मदर टेरेसा – कौन हैं, जीवन परिचय, जन्म कहां हुआ था, पूरा नाम, कहां की थी, कार्य, मृत्यु कहाँ हुई थी, नोबेल पुरस्कार [ mother teresa biography in hindi, story in hindi, full name, janm kahan hua tha, essay ]
मदर टेरेसा का जीवन परिचय
Mother Teresa Biography in Hindi
जिंदगी उसी की जिसकी मौत पर जमाना अफसोस करें। यूं तो हर शख्स आता है, दुनियाँ में मरने के लिए। ऐसे बहुत से चेहरे आते-जाते रहते हैं। लेकिन लोगों के दिलों पर वही राज करते हैं। जिन्होंने इस देश और समाज के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर दिया। अपनी एक अलग पहचान बनाई। देश व समाज को एक अलग दिशा दी। ऐसे ही अगर आप से कहा जाए कि दो शब्द हैं- दया और निस्वार्थ भाव।
सबसे पहले आपके जेहन में क्या आता है। सच ही कहा जाता है कि अपने लिए तो सब जीते हैं। लेकिन जो अपने स्वार्थ को पीछे छोड़ कर, दूसरों के लिए काम करता है। दूसरों के लिए जीता है। वही महान होता है। आज आप जानेंगे। ऐसी ही एक शख्सियत के बारे में। जिनका नाम है- मदर टेरेसा। यह भारत की नहीं होने के बावजूद, भारत आई। यहां के लोगों से असीम प्रेम कर बैठी। यहीं रहकर उन्होंने आगे का अपना जीवन बिताया। उन्होंने बहुत से महान कार्य किये।
मदर टेरेसा का नाम जेहन में आते ही, हम सभी के मन व हृदय में श्रद्धा का भाव उमड़ पड़ता है। हमारे चेहरो पर एक विशेष चमक आ जाती है। वह एक ऐसी महान व पवित्र आत्मा थी। जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन दुनियाँ भर के दीन-दुखी, बीमार-असहाय और गरीबों के उत्थान में समर्पित कर दिया। यही कारण है कि सारे विश्व मे उन्हें श्रद्धा व प्रेम की मौत मूर्ति के रूप में देखा जाता है। इसी प्रकार जाने : Founder of Microsoft – Bill Gates के सफलता की पूरी कहानी।
Mother Teresa – An Introduction
मदर टेरेसा – शांति की मूर्ति एक परिचय | |
पूरा नाम | एग्नेस गोंझा बोयजीजु(Agnes Gonxha Bojaxhiu) |
प्रसिद्ध नाम | • मदर टेरेसा (Mother Teresa) • कलकत्ता की संत टेरेसा |
जन्म | 26 अगस्त 1910 |
जन्म स्थान | उस्कुब, उस्मान साम्राज्य (वर्त्तमान सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) |
पिता | निकोला बोयजीजु (व्यवसाई) |
माता | द्रनाफिले बोयजीजु |
बड़ी बहन | आगा बोयजीजु |
भाई | लाज़र बोयजीजु |
धर्म | रोमन कैथोलिक ईसाई |
कार्य | • अल्बेनियाई रोमन कैथोलिक नन • Missionaries of Charity की स्थापना |
अभिरुचि | मानव व समाज सेवा करना |
वैवाहिक जीवन | अविवाहित |
नागरिकता | • उस्मान (1910-1912) • सर्बिया (1912-1915) • बुल्गारिया(1915-1918) • यूगोस्लाविया (1918-1948) • भारत (1948-1997) • अल्बेनिया (1991-1997) |
पुरस्कार व सम्मान | • पद्मश्री (1962)• भारत रत्न (1980) • नोबेल पुरस्कार (1979) • ईयर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर(1985) |
मृत्यु | 5 सितंबर 1997 |
मृत्यु स्थान | कोलकाता, पश्चिम बंगाल, भारत |
मदर टेरेसा का प्रारम्भिक जीवन
