Prithviraj Chauhan Biography in Hindi | वह सच जो आपसे छिपाया गया

Prithviraj Chauhan ka Jeevan Parichay
भारत का अंतिम हिन्दू शासक

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1 Prithviraj Chauhan ka Jeevan Parichay भारत का अंतिम हिन्दू शासक

आज का यह दिन, कल इतिहास का एक दिन बन जाएगा। इतिहास से हम बहुत कुछ सीखते हैं। वह सीख हमारे आने वाले कल को बेहतर बनाने में, हमारी मदद करती है। भारत भूमि में कई पराक्रमी राजाओ ने जन्म लिया है। इसी भारत-भूमि में, एक ऐसे योद्धा ने जन्म लिया। जिनके हौसले बुलंद थे। जिनकी भुजाओं में असीम ताकत थी। जिनका हृदय बहुत विशाल था।

       यह एक ऐसे शूरवीर योद्धा थे। जिनके  साहस और पराक्रम के किस्से, भारतीय इतिहास के पन्नों पर। स्वर्णिम अक्षरों में लिखे गए हैं। वे एक आकर्षक, कद-काठी के योद्धा थे। जो सभी सैन्य विद्याओं में निपुण थे। इन्होंने अपने अद्भुत साहस से, दुश्मनों को धूल चटाई थी। इनकी वीरता का अंदाजा, इसी बात से लगाया जा सकता है।

      जब मोहम्मद गौरी द्वारा, उन्हें बंधक बना लिया गया। उनसे उनकी आंखों की रोशनी भी छीन ली गई। तब भी उन्होंने मोहम्मद गौरी के दरबार में, उसे मार गिराया था। इनके करीबी दोस्त और कवि चंद्रवरदाई ने, अपनी काव्य रचना ‘पृथ्वीराज  रासों’ में यह भी उल्लेख किया है। कि पृथ्वीराज चौहान घोड़ों और हाथियों को नियंत्रित करने की विद्या में भी निपुण थे।

    हमारे इतिहास में दिल्ली हमेशा से ही महत्वपूर्ण रही है। हर शासक यही राज करना चाहता था। मुगल शासन काल से पहले, इस गद्दी पर बैठने वाले अंतिम हिंदू राजा पृथ्वीराज चौहान थे। तो जानते हैं, इतिहास के इस महान योद्धा के बारे में।

Life Story of Prithviraj Chauhan

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Prithviraj Chauhan – An Introduction

The Great Indian Warrior

Prithviraj Chauhan

Ek Nazar

पूरा नाम

पृथ्वीराज चौहान lll

उपनाम

•  पृथ्वीराज तृतीय

•  हिंदू सम्राट

•  राय पिथौरा

•  भारतेश्वर

जन्म-तिथि

1 जून 1166

जन्म-स्थान

पाटण, गुजरात, भारत

पिता

राजा सोमेश्वर चौहान

माता

कर्पूरादेवी

भाई-बहन

● हरी राज (छोटा भाई)

● पृथा (छोटी बहन)

वंश

चौहान वंश

शासक

दिल्ली व अजमेर साम्राज्य

पत्नी

संयोगिता गाहडवाल

(कुल 13 रानियां)

बच्चे

गोविंदाराजा चौहान (बेटा)

मित्र

कवि चंदबरदाई

शत्रु

मोहम्मद शहाबुद्दीन गौरी

(शासक गजनी अफ़गानिस्तान)

विश्वासघाती

राजा जयचंद (कन्नौज)

प्रमुख युद्ध

तराइन का युद्ध l & ll

उत्तराधिकारी

गोविंदाराजा चौहान

पराजय

मोहम्मद गौरी से

मृत्यु-तिथि

11 मार्च 1192

मृत्यु-स्थान

गजनी, अफगानिस्तान

चौहान वंश का उदय
Rise of Chauhan Dynasty

 जब सम्राट अशोक के वंशजों का शासन था। उस समय आगोह पर्वत पर, ऋषि मुनि रहा करते थे। यह कन्नौज के ब्राह्मण थे। उनका जीवन शांतिपूर्ण था। भगवान की तपस्या करते और शांति से, अपने आश्रम में रहा करते थे। लेकिन असुर उन ऋषि-मुनियों को बहुत परेशान करते थे।

