गौतम बुद्ध का जीवन परिचय | Gautam Buddha in Hindi | Stories of Gautam Buddha in Hindi

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गौतम बुद्ध का जीवन परिचय
Gautam Buddha Biography in Hindi

बुद्धं शरणं गच्छामि।

धर्मं शरणं गच्छामि।

संघं शरणं गच्छामि।

         आज समस्त विश्व युद्ध के कगार पर खड़ा है। कौन जाने कब, कहां और कैसे। युद्ध की चिंगारी भड़क उठे। एक ही पल में, समस्त विश्व राख हो जाए। युद्ध की लपेट से मानवीय जीवन ध्वस्त हो रहा है। यदि हम युद्ध से मुक्ति और विश्व में शांति चाहते हैं। तो हमें बुद्ध के धम्मपथ पर चलना होगा। 

       क्योंकि युद्ध मानवीय जीवन नष्ट करने वाला मार्ग है। वहीं बुद्ध का मार्ग, मानव कल्याण का मार्ग है। मुक्ति का मार्ग है। निर्वाण का मार्ग है। दुनिया के एक दर्जन से भी ज्यादा देशों में, राजधर्म का दर्जा हासिल करने वाला बौद्ध धर्म। अपनी जन्मभूमि यानी हिंदुस्तान से क्यों खत्म हो गया।

       यह सवाल बौद्ध धर्म के अनुयाई देशों के साथ, हर हिंदुस्तानी के मन में भी उठता है। करीब 550 ईसा पूर्व अस्तित्व में आया बौद्ध धर्म। कई शताब्दियों तक हिंदुस्तान व दुनिया के कई देशों में तेजी से फैला। अपना प्रभाव कायम किया। आज भी बौद्ध धर्म चीन, जापान, म्यानमार, श्रीलंका, थाईलैंड, वियतनाम समेत एक दर्जन देशों में मौजूद है। 

महान समाज सुधारक, दार्शनिक, धर्मगुरु, भगवान गौतम बुद्ध के जीवन के कई पहलू हैं। लेकिन उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि वह एक बुद्ध है। यह उनका नाम नहीं है। उनका नाम तो गौतम सिद्धार्थ है। लेकिन वह एक बुद्ध हैं।

      बुद्ध का मतलब है। वह अपने तार्किक बुद्धि से ऊपर उठ गए हैं। बु का अर्थ है – बुद्धि। ध का अर्थ है- धाधक। जो तार्किक बुद्धि से ऊपर होता है। उसे बुद्ध कहते हैं।  वे बुद्ध कैसे बने। उन्होंने अपने जीवन में कई चीजों का आत्मसार किया। चलिए, महात्मा बुद्ध, गौतम बुद्ध व तथागत बुद्ध के जीवन को जानने की एक कोशिश करते हैं।

Gautam Buddha in Hindi

Gautam Buddha - An Introduction

 

तथागत गौतम बुद्ध 

एक नजर

वास्तविक नाम 

(Real Name)

सिद्धार्थ गौतम

अन्य नाम

 (Other Name)

• गौतम बुद्ध

• सिद्धार्थ गौतम 

• महात्मा बुद्ध 

• शाक्यमुनि  

• तथागत

जन्म-तिथि

 (Date of Birth)

563 ईसा पूर्व

जन्म-स्थान

 (Birth Place)

लुंबिनी, नेपाल

पिता

 (Father)

राजा शुद्धोधन

माता 

(Mother)

• मायादेवी 

• महाप्रजापति (गौतमी)

   सौतेली मां

वंश 

(Linage)

इक्ष्वाकु शाक्य वंश

धर्म 

(Religion)

बौद्ध धर्म

प्रसिद्धि 

(Famous For)

● बौद्ध धर्म के संस्थापक

● भगवान विष्णु के नवें अवतार

पत्नी

 (Wife)

राजकुमारी यशोधरा

बच्चे 

(Children)

राहुल (बेटा)

चाचा 

(Uncle)

• धौतोदन

• शुक्लोदन

• शाक्योदन 

• अभितोदन

समकालीन राजा

 (Contemporary King)

● राजा प्रसनजीत 

(कौशल राज्य)

● राजा बिंबिसार 

(मगध राज्य)

गुरु 

(Guru)