मदर टेरेसा का पूरा नाम एग्नेस गोंझा बोयजीजु (Agnes Gonxha Bojaxhiu) था। मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को हुआ था। इनका जन्म Skopje, जो कि अब Republic of Macedonia की राजधानी में हुआ था। यह एक अल्बेनियन भारतीय महिला थी। उनके पिताजी का नाम निकोला बोयजीजु था। वह एक साधारण व्यवसायी थे। उनकी माता का नाम द्रनाफिले बोयजीजु था। वह एक पवित्र, दयालु और गरीबों की खिदमत करने वाली महिला थी।
एग्नेस बचपन से ही बहुत शांत, सुलझी और लोगों की मदद करने का स्वभाव रखती थी। उनके पिता स्थानीय चर्च के साथ-साथ, शहर की राजनीति में गहराई से शामिल थे। एग्नेस अपने पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी थी। उनके जन्म के समय, उनकी बड़ी बहन आगा बोयजीजु उम्र 7 साल थी। जबकि बड़े भाई लाज़र बोयजीजु उम्र 2 साल थी। Mother Teresa के दो भाई छोटी उम्र में ही गुजर गए थे।
1919 में, उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। तब वह मात्र 9 साल की थी। उनके पिता के बिजनेस पार्टनर kool, पूरा पैसा लेकर फरार हो गए। उसी समय world war। का दौर खत्म हुआ था। जिसकी वजह से, उनके परिवार पर आर्थिक तंगी का बोझ बढ़ गया। इसके बाद उनकी व पूरे परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी मां द्रना पर आ गई। इसके लिए उन्होंने कपड़े सिलना व एंब्रॉयडरी का काम शुरू किया।
एग्नेस बचपन से ही सुंदर और परिश्रमी लड़की थी। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा एक कान्वेंट स्कूल से ली। उन्हें पढ़ाई के साथ-साथ, गाना भी बेहद पसंद था। वह और उनकी बहन, पास के गिरजाघर में मुख्य गायिका थी। इसी प्रकार जाने : Sindhutai Sapkal Biography in Hindi। शमशान की रोटी से सम्मान तक।
मदर टेरेसा – नन बनने का संकल्प
ऐसा माना जाता है कि जब वह मात्र 12 साल की थी। तब वे Letnica से church of Black Madonna की धार्मिक यात्रा में शामिल हुई। जिसके कारण में धार्मिक जीवन की ओर, एक अद्भुत झुकाव महसूस हुआ। तभी उन्हें यह अनुभव हो गया था। वह अपना सारा जीवन मानव सेवा में लगाएंगी।
एग्नेश का धार्मिक जीवन से लगाव, इतना बढ़ता चला गया। वे हाईस्कूल से ग्रेजुएट होने तक 18 साल की हो चुकी थी। इसके बाद उन्होंने नन बनने की ठान ली। नन बनने के लिए कई तरह के वचन लेने पड़ते हैं। जिनमें कभी शादी न करना। सच्चाई की राह पर चलना। वफादार रहना। जरूरतमंदों की मदद करना आदि शामिल है। इसमें उनके परिवार के माहौल का भी, एक बड़ा योगदान था।
एग्नेस को नन बनने के लिए Father Franzo Zamric ने प्रोत्साहित किया था। उनका कहना था कि लोगों की सेवा करने के लिए, हमें अपनी सुख-सुविधाओं का त्याग करना चाहिए। दुनिया की मोह माया की चीजों को छोड़कर कर ही। हम गरीबों की सेवा पूरे दिल से कर सकते हैं। फादर की यह बात एग्नेस को बहुत ज्यादा प्रभावित कर गई। उन्होंने दुनिया की सारी चीजों को त्याग कर, नन बनने की दिशा में कदम उठा लिया।
मदर टेरेसा – सिस्टर्स ऑफ लोरेंटों मे शामिल
18 साल की उम्र में उन्होंने ‘सिस्टर्स ऑफ लोरेटो‘ में शामिल होने का फैसला कर लिया। इसके बाद, वह आयरलैंड गई। लंको अपनी मनपसंद फ्रेंड के ऊपर नाम रखने का मौका दिया जाता है यही वह समय था। जब उन्होंने अपना नाम Lisieux St. Therese से प्रभावित होकर Mary Teresa रख लिया।
