शिवलिंग क्या हैं | शिवलिंग का रहस्य क्या हैं | औरतों को शिवलिंग छूना चाहिए या नही

शिवलिंग क्या है – रहस्य क्या है, क्या है और कैसे बना, सफेद शिवलिंग का महत्व, पारद शिवलिंग,  औरतों को शिवलिंग छूना चाहिए या नहीं, लड़कियों को पूजा क्यों नहीं करनी चाहिए।

भगवान शिव के बारे में ऐसा माना जाता है। कि भगवान शिव त्रिलोक के आदि और अंत के देवता हैं। जिनके आगे दुनिया की सभी शक्तियां असफल हो जाती है। भगवान शिव को स्वयंभू माना जाता है। अर्थात भगवान शिव का जन्म स्वयं ही हुआ था। यानीकि न तो भगवान शिव की कोई माता है। न ही कोई पिता है। इन्हीं कारणों से, वे पंच तत्वों से भी परे हैं।

इन्हीं कारणों से, उन्हें मुत्यु का भी कोई भय नहीं है। इनकी मृत्यु कभी नहीं हो सकती। वेदों का अनुसरण करें। तो धरती पर आज भी महादेव मौजूद हैं। भक्तों की बात मानी जाए। तो आज भी उनका एहसास होता है। हम आज भी उनके होने के सबूत हिमालय पर पा सकते हैं। वहीं अगर साधू सन्यासियों की मानी जाए। तो भगवान सदाशिव का भौतिक रूप, महादेव आज भी उन्हें दर्शन देते हैं।

सिर्फ भारत में ही नहीं, वरन पूरी दुनिया में प्राचीन सभ्यता की निशानियां मिलती है।  चाहे वह भारत हो या चीन। चाहे वह नेपाल हो या कंबोडिया। उनके होने के सबूत, हमें आज भी मिलते हैं। वैज्ञानिकों ने जिस भी  प्राचीन शिवलिंग की कार्बन डेटिंग की है। तो उन्हें हैरानी ही हुई है। क्योंकि जिस जगह की सभ्यता को, वह हजारों साल पुराना मानते थे। लेकिन भारत की यह सभ्यता तो लाखों साल पुरानी है। इसी प्रकार जाने : शिवलिंग पर क्या चढ़ाना चाहिए शिवलिंग पर क्या नही चढ़ाना चाहिए [सम्पूर्ण जानकारी]।

शिवलिंग क्या है

शिवलिंग क्या है

शिव पुराण के अनुसार, सृष्टि के आरंभ से ही शिवलिंग की पूजा होती आई है। लेकिन क्या यह शिवजी का कोई अंग है, या प्रतीक चिन्ह है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है – शिव लिंग। वही इसकी आकृति भी लिंग जैसी ही है। लेकिन दूसरे मत के अनुसार, यह एक लिंग नहीं है। बल्कि शिव का प्रतीक है।

शिवलिंग पर एक संस्कृत शब्द है। जहां लिंग का अर्थ प्रतीक होता है। यानी शिवलिंग का अर्थ ‘शिव का प्रतीक’ है। शिवलिंग को हम शिव का स्वरूप मानकर उनकी पूजा करते हैं। जिस प्रकार, जब हम व्याकरण में पढ़ते हैं। तो हमें तीन प्रकार के लिंग बताए जाते हैं। पुलिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग। स्त्री और नपुंसक का तो, कोई लिंग होता ही नहीं। फिर भी उनके आगे लिंग जोड़ा जाता है।

इसका यही अर्थ होता है कि यह एक प्रतीक चिन्ह है। एक विशेष वर्ग में विभाजित करने के लिए, लिंग का प्रयोग किया गया है। इसे कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है। जैसे – प्रकाश संदर्भ लिंग, अग्नि संदर्भ लिंग, ऊर्जा संदर्भ लिंग, ब्रह्मांड संदर्भ लिंग।

पुराणों में वर्णित के कथा के अनुसार, ऋषियों ने सूत जी से प्रश्न किया। सभी देवताओं की पूजा मूर्ति स्वरूप में होती है। लिंग में नहीं। परंतु भगवान शिव की पूजा लिंग और मूर्ति दोनों स्वरूप में क्यों की जाती है। तब सूत जी ने बड़े विनम्र भाव से कहा। उनका यह प्रश्न बहुत अद्भुत और पवित्र है।

एकमात्र भगवान शिव ही ब्रह्म रूप होने के कारण, निराकार कहलाते हैं। रूपवान होने के कारण, उन्हें साकार भी कहा जाता है। इसलिए वे साकार और निराकार दोनों हैं। शिवलिंग शिवजी के निराकार स्वरूप का प्रतीक है। इसी प्रकार भगवान शिव का मूर्ति स्वरूप ही, उनके साकार स्वरूप का प्रतीक है।