      उनके यज्ञ को खंडित करते रहते थे। तब उन्होंने असुरों से अपनी रक्षा के लिए, एक महायज्ञ का आयोजन किया। उस अग्निकुंड से, चार क्षत्रिय वीर पैदा हुए। उन्हीं 4 वीरों के वंशज आगे चलकर परिहार, परमार, सोलंकी और चौहान कहलाए।

        कई शिलालेखों से प्रमाण मिलता है कि चौहान सूर्यवंशी थे। जबकि कुछ किताबों में लिखा है कि वह अग्निवंशी थे। चौहान क्षत्रिय वंश के संस्थापक, राजा वासुदेव चौहान थे। यह समय छठवीं शताब्दी का था। इतिहासकारों के अनुसार, चौहान वंश के लोग, जयपुर के पास सांभर और आमेर शहर में निवास करते थे।

       इसके साथ ही अजमेर जिले के पुष्कर में चौहान वंशीय रहा करते थे। चौहानों की बहुत-सी पीढ़ियां शासन करती रही। सामन्तराज (ई०684 -709ई०), नारादेव (ई०709 -721ई०), अजयराज-l (ई०721 – 734ई०) तक शासन किया। राजा अजयराज प्रथम ने ही अजमेर को बसाया था।

   चौहान राजाओं का शासन काल लंबे समय तक चला। 11वीं ईस्वी में अजमेर के राज सिंहासन पर सोमेश्वर चौहान बैठे। यह बहुत ही पराक्रमी और शूरवीर राजा थे। उन्होंने राजा अनंगपाल तोमर का साथ, तब दिया। जब राठौर की सेना ने युद्ध छेड़ दिया। अनंगपाल दिल्ली के राजा थे। इस युद्ध में राजा अनंगपाल की जीत हुई। इसके बाद, सोमेश्वर चौहान और अनंगपाल की गहरी दोस्ती हो गई। जो बाद में रिश्तेदारी में बदल गई।

      राजा अनंगपाल ने, अपनी बेटी कर्पूरादेवी का विवाह सोमेश्वर चौहान से कर दिया। अनंगपाल की दूसरी पुत्री रूप सुंदरी का विवाह, कन्नौज के राजा विजयपाल से हुआ था। दोनों बहनों में बहुत स्नेह था। राजा सोमेश्वर और राजा विजयपाल भी रिश्तेदार बन गए। विजयपाल के पुत्र राजा जयचंद्र थे।

      एक बार यवनों ने, राजा सोमेश्वर के राज्य पर आक्रमण किया। जिसमें राजा सोमेश्वर का साथ, राजा विजयपाल ने दिया। जिसमें राजा सोमेश्वर ने जीत हासिल की। लेकिन राजा विजयपाल, वीरगति को प्राप्त हो गए। जिसके कारण कम उम्र में ही, जयचंद को कन्नौज का राजा बनाया गया।

राजा विजयपाल का एक भाई जयमल था। जो जयचंद और रूपसुंदरी को, राजा सोमेश्वर के खिलाफ भड़काता रहता था। कि राजा विजयपाल की मृत्यु के जिम्मेदार, राजा सोमेश्वर ही हैं। जयमल की बातों का प्रभाव, राजा जयचंद पर हुआ। तब वह राजा सोमेश्वर का दुश्मन बन गया।

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प्रथ्वीराज चौहान का प्रारम्भिक जीवन
Early Life of Prithviraj Chauhan

