3 स्वरूपों में दिखाया है।

विष्णु का एक स्वरूप महाविष्णु है। इस स्वरूप में सृष्टि का सारा तत्व विष्णु ही है। न सिर्फ इस ब्रह्मांड का, बल्कि सारे ब्रह्मांड का, सारा तत्व भगवान विष्णु है। इस स्वरूप को महाविष्णु कहा गया है। भगवान विष्णु का दूसरा स्वरूप, गर्भत्क्षया विष्णु है। जिसमें सारे तत्वों को अलग-अलग धातु, अलग-अलग पदार्थों में भिन्न प्रकार से जब गढ़ा गया।

 तब इस गढ़ने की ताकत को, गर्भोदकशायी विष्णु कहा गया। भगवान विष्णु का तीसरा स्वरूप क्षीरोदकशायी विष्णु है। इस स्वरूप में, भगवान विष्णु सभी तत्वों के अंदर जाते हैं। उनके अंदर प्राण का संचार करते हैं। यानी विष्णु matter और energy दोनों ही हैं। विष्णु पुराण में विष्णु को काल भी कहा गया है। समय का प्रतीक भी विष्णु ही है। विष्णु को समझना आसान नहीं है। इसी प्रकार जाने : कैलाश पर्वत की कहानी, इतिहास व रहस्यक्यों है कैलाश पर्वत अजेय।

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कौन बड़ा – भगवान शिव या भगवान विष्णु

परमात्मा अनंत हैं। केवल एक रूप तक, वह सीमित नहीं। भगवान शिव और भगवान विष्णु एक ही परब्रह्म परमात्मा के दो रूप हैं। पुराणों में उस एक परमात्मा के, अलग-अलग रूपों को श्रेष्ठ बताया गया है। ताकि हम उनकी अलग-अलग रूपों में, की गई लीला के बारे में जान सके।

एक ही परमात्मा है। जो अलग-अलग रूपों में वास करते हैं। यह हमारे शास्त्र में वर्णित है। महाभारत का हरिवंश पर्व कहता है –

रुद्रस्य: परमो विष्णुर्विष्णोश्च परम: शिव:।

एक एव द्विधाभूतो लोके चरति नित्य‍श:।।

अर्थात भगवान शिव के सर्वोच्च स्वामी, भगवान श्री हरि विष्णु हैं। भगवान श्री हरि विष्णु के सर्वोच्च स्वामी रूद्र अर्थात भगवान शिव हैं। एक ही ईश्वर संसार में सदैव दो रूपों में विचरण करते हैं महाभारत के हरिवंश पर्व में यह भी लिखा गया है।

शिवाय विष्णुरूपाय विष्णवे शिवरूपीणे ।

जन्मान्तरं न पश्यि तेन तौ दिशत: शिवम्

शिवाय विशनुरुपया विषवे शिवरूपीने ।

यथअंतरम न पश्यमी तेना तौ दिशातः शिवम् ।।

 इसका अर्थ है कि भगवान शिव, विष्णु के रूप में हैं। भगवान विष्णु, शिव के रूप में हैं। इनमें कोई अंतर नहीं है। दोनों ही रूप शुभ फल प्रदान करते हैं। इस प्रकार कुछ लोग अज्ञानता वश, परमात्मा के दो रूपों में भेदभाव रखते हैं। इसी अज्ञानता को दूर करते हुए। इसे दो उदाहरणों से समझते हैं। जो हमारे शास्त्रों में वर्णित हैं।

पहला उदाहरण – ब्रह्मा जी के पुत्र दक्ष ने, मां आदिशक्ति भवानी को प्रसन्न किया। फिर वरदान के रूप में, उनसे पुत्री रूप में जन्म लेने को कहा। मां भवानी ने ऐसा ही किया। सती अर्थात मां भवानी, जो पार्वती के अवतार में थी। उन्होंने भगवान शिव से विवाह किया। दक्ष को भगवान शिव से नफरत थी। क्योंकि भगवान शिव सन्यासी की तरह रहते थे।