साकार और निराकार रूप होने से ही, वे ब्रह्म शब्द से कहे जाने वाले परमात्मा है। यही कारण है कि सब लोग लिंग को निराकार और मूर्ति को साकार, दोनों ही रूपों में पूजते हैं। महादेव से भिन्न दूसरे देवता, साक्षात ब्रह्म नहीं है। इसलिए कहीं भी उनका निराकार लिंग मौजूद नहीं होता है। शिवलिंग एक ऐसी आकृति है। जिसमें संपूर्ण ब्रह्मांड व्याप्त है।

शिवलिंग का रहस्य क्या है

शिवलिंग एक ऐसी आकृति है। एक ऐसा खास प्रकार का ढांचा है। जिसे एक विशेष मकसद से बनाया जाता है। अभी तक आपने भगवान शिव के शिवलिंग को, अलग-अलग आकारों में देखा होगा। यह सब शिवलिंग मनुष्यों के द्वारा ही बनाए गए हैं। कहीं कहीं लोगों ने, अपनी भावनाओं और भक्ति को प्रकट करने के लिए, जिसका जैसा मन आया।

उसने वैसा शिवलिंग बना लिया। लेकिन वहीं अगर हम 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंग के शिवलिंग को देखते हैं। उन सभी का आकार, एक-दूसरे से अलग है। ऐसा इसलिए है। क्योंकि अलग-अलग मकसद को पाने के लिए, अलग-अलग शिवलिंग  बनाए गए हैं। कुछ शिवलिंग को सेहत के लिए बनाया गया है।

तो कुछ शिवलिंग को विवाह के लिए, वहीं कुछ शिवलिंग को ध्यान-साधना के लिए बनाया गया है। इन सभी शिवलिंग में एक चीज कॉमन है। यह सभी शिवलिंग Elliptical shape में है। जिसका मतलब 3-Dimension Ellipse है। शिव किसी स्त्री या पुरुष का प्रतीक नही है। बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड का शून्य निराकार का प्रतीक है।

उन्हें किसी एक शैली में बांधकर नहीं रखा जा सकता। क्योंकि वह स्वयं एक श्रेणी है। एक प्रतीक है। इसे समझने के लिए, जब हम वैज्ञानिकों द्वारा ली गई। अंतरिक्ष की तस्वीरों को देखते हैं। तो हम पाते है कि स्कन्द पुराण के अनुसार, आकाश स्वयं एक लिंग है। शिवलिंग समस्त ब्रह्मांड की एक धूरी है।

शिवलिंग अनंत है। इसकी न तो  शुरुआत है, और न ही अंत। शिवलिंग का अर्थ अनंत भी होता है। बहुत से शिवलिंग को प्राचीन ज्ञान शास्त्र में दिए गए, निर्देशों से बनाया गया है। शिवलिंग के पीछे वैज्ञानिक तथ्य भी छिपे हुए हैं। ऐसा ही एक शिवलिंग ध्यान के लिए, अध्यात्मिक गुरु श्री सद्गुरु जी ने भी बनवाया है। इस शिवलिंग का नाम ध्यान लिंगम है।

सद्गुरु का कहना है कि अगर आप इस लिंगम के आसपास बैठे रहोगे। तो कुछ ही देर में, आप स्वयं ही ध्यान की मुद्रा में चले जाओगे। आपको समय का बोध भी नहीं होगा। ब्रह्मांड में दो ही चीजें हैं। ऊर्जा यानी energy और matter यानी पदार्थ। हमारा शरीर पदार्थ से निर्मित है। हमारी आत्मा ऊर्जा है।

इसी प्रकार प्रकृति पदार्थ और शिव भक्ति ऊर्जा का प्रतीक बनकर, शिवलिंग कहलाते हैं। ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है। वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की ही आकृति है। अर्थात इस संसार में न सिर्फ पुरुष का और न केवल प्रकृति का, यानी स्त्री का वर्चस्व है। बल्कि दोनों समान है।

किसी मूर्ख को संभालने के लिए, हम कह सकते हैं। कि शिवलिंग शिव का प्रतीक है। संपूर्ण ब्रह्मांड का जो आकार है। उसी आकार के जैसे पत्थर का एक लिंग बनाकर, हम उसकी पूजा करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उस आकार में, पूरे ब्रह्मांड की ऊर्जा को सामने की शक्ति होती है।

हम कर्मकांड शिवलिंग के साथ इसीलिए करते हैं। ताकि उस लिंग में ज्यादा से ज्यादा ऊर्जा को समाहित किया जा सके। फिर जब हम उस शिवलिंग के पास बैठे हैं। तो हमें उस उर्जा का फायदा मिल सके। ताकि हमारी अध्यात्मिक उन्नति होती रहे। इसी प्रकार जाने : Bhagwan Shiv Ke 12 Jyotirling Ki Kathaउत्पत्ति कब और कैसे हुई।

