Decision From Heart or Brain
Life में हमें, जो भी decision लेना होता है। तब हम heart की सुने या mind की। दोनों के ही, अपने प्लस और माइनस होते हैं। इंसान दिल(heart) और दिमाग(brain) दोनों के बीच, जीवनभर पिसता रहता है। स्वामी विवेकानंद के अनुसार ,जब भी दिल और दिमाग के बीच में दुविधा हो। तो हमें अपने दिल को ही चुनना चाहिए। कभी-कभी इंसान भावावेश में बैहकर यानी हृदय के प्रभाव में आकर। अपने जीवन के निर्णय लेता है। जबकि कभी-कभी वह, अपने तर्क, बुद्धि यानी दिमाग का इस्तेमाल करता है।
Synergy of Heart and Brain
Dil और Dimaag का तालमेल
Dil और Dimaag के बीच तालमेल ना होने के कारणों का पता चल चुका है। कोई भी फैसला लेना आसान काम नहीं होता। उस पर जब दिल और दिमाग दोनों ही अलग-अलग बातें करने लगे। तो यह मुश्किल कहीं और अधिक बढ़ जाती है। ऐसे हालातों से, हम सभी अक्सर गुजरते रहते हैं। ऐसा जरूरी नहीं, कि हमारा दिमाग हमेशा practical ही सोचता है। वहीं दिल भावनाओं में बहकर बोलता है। इसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण होता है।
Oxford University, Birkbeck University of London और इजरायल की Tel Aviv University के वैज्ञानिकों ने निर्णय लेने की क्षमता पर गहन अध्ययन किया है। शोधकर्ताओं के पास अनुसार जब व्यक्ति के पास दो option होते हैं। तो वह बखूबी जानता है कि उनमें से एक सही है, दूसरा गलत है। लेकिन जैसे ही उसे एक अन्य option मिलता है। तब उसका दिमाग भटकना शुरू हो जाता है। दिमाग में शोर होने लगता है।
जिस प्रकार तेज संगीत में, हम किसी चीज पर ध्यान नहीं दे पाते। ठीक वैसे ही ज्यादा विकल्प होने पर, हमारा दिमाग समझ नहीं पाता। जब हमारे पास दो ही विकल्प होते हैं। हमारा दिमाग अच्छा निर्णय लेने की क्षमता रखता है। बजाएं दो से अधिक विकल्प होने के समय। इसलिए हमें जीवन में यह नहीं सोचना चाहिए। कई चीजों में से, किसी एक चीज को चुनने का मौका मिले। क्योंकि ऐसे में हम अक्सर गलत decision ले लेते हैं।
मानव व्यवहार पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है। दिल में हम चाहते हैं कि हम तर्कहीन फैसला ले रहे हैं। फिर भी हम उसे चुनते हैं। एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न तर्कों को, हम एक ही पैमाने पर रखते हैं। उनमें से हम किसी एक को चुनते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तरह का निर्णय पारंपरिक निर्णय सिद्धांत का उल्लंघन होता है। मानव संसाधन की क्षमता का पूरी तरीके से दुरुपयोग है। जिसे मूर्खता की संज्ञा भी दी जाती है।
Battle of Heart and Brain
Dil और Dimaag की लड़ाई
एक शहर में बहुत बड़ा बिजनेसमैन रहता था।काम के सिलसिले में, अक्सर वह बाहर ही रहता था। एक बार उसे किसी दूसरे शहर में, तीन महीने के लिए जाकर रहना था। वह सुबह उठकर दूसरे शहर की ओर निकल पड़ा। जब वह उस दूसरे शहर में पहुँचा। वहाँ उसने एक होटल में तीन महीने के लिए, एक कमरा किराए पर ले लिया। वह तीन महीने के लिए वहीं पर settle हो गया।
