पंडित श्रीराम शर्मा का जीवन परिचय |Shriram Sharma ka Jivan Parichay

पंडित श्रीराम शर्मा – जीवन परिचय, जीवनी, कितने बच्चे हैं, गुरु कौन थे। [ Shriram Sharma Biography in Hindi, Jivan Prichay ]

ॐ भूर् भुवः स्वः ।

तत्सवितुर्वरेण्यं

भर्गो॑ देवस्य धीमहि ।

धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

हमारे इतिहास में ऋषि, मुनि, संत और योगी उतना ही योगदान रखते हैं। जितना कि एक सुखी परिवार में बड़े बुजुर्ग रखते हैं। हिंदू धर्म के प्रत्येक वैदिक ग्रंथों में, ऋषि मुनियों का जिक्र जरूर होता रहा है। इस भारत भूमि में अनेकों संतों व महापुरुषों का आविर्भाव, समय-समय पर  होता रहा है। आज दुनिया में जहां भी धर्म की बात होती है। तो उसका दायरा केवल पूजा-पाठ, आस्था व उपासना, उसकी रीति व उसकी पद्धतियों तक की सीमित हो जाती है।

लेकिन वही भारत के संदर्भ में, धर्म का अर्थ और उसके निहितार्थ एकदम अलग हो जाते हैं। हमारे वेदों ने धर्म को एक संपूर्ण जीवन-पद्धति के रूप में परिभाषित किया है। जहां धर्म का अर्थ, कर्तव्य समझा जाता है। इसीलिए हमारे संत और ऋषियों गण भी किसी पूजा और उपासना तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने हमारे राष्ट्र और समाज के हर आयाम की जिम्मेदारी संभाली।

संत वह नहीं है, जो सांसारिक जीवन से भाग गया है। संत तो वह होता है। जो यह जानता है कि यदि वह सांसारिक जीवन में उतर गया। तो वह किसी को भी हरा देगा। भारत के एक ऐसे ही संत, जिन्होंने गृहस्थाश्रम में जीवन व्यतीत करते हुए। अध्यात्म व साधना के उच्च शिखरों को प्राप्त किया है। यह एक ऐसे ही युगदृष्टा थे। जिनके विषय में स्वामी विवेकानंद कहा था। कि शीघ्र ही गायत्री का एक साधक आएगा। वह पूरी दुनिया को प्रकाशित करने का कार्य करेगा।

आज की बिगड़ती परिस्थितियों में, जब चारों ओर निराशा ही निराशा है। तो वही एक आशा का संकेत है- गायत्री परिवार। जिसकी स्थापना तप की पूंजी से हुई है। जिसकी पृष्ठभूमि पिछले हजारों वर्षों से बन रही थी। इसमें आदि शंकराचार्य से लेकर स्वामी विवेकानंद तक का योगदान शामिल है। इसे आगे बढ़ाने का काम कार्य एक तपस्वी, एक अन्वेषक, एक सुधारक एक विचारक ने की।

 जिसने अपने जीवन में साधना से सिद्धि के ज्ञान को प्राप्त किया। यह ऐसे ही एक अखिल भारतीय गायत्री परिवार के संस्थापक थे। जिन्होंने मृत होती प्राचीन वैदिक परंपराओं और संस्कृति को घर-घर तक पहुंचाया। इससे पुनर्जीवन प्रदान किया। यह एक आधुनिक संत पंडित श्रीराम शर्मा जी। इसी प्रकार जाने : धीरेन्द्र शास्त्री जी के गुरु – रामभद्राचार्य जी का जीवन परिचयजिन्होंने रामजन्म भूमि का फैसला बदल दिया।

