Arunima Sinha Biography in Hindi | जिन्होंने बिना पैर के दुनियाँ फतेह की | साहस से शिखर तक का सफर।

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  हम सब ने अपने जीवन में कुछ ना कुछ सपने पाल रखे हैं। कुछ लोग साधारण जिंदगी पाकर खुश हैं। कुछ लोग असाधारण बनकर समाज के लिए,अपनी एक मिसाल कायम करना चाहते हैं। बीता हुआ कल बदला नहीं जा सकता है। लेकिन आने वाला कल आपके हाथ में होता है। अपने सपनों को जीने के लिए, अपने लक्ष्य को पाने के लिए। सिर्फ कड़ी मेहनत ही काफी नहीं है।

इंसान को उसी स्तर की मानसिक व शारीरिक  परीक्षाओं से भी गुजरना पड़ता है। अर्थात जितने बड़े सपने होंगे। उतना ही कठोर इम्तिहान भी होगा। भारत के अरुणिमा सिन्हा, एक ऐसी ही महिला है। जिनके सामने मौत ने भी, दो-दो बार घुटने टेक दिए। जिन्होंने अपना एक पैर होने के बावजूद भी, एवरेस्ट जैसे दुरुह पहाड़ को चढ़ने में सफलता हासिल की।

Arunima Sinha Story

अरुणिमा सिन्हा का बचपन
Arunima Sinha Early Life

 उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, से लगभग 200km दूर अंबेडकरनगर में  अरुणिमा का जन्म हुआ। इनका जन्म सन 1988 में हुआ। इनके पिता जी Army में इंजीनियर थे। इनकी माताजी medical department में सुपरवाइजर थी। तीन साल की उम्र में ही, इनके पिताजी का देहांत हो गया। पिता की मृत्यु के बाद, घर की सारी जिम्मेदारी इनके जीजा जी पर आ गई। जिन्हें यह भाई साहब कहा करती थी। इन्होंने अंबेडकर नगर से ही अपनी स्कूलिंग की। फिर वही से graduation भी किया।

अरुणिमा सिन्हा को शुरू से ही, sports  में काफी अधिक रुचि थी।  इन्हें football, volleyball, swimming जैसे sports बहुत पसंद थे। यह वॉलीबॉल की चैंपियन भी थी। परिस्थितियों के सामने, अपने dreams को अलग रखकर। इन्होंने नौकरी करने के लिए प्रयास शुरू किए। इनके भाई साहब ने सलाह दी। तुम मिलिट्री की तैयारी करो। क्योंकि वहां पर बहुत सारे स्पोर्ट्स में भी भागीदारी का मौका मिलेगा।

इसके बाद इन्होंने मिलिट्री के बहुत सारे एग्जाम दिए। अंततः इनका चयन CISF(Central Industrial Security Force) में हो गया। लेकिन इनके admit card  में date of birth गलत हो गई थी। जिसे सही कराने, इन्हें दिल्ली जाना पड़ा। जहां से इनके संघर्षों का दौर शुरू होता है। शायद इसे हम उनके जीवन का turning point भी कह सकते हैं।

Train Accident Arunima Sinha

 अरुणिमा सिन्हा 11 अप्रैल 2011 को पद्मावती एक्सप्रेस से लखनऊ से दिल्ली जा रही थी। रात में करीब 1:00 बजे कुछ शातिर  अपराधी ट्रेन के डब्बे में घुस आए। उन्होंने  अरुणिमा को धमकाते हुए। उनकी सोने की चेन, खींचने की कोशिश की। जिसका अरुणिमा ने विरोध किया। कुछ देर संघर्ष करने के बाद, उन चार पांच अपराधियों ने अरुणिमा को चलती ट्रेन से बाहर फेंक दिया। लेकिन इतना ही काफी नहीं था। इसी वक्त दूसरे ट्रैक पर ट्रेन आ रही थी। वह उससे टकराकर गिरी। उनका बायां पैर ट्रेन के नीचे आ गया।