 इसलिए दक्ष ने भगवान शिव के बारे में, उल्टी-सीधी बातें कहीं। इस कारण क्रोधित होकर मां सती ने, अग्नि में कूदकर देह त्याग दिया। शिव जी वैसे तो भोलेनाथ हैं। लेकिन क्रोधित होने पर, वह महारूद्र हो जाते हैं। दक्ष भगवान विष्णु के भक्त थे। उसका सोचना था कि भगवान विष्णु और उनकी विशाल सेना के होते हुए। उसका कुछ नहीं होगा।

भगवान शिव ने तांडव नृत्य किया। अपनी जटाओं से एक बाल निकाला। उसे जमीन पर पटक दिया। जिससे उनके प्रतिरूप वीरभद्र प्रकट हुए। वीरभद्र ने दक्ष की पूरी सेना का संहार कर दिया। तब भगवान विष्णु ने भी, अपने भक्त की रक्षा का प्रयत्न किया। लेकिन वीरभद्र नहीं रुके। भगवान विष्णु भी वहां से चले गए। क्योंकि अगर वह वीरभद्र से लड़ते। तो सृष्टि का अंत हो जाता है।

क्योंकि भगवान श्री हरि विष्णु व भगवान शिव के रूप वीरभद्र, दोनों ही परमात्मा के रूप हैं। वीरभद्र ने दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया। हालांकि भगवान शिव, भोलेनाथ हैं। इसलिए उन्होंने दक्ष को एक और अवसर प्रदान किया। उन्हें पुनः जीवित कर दिया। दक्ष को समझ में आ गया। कि वह अहंकारी हो गए थे। वह शिवद्रोही हो गए थे। फिर उन्होंने आगे चलकर, भगवान शिव की भक्ति करना शुरू कर दी। वह समझ गए कि शिव और विष्णु एक ही है।

दूसरा उदाहरण – जैसा कि हम सभी को ज्ञात है। रावण, शिव का परम भक्त था। लेकिन वह भगवान श्री हरि विष्णु से, लड़ाई कर बैठा। भगवान श्रीराम जी की पत्नी सीता, जो लक्ष्मी का अवतार थी। उनका हरणकर, लंका में ले आया। जिस प्रकार दक्ष ने, भगवान शिव के लिए अपशब्द बोले थे।

उसी प्रकार रावण ने भी भगवान श्री हरि विष्णु के लिए, अपशब्द कहे थे। राम और रावण का भीषण युद्ध हुआ। इसमें प्रभु श्री राम ने रावण का वध कर दिया। रावण और दक्ष में, केवल यह अंतर था। कि रावण मृत्यु से नहीं डरता था। वह ज्यादा अहंकारी था। दक्ष को मृत्यु का डर था। पुनर्जीवित होने के बाद, वह सुधर गए थे।

 यह दो उदाहरण हमारे शास्त्रों में वर्णित हैं। अगर आप शिवभक्त होकर, भगवान विष्णु का तिरस्कार करते हो। तो आप सच्चे शिवभक्त नहीं। या फिर आप विष्णु भक्त होकर, शिव का अपमान करते हो। तो आप सच्चे विष्णु भक्त नहीं हो सकते। फिर से रामचरितमानस का एक श्लोक है-

 शिव द्रोही मम दास कहावा

 सो नर मोहि सपनेहु नहि पावा।

अर्थात जो शिव का विरोध करके, मुझे प्राप्त करना चाहता है। वह सपने में भी मुझे प्राप्त नहीं कर सकता। यह भगवान श्री रामचंद्र जी कहते हैं। शिव महापुराण की रूद्र संहिता में लिखा गया है। कि भगवान श्री हरि विष्णु सभी व्यक्तियों में श्रेष्ठ हैं। उनसे घृणा करने वाला निश्चित रूप से नर्क में जाएगा। एक-दूसरे को सम्मान दिए, बगैर किसी की भी भक्ति पूर्ण नहीं होगी। इसी प्रकार जाने : 12 jyotirling | 12 jyotirling ke naam | 12 ज्योतिर्लिंग के नाम और स्थान

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भगवान विष्णु के नारायण व हरी नाम का रहस्य

 भगवान विष्णु की पूजा, हिंदू धर्म में सबसे ज्यादा होती है। कोई उन्हें विष्णु के रूप में पूजता है। तो कोई उन्हें कृष्ण व राम के रूप में पूजता है। धर्म की रक्षा के लिए, भगवान विष्णु ने कई अवतार धारण किए। पालनहार भगवान विष्णु के सबसे बड़े भक्त नारद मुनि, उन्हें नारायण के नाम से बुलाते हैं।