पंडित श्रीराम शर्मा का जीवन परिचय

पंडित श्रीराम शर्मा – एक परिचय

युग दृष्टा – युग प्रवर्तक – युगपुरुषआचार्य पंडित श्रीराम शर्मा
पूरा नामपंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
उपनाम• गुरुदेव
• युगऋषि 
• वेदमूर्ति 
• गुरुजी 
• श्रीराम मत्त
जन्म तिथि20 सितंबर 1911
जन्म स्थानआंवला खेड़ा, आगरा, उत्तर प्रदेश
माता-पितापं० रूप किशोर शर्मा (पिता) श्रीमती दानकुंवरी (माता)
प्रसिद्धिअखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक व  संरक्षक
पत्नीभगवती देवी शर्मा
बच्चे• श्री ओम प्रकाश (पुत्र) 
• श्री मृत्युंजय शर्मा(पुत्र) 
• श्रीमती शैलबाला पांडेय(पुत्री)
• दयावती (पुत्री) 
• श्रद्धा(पुत्री)
गुरुश्री सर्वेश्वरानंद जी महाराज
शिक्षाअध्यात्म व वैदिक शिक्षा
व्यवसाय• अध्यात्म विज्ञानी
• योगी  
• दार्शनिक 
• मनोवैज्ञानिक 
• लेखक 
• सुधारक
प्रमुख संस्थाअखिल विश्व गायत्री परिवार
आंदोलनयुग निर्माण योजना
संपादनअखंड ज्योति





रचनाएँ
• विचार क्रांति
• वैज्ञानिक अध्यात्मवाद
• गायत्री और यज्ञ 
• अध्यात्म एवं संस्कृति 
• यज्ञ का ज्ञान विज्ञान
• समाज निर्माण 
• युग निर्माण 
• स्वास्थ्य और आयुर्वेद 
• युग परिवर्तन कब और कैसे 
• सतयुग की वापसी

प्रमुख विचार
हम बदलेंगे, युग बदलेगा। हम सुधरेंगे, युग सुधरेगा।।
मृत्यु तिथि2 जून 1990
मृत्यु स्थानशांतिकुंज, हरिद्वार, उत्तराखंड

पंडित श्रीराम शर्मा का प्रारंभिक जीवन

पिता रूप किशोर शर्मा व माता दानकुंवरी देवी ने मनु और शतरूपा की तरह तप किया होगा। तभी तो स्वयं महाकाल की सत्ता ने, उनके घर में जन्म लिया। रामकृष्ण परमहंस के ब्रह्मलीन होने के ठीक 24 वर्ष बाद, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य का जन्म आश्विन कृष्ण त्रयोदशी संवत 1968, तदनुसार दिनांक 20 सितंबर 1911 को हुआ। उनका जन्म आगरा जनपद के ग्राम आवलखेड़ा में हुआ।

एक ब्राह्मण जमीदार परिवार में जन्मे इस बालक में, बाल्यकाल से ही साधना के  बीज अंकुरित थे। जहां इनके पिता रूपकिशोर शर्मा, आसपास के राजघराने के राजपुरोहित थे। वही वे इसके साथ ही प्रख्यात विद्वान और भगवत कथाकार भी थे। लेकिन आचार्य जी का हर्दय और अंतर्मन आम जनमानस की वेदना देखकर, हमेशा व्यथित रहता था। 

उच्च कुल में पैदा होने के बावजूद, उनके मन मे जाति-पाती का कोई भेदभाव नहीं था। एक बार उनके घर के पास, एक वृद्ध अछूत महिला को कुष्ठ रोग हो गया। लोग उसके आसपास फटकने से भी डरते थे। लेकिन आचार्य जी अपने घर वालों के विरोध के बावजूद, उस अछूत महिला की सेवा, उसके घर जाकर किया करते थे। इसी प्रकार जाने : गौतम बुद्ध का जीवन परिचयGautam Buddha Biography in Hindi।

 पंडित श्रीराम शर्मा की शिक्षा-दीक्षा

पंडित श्री राम की प्रारंभिक शिक्षा आवल खेड़ा के प्राथमिक विद्यालय में हुई। यद्यपि वे औपचारिक शिक्षा पूरी कर सकते थे। लेकिन अध्यात्मिक साधना में, उनकी रूचि अधिक होने के कारण, उन्होंने मात्र प्राथमिक कक्षा तक की ही शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद वे घर पर ही संस्कृत, हिंदी व उर्दू की पढ़ाई करते रहे। जब भी वह खाली होते, तो साधना के लिए, अमराई में अकेले ही बैठ पाए जाते थे।