शाम को उसने होटल के वेटर को बुलाया। फिर उससे कहा कि मुझे रोज सुबह 6:00 बजे उठाना। उस वेटर ने भी,उसकी हां में हां मिलाई। दूसरे दिन ठीक सुबह 6:00 बजे वेटर ने दरवाजा खटखटाया। उस बिजनेसमैन ने दरवाजा खोला। दरवाजा खोलते ही वेटर ने उससे कहा- Good Morning, Sir। आज आप नाश्ते में क्या लोगे। चाय, कॉफी, दूध, ब्रेड, बटर या नूडल्स । ये सब सुनकर बिजनेसमैन ने हँसते हुए कहा। No Thanks, मेरे लिए बस एक गिलास नींबू पानी लेकर आना। वेटर ने OK कहा। फिर कुछ देर में नींबू पानी लेकर आ गया। बिजनेसमैन fresh होकर, अपने काम पर चला गया। रात को वापस आकर सो गया।
अगले दिन फिर सुबह 6:00 बजे वेटर ने दरवाजा खटखटाया। बिजनेसमैन ने जैसे ही दरवाजा खोला। आवाज़ आई, Good Morning Sir, आज आप नाश्ते में क्या लेंगे। चाय, कॉफी, दूध, ब्रेड, बटर या फिर नूडल्स। यह सब सुनकर बिजनेस ने फिर हंसकर कहा- No Thanks। मुझे बस एक गिलास नींबू पानी दे दो। बेटर OK कह कर, कुछ देर में उसके लिए नींबू पानी लेकर आ गया। 50 दिनों तक ऐसे ही चलता रहा।
बेटर रोज सुबह 6:00 बजे बिजनेसमैन को उठाता। गुड मॉर्निंग wish करके, उसे नाश्ते के लिए option देता। जैसे कि चाय, कॉफी,दूध, ब्रेड, बटर या नूडल्स। तब बिजनेसमैन सब कुछ मना करके। एक गिलास पानी लाने को कहता। 51वे दिन जब वेटर बिजनेसमैन को उठाने के लिए, उसके रूम के सामने आया। तब उसके हाथ में कुछ था। क्या आप सोच सकते हैं। उसके हाथ में क्या रहा होगा। आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं। उसके हाथ में वहीं नींबू पानी का गिलास था।
लेकिन यह हुआ कैसे। नाश्ते के लिए बहुत सारे option देने वाला, वह वेटर। आज उसके लिए नींबू पानी लेकर कैसे आ गया। क्योंकि 50 दिन तक इतने सारे option देने के बाद भी। बिजनेसमैन ने उससे केवल नींबू पानी ही मांगा। इसीलिए 50 दिनों के बाद उसने option देना ही छोड़ दिए। अब उनको जो चाहिए था। वह पहले से ही लेकर आ गया।
यह कहानी हमें, यह सीख देती है। जो बिजनेसमैन है, वह हमारा दिमाग है। जो बेटर है, वो हमारा दिल है। जैसे कि वेटर ने बिजनेसमैन को कई सारे option दिए। वैसे ही हमारा मन, कोई काम करने के लिए, कई ऑप्शन देता है। जैसे कि सुबह उठने के लिए, हम alarm लगाते हैं। उठने के बाद, हमारा मन बोलता है। 5 मिनट और सो जाओ। आज से नहीं कल से उठूंगा। इसी तरह पढ़ाई करने के लिए, हम time decide करते हैं। तब भी हमारा मन हमें option देता है। थोड़ी देर TV देख ले। Whatsapp चेक कर ले या facebook चेक कर ले आदि-आदि।