आयरलैंड में उन्होंने सबसे पहले अंग्रेजी भाषा सीखी। वह भारत के बारे में सुनकर बहुत प्रभावित थी। लोरेटो की सिस्टर, अंग्रेजी भाषा में ही भारत के बच्चों को पढ़ाती थी। इसलिए उनका अंग्रेजी सीख सीखना जरूरी था।
भारत मे मदर टेरेसा का आगमन
Sister Teresa आयरलैंड से 6 जनवरी 1929 को Kolkata में Loreto Convent पहुँची। यहां पर उनकी training शुरू हुई। जिसके तहत, उन्हें सेंट मैरी स्कूल में लड़कियों को पढ़ाने का काम सौंपा गया। यह स्कूल लोरेटो सिस्टर द्वारा संचालित था। जिसे शहर की सबसे गरीब लड़कियों को पढ़ाने के लिए संचालित किया जा रहा था।
मदर टेरेसा को यहाँ history और geography पढ़ानी थी। इसके लिए उन्होंने फर्राटेदार हिंदी और बांग्ला बोलना सीखा। Mother Teresa ने अपने आप को समर्पित कर दिया। गरीब बच्चों की शिक्षा के साथ-साथ, उन सभी बच्चों के जीवन से गरीबी दूर करने के लिए।
24 मई 1937 को Mother Teresa ने अंतिम प्रतिज्ञा ली। गरीबी, शुद्धता और आज्ञाकारिता के जीवन के लिए। जैसी कि लोरेटो नन की प्रमुख प्रथा थी। उन्हें अपनी अंतिम प्रतिज्ञा लेने के बाद ‘मदर’ की उपाधि दी जाती थी। मैरी टेरेसा ने भी अपनी प्रतिज्ञा लेने के बाद, मदर की उपाधि धारण की।
इसके बाद से, उन्हें पूरे विश्व मे Mother Teresa के नाम से जाना जाने लगा। मदर टेरेसा ने सेंट मैरी स्कूल में, अपना अध्यापन कार्य जारी रखा। Mother Teresa सन 1944 में सेंट मैरी स्कूल की principle बन गई। इसी प्रकार जाने : Kailash Satyarthi ऐसे समाजसेवी, जो लाखों बच्चों मे एक उम्मीद की किरण है।
एक बार मदर टेरेसा ट्रेन से, दार्जिलिंग जा रही थी। तभी उन्हें ट्रेन में, कुछ देर के लिए आंख लग गई। उन्हें महसूस हुआ कि एक तेज रोशनी के साथ, ईश्वर उनके सामने प्रकट होते हैं। वह उनसे कहते हैं। वह सही रास्ते पर चल रही हैं। बहुत से लोगों को उनकी मदद की जरूरत है। इस सपने के बाद, जब उनकी आंख खुली। तब उनका विश्वास और भी गहरा होता चला गया।
मदर टेरेसा ने निश्चय कर लिया। अब उन्हें पूरा जीवन सेवा ही करनी है। उन्होंने तय किया कि अब वह स्कूल छोड़कर। कोलकाता के सबसे गरीब तबके की स्लम में जाकर मदद करेंगी। लेकिन उन्होंने वह कॉन्वेंट की तरफ से वफादारी का वचन ले रखा था। इसलिए बिना उनकी इजाजत के, वे इसे छोड़ भी नहीं सकती थी।
भारत – पाकिस्तान बँटवारे का प्रभाव
मदर टेरेसा ने 1947 में, भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौरान। हिंदू मुस्लिमो की सैकड़ो लाशों को, सड़को व गटर में सिर्फ पड़े हुए ही नहीं देखा। बल्कि इंसानियत की हत्याएं होते हुए भी देखी। इन सबको देखकर, वह स्तब्ध रह गई। वह गरीबों के लिए, तो काम करती ही थी। बच्चों से भी उनका लगाओ गजब का था। उनका मानना था कि बच्चे ईश्वर का रूप होते हैं।
इसलिए उन्होंने बंटवारे के दौरान, जो बच्चे अपने परिवार से बिछड़ गए थे। उन्हें एक जगह पर लाकर रखा। उनके खाने-पीने का पूरा प्रबंध किया। 1948 में उन्हें सेंट मैरी स्कूल छोड़ने की official permission भी मिल गई। उसके बाद से, उन्होंने नीली बॉर्डर वाली साड़ी पहनने की शुरुआत की। उन्होंने 6 महीने की बेसिक मेडिकल ट्रेनिंग ली।