इसके अलावा उन्हें भगवान अनंत,  सत्यनारायण, लक्ष्मी नारायण, शेष नारायण इन सभी नामों से भी बुलाया जाता है। मूल बात यह है कि इन सभी में नारायण जुड़ा हुआ है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, जल के देवता वरुण का जन्म, भगवान विष्णु के चरणों से माना जाता है। इसके साथ ही देव नदी गंगा, जो कि भगवान विष्णु के चरणों से निकली हैं।

इसलिए उन्हें विश्नुपगा या विष्णुपदी के नाम से भी पुकारते करते हैं। भगवान विष्णु का जल में वास है। भगवान विष्णु का  शयन समुद्र में बताया गया है। इसी कारण इनका नाम, जल के आधार पर नारायण पड़ा। अतः नारायण का अर्थ जल में रहने वाले देवता है।

भगवान विष्णु का हरि नाम इसलिए पड़ा। क्योंकि हरि शब्द का अर्थ है। जो कि मन को हर ले। अपनी मनमोहक छवि से,  भगवान विष्णु मनुष्य के सभी पापों को हर लेते हैं। इसलिए भी उन्हें हरि के नाम से बुलाया जाता है।

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भगवान विष्णु के पास सुदर्शन चक्र कहाँ से आया

भगवान विष्णु के अस्त्र-शस्त्रों में सुदर्शन चक्र को, सबसे ज्यादा प्रभावशाली माना गया है। यह तीनों लोकों में सबसे ज्यादा शक्तिशाली माना गया है। सुदर्शन चक्र की मान्यता है कि इसका एक बार प्रयोग करने के बाद। यह उस कार्य को पूरा करने के बाद ही वापस आता है। क्या आप जानते हैं कि यह शस्त्र विष्णु भगवान के पास कहां से आया।

पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु, भगवान महादेव की पूजा के लिए काशी गए थे। भगवान विष्णु ने अपनी थकान को मिटाने के लिए, मणिकर्णिका घाट पर स्नान किया। फिर उन्होंने भगवान शिव को 1000 कमल पुष्पों को चढ़ाने का संकल्प लिया। भगवान शिव ने विष्णु की परीक्षा लेने के लिए, एक कमल पुष्प को कम कर दिया।

लेकिन विष्णु जी की भक्ति, इतनी सच्ची थी। उन्होंने उस एक कमल की जगह, अपनी आंखें चढ़ाने का विचार किया। भगवान विष्णु की आंखें कमल से भी अधिक सुंदर हैं। इसीलिए उन्हें कमलनयन भी कहा जाता है। भगवान विष्णु ने, जैसे ही अपनी आंखें चढ़ाने के लिए कदम बढ़ाया। वैसे ही भगवान शिव प्रकट हुए। उन्होंने कहा कि तुम मेरे सच्चे भक्त हो। तुम्हारे जैसा कोई नहीं हो सकता।

तब भगवान महादेव ने, विष्णु को सबसे शक्तिशाली सुदर्शन चक्र प्रदान किया। भगवान शिव ने कहा, इसकी बराबरी करने वाला तीनों लोकों में कोई नहीं होगा। लेकिन इसका प्रयोग तुम्हें संभलकर करना होगा। इसका एक बार वार, पूरी सृष्टि के लिए हानिकारक हो सकता है। इस चक्र के द्वारा भगवान विष्णु ने, बहुत से दैत्यों का वध किया। वही देवताओं की रक्षा की थी। इस तरह इसके बाद से, सुदर्शन चक्र सदैव भगवान विष्णु के पास ही है। इसी प्रकार जाने : भगवान विष्णु के दशावतार की कथाBhagwan Vishnu Ke 10 avatar in Hindi।

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भगवान विष्णु का वाहन गरुण कौन था

गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन हैं। इनका हिंदू धर्म के साथ ही, बौद्ध धर्म में भी अत्यधिक महत्व हैं। माना जाता है कि गरुण की एक ऐसी प्रजाति थी। जो बुद्धिमान मानी जाती थी। जिनका काम संदेश और व्यक्तियों को, इधर से उधर ले जाना होता था। कहा जाता है कि यह इतना विशालकाय पक्षी था। जो अपनी चोंच से हाथी तक को उठाकर उड़ जाता था। पक्षियों में गरुण को सबसे श्रेष्ठ माना गया है।

यह समझदार और बुद्धिमान होने के साथ-साथ, तेजी से उड़ने की क्षमता रखता है। गरुण का जन्म सतयुग में हुआ था। यह लेकिन यह त्रेता और द्वापर युग में भी देखे गए थे। दक्ष प्रजापति की पुत्री विनता या वृंदा का विवाह, कश्यप ऋषि के साथ हुआ।

विनता ने प्रसव के दौरान दो अंडे दिए। एक से अरुण और दूसरे से गरुड़ का जन्म हुआ। अरुण तो भगवान सूर्य के रथ के सारथी बन गए। जबकि गरुड़ ने भगवान विष्णु का वाहन बनना स्वीकार किया।

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भगवान विष्णु के 4 माह तक सोने का रहस्य

हम सभी जानते हैं कि भगवान विष्णु साल के 4 महीने के लिए सो जाते हैं। भगवान विष्णु हर साल आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन। 4 महीने के लिए सो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार, इस समय कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। पुराणों के अनुसार, बली नाम के राजा ने तीनों लोकों पर कब्जा कर लिया था।

इसलिए भगवान इंद्रदेव घबराकर, भगवान विष्णु के पास गए। देवराज इंद्र की विनती पर, भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया। उन्होंने राजा बलि से 3 पग भूमि दान में मांगी। बली ने उन्हें तीन कदम भूमि देने का वचन दे दिया। लेकिन भगवान वामन ने, विशाल रूप धारण किया। दो कदम में ही धरती और आकाश नाप लिया। उनके तीसरे कदम के लिए, बलि ने अपना सर आगे कर दिया।

इस तरह भगवान विष्णु ने बली का घमंड तोड़ा। साथ ही तीनों लोकों को बलि से मुक्त करवा दिया। राजा बलि की दानशीलता व भक्तिभाव को देखकर, भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने बली से वरदान मांगने के लिए कहा। तब बली ने वरदान मांगा। कि आप मेरे साथ पाताल लोक चलें। हमेशा वही निवास करें। तब भगवान विष्णु वरदान देकर, बली के साथ पाताल चले गए।

यह देखकर देवी लक्ष्मी परेशान हो उठी। देवी लक्ष्मी ने पाताल लोक से भगवान विष्णु को वापस लाने के लिए। एक गरीब स्त्री का वेश धारण किया। उन्होंने राजा बलि को राखी बांधकर, अपना भाई बना लिया। बदले में भगवान विष्णु को पाताल से मुक्त करने का वचन मांग लिया। भगवान विष्णु अपने भक्तों को निराश नहीं करना चाहते थे।

इसलिए उन्होंने बली को वरदान दिया। वह हर साल आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष एकादशी से कीर्ति शुक्ल एकादशी तक पाताल लोक में रहेंगे। यही वजह है कि भगवान विष्णु इन 4 महीनों में, योग निद्रा में रहते हैं। उनका वामन अंश पाताल लोक में रहता है। इसी प्रकार जाने : जन्म से मृत्यु तक के सोलह संस्कार

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भगवान विष्णु साँपो के बिस्तर पर क्यों सोते है

हिंदू धर्म के अनुसार, शेषनाग भगवान विष्णु की ऊर्जा का प्रतीक है। शेषनाग ने अपनी कुंडली में, सभी ग्रहों को पकड़ रखा है। वे भगवान विष्णु के मंत्रों का उच्चारण करते रहते हैं। शेषनाग भगवान विष्णु के रक्षक भी हैं। भगवान विष्णु और शेषनाग के बीच का संबंध शाश्वत है।

विष्णु भगवान को शेषनाग पर शयन करने से, खुद की ऊर्जा को एकत्रित करने में मदद मिलती है। इसी वजह से, वह अपने विचारों को उचित रूप से कार्यान्वित कर पाते हैं। पुराणों में लिखा है। भगवान विष्णु का यह रूप समय का मार्गदर्शक है। इस अवतार में, वह धरती पर बढ़े हुए, पाप का विनाश करते हैं।

