Mahadevi Verma ka Jivan Parichay | महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

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वे मुस्काते फूल, नहीं

जिनको आता है मुर्झाना,

वे तारों के दीप, नहीं

जिनको भाता है बुझ जाना;

वे नीलम के मेघ, नहीं

जिनको है घुल जाने की चाह

वह अनन्त रितुराज,नहीं

जिसने देखी जाने की राह

वे सूने से नयन,नहीं

जिनमें बनते आँसू मोती,

वह प्राणों की सेज,नही

जिसमें बेसुध पीड़ा सोती;

ऐसा तेरा लोक, वेदना

नहीं,नहीं जिसमें अवसाद,

जलना जाना नहीं, नहीं

जिसने जाना मिटने का स्वाद!

क्या अमरों का लोक मिलेगा

तेरी करुणा का उपहार?

रहने दो हे देव! अरे

यह मेरा मिटने का अधिकार!

सकारात्मकता से ओतप्रोत, यह पंक्तियां निश्चित ही, एक ऐसी शख्सियत की हो सकती हैं। जिन्होंने जीवन की चुनौतियों के आगे, कभी सर नहीं झुकाया। हिंदी साहित्य का एक ऐसा नाम। एक ऐसी शख्सियत। जिनके बिना हिंदी साहित्य की चर्चा अधूरी  ही रह जायेगी।

बीसवीं सदी के हिंदी साहित्य की सर्वाधिक प्रतिष्ठित कवियत्री महादेवी वर्मा हैं। एक प्रखर विचारक, महान शिक्षाविद, निर्भीक स्वतंत्रता सेनानी और निष्ठावान समाजसेवी भी थी। शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय महिला साहित्यकार के रूप में, वे जीवनभर सम्मानित रही। वर्ष 2007 उनकी जन्म शताब्दी के रूप में, गरिमापूर्वक मनाया गया।

इलाहाबाद के अशोकनगर में उनका घर, आज भी उनकी राह देखता है। इस छोटे से घर में, उनके साथ ही रहे। मोर, गाय, हिरण आदि न जाने कितने पशु-पक्षी थे। जिन्हें वे बड़े दुलार से पालती रही। उतना ही स्नेह, पेड़-पौधों को भी दिया। वह अपने हाथों से उन्हें सींचती और देखभाल करती थी।

आज भी महादेवी वर्मा की मौजूदगी का एहसास, यहाँ के वातावरण में कुछ यू समाया है। मानो वह यही कही है। छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, जयशंकर प्रसाद और सुमित्रानंदन पंत के साथ, महादेवी वर्मा का नाम भी शामिल है। इसी प्रकार जाने : कृष्ण प्रेम दीवानी मीरा बाई का जीवन परिचय। मीरा बाई का इतिहास।

Mahadevi Verma Ka Jivan Parichay

Mahadevi Verma – Ek Nazar

महादेवी वर्मा 
आधुनिक युग की मीराबाई
पूरा नाममहादेवी वर्मा

उपनाम
• आधुनिक मीरा 
• हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती
जन्मतिथि26 मार्च 1907
जन्म स्थानफर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश
पितागोविंद सहाय वर्मा
माताहेम रानी देवी
पतिडॉक्टर स्वरूप नारायण वर्मा
प्रारंभिक शिक्षा• मिशन स्कूल, इंदौर
• क्रॉस्थवेट गर्ल्स कॉलेज, प्रयागराज

उच्च शिक्षा
एम. ए (संस्कृत) प्रयागराज विश्वविद्यालय
व्यवसाय• कवयित्री 
• उपन्यासकार 
• लघुकथा लेखिका
भाषासाहित्यिक खड़ी बोली
शैलीछायावादी, मुक्तक शैली
कृतियांकाव्य संग्रह:
निहार (1930)
रश्मि (1932)
नीरजा (1933)  
सांध्यागीत (1935)
सप्तपर्णा (1959)
दीपशिखा (1942)
अग्नि रेखा (1988)
गद्य संग्रह:
अतीत के चलचित्र
स्मृति की रेखाएं 
पथ के साथी 
मेरा परिवार 
संस्मरण 
गिल्लू 
नीलकंठ 
श्रृंखला की कड़ियां