 भारतीय इतिहास के सबसे महान और साहसी योद्धा पृथ्वीराज चौहान थे। जिनका जन्म चौहान वंश के क्षत्रिय शासक राजा सोमेश्वर और कर्पूरादेवी के घर हुआ। इनका जन्म 1 जून 1166 में पाटण, गुजरात में हुआ था। ऋषि-गुरुओं ने भविष्यवाणी की। यह बालक बहुत बड़ा राजा बनेगा। जिसका पृथ्वी के बहुत बड़े क्षेत्र पर अधिकार होगा।

      यही कारण था कि उस बालक का नाम पृथ्वीराज रखा गया। ऐसा कहा जाता है कि वह अपने माता-पिता के शादी के कई सालों बाद, काफी पूजा-पाठ और मन्नतें मांगने के बाद जन्मे थे। वही उनके जन्म के समय से ही, उनकी मृत्यु को लेकर, राजा सोमेश्वर के राज्य में षड्यंत्र रचे जाने लगे। लेकिन उन्होंने अपने दुश्मनों की हर साजिश को नाकाम कर दिया।

      वे अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ते चले गए। राजघराने में पैदा होने की वजह से ही, पृथ्वीराज चौहान का पालन-पोषण काफी सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण हुआ। अर्थात वैभव पूर्ण वातावरण में हुआ था।

पृथ्वीराज चौहान की शिक्षा
Education of Prithaviraj Chauhan

पृथ्वीराज चौहान ने सरस्वती कंठाभरण विद्यापीठ से शिक्षा प्राप्त की थी। जबकि युद्ध और शस्त्र विद्या की शिक्षा, उन्होंने अपने गुरु श्रीराम जी से प्राप्त की थी। पृथ्वीराज बचपन से ही बेहद साहसी, पराक्रमी और युद्ध कला में निपुण थे।

      शुरूआत से ही पृथ्वीराज चौहान ने शब्दभेदी बाण चलाने की अद्भुत कला सीख ली थी। जिसमें वह बिना देखे, आवाज के आधार पर, बाण चला सकते थे। वह सटीक निशाना लगा सकते थे। वह सिर्फ तीर चलाने में ही माहिर नहीं थे। बल्कि तलवार और भाला चलाने में भी, उनका कोई जवाब नहीं था।

    एक बार एक शेर ने, उन पर हमला कर दिया। उस समय पृथ्वीराज अकेले थे। उनके पास कोई हथियार भी नहीं था। लेकिन फिर भी, वह निहत्थे ही शेर से लड़े। अंत में, उन्होंने शेर का जबड़ा फाड़ दिया।

     ऐसा भी माना जाता है कि उन्हें 6 भाषाओं में महारत हासिल थी। इसके अतिरिक्त वह इतिहास, गणित, दवाइयों, पेंटिंग, मिलिट्री, फिलासफी और थियोलॉजी के अच्छे ज्ञाता थे।

पृथ्वीराज चौहान व चंद्रवरदाई की मित्रता
Friendship of Prithviraj Chauhan and Chandravardai

   जिस समय पृथ्वीराज का जन्म हुआ था। उसी समय चंदबरदाई का भी जन्म हुआ था। जो कि बड़े होकर पृथ्वीराज के घनिष्ठ मित्र बने। चंद्रवरदाई पृथ्वीराज की सभा के, एक जाने-माने कवि भी बने। बचपन से ही चंदबरदाई, पृथ्वीराज के एक अच्छे मित्र थे।

      जो एक भाई की तरह, उनका ख्याल रखते थे। चंदबरदाई तोमर वंश के शासक अनंगपाल तँवर की बेटी के पुत्र थे। जिन्होंने बाद में, पृथ्वीराज के सहयोग से पिथौरागढ़ का निर्माण करवाया था।

चंदबरदाई ने पृथ्वीराज के ऊपर, अपनी एक काव्य रचना ‘पृथ्वीराज रासो’ लिखी। जिसमें उन्होंने पृथ्वीराज की वीरता और उनके गुणों का बखान किया।

