Statue- Unsatisfied Hona Seekh Lo | अपने काम से असन्तुष्ट होना सीखों

Statue- ऐसी दो प्रेरक कहानियां(motivational story) है,जिनसे आपसे प्रेरित(motivate) होकर अपने जीवन के अहम फैसले लेने में सक्षम होंगे।एक बेहतरीन जीवन जीने योग्य बनेगे।जीवन के हर अच्छे-बुरे फैसले लेने की समझ विकसित होगी।आपको अपने द्वारा लिए गए फैसलों पर कभी भी पछतावा नही होगा।hindi kahaniyon की series में आपको ले चलते है,अपनी पहली kahani की ओर-

Statue- Unsatisfied Hona Seekh Lo

  एक शहर में एक मूर्तिकार(sculptor) रहा करता था। वह बहुत सुंदर और आकर्षक मूर्तियां(statue) बनाया करता था। उसकी मूर्तियाँ(statue) आसपास के क्षेत्रों में बहुत प्रसिद्ध थी। उसकी मूर्तियां(statue) अच्छे दामों पर बिका करती थी। जिससे उसका जीवन- यापन बहुत अच्छे तरीके से चला करता था।जिससे वह अपने परिवार साथ बहुत खुश था।

      कुछ समय के बाद उसके घर में, एक बेटा पैदा हुआ। धीरे-धीरे उसका बेटा बड़ा होने लगा। वह बचपन से ही मूर्तियों(statue) को गढ़ने(shaping) का काम करने लगा। जैसे-जैसे समय बीता गया। पिता और बेटे की मूर्तियां(statue) अच्छे दामों पर बिकने लगी।अब बेटा भी बहुत अच्छी मूर्तियां बनाने लगा। जिसे देखकर उसके पिता को, अपने बेटे पर गर्व होने लगा। लेकिन जब भी बेटा मूर्तियां बनाता। तो पिता उसकी मूर्तियों में तारीफ(praise) करने के बाद, कुछ ना कुछ कमी उसे बता देता।उससे कहता कि तुम्हारी मूर्तियां निसंदेह बहुत अच्छी हैं।लेकिन अगली बार,इस कमी को थोड़ा सा और सुधार लो।

   बेटा अपने पिता की सलाह (suggestions) मानकर, उन मूर्तियों में और सुधार करता गया। जिसके कारण उसकी मूर्तियां(statue) पहले से और बेहतर बनती गई। एक समय ऐसा भी आया। जब उसकी मूर्तियां अपने पिता की मूर्तियों से अधिक अच्छी बनने लगी। अब ग्राहक(customer) उसके पिता की मूर्तियों से अधिक पैसे, उसकी मूर्तियों(statue) के लिए देने लगे। पिता की मूर्तियां पहले वाले दामों पर ही बिकती रही।

   पिता अब भी अपने बेटे की मूर्तियों(statues) में कुछ न कुछ कमियां(faults) निकाल ही देता था। जिसे सुनकर उसके बेटे को अच्छा नहीं लगता। लेकिन फिर भी उसका बेटा बिना मन के, उन बातों को accept कर लेता था। फिर बेमन से कुछ न कुछ सुधार कर ही दिया करता था।

      एक समय ऐसा भी आया। जब उसके बेटे के सब्र(patience) ने जवाब दे दिया। जब पिता उसकी मूर्तियों(statue) में कमियां निकाल रहा था। तो उसका बेटा बोल उठा। आप तो ऐसे बता रहे हैं, जैसे कि आप बहुत बड़े मूर्तिकार(sculptor) हो। अगर ऐसा ही होता, तो आप की मूर्तियां(statue) कम दामों पर नहीं बिकती। मैं अपनी मूर्तियों से पूरी तरह से संतुष्ट(satisfied) हूं। मेरी मूर्तियां बिल्कुल perfect हैं। मुझे नहीं लगता, कि मुझे आपकी किसी सलाह की आवश्यकता है।

पिता ने जब अपने बेटे की यह बात सुनी। तो उसने उसकी मूर्तियों(statue) में कमियां निकालना और सलाह देना बंद कर दिया। कुछ समय तक तो वह लड़का खुश रहा। लेकिन धीरे-धीरे उसने notice किया।अब उसकी मूर्तियों(statue) की लोग वैसी तारीफ नहीं करते। जैसे कि पहले किया करते थे। अब उसकी मूर्तियों के दाम भी बढ़ना बंद हो गए।