इसके बाद, वह कोलकाता के स्लम में बेसहारा, बेघर, बिछड़े लोगों और बच्चों की सेवा करने के लिए वहां चली गई। मदर टेरेसा ने इस शहर के गरीब लोगों की मदद करने के लिए ठोस कदम उठाए। उन्होंने ओपन ईयर स्कूल खोला। जर्जर हो चुकी इमारतों में रहने वाले लोगों के लिए, घर की स्थापना की। इसने शहर की सरकार को, मदद करने के लिए मजबूर कर दिया।
मदर टेरेसा – Missionaries of Charity की स्थापना
अक्टूबर 1950 में, उन्हें मिशनरीज ऑफ चैरिटी को खोलने की मान्यता मिल गई। जिसे उन्होंने चुनिंदा सदस्यों की मदद से स्थापित किया। इसमें ज्यादातर रिटायर्ड शिक्षक और सेंट मैरी स्कूल के छात्र थे। जैसे-जैसे मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की बात फैलती गई। वैसे-वैसे ही पूरे देश और दुनिया से पैसा इकट्ठा होना शुरू हो गया।
Mother Teresa की मदद का दायरा भी तेजी से बढ़ने लगा। साल 1950 और 60 के दशक के दौरान कॉलोनी, अनाथालय, नर्सिंग होम, पारिवारिक क्लीनिक, मोबाइल फ़ास्ट क्लीनिक की स्थापना की।
फरवरी 1965 को Pope Paul Vl ने मिशनरीज आफ चैरिटी व मदर टेरेसा की प्रशंसा की। इसके बाद से, मदर टेरेसा और मिशनरीज ऑफ चैरिटी की दुनिया भर में चर्चा होने लगी। 1971 तक मदर टेरेसा ने अमेरिका में पहला जानकर खोला जान घर खोलने के लिए नियर की यात्रा की। इसी प्रकार जाने : नीम करोली बाबा की कहानी। नीम करोली बाबा के चमत्कार (पूर्ण जानकारी)।
मदर टेरेसा को पुरस्कार व सम्मान
Pope Paul Vl से मिली वाहवाही, तो एक शुरुआत मात्र थी। उनके बिना थके और बिना रुके। लोगों की निस्वार्थ भाव से मदद करने के लिए, उन्हें बहुत सारे सम्मान दिए गए। उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान, “भारत रत्न” से भी नवाजा गया। इसके बाद सोवियत संघ की शांति समिति की ओर से, स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया।
1979 में मदर टेरेसा को उनके काम के लिए, नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस पुरस्कार के साथ, उन्हें $1,90,000 का चेक भी दिया गया। जिसकी भारतीय रुपए में 1 करोड़ 41 लाख की रकम होती है। इस पूरी रकम को, उन्होंने गरीबों की सेवा में लगा दिया।
1982 में Mother Teresa Lebanon के शहर Beirut में गई। यहां उन्होंने मुस्लिम और ईसाई धर्म के बेसहारा व असहाय बच्चों के लिए, सहायता गृह का निर्माण करवाया। यहां से वह 1985 में न्यूयॉर्क लौट आई। संयुक्त राष्ट्र सभा की 40वीं वर्षगांठ पर, ओजपूर्ण भाषण दिया। यहां रहकर, उन्होंने HIV Aids से पीड़ित लोगों के लिए। एक होम क्लीनिक भी खुलवाया।
मदर टेरेसा की म्र्त्यु
मदर टेरेसा की उम्र जैसे-जैसे बढ़ती गई। वैसे-वैसे ही उनकी सेहत गिरती चली गई। फिर धीरे-धीरे एक ऐसा समय भी आया। जब वह ह्रदय, फेफड़े व किडनी की समस्याओं के साथ। एक लंबे समय तक बीमार रही। फिर 87 वर्ष की उम्र में, सितंबर 1997 को, उन्होंने अपना देह त्याग दिया।
1997 में उनकी मृत्यु के समय मिशनरीज ऑफ चैरिटी की कुल संख्या 4000 से अधिक हो गई थी। पूरे विश्व के 130 देशों में मदर टेरेसा के 610 फाउंडेशन थे।
मदर टेरेसा और उनसे जुड़े चमत्कार
साल 2002 में मोनिका बेसरा नाम की एक महिला ने दावा किया। मदर टेरेसा के चमत्कार की वजह से 1998 में, उनके पेट का ट्यूमर ठीक हो गया। Missionaries of Charity के फादर ने एक दूसरा चमत्कार बताया। एक Brazilian व्यक्ति Marcilio Andrino जो दिमाग के एक वायरल इन्फेक्शन से गुजर रहे थे। वह coma में चले गए।