शिवलिंग के प्रकार व महत्व

शिव पुराण में कहा गया है कि जो भी ‘लिंग उत्पत्ति’ की कथा का श्रवण करता हैं, अर्थात सुनता है। उसका सदैव शुभ होगा।  इसके साथ ही, उसके दुखों का भी नाश होगा। शिव पुराण में तीन प्रकार के शिवलिंग का उल्लेख मिलता है।

पहला लिंग- स्थापित शिवलिंग होता है। जो ब्राह्मणों, साधु-संतों, महापुरुषों, शिव-भक्तों,  राजा-महाराजाओं, सती नारियों के द्वारा, जिस शिवलिंग की स्थापना की जाती है। उसे ‘स्थापित शिवलिंग’ कहा जाता है। इसे ‘प्रतिष्ठित लिंग’ शिवलिंग भी कहा जाता है।

भगवान शिव की प्राण प्रतिष्ठा नहीं होती। उनकी प्रतिष्ठा होती है। देवों की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। क्योंकि देवों की मूर्तियों में, प्राण को प्रतिष्ठित करना पड़ता है। लेकिन शिव को जगत का प्राण माना गया है। इनमें प्राण डरने की क्षमता किसमें है। इसलिए भगवान शिव की प्राण प्रतिष्ठा नहीं बल्कि प्रतिष्ठा की जाती है वही लिंग की स्थापना होती है।

दूसरा लिंग –  स्वयंभू शिवलिंग होता है। जो शिवलिंग धरती से, अपने आप प्रकट होता है। उसे स्वयंभू शिवलिंग कहा जाता है।

तीसरा लिंग- उप लिंग होता है।

चौथा लिंग- ज्योतिर्लिंग होता है।

1000 स्थापित शिवलिंग की पूजा करने से, जो फल मिलत है। उतना फल एक स्वयंभू शिवलिंग की पूजा करने से मिलता है। 1000 स्वयंभू शिवलिंग की पूजा करने से, जो फल मिलता है। उतना  एक उप लिंग की पूजा करने से मिलता है। 1000 उप लिंग की पूजा करने से जो फल मिलता है। उतना फल 1 ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से मिलता है।

शिवलिंग क्या है
सफेद शिवलिंग का महत्व

त्रिनेत्र शिव महापुराण के अनुसार, अगर आप काले पाषाण के शिवलिंग की पूजा अर्चना करते हैं। तो उसमें ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी का वास होता है। इसमें ब्रह्मा अपने चारों मुखों के साथ विराजमान होते हैं। शिव जी अपने पांचों मुखों के साथ विराजमान होते हैं। वही भगवान विष्णु अपने हजारों मुखों के साथ, शिवलिंग में विराजमान होते हैं।

इस प्रकार काले पाषण के शिवलिंग में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का ही वास होता है। यदि आप श्वेत पाषाण शिवलिंग  की पूजा अर्चना करते हैं। तो उसमें दो स्वरूप विराजमान होते हैं। एक औघड़ वरदानी शिव और दूसरी जगत जननी मां पार्वती विराजमान होती है। यह अपने मूल स्वरूप में विराजमान होते हैं। इसी प्रकार जाने : भगवान शिव जी से जुड़े रहस्यMysterious Facts of Lord Shiva।

शिवलिंग क्या है
पारद शिवलिंग

पारद को मरकरी भी कहा जाता है। यह पारा होता है। पारा ही एकमात्र ऐसी धातु है। जो सामान्य वातावरण में भी द्रव रूप में होती है। मानव शरीर के तापमान को नापने के लिए, थर्मामीटर में जो द्रव भरा होता है। वह पारा ही होता है। पारद शिवलिंग इसी पारे से निर्मित होते हैं। पारे को विशेष प्रक्रियाओं द्वारा, संशोधित किया जाता है।

जिसके फलस्वरूप वह ठोस रूप ले लेता है। फिर तत्काल उसका शिवलिंग बना लिया जाता है। यह प्रक्रिया जटिल होती है। पारद शिवलिंग के महत्व का वर्णन पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, शिव पुराण, उपनिषद आदि अनेक ग्रंथों में देखने को मिलता है। रूद्र संहिता में यह विवरण प्राप्त होता है। कि रावण रसायन शास्त्र का ज्ञाता और तंत्र मंत्र का विद्वान था।

उसने भी पारद शिवलिंग का निर्माण व पूजा उपासना करके, शिवजी को प्रसन्न किया था। पारद शिवलिंग अक्सर घर, ऑफिस, दुकान आदि जगह पर रखा जाता है। जिसका बहुत ही शुभ फल प्राप्त होता है। इस शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने से जीवन में सुख-शांति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