शुरुआत में तो उसके बेटे को कुछ भी समझ नहीं आया। लेकिन बाद में समस्या(problem) को लेकर, वह अपने पिता के पास गया। पिता ने बहुत शांति(patience) से अपने बेटे की पूरी बात को सुना। जैसे कि उसे पहले से पता था कि एक दिन ऐसा जरूर आएगा। बेटे ने भी अपने पिता की इस बात को notice किया। फिर पूछा कि क्या आपको पता था। एक दिन ऐसा भी होने वाला है। पिता ने कहा- हां। क्योंकि मैं भी कई सालों पहले,ऐसे हालात से एक बार टकराया था।

Vital Part of the Story

बेटे ने अपने पिताजी से सवाल किया। तो फिर आपने मुझे रोका व समझाया क्यों नहीं। पिता ने जवाब दिया, क्योंकि तुम अपने काम से satisfied होने लगे थे। इसके अतिरिक्त कुछ समझना ही नहीं चाहते थे। मैं जानता हूं कि तुम्हारी तरह अच्छी मूर्तियां(statue), मै नहीं बनाता। ये भी हो सकता है, मेरी मूर्तियों के बारे में दी गई, सलाह हर बार सही ना हो। ऐसा भी नहीं है, कि मेरी सलाह के कारण तुम्हारी मूर्तियां अच्छी बनती हो। लेकिन जब मैं तुम्हारी मूर्ति(statue) में कमियां बताता था। तो तुम उससे satisfied नहीं होते थे। तुम उसे और अधिक सुंदर बनाने की कोशिश करते थे।

तुम्हारी कामयाबी का कारण ही, उसे और बेहतर बनाने की कोशिश करना था। लेकिन जिस दिन तुम अपने काम से संतुष्ट(satisfied) हो गए। तुमने धीरे-धीरे यह मानना शुरू कर दिया। अब मूर्तियों में और कुछ अच्छा करने की गुंजाइश शेष नहीं है। वहीं से तुम्हारी growth भी रुकती गई। लेकिन लोगों की अपेक्षाएं, तुमसे और अच्छा होने की थी। इसी कारण लोगों ने, तुम्हारी मूर्तियों की तारीफ करना कम कर दिया। वह अब उन मूर्तियों के लिए अधिक पैसे भी नहीं देते। 

बेटा बहुत देर तक शांत होकर, अपने पिता की बात सुनता रहा। अब उसने अपने पिता से प्रश्न किया। मुझे इस समस्या को कैसे हल करना चाहिए। उसके पिता ने बहुत सोच समझकर, उसे जवाब दिया। तुम्हें हमेशा असंतुष्ट (unsatisfied) होना सीखना होगा। तुम्हें हमेशा मानना होगा। तुम उससे और बेहतर कर सकते हो। तुम्हारे बेहतर करने की ललक ही, तुम्हें बल देगी। तुम्हें हमेशा inspire करेगी। तुम्हें हमेशा पहले से और अधिक बेहतर बनाती रहेगी।

 

Moral of the Story

जीवन मे हमेशा कुछ नया सीखने की ललक बनाये, रखनी चाहिये।अपने द्वारा अर्जित किये गए ज्ञान से, कभी भी satisfied नही होना चाहिए।यही आपको एक मूर्ति(statue) की तरह औऱ सुन्दर बनाती रहेगी।

Statue and Stone-Hindi Motivational Stories

Statue and Stone- मूर्ति और पत्थर

एक बार एक मूर्तिकार(sculptor) एक पत्थर को तराश(shaping) रहा था। उसके छेनी और हथौड़ी के वार से पत्थर(stone) को बहुत दर्द हो रहा था। पत्थर बहुत समय तक तो, उस दर्द को बर्दाश्त करता रहा। लेकिन लगातार छेनी और हथौड़ी के मार ने, उसका धैर्य(patience) तोड़ दिया। उसने मूर्तिकार से नाराज होकर कहा। अब उससे यह दर्द बर्दाश्त नहीं होता। अतः उसे ऐसे ही छोड़ दे और यहां से चला जाए।