● आचार्य आलार कलाम 

● उद्दक रामपुत्त

परम शिष्य 

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(Supreme Disciple)

आनंद

निर्वाण-तिथि 

(Death Date)

483 ईसा पूर्व

निर्वाण-स्थान 

(Nirvana Place)

कुशीनगर, भारत

गौतम बुद्ध जयंती 2023

(Gautam Buddha Jayanti 2023)

05 मई 2023,

दिन – शुक्रवार

गौतम बुद्ध की वंशावली
Genealogy of Gautam Buddha

  ईसा मसीह के जन्म के 563 वर्ष पूर्व तथा आज से 2642 वर्ष पूर्व, भारतवर्ष के अंगुत्तर निकाय में, 16 महाजनपद थे। जहां राजा की सत्ता हुआ करती थी। जो इस प्रकार थी- अंग – मगध – काशी – कौशल – व्रजी – मल्ल – चेदि – वत्स – कुरु – पांचाल – मत्स्य – सौरसेंन – अश्मक – अवंती –  अवंती – गांधार – कंबोज ।

      कौशल राज्य के राजा प्रसनजीत थे। मगध राज्य के राजा बिंबिसार थे। यह दोनों ही बुद्ध के समकालीन अर्थात हमउम्र थे। जहां राजा की सत्ता नहीं थी। उसे संघ या गणराज्य कहते थे। वहां बारी-बारी से राज्य किया जाता था। ऐसे 8 गणराज्य थे।

संघ या गणराज्य

शासक

कपिलवस्तु

शाक्य

पावा व कुशीनारा

मल्ला

वैशाली

लिच्छवी

मिथिल

विदेह

रामग्राम

कोलिय

पल्लकप 

बली

रेसपट्ट

कलिंग

पिप्पलवन

मौर्य

        सिद्धार्थ के पिता का गोत्र आदित्य था। सिद्धार्थ के परदादा शाक्य जयसेन थे। उनकी दादा सिंहहनु और दादी कच्चना थी। सिद्धार्थ के पिता शुद्धोदन, उनके चाचा धौतोदन, शुक्लोदन, शाक्योदन व अभितोदन थे। सिद्धार्थ की बुआ अमिता व प्रमिता थी। उनके चाचा शुक्लोदन के 2 पुत्र महानामा व अनुरुधा थे। चाचा अभितोदन के पुत्र आनंद थे। जो बाद में, उनके परम शिष्य बने।

      सिद्धार्थ की माता कोलिय वंश था। उनका गांव देवदह था। सिद्धार्थ के नाना अंजनव तथा नानी सुलक्षणा थी। सिद्धार्थ की माता महामाया थी। उनकी मौसी महाप्रजापति थी। सिद्धार्थ के मामा सुप्पबुद्धा और मामी अमिता थी। सिद्धार्थ की मौसी महाप्रजापति के एक पुत्र नंदा व एक पुत्री नंदा थी। सिद्धार्थ के मामा सुप्पबुद्धा के एक पुत्र देवदत्त और पुत्री बिम्बा थी।

 सिद्धार्थ के पिता शुद्धोदन का विवाह महामाया व महाप्रजापति से हुआ था।

गौतम बुद्ध का जन्म
Gautam Buddha Birth

  कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन के कोई संतान नहीं थी। इसी कारण संतान प्राप्ति की चाह में, उन्होंने दो विवाह किए थे। जिनमें बड़ी रानी का नाम महामाया तथा छोटी का नाम प्रजापति था। अधेड़ उम्र तक दान-पुण्य व देवी-देवताओं की पूजा करने के बाद भी, उन्हें संतान का सुख न मिल सका।

      उनके राज्य में सुख-शांति और समृद्धि थी। लेकिन अपना उत्तराधिकारी न होने के कारण, शुद्धोधन को ये सब निरर्थक लगता था। तभी एक दिन सुमेध नामक बोधिसत्व, रानी महामाया के स्वप्न में आए। उन्होंने प्रश्न किया  ‘मैंने अपना अंतिम जन्म पृथ्वी पर धारण करने का निश्चय किया है। क्या आप मेरी माता बनेगी।’ रानी महामाया ने प्रसन्नता से स्वीकृति दी।