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पृथ्वीराज चौहान का राज्याभिषेक
Coronation of Prithviraj Chauhan

पृथ्वीराज चौहान जब मात्र 11 साल के थे। तभी उनके पिता राजा सोमेश्वर की एक युद्ध में मृत्यु हो गई। जिसके बाद वे अजमेर के उत्तराधिकारी बने। वह एक आदर्श शासक की तरह, अपनी प्रजा की सभी उम्मीदों पर खरे उतरे।

     इसके अलावा पृथ्वीराज चौहान ने, दिल्ली पर भी अपना सिक्का चलाया। दरअसल उनके नाना ने, उनकी प्रतिभा को देखते हुए। उन्हें दिल्ली का उत्तराधिकारी बनाने का प्रस्ताव रखा था। जिसके तहत उनके नाना अनंगपाल की मृत्यु के बाद। पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के राज सिंहासन पर भी बैठे। उन्होंने कुशलतापूर्वक दिल्ली की सत्ता संभाली।

     एक आदर्श शासक के तौर पर, उन्होंने अपने साम्राज्य को मजबूती देने के लिए, कई कार्य किए। इसका विस्तार करने के लिए, कई अभियान भी चलाए। इस तरह वे एक वीर योद्धा और लोकप्रिय शासक के रूप में पहचाने जाने लगे।

पृथ्वीराज चौहान द्वारा लड़े गए युद्ध व शांत कराए गए विरोध

पृथ्वीराज चौहान ने अपने शासनकाल में बहुत सारे युद्ध को लड़ा। बहुत सारे युद्धों को जीता। उन्होंने बहुत सारे विद्रोह को शांत भी करवाया। तो जानते हैं, उनके कुछ प्रमुख achievement के बारे में।

नागार्जुन के खिलाफ युद्ध

      नागार्जुन जोकि पृथ्वीराज चौहान का चचेरा भाई था। जो विग्रह राजा lV का बेटा था। नागार्जुन ने पृथ्वीराज चौहान के साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह किया। फिर घोड़ापूरा के किले को, अपने कब्जे में कर लिया। जब पृथ्वीराज चौहान अपनी बड़ी सेना के साथ वहां पर पहुंचे। तो नागार्जुन वहां से भागने लगा।

       क्योंकि पृथ्वीराज चौहान, एक राजपूत राजा थे। जो कभी भागते हुए, शत्रु का पीछा नहीं करते थे। इस प्रकार पृथ्वीराज चौहान की नागार्जुन के खिलाफ जीत हुई। फिर घोड़ापूरा के किले को वापस, अपने कब्जे में लिया। यह भी प्रमाण मिलते हैं कि वहां पर हराए गए, सैनिकों के सरों की माला। पृथ्वीराज चौहान ने अजमेर किले के  गेट पर टंगवाई थी।

 जेजाकभुक्ति के चन्देलों के खिलाफ़

जेजाकभुक्ति का राजा परमर्दि था। पृथ्वीराज चौहान ने, वहां के राजा परमर्दि को भी हराया। बहुत सारे इतिहासकारों का मानना है। कि पृथ्वीराज चौहान ने, जेजाकभुक्ति के राजा परमर्दि को नहीं हराया था।

      उन्होंने केवल जेजाकभुक्ति पर धावा बोला था। वह जीत नहीं पाए थे। पृथ्वीराज चौहान को, इस युद्ध से ज्यादा फायदा नहीं हुआ था। परमर्दि ने वापस जेजाकभुक्ति पर अपना नियंत्रण कर लिया था। यह बात अभी भी संदेह में है। कि पृथ्वीराज ने परमर्दि को हराया था या नहीं।

 गुजरात के चालुक्यों के खिलाफ

      चालुक्यों के राजा भीमा ll ने, पृथ्वीराज के पिता सोमेश्वर को मारा था। फिर नागौर पर अपना कब्जा कर लिया था। पृथ्वीराज चौहान ने इसी बात का बदला लेने के लिए, भीमा ll  पर आक्रमण किया। उन्होंने भीमा ll को मारा। फिर नागौर को वापस अपने कब्जे में ले लिया।