साहित्य में योगदान
छायावादी कवित्री के रूप में गीतात्मक
व भावात्मक शैली का प्रयोग





उपलब्धियां
• महिला विद्यापीठ की प्राचार्य 
• पदम भूषण पुरस्कार(1956) 
• सेकसरिया तथा मंगला प्रसाद पुरस्कार 
• भारत भारती पुरस्कार
• भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार (1982)
• पद्म विभूषण (1988)
मृत्यु तिथि11 सितंबर 1987
मृत्यु स्थानप्रयागराज, उत्तर प्रदेश

Mahadevi Verma – Early Life
महादेवी वर्मा – प्रारंभिक जीवन

महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में हुआ था। होली का रंग भरा दिन था। यही कारण था कि उन्हें होली का त्यौहार विशेष रूप से पसंद था। उनकी माता हेमरानी देवी, एक धर्मपरायण महिला थी। जो स्कूल शिक्षा से वंचित रही थी।

उनकी संगीत में विशेष रूचि थी। वह संगीत का बहुत अच्छा ज्ञान रखती थी। वे अक्सर गृहस्थी का काम करते हुए, गीत गाया करती थी। इसी वातावरण में, अपनी मां की प्रेरणा पाकर। महादेवी ने 7 वर्ष में ही गीत लिखना शुरू कर दिया था। महादेवी  भी संगीत का अच्छा ज्ञान रखती थी।

इनके पिता गोविंद प्रसाद वर्मा भागलपुर के कॉलेज में प्राध्यापक थे। जो अंग्रेजी साहित्य में एम.ए पास थे। वे मां काली के अनन्य उपासक थे। इनके परिवार में महादेवी के अतिरिक्त दो भाई और एक बहन थी। 7 पीढ़ियों के पश्चात उनके परिवार में पुत्री का जन्म हुआ। पूरा परिवार हर्षोल्लास से डूबा हुआ था।

इनके दादा बांके बिहारी जी ने, इन्हें घर की लक्ष्मी, घर की देवी मानते हुए। इनका नाम महादेवी रखा। इसी प्रकार जाने : प्रेमचंद का जीवन परिचय हिंदी कहानी के पितामह, उपन्यास सम्राट, पारंपरिक सोच व हमारे रूढ़िवादी विचारों के विरोधी।

Mahadevi Verma – Married Life
महादेवी वर्मा – वैवाहिक जीवन

माता पिता के न चाहने पर भी, दादा की जिद के कारण। 1916 में 9 वर्ष की आयु में, महादेवी का विवाह कर दिया गया। इनका विवाह स्वरूप नारायण वर्मा के साथ हुआ। शादी की रस्मों के समय समाज और रिश्तेदार वहां मौजूद थे। लेकिन बालिका महादेवी नींद से बोझिल, वहां न होने के बराबर थी।

शायद यही कारण था कि वे शादी के होने को स्वीकार न कर सकी। शादी के बाद, इन्हें ससुराल नहीं भेजा गया। फिर 17 वर्ष की उम्र में, वे पहली बार ससुराल गई। ससुराल में कुछ ही दिन रहने के बाद, महादेवी को एहसास हो गया। गृहस्थ जीवन और उसके बंधन उनके लिए उपयुक्त नहीं है।

वह अपने आपको सहज महसूस नहीं कर रही थी। इसके बाद जल्द ही, उन्होंने एक बड़ा फैसला लिया। वह गृहस्थ जीवन का त्याग करेंगी। फिर वह अपने घर लौट कर आ गई। दृढ़ निश्चय की पक्की महादेवी देवी जी दोबारा ससुराल नहीं गई। ससुराल से लौटने के बाद, उन्होंने अपनी शिक्षा को रुकने नहीं दिया। उन्होंने अपनी शिक्षा को जारी रखा।