     इस अद्भुत स्वप्न की चर्चा, राजा शुद्धोधन ने स्वप्न विद्या में प्रसिद्ध 8 पंडितों से की। उन्होंने राजा को स्वप्न का अर्थ बताते हुए कहा – ‘महाराज, आपके यहां पुत्र होगा। यदि वह घर में रहा, तो चक्रवर्ती सम्राट होगा। यदि सन्यस्त हुआ। तो बुद्ध बनकर, समस्त संसार को मार्गदर्शन देगा।’

     उस जमाने में प्रसव के लिए, मायके जाने का रिवाज था। रानी महामाया पालकी में देवदह के लिए रवाना हुई। देवदह जाने के लिए, लुंबिनी वन से गुजरना पड़ता था। उस समय यहां शाल वृक्षों का वन था। माता महामाया जब यहां पहुंची। तो चारों ओर नैसर्गिक सुंदरता भरी पड़ी थी।

       उस वातावरण से माता महामाया प्रभावित हुई। वह पालकी से उतरकर, शाल  वृक्ष की ओर बढ़ी। उन्होंने एक शाखा को पकड़ा। अचानक उन्हें प्रसव वेदना प्रारंभ हुई। 563 ईसा पूर्व वैशाख पूर्णिमा के दिन, सिद्धार्थ गौतम ने जन्म लिया। बुद्ध के आगमन का स्वागत, समस्त ब्रह्मांड ने किया। भगवान बुद्ध का जन्म-स्थल लुंबिनी, नेपाल की तराई में है। इसका वर्तमान नाम रुपन्देही है।

गौतम बुद्ध की मां महामाया की मृत्यु
Death of Mahamaya, Mother of Gautam Buddha

  माता महामाया नवजात शिशु के साथ, कपिलवस्तु वापस आई। पांचवें दिन नामकरण संस्कार करके, बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया। सिद्धार्थ अर्थात जिसके सारे अर्थ सिद्ध हो गए। सफल हो गए। उनका गोत्र गौतम मुनि के कारण, जनसाधारण में सिद्धार्थ गौतम के नाम से प्रसिद्ध हुए।

        बालक सिद्धार्थ के जन्म के 7 दिन बाद, अचानक माता महामाया गंभीर रूप से बीमार पड़ी। जिसमें उनका निधन हो गया। इसके बाद सिद्धार्थ का पालन-पोषण  उनकी मौसी व सौतेली मां महाप्रजापति ने किया।

सिद्धार्थ गौतम (बुद्ध) का विवाह
Marriage of Siddhartha Gautama (Buddha)

   सिद्धार्थ के वयस्क (19 वर्ष) होने पर, उनका विवाह दंडपाणी नामक शाक्य की पुत्री, यशोधरा से हुआ। सिद्धार्थ गौतम और यशोधरा के घर बेटे ने जन्म लिया। उसका नाम राहुल रखा गया। सिद्धार्थ गौतम शाक्य संघ के सदस्य थे। शाक्य राज्य से सटा कोलियों का राज्य था।

      रोहिणी नदी दोनों राज्यों की विभाजन रेखा थी। नदी के पानी से दोनों राज्यों की खेती में सिंचाई होती थी। जल के हिस्से को लेकर, दोनों राज्यों में विवाद खड़ा हुआ था। जिसमें यह निश्चित हुआ कि युद्ध द्वारा विवाद को निपटाया जाए। युद्ध के निर्णय के लिए, शाक्य संघ द्वारा अधिवेशन बुलाया गया।

सिद्धार्थ गौतम का गृह-त्याग व महाभिनिष्क्रमण
Siddhartha Gautama - Renunciation and Mahabhinishkraman

  सिद्धार्थ गौतम ने युद्ध का विरोध किया। उनसे कहा कि दोषी कौन है। किसे समझें। सिद्धार्थ गौतम की बात को गहराई से समझे बगैर, उन्हें ही बहुमत से दोषी ठहराया गया। दंड के तौर पर, उन्हें शाक्य राज्य से निकाल दिया गया। सिद्धार्थ गौतम ने माता-पिता व पत्नी यशोधरा से विचार-विमर्श किया।