     अरुणिमा के अनुसार, उस general compartment में बहुत सारे लोग थे। लेकिन किसी ने भी, उसका विरोध नहीं किया। जब वह ट्रैक पर गिरी। तब उन्होंने देखा कि उनका एक पैर कटकर जींस में लटका हुआ था। उनके दूसरे पैर की हड्डियां टूट-टूट कर जीन्स से बाहर निकल रही थी। वो पूरी रात ट्रैक पर पड़े-पड़े चिल्लाती रही। लेकिन कोई बचाने नहीं आया। बल्कि track पर मौजूद, चूहों ने उनके कटे हुए पैर को कुतरना शुरू कर दिया। वह होश में तो थी। लेकिन उनके शरीर का कोई भी अंग काम नहीं कर रहा था। सारी रात वह ट्रैक पर ही तड़पती रही। इस बीच 42 ट्रेनें वहां से गुजरी।

     सुबह गांव के लोगों ने, उन्हें बरेली डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में भर्ती करवा दिया। जब उन्होंने हॉस्पिटल के स्टाफ को, कहते हुए सुना कि उनके पास एनेस्थीसिया व ब्लड की व्यवस्था नहीं है। तब अरुणिमा ने कहा कि सर, मैं सारी रात ट्रैक पर अपने कटे पैर का दर्द बर्दाश्त करती रही। अब तो आप, हमारे अच्छे के लिए काटेंगे। उनके इस जज्बे को सुनते ही। डॉक्टरो ने अपना ब्लड देकर। उनका पैर बिना एनेस्थीसिया दिए, अलग कर दिया।

जब बात मीडिया में आई। तब लोगों को पता चला कि वह एक national player है। उन्हें KGMC medical college, Lucknow में भर्ती कराया गया। यहां से फिर स्पोर्ट्स मिनिस्टर एम्स, दिल्ली में शिफ्ट किया गया। Player होने की वजह से, उन्हें अच्छा treatment दिया जा रहा था। वह 4 महीने तक एम्स में भर्ती रही। अरुणिमा का कहना है कि जब वह थोड़ा ठीक हुई। तो उन्होंने पेपर में देखा कि पेपर में छपा था। अरुणिमा के पास टिकट नहीं था। वह ट्रेन से कूद गई। जब इस बात का खंडन, उनके घर वालों ने किया। फिर मीडिया में आया कि अरुणिमा सुसाइड करने गई थी।

अरुणिमा सिन्हा - कुछ कर दिखाने का जज्बा
Arunima Sinha - Dare To Do Great

  अरुणिमा का कहना था कि उन्होंने एम्स के बेड पर ही सोच लिया था। आज उन सब का दिन है। जो तरह-तरह की बातें कर रहे हैं। लेकिन कल मेरा दिन होगा। जब मैं इन सबको proof करके दिखाऊंगी। मैं क्या थी और क्या हूँ। तभी उनकी नजर पेपर में, mountenier पर छपे एक आर्टिकल पर पड़ी। उन्होंने दृढ़ निश्चय किया। अब वॉलीबॉल नहीं, लाइफ का सबसे tough गेम करना है। उन्होंने mountaineering करने का निश्चय किया।

इसके लिए उनके सामने बहुत सारी चुनौतियां थी। पहला कि किसी के सही guidance में ट्रेनिंग लेना। दूसरा इसके लिए sponsorship ढूंढना। उन्होंने जब अपनी बात, सबके सामने रखी कि उन्हें mountaineering करना है। तब लोगों ने उन्हें, हर कदम पर निराश किया। यह क्या पागलपन है। तुम mountaineering कभी नहीं कर सकती। तुम्हारा दिमाग खराब हो चुका है। तुम्हारा एक पैर artificial है। दूसरे पैर में rod है। तुम पागल हो चुकी हो। तुम्हारे spine में भी fracture है। लेकिन उन्होंने उन सब के चैलेंज को स्वीकार किया।