एक बार वे घर से भागकर, हिमालय की ओर चल पड़े। यह ऐसी तीव्र पुकार थी। उन हिमालय वासी सूक्ष्म शरीरधारी ऋषि सताओ की कि वह रोक नहीं पाए। उनकी आयु मात्र 9 वर्ष की थी। लेकिन उनके घर वालों को उनके विचारों का आभास हो गया। तो वे उन्हें काफी दूर वापस लेकर आए। शायद उनके हिमालय जाने का, अभी समय नहीं आया था।

10 वर्ष की आयु में महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी के हाथों, वाराणसी में उनका यगोपवित हुआ। उन्होंने गायत्री मंत्र कान में फूककर बालक श्रीराम को तेजस्व को प्रदान किया। वे इस मंत्र का अनवरत अभ्यास करने लगे। साथ ही उन्होंने, एक सूत्र भी दिया। कि ‘गायत्री ब्राह्मण की कामधेनु है’। ब्राह्मण को जो त्यागी व तपमय जीवन जीता हो।

गुरु से साक्षात्कार व पूर्व जन्मों का आभास

बसंत पंचमी के दिन, 15 वर्ष की आयु में, पूजा करते समय बालक श्री राम जी को एक अद्भुत अनुभूति हुई। जिसके कारण उनमें न सिर्फ आध्यात्मिक रूप से परिवर्तन हुआ। बल्कि उनका स्वयं से साक्षात्कार भी हुआ। साधना के समय, उन्हें अपने सामने जल रहे दिए से, स्वर्णिम प्रकाश आता हुआ दिखाई दिया। जोकि धीरे-धीरे व्यापक होता चला गया। फिर पूरे साधना कक्ष को प्रकाशमय कर दिया।

 उसी दिव्य प्रकाश में, उन्हें एक छवि दिखाई दी। पहले उन्हें, उनके मन का वहम  लगा। लेकिन धीरे-धीरे उनके संशय के सारे बादल छठ गए। उन्होंने पाया कि यह कोई और नहीं। बल्कि आचार्य जी के पिछले कई जन्मों के गुरु व गायत्री परिवार के परम गुरु सर्वेश्वरानंद जी महाराज थे। उन्होंने बालक श्रीराम को अपना परिचय दिया। उन्हें बताया कि वे पिछले कई जन्मों से, आचार्य जी को उनकी आध्यात्मिक यात्रा में सहायता कर रहे हैं।

इसके अलावा स्वामी सर्वेश्वरानंद जी ने, उन्हें उनके पूर्व जन्मों का आभास भी करवाया। उन्होंने बताया कि कबीर, समर्थ रामदास और रामकृष्ण परमहंस के रूप में, उनका पहले भी इस पृथ्वी पर अवतरण हो चुका है। इसके साथ ही उन्हें इस जन्म में भी विशेष भूमिका निभानी है। उनके गुरु ने उन्हें इस बसंत पर्व पर 3 तीन मुख्य निर्देश दिए।

पहला – 24 वर्ष तक 24 लक्ष्य के गायत्री महापुरुष चरण संपन्न करना। इस अवधि में मात्र गाय के दूध और छाछ पर रहना।

दूसरा – अखंड ज्योति प्रज्वलित कर, एक पत्रिका प्रकाशित करना। एक विशाल संगठन बनाना।

तीसरा – स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेना। 

इतना कहकर उनके गुरु स्वामी सर्वेश्वरानंद जी, उन्हें उनके जीवन के भावी निर्धारणओं को बताकर, दुर्गम हिमालय लौट गए। इस घटना के बाद, पंडित श्रीराम शर्मा का जीवन पूर्णतया परिवर्तित हो गया। इसी प्रकार जाने : Bageshwar Dham – महाराज धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का जीवन परिचयजानिए – धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की शक्तियों का रहस्य।