      बहुत सारे इतिहासकार, इस पर भी मतभेद रखते हैं। क्योंकि भीमा ll का राज्य, पृथ्वीराज के मरने के काफी समय बाद तक रहा। अगर पृथ्वीराज के मरने के बाद भी, भीमा ll राज्य कर रहा था। तो पृथ्वीराज ने उसे कैसे मारा। वही जब राजा सोमेश्वर की मृत्यु हुई। तब भीमा ll एक बच्चा था। जो इतने बड़े राजा को नहीं मार सकता था।

अबू के परमारस के खिलाफ

माउंट आबू जहां का राजा धारावर्ष था। वहां के राजा के ऊपर, पृथ्वीराज ने रात में आक्रमण किया। यहां पर पृथ्वीराज को हार का सामना करना पड़ा। इस युद्ध से पृथ्वीराज चौहान को ज्यादा फायदा नहीं हुआ।

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पृथ्वीराज चौहान व संयोगिता की प्रेम कहानी
Love Story of Prithviraj Chauhan and Sanyogita

 पृथ्वीराज चौहान और राजकुमारी संयोगिता के प्रेम-कहानी की। आज भी मिसाल दी जाती है। पृथ्वीराज चौहान के अद्भुत साहस और वीरता के किस्से हर तरफ थे। वही जब राजा जयचंद की बेटी संयोगिता ने, उनकी बहादुरी और आकर्षण के किस्से सुने। तो उनके हृदय में, पृथ्वीराज चौहान के लिए, प्रेम भावना उत्पन्न हो गई।

      फिर वह चोरी-छिपे गुप्त रूप से पृथ्वीराज चौहान को पत्र भेजने लगी। पृथ्वीराज चौहान भी राजकुमारी संयोगिता की खूबसूरती से बेहद प्रभावित थे। वे भी उनकी तस्वीर देखते ही, उनसे प्यार कर बैठे थे। जब इस बात का पता राजा जयचंद को चला। तो उन्होंने अपनी बेटी संयोगिता के विवाह के लिए, स्वयंवर करने का फैसला किया।

     इसी दौरान राजा जयचंद ने, समस्त भारत पर। अपना शासन चलाने की इच्छा के चलते। अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ के बाद ही राजकुमारी संयोगिता का स्वयंवर होना था। वही पृथ्वीराज चौहान नहीं चाहते थे। कि क्रूर और घमंडी राजा जयचंद का भारत में प्रभुत्व हो। इसीलिए उन्होंने जयचंद का विरोध भी किया।

      जिसके कारण राजा जयचंद के मन में, पृथ्वीराज के खिलाफ घृणा और भी ज्यादा बढ़ गई। इसके बाद जयचंद ने, अपनी बेटी के स्वयंवर के लिए। देश के कई छोटे-बड़े महान योद्धाओं को न्योता दिया। वही पृथ्वीराज चौहान को अपमानित करने के लिए, न्योता नहीं भेजा। द्वारपालों के स्थान पर, पृथ्वीराज चौहान की मूर्तियां लगा दी।

    तब पृथ्वीराज चौहान, जयचंद की चालाकी को समझ गए। उन्होंने अपनी प्रेमिका को पाने के लिए, एक गुप्त योजना बनाई। उस समय हिंदू लड़कियों को, अपना मनपसंद वर चुनने का अधिकार था। स्वयंवर में, वह जिस भी व्यक्ति के गले में माला डालती। वह उसकी रानी बन सकती थी।