     तब मूर्तिकार(sculptor) ने पत्थर को समझाया कि मैं  तुम्हें  भगवान की मूर्ति(Idol of God) का रूप  दे रहा हूं। आज अगर तुम इन छेनी और हथौड़ी के दर्द को बर्दाश्त कर लोगे। तो जीवन भर सुख में व्यतीत करोगे। जीवन-भर लोग तुम्हें पूजेंगे। दूर-दूर से लोग, koतुम्हारे दर्शन करने के लिए आएंगे। पुजारी(priest) दिन-रात तुम्हारी सेवा में लगे रहेंगे। वरना यूं ही बिन-पहचान, एक गुमनाम जिंदगी बिताते रहोगे।

       इतना कहकर मूर्तिकार ने जैसे ही छेनी और हथौड़ी(hummer) उठाई ही थी। तभी पत्थर ने क्रोधित होते हुए कहा। मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो। मैं ऐसे ही ठीक हूं। मुझे अपनी जिंदगी जीने दो। मैं जानता हूं कि मेरे लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा। मैं आराम से यहां पड़ा हूं। तुम यहां तो चले जाओ। मुझे मेरी जिंदगी जीने दो। मैं अब जरा-सी भी तकलीफ बर्दाश्त नहीं कर सकता।

      मूर्तिकार ने एक बार फिर उसे समझाने का प्रयास किया। उसने पत्थर से कहा कि हाँ, मैं जानता हूं। तुम्हें बहुत दर्द हो रहा है। पर अगर आज तुम, अपना आराम देखोगे। तो कल को पछताओगे। मैं तुम्हारे गुणों को देख सकता हूं। तुम्हारे अंदर अपार संभावनाएं(immense possibilities) हैं। यूं ही यहां पड़े-पड़े अपना जीवन बर्बाद मत करो। लेकिन इस बात का पत्थर पर कोई भी असर नहीं हुआ। उसने मूर्तिकार को वहां से जाने के लिए कह दिया। मूर्तिकार ने उस पत्थर को वहीं छोड़ दिया और आगे बढ़ गया।

मूर्तिकार को सामने एक अच्छा पत्थर दिखाई दिया। उसने उसे उठाया और उसको फिर छेनी व हथौड़ी से तराश कर अच्छी मूर्ति बना दी। इस दूसरे पत्थर ने उस छेनी-हथौड़ी के दर्द बर्दाश्त कर लिया। फिर वह भगवान की मूर्ति बन गया।अब उसे ले जाकर एक भव्य मंदिर में स्थापित कर दिया गया। अब लोग उस पर फूल-माला चढ़ाने लगे।अच्छे-अच्छे पकवानों का भोग लगाया जाने लगा। दूर-दूर से लोग उसके दर्शन करने आने लगे।

Vital Part of the Story

  कुछ दिनों बाद एक और पत्थर को मंदिर में लाया गया।  उसे एक कोने में रख दिया गया।उस पर नारियल तोड़ने का काम शुरू किया गया। वह कोई और पत्थर नहीं, बल्कि वही पत्थर था। जिसने अपना दर्द बर्दाश्त न करके मूर्तिकार को वहां से भगा दिया था।

वह पत्थर अब मन ही मन पछता रहा था। वह सोच रहा था। काश, उसने अगर उस समय, उस दर्द को बर्दाश्त कर लिया होता। आज समाज में उसका सम्मान होता है। वह भी जीवन-भर आराम की जिंदगी बिताता। उस वक्त की पीड़ा व दर्द को सह लेता। इस जीवन भर के कष्ट से बच सकता था।उसने उस हितैषी मूर्तिकार की बात को मान लिया होता।

Moral of the Story

हमारे लिए निर्णय लेने का यही सही वक्त है। आज हम उस दर्द को बर्दाश्त कर ले।फिर जीवन उस मूर्ति(statue) की तरह जीवन जिये।दूसरी ओर, आज मौज-मस्ती कर ले। फिर जीवन-भर,उस पत्थर की तरह दर्द झेले। निर्णय आपके अपने हाथ मे है।

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