इसके बाद, उनके परिवार वालों ने मदर टेरेसा से प्रार्थना की। जब अन्द्रिनो को ब्रेन सर्जरी के लिए ऑपरेशन थिएटर में ले जाया गया। तो वह अचानक से उठ कर बैठ गए। उनका brain infection भी पूरी तरह से ठीक हो चुका था। 17 दिसंबर 2015 को एक और चमत्कार की मान्यता Vatican City को pope Francis दी।
इसके कारण मदर टेरेसा को रोमन कैथोलिक चर्च एक सन्त के रूप में मान्यता मिली। मदर टेरेसा को, उनकी मृत्यु के 19वीं वर्षगांठ पर संत की उपाधि दी गई। यह कार्यक्रम सेंट पीटर्स स्क्वायर में हजारों सन्त, बिशप और कैथोलिक धर्म को मानने वाले लोगों के बीच हुआ। निस्वार्थ भाव से जरूरतमन्दों की सेवा करने के लिए। उन्हें 20वीं शताब्दी का सबसे सर्वश्रेष्ठ इंसान घोषित किया गया। इसी प्रकार जाने : स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय। नरेन्द्रनाथ दत्त से स्वामी विवेकानंद बनने तक का सफर।
मदर टेरेसा से जुड़े विवाद
Controversy of Mother Teresa
मदर टेरेसा का जीवन भी विवादों से गिरा हुआ रहा। उनके ऊपर एक वर्ग द्वारा आरोप-प्रत्यारोप लगातार लगते रहे। जिनके बारे में, आपको भी जाना चाहिए। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं –
1. एक ब्रिटिश जर्नलिस्ट Robin fox ने बताया कि मदर टेरेसा का आश्रम। किसी भी तरह से एक hospital नहीं था। यहां पर साध्य और असाध्य रोगों वाले, मरीजों को एक साथ रखा जाता था। जिन मरीजों का इलाज अन्य हॉस्पिटल में आसानी से हो सकता था। उनकी भी यहां दर्दनाक मौत हो जाती थी। मदर टेरेसा ने अपने आश्रम का एक दूसरा नाम भी रखा था। House of die यानी मरने वालों का घर।
2. मरते हुए हिंदू और मुसलमानों से पूछा जाता था। क्या उन्हें जन्नत या स्वर्ग का टिकट चाहिए। Patient के हां, बोलते ही। उनका धर्म परिवर्तन करा दिया जाता था। उनसे कहा जाता था कि उनके कष्ट को कम करने के लिए, इलाज किया जा रहा है। उनके सिर पर पानी डालकर, उसे baptize यानी कि क्रिश्चियन बनाया जाता था।
3. अपने आश्रमो से इकट्ठा किया गया। चंदा वो Bank for the work of religion में जमा करती थी। यह बैंक Vatican Church मैनेज करता था। जिसके लिए, वह काम किया करती थी। सालों से जमा किए गए, पैसे इतने ज्यादा थे। बैंक में आधे से ज्यादा पैसा, मदर टेरेसा का ही था। अगर वह उन पैसों को बैंक से निकाल लेती। तो शायद बैंक बर्बाद हो जाता। शायद इसी कारण से आश्रमों की हालत अधिक बुरी थी।
4. मदर टेरेसा के 8, ऐसे भी आश्रम थे। जहां एक भी गरीब आदमी नहीं रहता था। यह आश्रम सिर्फ चंदा इकट्ठा करने व धर्म परिवर्तन करने के लिए बनाए गए थे।
5. मदर टेरेसा की दोस्ती कुछ ऐसे लोगों के साथ थी। जिन्हें गवर्नमेंट क्रिमिनल घोषित कर चुकी थी। Robert Maxwell 1 व Charles Keating उन लोगों में से थे। जो आश्रम में करोड़ों रुपए का दान करते थे। इन पर हजारों करोड़ ठगने का आरोप भी लगा था।
6. 1975 में लोग इमरजेंसी के दौरान परेशान थे। लेकिन मदर टेरेसा ने इमरजेंसी का समर्थन किया था। क्योंकि इनकी दोस्ती कुछ बड़े politician के साथ थी।
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