उनका मानना था कि सबसे बड़े motivator आप खुद होते हैं। जिस दिन किसी भी लक्ष्य के प्रति, आपकी अंतरात्मा जाग गई। आपको कोई नहीं रोक सकता। उस लक्ष्य को पाने के लिए।

अरुणिमा सिन्हा को परिवार व बछेंद्री पाल का साथ

    अरुणिमा का मानना था कि उनका परिवार उनकी backbone था। उनके भाई साहब ने कहा। कि मैडम बछेंद्री पाल, जिन्होंने 1984 में Everest Summit किया था। उनसे मिलते हैं। वह जरूर कुछ ना कुछ करेंगी। हॉस्पिटल से निकलने के बाद, जब वह पूर्ण रुप से स्वस्थ भी नहीं थी। जब लोग यह सोचते हैं कि आगे का जीवन यापन कैसे करना है। तब उनके उनके परिवार ने घर जाने के बजाय, सीधे बछेंद्री पाल से मिलने  का फैसला किया। वह बछेंद्री पाल से मिलने गई।

बछेंद्री पाल ने जब अरुणिमा को देखा। तो उनकी आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने कहा तुमने ऐसे हालात में Everest जैसे दुरूह पहाड़ के बारे में सोचा। तो तुमने अपने अंदर तो Everest फतेह कर लिया। अब तो सिर्फ लोगों के लिए ही है। बछेंद्री पाल ने कहा कि अरुणिमा कहने से कुछ नहीं होता तुम्हें से खूब करना होगा। फिर उन्होंने अरुणिमा का हर कदम पर साथ देने का वादा किया।

अरुणिमा सिन्हा माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने की ट्रेनिंग

  अरुणिमा बताती है कि उन्होंने किन हालातों में  अपनी ट्रेनिंग को पूरा किया। वो कहती है कि रोड से बेस कैंप तक पहुंचने में, लोगों को 2 मिनट लगते थे। लेकिन मुझे तीन-तीन घंटे लगते थे। उनके right पैर की हड्डियां भी नहीं  जुड़ी थी। Left में prosthetic leg लग चुका था। लेकिन उनके गांव अभी ताजे थे जब वह पर रखती थी तो उनके पैर से ब्लड आने लगता था सारे लोग नॉर्मल थे वहां पर हर कोई उनसे कहता कि तुम धीरे-धीरे आओ।

    तब उनके दिमाग में आता कि उन्होंने Everest के लिए plan किया है। वह उनके बराबर भी नहीं चल पा रही है। उन्होंने ख़ुद से संकल्प किया कि एक दिन जरूर ऐसा आएगा। जब वह उनसे पहले पहुंचेंगी। यह सारा Placebo Effect (Power of belief System) का कमाल था। जिसे वह रेलवे ट्रैक पर भी आजमा चुकी थी। फिर आने वाले 8 महीनों बाद, वह पूरा का पूरा weight उठाकर बेस कैंप से सबके साथ निकलती। Top पर सबसे पहले पहुंचती। उनकी खुशी का ठिकाना तब नहीं रहता। जब लोग आकर, उनसे पूछते मैडम खाती क्या हो। पैर ना होने के बावजूद, कैसे चढ़ लेती हो। इसके बाद, उन्हें पूरी sponsorship मिली।

माउंट एवरेस्ट के रास्ते मे बाधाएँ
Obstacles On The Way To Mount Everest

  अरुणिमा के group में छह लोगों थे। वह rocky area तक तो सबसे आगे थी। जैसे ही वह blue ice पर गई। उनका prosthetic leg, slip कर जाता था। जैसे ही वह अपना prosthetic leg आगे बढ़ाती। उनका leg पूरा move हो जाता था। उनके शेरपा ने बहुत बार कहा,अरुणिमा तुमसे नहीं हो पाएगा। इस पर वह कहती यह मेरा प्यार है मुझे पता है यह कैसे चलेगा। Camp-3 तक उन्होंने, ऐसी ही दिक्कतों के साथ चढ़ाई की।