         सिद्धार्थ गौतम के गृह त्याग के दंड को स्वीकार करने से, शाक्यों ने कोलियों से युद्ध करने के प्रस्ताव को स्थगित कर दिया। यही सिद्धार्थ गौतम का महाभिनिष्क्रमण था। सन्यास खत्म होने के बाद, आचार्य आलार कलाम व उद्दक रामपुत्त द्वारा शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद। सिद्धार्थ गौतम का आवागमन से छुटकारा नहीं हुआ था।

अन्य मान्यता के अनुसार
सिद्धार्थ गौतम का गृह-त्याग व महाभिनिष्क्रमण

  आचार्यों द्वारा की गई भविष्यवाणी के अनुसार, कि बुद्ध या तो चक्रवर्ती सम्राट बनेंगे या सन्यास ग्रहण करेंगे। इस बात से विचलित होकर, राजा शुद्धोधन ने फैसला किया। वह अपने पुत्र को किसी भी दुख से दूर रखेंगे। क्योंकि दुख और समाज की पीड़ा से उबकर ही, कोई व्यक्ति सन्यासी बनता है।

      अगर वह दुखों से दूर होगा। सदा सुख भोगता रहेगा। तो उसे संत बनने की कोई जरूरत नहीं है। इस कारण राजा शुद्धोधन में बुद्ध को सभी सुख-सुविधाएं दी। उनके चारों ओर खुशहाली थी। यही शायद उनकी गलती थी। क्योंकि मनुष्य दुख से इतना नहीं ऊबता है। जितना सुख से ऊब जाता है।

        एक दिन भगवान बुद्ध ने सोचा क्यों न नगर का भ्रमण किया जाए। उन्होंने अपनी इच्छा सारथी के सामने रखी। गौतम सिद्धार्थ नगर में घूम ही रहे थे। तभी उन्होंने एक बूढ़े आदमी को देखा। वह बूढ़ा आदमी ठीक से चल भी नहीं पा रहा था। सिद्धार्थ के सामने यह दुविधा थी। क्योंकि उन्होंने अब तक किसी बूढ़े आदमी को नहीं देखा था।

       सारथी से पूछने पर, उसने बताया कि यह बूढ़ा आदमी है। हर कोई एक दिन बूढ़ा होता है। यह तो प्रकृति का नियम है। सिद्धार्थ ने खुद को देखकर कहा कि क्या मैं भी एक दिन ऐसा हो जाऊंगा। सारथी ने उत्तर दिया। हां, हर कोई बूढ़ा होता है। इसके बाद सिद्धार्थ आगे बढ़े। उन्होंने सड़क के किनारे लेटे हुए, एक बीमार आदमी को देखा। जो पीड़ा से चिल्ला रहा था।

       सिद्धार्थ के सारथी से पूछने पर, उसने बताया कि यह व्यक्ति बीमार है। जो किसी रोग की वजह से पीड़ा में है। यह शरीर कभी-कभी बीमार हो जाता है। यह भी लगभग सभी के साथ होता है। गौतम इन दोनों घटना को देखकर, काफी परेशान हो चुके थे। वे आगे बढ़े।

      आखिर में, उन्होंने एक शव यात्रा देखी। कुछ आदमी, एक आदमी का शव लेकर जा रहे थे। सिद्धार्थ ने फिर उत्सुकतावश पूछा। तो सारथी ने जवाब दिया। हर आदमी को एक दिन मरना होता है। इससे कोई भी नहीं बच सकता। यह सब देख कर सिद्धार्थ के मन में उथल-पुथल मच चुकी थी। उनका सांसारिक जीवन से मन टूट गया। फिर एक दिन रात्रि में, बिना किसी को बताए। उन्होंने गृह त्याग दिया। उस वक्त गौतम की आयु 29 वर्ष थी।

गौतम बुद्ध : सत्य की खोज
Stories of Gautam Buddha in Hindi

  सिद्धार्थ को जन्म व मरण से संबंधित अनेक प्रश्नों के उत्तर नहीं मिले थे। इसलिए उन्होंने अकेले साधना करने का निश्चय किया। वे पश्चिम दिशा से आते हुए। निरंजना नदी को पार करके, दुंगेश्वरी पर्वत तक पहुंचे। यहां की गुफा में, वे आत्म-पीड़न तप करने लगे। तप करते हुए, उन्होंने शरीर को कई कष्ट दिए।