यह विडंबना ही है कि रंगो के त्यौहार होली के दिन पैदा हुई महादेवी ने, जीवन में सिर्फ एक रंग अपनाया। सारे रंगों की पृष्ठभूमि का रंग, मीरा का रंग, सफेद रंग को अपनाया।

Mahadevi Verma – Education
महादेवी वर्मा – शिक्षा दीक्षा

महादेवी की शिक्षा सन 1912 में, इंदौर के मिशन कॉलेज से शुरू हुई। बचपन में ही विवाह के कारण, उनकी पढ़ाई स्थगित हो गई थी। लेकिन उनकी शिक्षा थोड़े अंतराल के बाद, 1919 में फिर से प्रारंभ हुई। इलाहाबाद के क्रॉस्थवेट गर्ल्स काँलेज में दाखिला लिया।

यही हॉस्टल में, उनकी मित्रता सुभद्रा कुमारी चौहान से हुई। जो अंत तक रही। दोनों की जीवन परिस्थितियां अलग थी। जहाँ महादेवी अकेली, तो वही सुभद्रा कुमारी भरे पूरे परिवार के साथ। फिर भी दोनों के बीच गहरा आत्मिक संबंध रहा।

आलोक लुटाता वह घुल-घुल

देता झर यह सौरभ बिखरा!

दोनों संगी, पथ एक, किंतु

कब दीप खिला कब फूल जला?

1921 मे मिडिल की परीक्षा में, वे संपूर्ण प्रांत में प्रथम स्थान पर रही। जिसके कारण उन्हें छात्रवृत्ति मिली। 1922 में ‘चांद’ नामक पत्रिका के प्रथम अंक में, महादेवी जी की प्रथम रचना प्रकाशित हुई। महादेवी जी ने 1925 में, हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की।

इसके बाद 1927 में, इन्होंने इंटरमीडिएट पूरा किया। फिर 1929 में, इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1932 में महादेवी जी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए किया। इसी प्रकार जाने : सन्त सूरदास का जीवन परिचय। सूरदास जी का रचनाएं काव्यगत विशेषताएं व उनका दर्शन शास्त्र।

Mahadevi Verma – As a Buddhist Nun
महादेवी वर्मा का बौद्ध भिक्षुणी बनना

इसी समय महादेवी ने बौद्ध भिक्षुणी बनने का निश्चय किया। वह प्रख्यात बौद्ध महास्थविर से भिक्षा लेने पहुंची। वह भिक्षुणी तो नहीं बन पाई। लेकिन बुद्ध की अमिट छाप उनके काव्यों में दिखाई देती है।  गांधीजी के सामने जीवनभर, खादी पहनने और हिंदुस्तान की धरती पर अंग्रेजी न बोलने का निर्णय लिया।

वह सामाजिक और राष्ट्रीय कार्यों के हित में जुड़ गई। अरैल गांव में बच्चों को पढ़ाने के साथ ही, वह स्वतंत्रता संग्राम के कार्यकर्ताओं की मदद करती। अपने घर की वस्तुओं को बेचकर, उनकी पैसे से मदद करती। पुलिस की परवाह न करके, उन्हें संरक्षण देती। उनके खतरनाक से खतरनाक काम में हाथ बटाती।

उनका कहना था कि देश को बलिदान और त्याग से ही आजाद करवाया जा सकता है। उन्होंने लिखा-

पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला

अन्य होंगे चरण हारे और हैं जो लौटते, दे शूल को संकल्प सारे

Mahadevi Verma – Principal of Prayag Mahila Vidyapeeth
महादेवी वर्मा – प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्य