पंडित श्रीराम शर्मा – संवेदनशील साधक का स्वरूप 

पंडित श्रीराम शर्मा का स्वरूप एक संवेदनशील साधक का था। एक बार उन्होंने एक गाय को कसाई के हाथों से छुड़वाया। उसे घास सहित बैलगाड़ी में, एक बैल की जगह खुद लगकर, उसे 15 मील दूर गौशाला छोड़ा। एक हरिजन महिला छक्कों के हाथ में गैंगरीन था। सभी के मना करने के बाद भी, उन्होंने उसकी बहुत सेवा की। स्वस्थ होने पर, उसने उन्हें ढेरों आशीर्वाद दिए।

एक मुसलमान साहूकार की बहू को, उसके जलते घर से तब बाहर निकाला। जब घरवाले उसकी चिंता न करके, अपने समान की चिंता कर रहे थे। किसानों की व्यथा, उनकी अपनी व्यथा थी। वह किसानों के बीच जाकर, उन्हें प्रेरणा देते। उन्हें नए सुधारों से अवगत कराते हैं। महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए, उन्होंने 20 वर्ष की आयु में, आवल खेड़ा में एक बुनताघर बनाया। 

अपनी सारी धन-संपत्ति, जो पिता से मिली थी। उन्होंने दान कर दी। बालकों के लिए, आँवल खेड़ा में एक इंटर कॉलेज की स्थापना की। जिसका नाम उनकी मां के नाम पर रखा गया। इसके बाद उन्होंने लड़कियों के लिए भी, एक इंटर कॉलेज की स्थापना की। उन्होंने गायत्री तपोभूमि के लिए जमीदारी के सारे फण्ड दे दिए।

मौन तपस्या करने वाले इस साधक ने, गुरु सत्ता के परोक्ष निर्देश पर। रविंद्र नाथ टैगोर से शांतिनिकेतन में, गांधीजी से साबरमती में तथा योगीराज अरविंद से पांडिचेरी में सत्संग कर, आध्यात्मिक क्षेत्र के माध्यम से, व्यक्ति निर्माण व युग निर्माण का बीड़ा हाथ में लिया। पूरे भारत की इन्होंने यात्रा की।

पंडित श्रीराम शर्मा – स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान

उन दिनों कांग्रेस का आंदोलन चरम शिखर पर था। 1930-31 में गांधीजी से जुड़े आंदोलन में, वह घर से निकलना चाहते थे। लेकिन घरवालों ने उन पर, कड़ा प्रतिबंध लगा दिया था। आखिरकार वे शौच के बहाने निकलकर, स्वयं सेवक भर्ती केंद्र तक पहुंच गए। उन दिनों अंग्रेज सरकार का दमन चक्र चल रहा था।

सत्याग्रह के दौरान उनसे तिरंगा छुड़वाने आई पुलिस, उन्हें पिटती रही। जब  झंडा बेहोशी की हालत में, उनसे छूटने लगा। तो उन्होंने उसे मुंह से पकड़ लिया। उस झंडे को अस्पताल जाकर ही निकाला गया। तब से उन्हें श्रीराम मत्त, ‘आजादी के दीवाने’ के रूप में जाना जाने लगा। वे नमक आंदोलन में भी शामिल हुए। नमक के घोल के कीचड़ में, पुलिस से पीटते हुए गिर गए। इतना सब होने के बावजूद भी, आजादी की लगन लगी रही।

वह एक आदर्श स्वयंसेवक थे। सन 1933 में, आसनसोल जेल में श्रीराम मत्त,  महामना मदन मोहन मालवीय, रफी अहमद किदवई, स्वरूपा रानी नेहरू, देवीदास गांधी जगन प्रसाद रावत आदि के साथ कई दिन रहे। इस अवधि में उन्होंने मालवीय जी से मुट्ठी फंड का मूल मंत्र सीखा। स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में भाग लेने के कारण, लगातार छापा पड़ता रहा। उनके घर की कुर्की हो गई।