       बहुत दिनों तक वह भोजन से विरक्त रहे। जिसके कारण वे अतिदुर्बल हो गए। शरीर क्षीण होने और दुर्बलता के कारण, हड्डियां झलकने लगी। अचानक होने लगा उन्हें लगा। शरीर और आत्मा एक ही अस्तित्व के अंग हैं। अतः शरीर से अत्याचार करना, चित्त से भी अत्याचार होगा। तब उन्होंने संकल्प किया। वह स्वास्थ्य संभालकर, मन की साधना करेंगे।

        सिद्धार्थ निरंजना नदी में स्नान करने के लिए आए। फिर वह गुरुबेला ग्राम की ओर प्रस्थान करने लगे। थोड़ी ही दूर चलने पर, उनकी सांस उखड़ने से, वे बेहोश हो गए। तभी एक ग्वाला पुत्री सुजाता को, उसकी मां ने वन देवता को खीर अर्पण करने के लिए भेजा था। सुजाता के साथ उसकी दासी पूर्णा भी थी।

       जब सुजाता ने तथागत को वट वृक्ष के नीचे, बेहोशी की हालत में देखा। तब उन्हें पानी और कटोरा भर दूध पिलाया। इससे उनमें शक्ति आई। वो उठकर बैठे। उन्होंने  खीर ग्रहण की। शरीर पीड़न तपस्या त्याग कर, सिद्धार्थ द्वारा भोजन करने की बात। जब उनके 5 साथी सन्यासियों को पता चली। तो वे उन्हें छोड़कर चले गए। यही वह स्थान था। जहां सुजाता ने खीर दान की थी।

सिद्धार्थ गौतम को बुद्धत्व की प्राप्ति
Siddhartha Gautama attained Enlightenment

    तथागत बुद्ध को बोधिसत्व अवस्था में, अन्न दान करने वाली सुजाता। बौद्ध इतिहास का अभिन्न अंग बन गई। सिद्धार्थ गौतम ने साधना के लिए, गुरुबेला की ओर प्रस्थान किया। यहां आकर वे पीपल अर्थात बोधि वृक्ष के नीचे, पद्मासन लगाकर बैठ गए। पहले शरीर और चित्त के ध्यान के कारण, सिद्धार्थ गौतम का चित्त, शरीर और श्वसन एकाकार हो गए। 

       गहन समाधि अवस्था का अनुभव उन्हें पहले से था। फिर वह परमसमाधि की गहराई में उतरे। तभी उन्हें सारस्वत सत्य के दर्शन हुए। उनके सारे संशय और भ्रम नष्ट हो गए। उन्हें असीम शांति प्राप्त हुई। निरंतर 7 दिन और 7 रात तक गौतम बोधि वृक्ष के नीचे बैठे थे। उस दिन वैशाख पूर्णिमा थी। इस रात्रि को गौतम को ज्ञान की प्राप्त हुई।

        उन्होंने देखा कि जिसका निर्माण होता है। वह नष्ट होता है। कैसे प्राणी जन्म व मृत्यु की श्रंखला से गुजरता है। जीवन कैसे सागर की लहरों जैसा है। लहरें उठती हैं, गिरती हैं। मगर सागर का न जन्म होता है, न मृत्यु होती है।

        सिद्धार्थ गौतम ने जन्म व मरण के पार का साक्षात्कार किया। उन्होंने अपनी चेतना से, यह भी जाना। प्राणी कष्ट क्यों पाते हैं। अज्ञान का कारण क्या है। लोभ, तृष्णा व अहंकार से क्या हानि होती है। दुख का निवारण कैसे करें। इसके रहस्य को जाना। बाद में, तथागत ने इसे चार आर्य सत्य कहा।

     तत्पश्चात ध्यान की गहन अवस्था में, सिद्धार्थ गौतम को लगा। कि जन्म-जन्मांतर की त्रासदी से मुक्ति लाभ होकर, आनंद की वर्षा हो रही है। उनकी दुनिया बदल गई। वह सिद्धार्थ गौतम से सम्यक सम्बुद्ध हो गए। असीम करुणा का उदय हुआ। वह गौतम बुद्ध कहलाने लगे। जिस वृक्ष के नीचे गौतम को बोधि की प्राप्ति हुई। उसे बोधिवृक्ष कहा गया।

