Sindhutai Sapkal Biography in Hindi| श्मशान की रोटी से सम्मान तक

Sindhutai Sapkal Biography in Hindi। Real Life Hero Sindhutai Sapkal। Mother of Orphans – Sindhutai Sapkal। अनाथ व बेसहारा बच्चों की माँ सिंधुताई सपकाल का निधन। सिंधुताई सपकाल का जीवन परिचय। श्मशान की रोटी से सम्मान तक। सिंधुताई सपकाल की संघर्षपूर्ण कहानी। पदमश्री सिंधुताई सपकाल। श्मशान की चिता पर रोटी बनाकर, हजारों अनाथों को पाला। Struggle Story of Sindhutai Sapkal। A Real Life Story of Sindhutai Sapkal। A Legacy of Love And Kindness- Sindhutai Sapkal। Social Activist Dr. Sindhutai Sapkal। Death of Sindhutai Sapkal। Super Hit Marathi Movie – Mee Sindhutai Sapkal।

जीवन के सफर में जब दुनिया, कांटो से राह  सजाती है।

बनकर फूलों की चादर माँ, धरती पर तब बिछ जाती है।

    बिल्कुल ऐसी ही एक मां है। जिसका ममता भरा हाथ, हर एक बच्चे के सर पर होता था। हजारों की तादाद में, इनके बच्चे हैं। इन्होंने खूब गम झेले। जिंदगी जब मुश्किलें पेश करती है। तो हार कर बैठ जाना, सबसे आसान होता है। वहीं कुछ महिलाएं ऐसी हैं। जो न तो कभी हारती हैं। न ही कमजोर पड़ती है। वह उन मुश्किलों से लड़ती है और जीतती है।

    जब आप खुद बेसहारा हो। तो सहारा पाने का सबसे अच्छा तरीका है। आप खुद किसी बेसहारे का, सहारा बन जाओ। ऐसी ही एक नारी जो, हर एक मुश्किल से निकलकर खड़ी हुई। हर परिस्थितियों को ताख पर रखकर, वह ऐसे खिली। कि ये हर एक की माँ बन गई। जिन्होंने माई का खिताब पाया।

     जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी असहाय, बेबस और अनाथों के नाम कर दी। जिन्हें हम सभी महाराष्ट्र की मदर टेरेसा, अनाथों की मां और न जाने ऐसे ही कितने उपनाम से जानते व पहचानते है। पद्मश्री सिंधुताई सपकाल, एक सोशल वर्कर व सोशल एक्टिविस्ट है। जो अनाथ बच्चों के लिए काम करती हैं।

      जज्बा और उम्मीद, यह दोनों ऐसे शब्द है। जो पूरी जिंदगी को बता देते हैं। यह पूरी जिंदगी को परिभाषित कर देते हैं। जज्बा अगर नहीं हो। तो पूरी जिंदगी नरक हो जाती है। अगर उम्मीद न हो, तो जिंदगी नरक से भी बत्तर हो जाती है। एक महिला जिन्होंने जज्बे से, अपनी जिंदगी को जिया। कभी भी अपना जज्बा नहीं हारा। 

इनके पास कुछ भी नहीं था। न पैसा, न घर, न ही परिवार। लेकिन इनके पास जज्बा था। इसके बाद भी, इन्होंने उम्मीद जगाई है। उन हजारों-लाखों अनाथ बच्चों के मन में। जो हमेशा कायम रहेगी। इनके बहुत सारे बच्चे आज कामयाबी के शिखर पर है। यह एक ऐसी सुपर हीरो महिला थी। जिनको सभी प्यार से सिंधु ताई कहते थे।

Struggle Story of Sindhutai Sapkal

Sindhutai Sapkal - An Introduction

 