महादेवी जी स्त्री शिक्षा के उद्देश्य से, 1932 में प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्य का कार्यभार संभाला। उनके अनुसार, भारतीय नारी में वह सभी गुण हैं। जिन्हें पाकर किसी भी देश की नारी देवी बन सकती है। भारतीय नारी में कठिन से कठिन अग्निपरीक्षा पार करने की सहन शक्ति है। इन्हें त्याग बलिदान और स्नेह सब आता है। बस जीने की कला नहीं आती।

महादेवी जी को स्वतंत्र विचारों के कारण, पुरुष प्रधान समाज में जीवनभर संघर्ष का सामना करना पड़ा। लेकिन हर एक कर्तव्य और कर्म करके करने में वह सहज भाव से जुटी रही वह कहती हैं-

बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले?

पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले?

विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन,

क्या डुबो देंगे तुझे यह फूल दे दल ओस गीले?

तू न अपनी छाँह को अपने लिये कारा बनाना!

जाग तुझको दूर जाना!

महादेवी जी का स्नेह किसी एक से न बंधकर, जगत के हर प्राणी पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, फूल, नदी और झरने के साथ कण-कण में बहता रहा। उनके दरवाजे से कोई भी निराश या थका हारा नहीं लौटा। जो आया, वह कुछ लेकर ही गया।

वह भयंकर से भयंकर संघर्ष झेलकर  भी, हमेशा सहज बनी रही। उनका दृढ़ विश्वास था। जब तक दुखद कांटों से लड़ा नहीं जाएगा। तब तक सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती। इसी प्रकार जाने : कबीर दास का जीवन परिचय चलिए खुद में कबीर को और कबीर में खुद को ढूंढते हैं।

Mahadevi Verma ki Rachna
महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएं

महादेवी वर्मा की के ‘अतीत के चलचित्र’, ‘स्मृति की रेखाएं’, ‘यात्रा विवरण’, ‘पथ के साथी’, ‘मेरे प्रिय निबंध’ तथा ‘श्रंखला की कड़ियां’ में, उनके साहसी और क्रांतिकारी विचारों का समावेश देखने को मिलता है।  उनकी कहानियों में करुणा है। पीड़ितों और उपेक्षितों के प्रति संवेदना है। उनमे दूसरों को समझने की, विशेष क्षमता थी।

महादेवी अग्नि पथ पर चलकर, चांदनी के देश पहुंचने की कामना रखी थी। उनके काव्य-संग्रह ‘निहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्यागीत’, ‘सप्तपर्णा’, ‘दीपशिखा’, ‘यामा’ उसी मंगल यात्रा के चरण चिन्ह हैं।

‘निहार’ काव्य संग्रह में जिज्ञासा और विस्मय के साथ, साधक की साधना, दार्शनिक की तन्मयता और योगी की करुणा है। ‘रश्मि’ काव्य संग्रह की रचनाओं में, मीरा का प्रेम, कृष्ण का संगीत एवं बुद्ध की करुणा की झलक दिखाई पड़ती है।

महादेवी के काव्य में अध्यात्मिक विकास के साथ ही, साहित्यिक विकास भी निरंतर होता रहता था। ‘नीरजा’ काव्य संग्रह में वेदना प्रधान भावों को, स्वाभाविक श्रृंगार से सजा-धजाकर, उन्होंने रचनाओं में उतारा। उपासक की उपासना पूर्ण होने पर, उसकी उपासना भीतर ही भीतर होने लगती है। तब वाह्य उपासना का महत्व खत्म हो जाता है। उसी मानसिक अवस्था में पहुंचकर, महादेवी कहती हैं-