        बोधगया बिहार में, आज भी यह बोधि वृक्ष विद्यमान है। गौतम को जिस समय बोधि की प्राप्ति हुई। उस समय उनकी आयु 35 वर्ष थी। उन्हें मृत्यु से अमृत्यु की ओर आने का मार्ग मिल गया था। उन्हें निर्वाण की प्राप्ति हो गई थी। उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी। इसी दिव्य ज्ञान की छठा बिखेरने के लिए, वे भ्रमण के लिए निकल पड़े।

गौतम बुद्ध के उपदेश

  ऐसी मान्यता प्रचलित है कि 7 दिन व 7 रात तक, घोर तपस्या करने के बाद, जब गौतम को ज्ञान की प्राप्ति हुई। उसके बाद वह मौन हो गए। उनके मौन होने से पूरा देवलोक कांप उठा। सभी देवता व्याकुल होकर, अनुरोध करने लगे। हे बुद्ध! अपने मौन को तोड़ो।

        इस संसार को सही मार्ग दिखाओ। युगों-युगों बाद कोई पुरुष, बुद्ध पुरुष बनता है। आप मौन हो जाएंगे, तो यह संसार सदा के लिए मौन हो जाएगा। तत्पश्चात वह दिव्य ज्ञान की छठा बिखेरने के लिए निकल पड़े। जो 5 ब्रह्मचारी गौतम बुद्ध को, भोग लिप्त मानकर छोड़ आए थे। वह सारनाथ में साधना कर रहे थे।

       जब गौतम बुद्ध वहां से गुजरे। तो उन सभी ने गौतम बुद्ध के दिव्यमुख को देखा। वह समझ गए कि उन्हें बौद्ध की प्राप्ति हो चुकी है। वे पांचों गौतम बुध के चरणों में गिर पड़े। बुद्ध ने उन्हें अपना शिष्य बना लिया। उन्हें वही सारनाथ में उपदेश दिया। इस उपदेश में बुद्ध ने कहा। धर्म-परायण जीवन जीने के लिए, मर्यादा का पालन करो। तृष्णा को त्याग दो। जाती-पाती के भेदभाव को समाप्त करो।

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       सभी से सदा मृदुल व मधुर व्यवहार करो। गौतम बुद्ध का यह उपदेश, धर्म चक्र  प्रवर्तक कहा गया। यह उपदेश अत्यंत सरल एवं स्वीकार्य था। सभी का भला होता था। कुछ ही समय में, बुद्ध के सैकड़ों शिष्य बन गए। इसके बाद उन्होंने संपूर्ण देश में धर्म प्रचार प्रारंभ कर दिया। उन्होंने अपने 7 प्रमुख शिष्यों को, धर्म-प्रचार करने के लिए, चारों दिशाओं में भेज दिया।

      गौतम बुद्ध वर्ण, भेद व यज्ञ के लिए दी जाने वाली, हिंसा के विरुद्ध थे। वह कहते थे। हिंसा मानवीय धर्म नहीं है। यदि बलि देने की इच्छा है। तो प्राणी मात्र की बली देने की अपेक्षा, अपने विकारों व वासनाओं की बलि दो।

      गौतम बुद्ध ने जाति, वर्ण और भेद का विरोध किया। इस बारे में भी कहते थे कि जन्म से कोई भी मनुष्य न ब्राह्मण और न ही शूद्र होता है। मैं न ब्राह्मण हूं। न मैं क्षत्रिय हूं। न वैश्य व न शूद्र हूं। यह सभी धर्म के आडंबर मात्र हैं। मैं एक सामान्य व्यक्ति हूं।

गौतम बुद्ध की मृत्यु
Death of Gautam Buddha

   गौतम बुद्ध की मृत्यु 483 ईसा पूर्व कुशिनारा में हुई थी। उस समय उनकी मृत्यु को, बौद्ध धर्म के अनुयाई महापरिनिर्वाण कहते हैं। लेकिन उनकी मृत्यु को लेकर,  बहुत से बुद्धिजीवी व इतिहासकार एकमत नहीं है। मान्यता यह भी है कि महात्मा बुद्ध को, एक व्यक्ति ने मीठे चावल और रोटी खाने को दिए थे।