Mother of Orphans

सिंधुताई सपकाल – एक नज़र

वास्तविक नाम

सिंधुताई सपकाल

उप नाम

सिंधु ताई, अनाथों की मां, चिन्धी माई

जन्म तिथि

14 नवंबर 1948

जन्म स्थान

पिंपरी मेघे,वर्धा, महाराष्ट्र

पिता

अभिमान जी साथे

माता

नाम ज्ञात नहीं

पति

श्रीहरी सपकाल

बच्चे

◆ममता सपकाल(पुत्री)

◆तीन पुत्र

◆दीपक गायकवाड़ (दत्तक)

◆1042 अनाथ गोद लिए बच्चे

शिक्षा

चौथी कक्षा पास

प्रसिद्धि

का

    कारण

अनाथ बच्चों का पालन पोषण

पैसा

भारतीय समाज सुधारक

संचालित संगठन

●सनमति बाल निकेतन, हडपसर 

●मदर ग्लोबल फाउंडेशन, पुणे

●पुणेममता बाल सदन, सासवड 

●माई का आश्रम, अमरावती ●अभिमान बाल भवन, वर्धा ●गंगाधर बाबा छात्रालय,गुहा 

●सिंधु महिला आधार, बाल संगोपन शिक्षण संस्थान, पुणे

 

पुरस्कार व सम्मान 

●पदमश्री अवार्ड (2021)

●दत्तक माता पुरस्कार

●नारी शक्ति पुरस्कार 

●अहिल्याबाई होल्कर पुरस्कार (महाराष्ट्र सरकार)

●Iconic Mother Award ●रियल हीरो पुरस्कार (रिलायंस) 

●मदर टेरेसा पुरस्कार

मृत्यु

4 जनवरी 2022

मृत्यु स्थान

गैलेक्सी हॉस्पिटल, पुणे महाराष्ट्र

मृत्यु का कारण

दिल का दौरा पड़ने से

नेट वर्थ

लगभग ₹20 करोड़

सिंधुताई का प्रारम्भिक जीवन
Early Life of Sindhutai Sapkal

आजादी के ठीक 15 महीने के बाद, 14 नवंबर 1948 को, महाराष्ट्र के वर्धा जिले के पिंपरी मेघे गांव में, एक बच्ची ने जन्म लिया। इनके जन्म पर पूरा परिवार शोक में डूब गया। इस लड़की को नाम दे दिया गया- चिन्धी। गरीबी ने इस लड़की से, चौथी कक्षा के बाद पढ़ाई का हक छीन लिया। मां-बाप ने 10 साल की मासूम-सी उम्र में। इनकी शादी कर दी।  बचपन का हक छीन लिया।

      9 महीने की गर्भवती औरत को घर से निकालकर। पत्नी होने का हक छीन लिया। ससुराल और मायके वालों ने, इनसे हर रिश्ता छीन लिया। जिंदगी ने बहुत कुछ छीना है, सिंधु ताई से। लेकिन इन्होने सिर्फ और सिर्फ बाँटा है, प्यार और ममता। जो कल खुद बेसहारा थी। आज वो हजारों अनाथ बच्चों की सहारा हैं।

         सिंधु ताई के पिता जी का नाम अभिमान साठे था। जो कि जानवरों को चराने का काम किया करते थे। बेटी होने के कारण, सिंधु ताई को घर में सभी लोग नापसंद करते थे। घर में उन्हें ग़ैरजरुरी माना जाता था। इसलिए घर के लोग, उन्हें चिन्धी कहकर बुलाते थे। चिन्धी यानी कि पुराने कपड़े का टुकड़ा। हाँलाकि, उनके पिता अभिमान ऐसे नही थे। वह सिंधु को पढ़ाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने मां के खिलाफ जाकर, जानवर चराने के बहाने स्कूल भेजते थे।