आंदोलन के दौरान उनके द्वारा लगान बंदी के आंकड़े, इतने प्रमाणिक पाए गए।  प्रशासन ने इस आधार पर, लगन माफी की घोषणा कर दी। जेल यात्रा के दौरान ही, उन्होंने तसले पर कोयले से लिखकर, अंग्रेजी सीखी। अपने मधुर प्रभाव के कारण, वे जेल में बालक कैदियों के शिक्षक बनाए गए। इसी प्रकार जाने : Alfred Ford Biography in Hindiफोर्ड कंपनी के मालिक ने क्यों अपनाया हिन्दू धर्म, बने कृष्ण भक्त।

पंडित श्रीराम शर्मा के तीन अभिभावक

आचार्य जी हमेशा कहते थे कि उनके तीन देवता, तीन संरक्षक या अभिभावक है।  पहली मां गायत्री, जिसका आलोक उन्होंने घर-घर तक पहुंचाया। जिसकी उन्होंने कामधेनु के तरीके से दुग्धपान किया। वह उनके लिए, लगातार कार्य करते रहे। साथ ही अमरत्व की ओर बढ़ते रहें। 

दूसरा हिमालय पिता, जहां वह कई बार गए। उन्होंने एक-एक वर्ष तक, हिमालय की गोद में, एकांत में बैठकर ज्ञानार्जन किया। तीसरा गुरुसत्ता, गुरु के बिना तो अध्यात्म मार्ग में, ज्ञान की बात नहीं हो सकती। इसीलिए भारतीय संस्कृति में भी, गुरु का स्थान सबसे उच्च माना गया है।

हिमालय की गुरु सत्ता से, उन्हें यह भी प्रेरणा मिली। कि उन्हें बहुत सारी पुस्तके लिखनी होगी। ताकि समाज को आध्यात्मिक रूप से जागृत किया जा सके। भविष्य में ऐसा ही हुआ। आचार्य जी ने करीब 3 हजार से अधिक पुस्तक लिखी। इसके साथ ही चारों वेद, 8 उपनिषद, 18 पुराण व योग वशिष्ठ आदि का हिंदी में अनुवाद भी किया।

उन्होंने ज्ञानार्जन की पहली पुस्तक ‘मैं क्या हूं’ लिखी। ‘अखंड ज्योति’ का पहला अंक सन 1940 में प्रकाशित हुआ। ‘गायत्री महाविज्ञान’ ग्रंथ बनकर तैयार हुआ। जिससे गायत्री का ज्ञान घर-घर तक पहुंच गया।

अखिल भारतीय गायत्री परिवार की स्थापना

पंडित श्रीराम शर्मा जी ने अखिल भारतीय गायत्री परिवार की स्थापना की। जिससे उन्होंने लोगों को जोड़ना शुरू किया। इसी दौरान उन्होंने तरीके गायत्री के 24 पुनश्चरण भी पूरे किए। वहीं दूसरी तरफ, एक हृदय विदारक घटना घटी। इसकी भविष्यवाणी उनके गुरु स्वामी सर्वेश्वरानंद जी पहले ही कर चुके थे। उनकी पहली पत्नी का देहांत हो गया। इसके बाद, उन्होंने दूसरा विवाह माता भगवती देवी के साथ किया।

जिन्होंने जीवन पर्यंत उनके साथ रहते  हुए। गायत्री परिवार के विस्तार में, अहम भूमिका निभाई। इसके बाद आचार्य जी ने ऐसे बहुत से कार्य किए। जिससे गायत्री की अलख घर-घर में जगने लगी। इतने कम समय में, उन्होंने जो कुछ भी किया। वह किसी चमत्कार से कम नहीं था। 1956 के गायत्री महायज्ञ को नरवेद नाम दिया गया। समाज के लिए बलिदान, त्याग सब कुछ अर्पित कर देना ही, इसका अर्थ था।

पहला बलिदान उन्होंने अपना दिया। पंडों ने उनका विरोध किया। लेकिन इस विरोध के बावजूद, उन्होंने 1958 में, सहस्त्र  कोटिया गायत्री महायज्ञ आरंभ किया। जिसे ‘ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान’ नाम दिया गया। इस यज्ञ के माध्यम से, एक विशाल संगठन खड़ा हो गया। न जाने कहां से धन आया और लाखों व्यक्तियों की व्यवस्था होती चली गई। इसी प्रकार जाने : Sril Prabhupada Biography in Hindiइस्कॉन मंदिर के संस्थापक का जीवन परिचय।