       मीठा चावल खाने के बाद, उनके पेट में दर्द हुआ। जिसके उपरांत उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु पर लोग, 6 दिनों तक दर्शन करने आते रहे। सातवें दिन शव को जलाया गया। फिर उनके अवशेषों पर मगध के राजा अजातशत्रु, कपिलवस्तु के शाक्यों  और वैशाली के लिच्छवी में झगड़ा हुआ।

       जब विवाद खत्म नहीं हुआ। तो द्रोण नाम के एक ब्राह्मण ने समझौता कराया। कि अवशेष को 8 भागों में बांट लिया जाए। फिर ऐसा ही हुआ। 8 स्तूप 8 राज्यों में, अवशेष बनाकर रखे गए। ऐसी भी मान्यता है कि बाद में अशोक ने, उन्हें निकलवाकर 83,000 स्तुपों में बांट दिया।

गौतम बुद्ध जयंती 2023

   हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध जयंती मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था। गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का नवां अवतार माना जाता है।

         वैशाख पूर्णिमा को सभी तिथियों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने व दान करने से, समस्त कष्टों से मुक्ति मिलती है। बौद्ध धर्म में भी इस दिन का विशेष महत्व होता है। 

      साल 2023 में बुद्ध पूर्णिमा 5 मई 2023 दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी। बुद्ध  पूर्णिमा का प्रारंभ 4 मई 2023 को रात्रि 11:44 पर शुरू होगी। पूर्णिमा समाप्ति 5 मई 2023 को रात्रि 11:03 पर होगी। 

गौतम बुद्ध सुविचार
Gautam Buddha Quotes

1

“जो व्यक्ति थोड़े में ही खुश रहता है सबसे अधिक खुशी उसी के पास होती हे इसलिए आपके पास जितना है उसी में खुश रहिए”

2

” क्रोध को पाले रखना गर्म कोयले को किसी और पर फेंकने की नियत से पकड़े रहने के समान है इसमें मनुष्य स्वं‌‌य जलता रहता है “

3

” अगर आ‌‌प अंधेरे में डूबे हुए हैं तो आप रोशनी की तलाश क्यो नही करते “

4

” अकेले रहना बहुत अच्छा है, बजाय उन लोगो के साथ के जो आपके प्रगति के मार्ग में बाधा डालते हैं “

5

” अगर आप उन चीजों की कद्र नहीं करते जो आपके पास है, तो फिर आपको खुशी कभी नहीं मिलेगी “

6

” जब किसी के संगत से आपके विचार शुद्ध होने लगे तो आप समझ लीजिए की वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं है “

7

“हमारी इच्छाएं हमारे सभी दुखों का कारण है इसलिए अगर इच्छाओं को मार दिया जाए तो सभी दुखों का अंत हो जाएगा “

8

” जो व्यक्ति दूसरो से प्यार नहीं करता है उसके पास खुश रहने का कोई भी कारण नही होता “

9

“आप जैसा सोचते हैं आप बिल्कुल वैसे ही बनते हैं इसलिए अच्छा बनने के लिए हमेशा अच्छा सोचिए”

10

“अगर आप दूसरों के लिए दिया जलाते हैं तो यह दिया आपके रास्ते को भी रोशन करता है”

F.A.Q

प्र० गौतम बुद्ध का जन्म कब हुआ था? 

उ० गौतम बुध का जन्म 563 ईसा पूर्व वैशाख पूर्णिमा के दिन हुआ था।

 

प्र० गौतम बुद्ध की माता का नाम क्या था?

उ० गौतम बुद्ध की माता का नाम रानी  मायादेवी था। लेकिन उनका पालन-पोषण उनकी मौसी व सौतेली मां महाप्रजापति ने किया था।

 

प्र० गौतम बुद्ध किस वंश से संबंध रखते थे?

उ० गौतम बुद्ध का जन्म शाक्य वंश (इक्ष्वाकु) में राजा शुद्धोधन के यहां हुआ था।

 

प्र० गौतम बुद्ध के गुरु कौन थे?

उ० गौतम बुध के गुरु आचार्य आलार कलाम व ऋषि उद्दक रामपुत्त थे।

 

प्र० गौतम बुद्ध की मृत्यु कब हुई?

उ० गौतम बुद्ध की मृत्यु 483 ईसा पूर्व कुशिनारा (वर्तमान में कुशीनगर) में हुई थी।

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