सिंधुताई का पढ़ने के लिए संघर्ष
Sindhutai Sapkal- Struggled for Education

सिंधुताई को पढ़ने का बहुत शौक था। उन्होंने अपने एक इंटरव्यू बताया कि उस कठिन समय में, वह कैसे पढ़ाई किया करती थी। उन्होंने बताया कि उनकी मां नहीं चाहती थी कि वह पढ़ाई करें। लेकिन पिता की वजह से, वह पढ़ाई कर सकी। उनकी मां उन्हें भैंस चराने के लिए भेजती थी। लेकिन जब भैंस पानी में चली जाती थी। तो वो स्कूल चली आती थी।

      लेकिन ऐसा करने में, समय का ध्यान नहीं रहता था। देर से स्कूल पहुंचने पर, टीचर से डांट सुननी पड़ती। एक दिन उनकी  भैंस पानी निकलकर, किसी के खेत में चली गई। उस किसान ने स्कूल में आकर, टीचर से उनकी शिकायत कर दी। तब जाकर टीचर को सारी बात पता चली। टीचर को काफी बुरा लगा। लेकिन वह उनके पढ़ने की लगन से, इतना प्रभावित हुए। कि उन्होंने बिना परीक्षा दिए। उन्हें चौथी कक्षा में पास कर दिया।

       उन्होंने बताया कि पढ़ने के लिए, उनके पास स्लेट तक नहीं थी। उन दिनों किराना स्टोर पर पर्ची मिलती थी। जिसमे एक तरफ लिखा होता था। वह उसे पढ़ती थी। फिऱ दूसरी तरफ लिखने की कोशिश करती थी। क्योंकि पढ़ने के लिए, कुछ भी उपलब्ध नहीं था। ऐसे में माहौल में, वो कागज़ को चूहों की बिल में छुपा देती थी। लेकिन चूहा, उन्हें अंदर तक ठकेल लेता था। एक दिन उन्होंने कागज़ को नेवले की बिल में डाल दिया।

   उस कागज पर मराठी के कवि गजानन त्र्यंबक माडखोलकर की एक कविता थी। उस कविता का भाव कुछ ऐसा था। कि जब औरतें पानी भरने गांव से बाहर जाएं। तब कुछ पढ़ना सीख ले। क्योंकि घर में पढ़ना तो संभव नहीं था। जब इन्होंने कागज निकालने के लिए, हाथ डाला। तो नेवले ने  उनका हाथ काट लिया।

      इसलिए उनके बाएं हाथ की छोटी अंगुली हमेशा टेढ़ी रही। उन्हें पढ़ने की बहुत भूख थी। उस कविता पर, उनके खून की एक धार टपक रही थी। तो पढ़ने के लिए, उन्होंने एक तरह से नेवले से लड़ाई की। अपना खून भी बहाया। लेकिन गरीबी, पारिवारिक जिम्मेदारी और कम उम्र में शादी होने के कारण। उन्हें पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। वह सिर्फ चौथी कक्षा तक ही पढ़ पाई।

सिंधुताई का बाल-विवाह
Child Marriage of Sindhutai Sapkal

जब सिंधु ताई 10 वर्ष की थी। तब उनका विवाह एक 30 वर्षीय व्यक्ति श्रीहरी  सपकाल से कर दिया गया। वह अपने पति के साथ वर्धा के नौकाल जंगल में बस गई। जब वह 20 साल की हुई। तब तक, वह तीन बच्चों की मां बन चुकी थी। इन परिस्थितियों को झेलते हुए। उन्होंने कभी आशा नहीं खोई। इसीलिए असहाय और अन्याय के खिलाफ लड़ने का जुनून और भी बढ़ गया।

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     एक बार गांव वालों के लिए, मुखिया के खिलाफ़ आवाज उठाई। उनकी मांग थी कि वह गोबर को इकट्ठा करके, जंगल में ले जाते हैं। उन्हें गोबर उठाने की मजदूरी मिलनी चाहिए। उस समय वर्धा में रंगनाथन कलेक्टर थे। सिंधुताई ने, उनसे मुखिया की शिकायत कर दी। उन्हें उनकी मजदूरी के पैसे नही मिलते। रंगनाथन कलेक्टर उनकी बात पर सहमत हो गए। इस तरह उन्हें न्याय मिला। लेकिन सिंधुताई के इस विरोध के बदले। उन्हें काफी महंगी, कीमत चुकानी पड़ी।