हमारे mind or heart का काम ही है। हमे distract करना। लेकिन जब हम अपने दिमाग की सुनते हैं। तो जो हम decide करते हैं। तब उसे पूरा कर भी लेते हैं। क्योंकि हमारा दिमाग हमें, multiple options नहीं देता। ऐसे ही हम अपने दिमाग की सुनते गए। तो एक दिन ऐसा आएगा। कि हमारा दिल हमें कोई option नहीं देगा। बल्कि वह वही करेगा, जो हमारा दिमाग कहता है। जैसे कि इस कहानी में वेटर 51वें दिन, बिना कुछ कहे। बिजनेसमैन के लिए नींबू पानी लाया था। इस कहानी का निष्कर्ष यही है। हमारा मन, हमारा दिल कोई भी काम ना करने के लिए, हमको 100 options देता है। लेकिन हमे वहीं option चुनना है।जो हमारा दिमाग उसे करने के लिए कहेगा।
Dil vs Dimaag
कभी-कभी तो समझ ही नहीं आता कि दिल की सुने या दिमाग की। जहां एक तरफ दिल कहता है कि एक अच्छा सा बिजनेस करो। खुद का अपना बॉस बनो। जब मर्जी, जैसे मर्जी हो, काम करो। लेकिन वहीं दूसरी तरफ दिमाग कहता है कि अगर बिजनेस नहीं चला, तो फिर क्या होगा। क्या जरूरत है, risk लेने की। नौकरी चाहे जैसी हो। महीने के अंत में एक निश्चित रकम तो मिल ही जाती है। कम से कम पैसा तो पक्का आ ही जाएगा। तब हम इस दिल और दिमाग में से किसकी सुनें। कई बार जब हमे, अपने जीवन में कुछ महत्वपूर्ण फैसले नहीं होते हैं। तब हम कंफ्यूज हो जाते हैं। दिल की सुने या दिमाग की। इसको जानने व समझने के लिए कुछ तथ्य आपके सामने रखता हूं।
सबसे पहले तो हमें यह समझना होगा। कि हमारा दिल लव-डब के अलावा कोई दूसरी आवाज नहीं निकाल सकता। जिसे हम दिल की आवाज समझते हैं। वह असल में कुछ और है। दिल का सिर्फ एक ही काम है। Blood को pump करना। इसके बाद सोचने व समझने का काम दिमाग का है। जिसे हम दिल की आवाज कहते हैं। वह असल में हमारी भावनाएं(emotions) होती हैं।जिसे हम दिमाग की आवाज करते हैं। वह हमारा तर्क (logic) होता है। यह दोनों ही हमारे दिमाग अर्थात brain से उत्पन्न होते हैं। न कि दिल से।
Tip 1 : Emotion vs Logic
भावना बनाम तर्क
हमारी भावनाएं और तर्क दोनों ही हमारे दिमाग से उत्पन्न होती है। अब अगर इनका स्रोत(source) देखें। तो हम पाएंगे कि हमारे दिमाग में अब तक जो भी सूचनाएं एकत्रित हुई हैं। यह सब उसी के कारण होता है। एक समय के लिए मान ले। यदि हम हमारे दिमाग से, अपने सभी करीबियों की सूचनाओं को मिटा दें। तब हमारी उनसे जुड़ी, भावनाएं भी खत्म हो जाती है। वहीं दूसरी तरफ, अगर हम अपने दिमाग में इकट्ठा किए गए। सभी facts और figures को हटा दे। तब हम तर्क हीन हो जाएगे।अतः हमें समझना होगा कि हमारे दिल व दिमाग का स्रोत सूचनाएं ही है।
Tip 2 : Information ही Dil और Dimaag का स्रोत
हम देखें कि हमारी भावनाएं और तर्क दोनों ही, हमारे Brain में ही उत्पन्न होते हैं। इन दोनों के source भी information ही हैं। फिर भी हमारी भावनाओं और तर्क अर्थात दिल और दिमाग में मतभेद उत्पन्न हो जाते हैं। ऐसा क्यों होता है। चलिए समझते हैं, एक उदाहरण के माध्यम से।