इसके साथ ही शेषनाग पर लेटे रहने से, भगवान विष्णु को ग्रहों और नक्षत्रों पर नियंत्रण करने में मदद मिलती है। शेषनाग देव स्वरूप हैं। इनका स्वरूप अन्य दैवीय शक्तियों की भांति सूक्ष्म है। इसलिए यह मानना कि शेषनाग भौतिक रूप से पृथ्वी को धारण किए हुए दिखाई देंगे। जोकि असंभव है।

Bhagwan Vishnu Ke Naam
भगवान विष्णु के 108 नाम

भगवान विष्णु के 108 नाम
ऊँ श्री विष्णवे नम:ऊँ श्री परमात्मने नम:
ऊँ श्री विराट पुरुषाय नम:ऊँ श्री क्षेत्र क्षेत्राज्ञाय नम:
ऊँ श्री केशवाय नम:ऊँ श्री पुरुषोत्तमाय नम:
ऊँ श्री ईश्वराय नम:ऊँ श्री हृषीकेशाय नम:
ऊँ श्री पद्मनाभाय नम:ऊँ श्री विश्वकर्मणे नम:
ऊँ श्री कृष्णाय नम:ऊँ श्री प्रजापतये नम:
ऊँ श्री हिरण्यगर्भाय नम:ऊँ श्री सुरेशाय नम:
ऊँ श्री सर्वदर्शनाय नम:ऊँ श्री सर्वेश्वराय नम:
ऊँ श्री अच्युताय नम:ऊँ श्री वासुदेवाय नम:
ऊँ श्री पुण्डरीक्षाय नम:ऊँ श्री नर-नारायणा नम:
ऊँ श्री जनार्दनाय नम:ऊँ  श्री लोकाध्यक्षाय नम:
ऊँ श्री चतुर्भुजाय नम:ऊँ श्री धर्माध्यक्षाय नम:
ऊँ श्री उपेन्द्राय नम:ऊँ श्री माधवाय नम:
ऊँ श्री महाबलाय नम:ऊँ श्री गोविन्दाय नम:
ऊँ श्री प्रजापतये नम:ऊँ श्री विश्वातमने नम:
ऊँ श्री सहस्त्राक्षाय नम:ऊँ श्री नारायणाय नम:
ऊँ श्री सिद्ध संकल्पयाय नम:ऊँ श्री महेन्द्राय नम:
ऊँ श्री वामनाय नम:ऊँ श्री अनन्तजिते नम:
ऊँ श्री महीधराय नम:ऊँ श्री गरुडध्वजाय नम:
ऊँ श्री दु:स्वपननाशनाय नम:ऊँ श्री भूभवे नम:
ऊँ श्री प्राणदाय नम:ऊँ श्री कमलनयनाय नम:
ऊँ श्री देवकी नन्दनाय नम:ऊँ श्री जगतगुरूवे नम:
ऊँ श्री शंख भृते नम:ऊँ श्री सनातन नम:
ऊँ श्री सुरेशाय नम:ऊँ श्री सच्चिदानन्दाय नम:
ऊँ श्री द्वारकानाथाय नम:ऊँ श्री दानवेन्द्र विनाशकाय नम:
ऊँ श्री दयानिधि नम:ऊँ श्री एकातम्ने नम:
ऊँ श्री शत्रुजिते नम:ऊँ श्री घनश्यामाय नम:
ऊँ श्री लोकाध्यक्षाय नम:ऊँ श्री जरा-मरण-वर्जिताय नम:
ऊँ श्री सर्वयज्ञफलप्रदाय नम:ऊँ श्री यशोदानन्दनयाय नम:
ऊँ श्री विराटपुरुषाय नम:ऊँ श्री परमधार्मिकाय नम:
ऊँ श्री गरुडध्वजाय नम:ऊँ श्री प्रभवे नम:
ऊँ श्री लक्ष्मीकान्ताजाय नम:ऊँ श्री गगनसदृश्यमाय नम:
ऊँ श्री वामनाय नम:ऊँ श्री हंसाय नम:
ऊँ श्री वयासाय नम:ऊँ श्री प्रकटाय नम:

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