     वही स्वयंबर के दिन बड़े-बड़े राजा, अपने सौंदर्य के लिए पहचानी जाने वाली, राजकुमारी संयोगिता से विवाह करने के लिए शामिल हुए। तब संयोगिता हाथों में वरमाला लेकर, एक-एक के पास से गुजरी। उनकी नजर द्वार पर स्थित, पृथ्वीराज की मूर्ति पर पड़ी। उन्होंने उस मूर्ति पर हार डाल दिया।

      इसे देखकर स्वयंवर में आए। सभी राजा अपने आप को अपमानित महसूस करने लगे। वही पृथ्वीराज चौहान अपनी योजना के मुताबिक। उस प्रतिमा के पीछे खड़े थे। तभी उन्होंने राजा जयचंद के सामने, राजकुमारी संयोगिता को उठाया। सभी राजाओं को युद्ध के लिए ललकार कर, अपनी राजधानी दिल्ली चले गए।

कन्नौज के गाहडवालों के खिलाफ युद्ध
Prithviraj Chauhan – War against the Gahadavalas of Kannauj

    इसके बाद राजा जयचंद गुस्से से आगबबूला हो गए। इसका बदला लेने के लिए, उसकी सेना ने पृथ्वीराज चौहान का पीछा किया। लेकिन उसकी सेना महान पराक्रमी पृथ्वीराज को पकड़ने में असफल रही। जयचंद के सैनिक पृथ्वीराज का बाल भी बांका नहीं कर सके।

       हालांकि इसके बाद पृथ्वीराज चौहान और राजा जयचंद के बीच 1189 व 1190 में भयंकर युद्ध हुआ। इसमें बहुत से लोगों की जानें गई। दोनों सेनाओं को भारी नुकसान पहुंचा। दूरदर्शी शासक पृथ्वीराज की सेना बहुत बड़ी थी। जिसमें लगभग 3 लाख सैनिक और 300 हाथी थे। उनकी विशाल सेना में घोड़ों की सेना का भी विशेष महत्व था।

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पृथ्वीराज चौहान व मोहम्मद गौरी के बीच तराइन का युद्ध
Battle of Tarain Between Prithviraj Chauhan and Md. Ghori

   पृथ्वीराज ने अपनी विशाल सेना की वजह से, न सिर्फ कई युद्ध जीते। बल्कि वे अपने राज्य का विस्तार करने में भी कामयाब रहे। वही पृथ्वीराज चौहान जैसे-जैसे युद्ध जीतते गए। वैसे-वैसे अपनी सेना को भी, बढ़ाते गए। उन्होंने अपने राज्य में, कुशल नीतियों के चलते, अपने राज्य का विस्तार करने में, कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।

       पृथ्वीराज चौहान पंजाब में भी अपना सिक्का जमाना चाहते थे। लेकिन उस दौरान पंजाब में, मोहम्मद शहाबुद्दीन गौरी का शासन था। चौहान की यह इच्छा मोहम्मद गौरी से युद्ध करने पर ही पूरी हो सकती थी। इसके बाद, उन्होंने गौरी पर आक्रमण कर दिया। इस हमले के बाद, पृथ्वीराज चौहान ने सरहिंद, सरस्वती और हांसी पर अपना राज्य स्थापित कर लिया।

      लेकिन इसी बीच अखिलवाडा में, जब मोहम्मद गौरी की सेना ने हमला किया। तो पृथ्वीराज चौहान का सैन्य बल कमजोर पड़ गया। इसके चलते पृथ्वीराज को सरहिंद के किले से, अपना अधिकार खोना पड़ा। बाद में, पृथ्वीराज चौहान ने अकेले ही, वीरता के साथ मोहम्मद गौरी का सामना किया। जिसमें मोहम्मद गौरी घायल होकर भाग निकला।      इस युद्ध का कोई निष्कर्ष नहीं निकला। यह युद्ध सरहिंद के किले के पास, तराइन नामक स्थान पर हुआ था। इसीलिए इसे ‘तराइन का युद्ध’ भी कहा जाता है। कहा जाता है। पृथ्वीराज ने मोहम्मद गौरी को 17 बार पराजित किया था। लेकिन हर बार उन्होंने, उसे जीवित ही छोड़ दिया।

पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ जयचंद का षड्यंत्र
Jaichand’s Conspiracy Against Prithviraj Chauhan

  पृथ्वीराज चौहान से इतनी बार हारने के बाद, मोहम्मद गौरी मन ही मन प्रतिशोध की भावना से भर गया था। वही जब संयोगिता के पिता और पृथ्वीराज चौहान के कट्टर दुश्मन, जयचंद को इस बात की भनक लगी। तो उसने मोहम्मद गौरी से अपना हाथ मिला लिया। उन्होंने पृथ्वीराज चौहान को जान से मारने का षड्यंत्र रचा।

      इसके बाद दोनों ने मिलकर, साल 1192 में अपने मजबूत सैन्य बल के साथ। पृथ्वीराज चौहान पर फिर से हमला किया। जब पृथ्वीराज चौहान, इस युद्ध में अकेले पड़ गए थे। तब उन्होंने अन्य राजपूत राजाओं से मदद मांगी थी। लेकिन स्वयंवर में पृथ्वीराज द्वारा किए गए अपमान को लेकर। कोई भी शासक उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया।

      इस मौके का फायदा उठाते हुए। राजा  जयचंद ने पृथ्वीराज का भरोसा जीतने के लिए। अपना सैन्य-बल पृथ्वीराज को सौंप दिया। उदार स्वभाव के पृथ्वीराज चौहान, राजा जयचंद की इस चाल को समझ नहीं पाऐ। इस तरह जयचंद के धोखेबाज सैनिकों ने, पृथ्वीराज के सैनिकों का संहार कर दिया।

      इस युद्ध के बाद, मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान और उनके मित्र चंद्रवरदाई को अपने जाल में फसाकर, उन्हें बंधक बना लिया। उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया। इसके बाद मोहम्मद गौरी ने दिल्ली, अजमेर, पंजाब और कन्नौज में शासन किया। इसके बाद कोई भी राजपूत शासक,  भारत में अपना राज्य जमाकर। अपनी बहादुरी साबित नहीं कर पाया।

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पृथ्वीराज चौहान की मौत का रहस्य
Prithviraj Chauhan – Mystery of Death

   पृथ्वीराज चौहान से कई बार पराजित होने के बाद। मोहम्मद गौरी प्रतिशोध की भावना से भर गया था। इसलिए बंधक बनाने के बाद, उसने पृथ्वीराज चौहान को बहुत सारी शारीरिक यातनाएं दी। उसने पृथ्वीराज चौहान को, मुस्लिम बनने के लिए भी प्रताड़ित किया। वही काफी यातनाएं सहने के बाद भी। वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान मोहम्मद गौरी के सामने झुके नहीं।

     दुश्मन के दरबार में भी उनके माथे पर, किसी तरीके की शिकन नहीं थी। इसके बाद भी, वह अमानवीय कृत्यों को अंजाम देने वाले। मोहम्मद गौरी की आंखों में आंखें डालकर। पूरे आत्मविश्वास के साथ देखते रहे। इसके बाद गौरी ने, उन्हें आंखें नीचे करने का आदेश भी दिया। लेकिन इस राजपूत योद्धा पर, तनिक भी प्रभाव नहीं पड़ा।

     जिसे देखकर, मोहम्मद गौरी का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया। उसने पृथ्वीराज चौहान की आंखें, गर्म सलाखों से जला देने का आदेश दिया। यही नहीं आंखें जला देने के बाद भी, क्रूर शासक ने उन पर कई जुल्म ढाए। अंत में, उन्हें जान से मार देने का फैसला किया। इससे पहले की पृथ्वीराज चौहान को मार देने की साजिश पूरी होती। कवि चंद्रवरदाई ने मोहम्मद गौरी को, पृथ्वीराज के शब्दभेदी बाण चलाने की खूबी बताई।