जब हमारी किसी खूबसूरत लड़के या लड़की से मुलाकात होती है। वह हमें पसंद आ जाता है। क्योंकि उसने हमारे साथ, मीठी-मीठी बातें की। उस समय हमारे दिमाग में जो सूचनाएं पहुंची। उसने, उसकी एक positive image, हमारे दिमाग पर बनाई। ऐसे में वह भावनात्मक व तार्किक रूप से, हमें पसंद आने लगता है। क्योंकि जो सूचना हमारे दिमाग तक पहुंची। उसने कोई मतभेद उत्पन्न नहीं किया।
कुछ दिन बाद उसी, लड़के या लड़की ने कुछ ऐसा किया। जो हमको पसंद नहीं आया। तब हमारा logic अर्थात Brain कहेगा। कि यह लड़की तो, बहुत बुरी है। लेकिन हमारा emotion जल्दी नहीं बदल पाता। भावनाओं को बदलने में थोड़ा टाइम लगता है। जब वह लगातार, कुछ ऐसे ही बुरे काम करती है। तब हमारा लॉजिक और इमोशन दोनों ही बदल जाते हैं। तब हम कहते हैं कि यह लड़की देखने में भले ही सुंदर हो। लेकिन वास्तविकता में बहुत बुरी है।
इस वक्त हमारे दिल(emotion) और दिमाग(logic) में मतभेद नहीं रहता। लेकिन उस बीच के समय मे, जब logic इस बात को फौरन समझ लेता है। लेकिन emotion मानने को तैयार नही होता है। उस वक्त हमें लगता है, कि हमारे अंदर से दो-दो आवाजे में आ रही है। हमे लगता है कि हमारा दिल कुछ कह रहा है।हमारा दिमाग कुछ और। हम तब confuse हो जाते हैं।ऐसे ही हम लड़की की जगह, किसी भी चीज़ को रखकर देख सकते है।
Tip 3 : मतभेद पूर्ण जानकारी का मूल कारण स्वयं मतभेद
क्या हम अपने दिमाग में जो गलत या सही सूचनाये पहुंचती हैं। उन्हें हम 100% कंट्रोल कर सकते हैं, शायद नही। क्योंकि confuse information तो जाना ही जाना है। चाहे हम कुछ भी कर ले। अगर यह confuse information हमारे दिमाग में गया। तो हमारे दिल और दिमाग में मतभेद पैदा होना ही होना है।
हमें यह निश्चित कर लेना चाहिए कि हम दिल और दिमाग दोनों के बीच में मतभेद पैदा होने को रोक ही नहीं सकते। यह बात भी सच है । हम किसी भी particular चीज के बारे में, चाहे जितनी information इकट्ठा कर ले। वह सीमित ही होती है। सीमित information के आधार पर। हम कभी भी यह निश्चित, कर ही नहीं सकते। दिल सही बोल रहा है, या दिमाग।
Tip 4 : Differences are Mandatory
मतभेद अनिवार्य है
जब मतभेद होना अनिवार्य ही है । तो ऐसे में हम क्या करें। जब भी हम confusion में हो। चाहे वह किसी भी चीज को लेकर हो, carrier, health या किसी चीज़ के selection को लेकर हो। तब उसका रास्ता ये है। हम खुद को आज से 25 या 50 साल बाद आगे ले जाकर सोचे। तब हम जब पीछे मुड़ कर देखेंगे। तो क्या हम उस काम को करने के लिए, खुद पर proud feel करेंगे। या फ़िर शर्मिंदा होंगे। चाहे हम उस काम में fail हो जाए या फिर successful।
अगर हमें ऐसा लगता है कि जब हम पीछे मुड़ कर देखेंगे। तब हम खुद पर proud feel करेंगे। तो हमें उस काम को कर लेना चाहिए। वही जब हम यह पाएंगे। कि हम खुद पर शर्मिंदगी महसूस करेंगे। तब हमें उस काम को नहीं करना चाहिए। क्योंकि लोग क्या कहेंगे। यह matter नहीं करता। अगर हम खुद की नजरों में गिर गए। तो हमें जिंदगी भर अपने खुद के साथ ही रहना है।
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