        Camp-3 के आगे जब South pole summit की बात आती है। तो अच्छे-अच्छे दिलेर mountenier के भी हौसले पस्त हो जाते हैं। जब वह अपने सामने, लोगों को मरते हुए देखते हैं। जब वो सोचता है कि जिस चीज को फ़तेह करने जा रहा है। उसी के लिए, इसने  अपनी जान गवा दी। Mountaineering ज्यादा से ज्यादा रात में की जाती है। क्योंकि इस समय weather अनुकूल होता है। लेकिन जब वह  Camp-4 से आगे बढ़ा रही थी। तो जिधर भी उनकी हेड लाइट जाती, उधर ही डेड बॉडी पड़ी हुई थी।

 वो जिस rope पर थी। उसी पर आगे एक बांग्लादेशी पर्वतारोही की oxygen खत्म होने के कारण, वह मरने की कगार पर थे। तब वह बताती हैं कि उनको कुछ समझ नहीं आ रहा था। कैसे उनकी मदद की जाए। लेकिन उन्होंने उनसे वादा किया। आप सबके लिए मैं एवरेस्ट सम्मिट पूरा करूंगी। जिंदा वापस भी जाऊंगी। क्योंकि उनका मानना था। जैसा हम सोचते हैं। वैसे ही हमारी body, generate करना शुरू करती है। फिर उन्होंने rope में फसी, डेड बॉडी को उठाकर आगे बढना शुरू किया।

जब वह हिलेरी स्ट्रिप, साउथ पोल समिट के पास पहुंची। तो पता चला कि उनकी ऑक्सीजन खत्म होने वाली है। उनके शेरपा ने आगे जाने से मना कर दिया। उन्होंने कहा, अगर जिंदगी रही। तो दोबारा समिट हो जाएगी। लेकिन अरुणिमा इसे पूरा करना चाहती थी। क्योंकि उसके कुछ ही आगे, एवरेस्ट सम्मिट है। उनका मानना था कि आपके जीवन में golden chance बार-बार नहीं आता।

ऐसे में उन्हें, अपनी मां की बात आई। कि Life में कभी-कभी ऐसी situation आती है। जो आपको अकेले decision लेना होता है। तब आप जहाँ पर हो, वहां से हल्का पीछे मुड़कर देखो। यह सोचो कि आप एक-एक कदम चलकर। यहां तक पहुंचे हो। सिर्फ अपना एक कदम आगे बढ़ाना। आप देखना, कुछ देर बाद आप top पर होंगे।

माउंट एवेरेस्ट पर फ़तेह
I Can, You Can

  मां की सीख याद करते ही, उन्होंने अपना एक कदम आगे बढ़ाया। फिर decision लिया कि उन्हें सम्मिट पूरी करनी ही है। इस हौसले के साथ, वह 2 घंटे बाद एवरेस्ट के शिखर पर थी। उन्होंने नेशनल फ्लैग को हग करते हुए। फोटो खिंचवाई। जब उन्होंने शेरपा से वीडियो बनाने के लिए कहा। तो वह नाराज हो गया। क्योंकि अरुणिमा की oxygen कभी भी खत्म हो सकती थी।

तब अरुणिमा ने कहा, अगर जिंदा वापस नहीं भी लौटती हूं। तो मेरा यह वीडियो, मेरे देश के youth तक पहुंचा देना। क्योंकि मैं चाहती हूं। अगर मैं कर सकती हूं। तो देश का कोई भी युवा अपने सपनों को पूरा कर सकता है। 11 अप्रैल 2011 में उनका accident हुआ। उसके 2 साल बाद ही 21 मई 2013 को 10:55 पर, वह माउंट एवरेस्ट के शिखर पर थी।