   असल मे, अपना अपमान मुखिया को सहन नहीं हुआ। मुखिया ने अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए, श्रीहरि को सिंधुताई के खिलाफ कर दिया। मुखिया ने श्रीहरि पर सिंधुताई को घर से बाहर निकालने के लिए विवश कर दिया। वो भी जब वह 9 महीने की गर्भवती थी। उस वक्त उनके पति ने उन्हें पेट पर लात मारकर, घर से निकाल दिया। ऐसे में, उसी रात उन्होंने एक तबेले में, एक बेटी को जन्म दिया।

      ऐसे में सिंधुताई ने, खुद ही अपनी नाल पत्थर मारकर काटी थी। उन्होंने बताया कि गाय-भैस के तबेले में रहकर, उन्होंने संघर्ष शुरू किया। तब सिंधुताई अपनी नवजात बच्ची को लेकर, अपने मां के घर गई। तो उनकी मां ने भी, उन्हें घर में रखने से इंकार कर दिया। उसी वक्त हाल ही में, उनके पिताजी का देहांत हो चुका था। वरना सिंधुताई के पिता, अवश्य ही अपनी बेटी को सहारा देते।

सिंधुताई का संघर्षपूर्ण जीवन
Sindhutai Sapkal - Struggling Story

जीवन जीने की कोई उम्मीद न बची होने के कारण। सिंधु ताई ने दुखी होकर, आत्महत्या के बारे में भी सोचा। अब सिंधुताई के पास रहने का कोई ठिकाना नहीं था। इसलिए उन्हें प्लेटफार्म का रुख करना पड़ा। जिंदा रहने के लिए, वह अपनी 10 दिन की बच्ची के साथ, सड़कों और प्लेटफार्म पर भीख मांगने लगी। क्योंकि उन्हें पुरुषों द्वारा, रात में उठाए जाने का डर था।

    इसलिए वह अक्सर रात कब्रिस्तान में बिताती थी। उन्होंने जले हुए मुर्दे के ऊपर फेंके गए, आटे से रोटियां बनाकर खाई थी। उनकी हालत ऐसी थी कि लोग उन्हें कब्रिस्तान में देखे जाने के बाद से, भूत कहने लगे थे। स्टेशन में भीख मांगते हुए। उन्होंने कई बेसहारा और माता-पिता के द्वारा छोड़े गए, अनाथ बच्चों को देखा। उनकी हालत देखकर, सिंधुताई ने उन्हें गोद ले लिया। उन्होंने शुरुआत में, स्टेशन पर भीख मांगकर भी, बेसहारा बच्चों का पेट भरा। तब बच्चे उन्हें, माई कहकर पुकारने लगे थे।

सिंधुताई का बेसहारा बच्चो के लिए योगदान व संस्थाए
Sindhutai Sapkal - Contribution, Work and Charity

सिंधुताई ने पुणे में सन्मति बाल निकेतन संस्था भी शुरू की। उनके पास जो भी आया। उन्होंने सबको अपने बच्चों के रुप में अपनाया। आपको जानकर हैरानी होगी कि उन्होंने गोद लिए बच्चों व उनकी बेटी के मन से पक्षपात की भावना को खत्म करने के लिए। अपनी बेटी को ‘श्री दगडूसेठ हलवाई ट्रस्ट’ को दान कर दिया।

        सिंधुताई का परिवार बहुत बड़ा है। उनके खुशहाल परिवार में 207 दामाद, 36 बहुएं और 1000 से ज्यादा पोते-पोतियां हैं। उन्होंने अपने जीवन काल में 1450 बच्चों को गोद ले लिया था। जिन बच्चों को,  उन्होंने गोद लिया। उनमें से कई पढ़-लिखकर डॉक्टर और वकील बने। जिनमें उनकी खुद की बेटी भी शामिल है। उनमें तो कुछ बच्चे PhD कर रहे हैं।