कार्य स्थली मथुरा का त्याग व शांतिकुंज की स्थापना

पूज्य गुरुदेव जी ने 1971 में, मथुरा को हमेशा के लिए छोड़ने, स्वयं हिमालय जाने व संगठन का कार्य वंदनीय माताजी द्वारा शांतिकुंज हरिद्वार से संचालित करने की घोषणा की। वह विदाई लेने से पूर्व, परिजनों से मिलने भारत भ्रमण पर निकले। उन्होंने जगह-जगह पर गोष्ठियाँ की। सभाओं को संबोधित किया। संगठन को मजबूती का आधार दिया।

समाज के नवनिर्माण व युग निर्माण के लिए, स्वयं बड़ा तप करने व औरों को प्रेरणा देने का आश्वासन देकर। उन्होंने 20 जून 1971 को, मथुरा का त्यागकर दिया। यह बड़ा ही मार्मिक व करुण दृश्य था। उनकी चरण पादुका गायत्री तपोभूमि, मथुरा में स्थापित है। अखंड दीपक जिसे युग ऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने सन 1926 में जलाया था। 

1971 में उनकी तीसरी हिमालय यात्रा एवं मथुरा से विदाई के पश्चात भी, सतत जलता रहा। बसंत पर्व 1972 को, एक बार अपने हिमाचल तप से, उन्हें भावी निर्धारण की चर्चा हेतु शांतिकुंज आना पड़ा। यह निर्धारण था। शांतिकुंज को एक सिद्ध पीठ गायत्री तीर्थ के रूप में सुविकसित करना। पूज्य गुरुदेव ने हिमालय की अपनी चिर परिचित अध्यात्म ऊर्जा व ऋषियों के तप से सिद्ध बने वातावरण में, कठोर तप संपन्न किया। 

अखंड दीपक व मां गायत्री की मूर्ति के समक्ष, 24 कुमारी कन्याओं द्वारा माताजी के साथ, अखंड गायत्री जप संपन्न किया जाता रहा। इन कन्याओं द्वारा, उस स्थान पर यज्ञ भी किया जाता रहा है। यह वही स्थान है। जहां पर ब्रह्मऋषि विश्वामित्र जी ने, नूतन सृष्टि के निर्माण के लिए तप किया था। एक विशाल प्रज्ञा अभियान का यह शुभारंभ था।

इसे शांतिकुंज के संचालन केंद्र से घर-घर तक, जन-जन तक पहुंचाया गया। आस्था संकट के निवारण हेतु, धर्म-तंत्र से किया जा रहा, यह पुरुषार्थ अभूतपूर्व का था। जो आज यह प्रमाणित करता है कि ऐसी दिव्य स्थापना की कितनी आवश्यकता थी। यह नालंदा व तक्षशिला स्तर का प्रशिक्षण केंद्र भी है। इसी प्रकार जाने : कबीर दास का जीवन परिचयचलिए खुद में कबीर को और कबीर में खुद को ढूंढते हैं।

पूज्य गुरुदेव श्रीराम शर्मा का देह त्याग

पूज्य गुरुदेव जी ने अपने देह का त्याग 2 जून 1990 (गायत्री जयंती के दिन) को कर दिया। उन्होंने कई महीने पूर्व ही, अपने शरीर छोड़ने के दिन व समय की घोषणा कर दी थी। पूज्य गुरुदेव का पार्थिव शरीर, आज हमारे बीच नहीं है। लेकिन उनका महान व शानदार व्यक्तित्व हमारे समक्ष है। इसके साथ ही, वह आश्वासन भी कि वे सूक्ष्म शरीर के माध्यम से, न केवल शेष बचे कार्य को संपन्न करेंगे। बल्कि उन सभी को झकझोरते रहेंगे। जो इस संधि बेला में भी प्रसुप्त पड़े रहे हैं।

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