अरुणिमा सिन्हा
मौत से सामना

  शेरपा ने अरुणिमा का video बनाया। फिर वह तेजी से नीचे की ओर चले। ज्यादातर मौतें नीचे उतरते वक्त ही होती हैं। थोड़ा नीचे चलने पर ही अरुणिमा की ऑक्सीजन पूरी तरह से खत्म हो गई। अरुणिमा नीचे गिर गई। शेरपा ने हिम्मत बढ़ाते हुए कहा। अरुणिमा मुझे नहीं यकीन था। कि तुम एवरेस्ट सम्मिट पूरा कर पाओगी। लेकिन तुमने इसे पूरा किया। चलो उठो, मैं चाहता हूं कि तुम जिंदा नीचे पहुंचो।

       अरुणिमा ने उस पल को याद कर सोचा। जब ट्रेन हादसा हुआ था। वह मौत के मुंह से बाहर आ गई थी। तब उन्हें लगा कि ईश्वर ने उन्हें बचाकर, निश्चित ही कोई इतिहास रचने के लिए रखा हैं। तभी एक British climber आ रहा था। उसके पास दो ऑक्सीजन सिलेंडर थे। लेकिन weather खराब होने के कारण। उसने एक सिलेंडर वही फेंका और नीचे की तरफ उतरने लगा। शेरपा ने तुरंत, वह सिलेंडर उठाया और अरुणिमा के लगाया। शेरपा ने कहा, अरुणिमा तुम बहुत lucky हो। जो यहां पर तुम्हें ऑक्सीजन मिला।

अरुणिमा और थोड़ा नीचे पहुंची। तो उनका prosthetic leg निकल गया। वहां का temperature -60 डिग्री पर था। उनके हाथों की उंगलियों से blood आने लगा था। उन्हें लगा कि अब हाथ भी काटना पड़ेगा। क्योंकि ऐसी condition में तीन stages होती हैं। Red, Blue और Black। अरुणिमा का हाथ red हो चुका था। Black होने के बाद, उसको काटना ही पड़ता है। फिर वह किसी तरह, एक हाथ में prosthetic leg और एक हाथ से rope पकड़ कर घिसटते हुए। साउथ पोल तक पहुंची। उनके साथ के सभी लोगों ने, उनके लिए उम्मीद छोड़ दी थी। लेकिन अरुणिमा ने वह कर दिखाया। जो आज विश्व का इतिहास है। वह विश्व की पहली दिव्यांग महिला है। जिन्होंने माउंट एवरेस्ट पर फतह हासिल की।

Arunima Sinha - Win Over Other Peaks

 अरुणिमा सिन्हा का सफर, यहीं खत्म नहीं हुआ। उन्होंने विश्व की अन्य चोटियों पर भी फतेह की हासिल की। उन्होंने नए-नए कीर्तिमान हासिल करते हुए। अंटार्कटिका की सबसे ऊंची चोटी माउंट विंसन पर भी विश्व की पहली दिव्यांग महिला के रूप में फतेह हासिल की। इसके अलावा उन्होंने किलिमंजारो (अफ़्रीका), एल्ब्रुस (रूस), कास्टेन पिरामिड (इंडोनेशिया) किजाशको (ऑस्ट्रेलिया) और दक्षिण अमेरिका की माउंट अंककागुआ शामिल है।

अरुणिमा जब माउंट विंसन पर चढ़ाई करने जा रही थी। तो पहले वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिली। मोदी जी ने अरुणिमा को उनकी सफलता के लिए शुभकामनाएं व आशीर्वाद दिया। उन्होंने भारत का तिरंगा, अंटार्कटिका के सर्वोच्च शिखर पर फ़हराने के लिए भी दिया। अरुणिमा की सफलता के पश्चात, प्रधानमंत्री ने सफलता की नई ऊंचाइयों पर पहुंचने के लिए बधाई भी दी।

अरुणिमा सिन्हा को पुरस्कार व सम्मान
Arunima Sinha : Awards and Honors

  • पद्मश्री अवार्ड 2005

  • Tenzing norgay National adventure award 2015

  • First lady award 2016

  • मलाला अवार्ड 

  • यश भारती अवार्ड

  • रानी लक्ष्मीबाई अवार्ड

  • शान-ए-लखनऊ सम्मान

 

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