क्या पूजन क्या अर्चन रे

उस असीम का सुंदर मंदिर मेरा लघुतम जीवन रे

मेरी श्वासें करती रहतीं नित प्रिय का अभिनंदन रे

इस काव्य संग्रह के लिए, महात्मा गांधी के हाथों महादेवी जी को शेक्सपियर पुरस्कार मिला था। सांध्यागीत में आत्मा परमात्मा, प्रकृति और विश्व का संबंध गहरा है। इसके गीतों में रहस्यवाद की आकुल व्याकुल अनुभूतियां हैं। दीपशिखा काव्य संग्रह का प्रकाशन 1942 में हुआ। जब पूरा विश्व युद्ध के वातावरण से दूषित था। इसके गीतों में कवित्री की मानसिक स्थिति स्पष्ट दिखाई पड़ती है।

दीप मेरे जल अकम्पित,

घुल अचंचल!

पथ न भूले, एक पग भी,

घर न खोये, लघु विहग भी

चित्रमय काव्य संग्रह ‘यामा’ में महादेवी ने लिखा। मेरे लिए तो मनुष्य, सजीव कविता है। महादेवी की सभी रचनाओं में  करुणा और संवेदना है।

Mahadevi Verma Awards
महादेवी वर्मा – पुरस्कार व सम्मान

चित्रमय काव्य संग्रह ‘यामा’ पर महादेवी को ‘भारतीय ज्ञानपीठ का पुरस्कार‘ ब्रिटेन की प्रधानमंत्री मार्गेट थैचर के हाथों दिया गया। प्रधानमंत्री को धन्यवाद करते हुए, उन्होंने कहा। मैंने बापू के सामने प्रतिज्ञा ली थी। मैं केवल हिंदी में ही बोलूंगी। अतः आपका आभार भी हिंदी में ही कर रही हूं।

साहित्य जगत ने उन्हें सम्मान और प्रेम दिया। तो समाज उन्हें पुरस्कारों से सम्मानित करता रहा। भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म विभूषण’ देकर सम्मानित किया। वही उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने, अपना सर्वोच्च पुरस्कार ‘भारत-भारती’ उन्हें समर्पित किया। अनेक विश्वविद्यालय ने उन्हें डिग्री प्रदान की। लेकिन इन सबसे दूर, उनका ह्रदय विश्व चिंता से घिरा रहता। इसी प्रकार जाने : गौतम बुद्ध का जीवन परिचय Gautam Buddha Biography in Hindi।

Mahadevi Verma Death
महादेवी वर्मा की मृत्यु

1987 में महादेवी के रीढ़ की हड्डी की ग्रंथि टूटने से, वह इलाहाबाद के बाहर जाने में असमर्थ हो गई। शरीर की शिथिलता बढ़ती रही। वह धीरे-धीरे राम जी पांडे के सहारे ही चल पाती थी। लेकिन उस पीड़ा के बीच भी, वह सबके बीच हंसती रहती। शांत होती, तो उन्हें देख लगता। जैसे अपने आराध्य से मिलने को आतुर, उससे कह रही हो।

 फिर विकल हैं प्राण मेरे!

तोड़ दो यह क्षितिज मैं भी देख लूं उस ओर क्या है!

10 सितंबर 1987 को, वह होश और बेहोशी के बीच रही। लेकिन उनके चेहरे पर अपार शांति थी। कहीं कोई भय नहीं था। उनका अपना भी मानना था। मृत्यु अनंत और असीम ही नहीं, सीमा की होती है।

11 सितंबर 1987 को अपने आराध्य, अपने प्रीतम से मिलने को, उनके व्याकुल प्राण देह के पिंजरे को तोड़ उड़ गए। उनके शांत और सहज चेहरे को देखकर, ऐसा लग रहा था। मानो अभी कह उठेंगी-

सब बुझे दीपक जला लूं

घिर रहा तम आज दीपक रागिनी जगा लूं

इस मरण के पर्व को मैं आज दीवाली बना लूं!

महादेवी जी जीवन भर असाधारण होकर, साधारण बनी रही। सफल होकर भी, विफल लोगों के मन की घुटन को पहचानती रही।

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