     जिस पर मोहम्मद गोरी हंसने लगा। भला एक अंधा कैसे बाण चला सकता है। लेकिन बाद में, गौरी अपने दरबार में, तीरंदाजी प्रतियोगिता का आयोजन करने के लिए राजी हो गया। वही इस प्रतियोगिता में शब्दभेदी बाण चलाने के उस्ताद। पृथ्वीराज चौहान ने अपने मित्र चंद्रवरदाई के दोहो माध्यम से, अपनी अद्भुत कला दिखाई।

      फिर भरी सभा में पृथ्वीराज चौहान ने चंद्रवरदाई के दोहों की सहायता से। मोहम्मद गौरी की दूरी और दिशा को समझते हुए। गौरी के दरबार में ही, उसका वध कर दिया। यह दोहा कुछ इस प्रकार था।

“चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण,

 ता ऊपर सुल्तान है, मत चुको चौहान।”

    इसके बाद पृथ्वीराज चौहान और चंद्रवरदाई ने, अपने दुश्मनों के हाथो मारने के बजाए। एक-दूसरे पर बाण चलाकर, अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। वही जब राजकुमारी संयोगिता को, इस बात की खबर लगी। तो पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद, रानी संयोगिता ने अपने पति के वियोग में, लाल किले में जोहर किया था। जोहर कोई हिंदू प्रथा नहीं थी। बल्कि मुगलों से अपनी रक्षा के लिए, हिंदू स्त्रियां आग में कूद कर अपनी जान दे देती थी।

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पृथ्वीराज चौहान पर बनी बायोपिक
Biopic on Prithviraj Chauhan

   पृथ्वीराज चौहान पर बनी फिल्म ‘पृथ्वीराज चौहान’ 3 जून 2022 को रिलीज होने जा रही है। यह फिल्म एक साथ तीन भाषाओं हिंदी, तमिल और तेलुगू में रिलीज होगी। इस फिल्म के लिए, 18 वर्षों तक कड़ी research की गई। इस फिल्म के निर्देशक चंद्र प्रकाश जी हैं। यह फिल्म एक्शन और रोमांस से भरपूर है।

      इस फिल्म में पृथ्वीराज की भूमिका में, अक्षय कुमार नजर आएंगे। वही पूर्व मिस वर्ल्ड मानुषी छिल्लर, राजकुमारी संयोगिता की भूमिका में दिखेंगी। साथ ही सोनू सूद, कवि चंद्रवरदाई की भूमिका में। तो संजय दत्त काका कान्हा का रोल निभा रहे है। इसमें सबसे अहम किरदार मानव विज का है। जो मोहम्मद गौरी की भूमिका में नजर आएंगे।

FAQ

 

प्र० पृथ्वीराज चौहान कहाँ के राजा थे?

उ० पृथ्वीराज चौहान एक बड़े साम्राज्य के राजा थे। उनका अधिकार अजमेर व दिल्ली के अतिरिक्त, आसपास के इलाकों पर भी था।

 

प्र०  पृथ्वीराज चौहान का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

उ०   पृथ्वीराज चौहान जन्म 1 जून 1166 में पाटण, गुजरात में हुआ था।

 

प्र० पृथ्वीराज चौहान की कितनी बीवियां थी?

उ०  पृथ्वीराज चौहान की कुल 13 रानियाँ थी। जिनमें संयोगिता उनकी सबसे प्रिय रानी थी।

 

प्र०  पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कब और कहां हुई?

उ०  पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु 11 मार्च 1192 में, गजनी अफगानिस्तान में हुई थी।

 

प्र० पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद संयोगिता का क्या हुआ?

उ०  पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद, रानी संयोगिता ने अपने पति के वियोग में, लाल किले में जोहर किया था। जोहर वह प्रथा है। जिसमें हिंदू स्त्रियां अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए। आग में कूदकर, अपनी जान दे देती थी।

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