      उनमें तो कुछ तो अपने माँ के जैसे ही बेसहारा बच्चों को सहारा दे रहे है। यानिकि अनाथ आश्रम चला रहे हैं। सिंधु ताई के द्वारा शुरु किया गया। यह सिलसिला महाराष्ट्र की 6 बड़ी समाज सेवी संस्थाओं में तब्दील हो चुका है। इन संस्थाओं में 1500  से ज्यादा बेसहारा बच्चे, एक परिवार की तरह रहते हैं।

     इन संस्थाओं में बच्चों के लिए, अनाथ शब्द का उपयोग वर्जित है। क्योंकि इन सभी बच्चों की मां का नाम सिंधुताई है। सिंधु ताई के कई बच्चों की शादी भी हो चुकी है। सिंधुताई के संस्थानों में बेसहारा बच्चों को ही नहीं। बल्कि विधवा महिलाओं को भी आसरा मिलता है। वह खाना बनाने से लेकर, बच्चों की देखरेख का काम करती है।

सिंधुताई को सम्मान व पुरस्कार
Sindhutai Sapkal - Awards and Honors

सिंधुताई को उनके समर्पण और काम के लिए 273 से ज्यादा पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। सिंधुताई को 2021 में पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा उन्हें 750 से ज्यादा पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें अहिल्याबाई होल्कर पुरस्कार और दत्तक माता पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

       सिंधुताई को जो भी पुरस्कार की धनराशि मिलती है। वह उसका इस्तमाल अपने बच्चों के लिए, घर बनाने व जमीन  खरीदने के लिए करती है। सन्मति बाल निकेतन पुणे के हड़पसर इलाके में एक बड़ा अनाथालय बनाया जा रहा है। जहां 300 से ज्यादा बच्चे रह सकेंगे। 

      80 साल की उम्र में, उनके पति ने उनसे माफी मांगी थी। सिंधु ताई ने भी, उन्हें अपने बच्चे के रूप में स्वीकार किया है। क्योंकि अब वो केवल एक मां हैं। इतना ही नहीं, जो कोई भी उनके आश्रम जाता था। तो वो अपने पति के लिए, बड़े गर्व से बताती थी। कि वह उनका सबसे बड़ा बेटा है।

सिंधुताई पर बनी बायोपिक - मी सिंधुताई सपकाल
Biopic on Sindhutai - Mee Sindhutai Sapkal

   मराठी भाषा में अनंत महादेवन के द्वारा बनाई गई फिल्म- मी सिंधुताई सपकाल 2010 में रिलीज हुई। जो सिंधु ताई सपकाल की सच्ची कहानी से, प्रेरित एक बायोपिक फ़िल्म है। इस फिल्म को 54वें लंदन फिल्म फेस्टिवल में, अपने विश्व प्रीमियर के लिए चुना गया था।

 सिंधुताई अपने सफल कामों की वजह से, अक्सर किसी न किसी शो में जाती रहती है। इसी क्रम में, TV इंडस्ट्री के सबसे फेमस शो KBC में भी, उनको बुलाया गया। जहां मेगा स्टार अमिताभ बच्चन ने, उनके पास छूकर, उनका स्वागत किया।

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सिंधुताई सपकाल का निधन
Death of Sindhutai Sapkal

1500 बेसहारा बच्चों की मां सिंधु ताई ने 4 जनवरी 2022 को, इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी मृत्यु गैलेक्सी हॉस्पिटल, पुणे में दिल का दौरा पड़ने से हुई। सिंधुताई बेशक नहीं रही। लेकिन सिंधु नदी की तरह ही, उनकी ममता की धारा युगों-युगों तक। उनके संस्कारों में बहती रहेगी। अलविदा सिंधुताई ।

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