पारद शिवलिंग से धन-धान्य, आरोग्य, पद-प्रतिष्ठा व सुख आदि भी प्राप्त होते है। नौ ग्रहों से होने वाले अनिष्ट प्रभावों से भी मुक्ति प्राप्त होती है। पारद शिवलिंग की विधिवत पूजा करने से, संतान की प्राप्ति होती है। 12 ज्योतिर्लिंगों के पूजन से, जितना पुण्य प्राप्त होता है। उतना पुण्य  पारद शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही मिल जाता है। पारद शिवलिंग से अकाल मृत्यु का भय भी समाप्त हो जाता है।

शिवलिंग से जुड़ी भ्रांतियां

शिवलिंग की पूजा को लेकर, बहुत सारी भ्रांतियां जुड़ी हुई है। अक्सर यह सुनने को मिलता है। कि क्या महिलाएं शिवजी की पूजा कर सकती हैं या नहीं। क्या कुंवारी कन्याओं के लिए शिवपूजन उचित है। क्या स्त्रियां शिवलिंग का स्पर्श कर सकती हैं। केवल कपोल-कल्पित बातों को सुनकर, हम इस तथ्य को नकार नहीं सकते।

भगवान शंकर की पूजा, किसी एक विशेष संप्रदाय, एक विशेष वर्ग या एक  लिंग विशेष की पूजा है। चाहे वह स्त्रीलिंग हो, चाहे पुरुष लिंग हो, चाहे नपुंसकलिंग  हो। हर किसी को भगवान की पूजा करने का अधिकार है। भगवान की पूजा से, हम किसी को वंचित नहीं कर सकते।

भगवान किसी एक के नहीं, बल्कि भगवान सबके हैं। सर्वत्र हैं। यह संपूर्ण संसार ही शिव स्वरूप है। यह भेद हमारे मन के हो सकते हैं। इसलिए इस शंका का समाधान आवश्यक हो जाता है। इसी प्रकार जाने : कैलाश पर्वत की कहानी, इतिहास व रहस्यक्यों है कैलाश पर्वत अजेय।

शिवलिंग क्या है
औरतों को शिवलिंग छूना चाहिए या नहीं

विवाहित महिलाओं को शिवलिंग की पूजा करने का अधिकार है या नहीं। इस बात को लेकर अक्सर महिलाएं भ्रमित रहती हैं। शिव पुराण के विश्वेश्वर संहिता के 21वें अध्याय में, इस बात का प्रमाण मिलता है।

ब्राह्मण: क्षत्रियो वैश्य: शूद्रों वा प्रतिलोमज:।

पूजयेत् सततं लिङ्ग तत्तन्मत्रेण सादरम्।।

किं बहूक्तेन मुनयः स्त्रीणामपि तथान्यतः।

अधिकारोऽस्ति सर्वेषां शिवलिङ़ागंर्चने द्विजा:।।

अर्थात शिवलिंग की पूजा का अधिकार केवल एक जाति विशेष को नहीं। एक वर्ग विशेष को नहीं। बल्कि प्रत्येक पुरुष जाति के साथ, प्रत्येक स्त्री जाति को भी, शिवलिंग की पूजा का पूर्ण अधिकार है।

यह बात बिल्कुल गलत साबित होती है। कि स्त्रियों को शिवलिंग की पूजा का अधिकार नहीं है। क्योंकि स्त्री के बगैर शिवलिंग की पूजा अधूरी है। बिना शक्ति के तो, भगवान शिव भी शव के समान है। इसका देवी भागवत में स्पष्ट प्रमाण देखने को मिलता है। बिना शक्ति के शिव भी शव के समान है।

शिवोऽपि शवतां याति कुण्डलिन्या विवर्जितः।

शक्तिहीनस्तु यः कश्चिदसमर्थः स्मृतो बुधैः॥

अर्थात बिना शक्ति के भगवान शिव भी शव के समान है। शिव में छोटी ‘इ’ की मात्रा शक्ति का प्रतीक मानी जाती है। तो बिना शक्ति के शिव भी, शव के समान बन जाते हैं। महिलाओं को स्वयं शक्ति का स्वरूप माना गया है। तो शिवलिंग की पूजा से, इन्हें कैसे वंचित रखा जा सकता है।

इस भ्रम को समाप्त करने के लिए, कि स्त्रियां शिवलिंग की पूजा नहीं कर सकती। इसका एक और प्रमाण ‘रुद्रहृदयोपनिषद’ में भी लिखा गया है-

रूद्रो ल़िंगम् उमा पीठम्

अर्थात भगवान शिव स्वयं लिंग स्वरूप हैं और माता भगवती, जो लिंग की पीठ होती है। वह स्वयं शक्ति स्वरूपा है। बल्कि ‘लिङ्ग पुराण’ के अंतर्गत स्पष्ट लिखा गया है-

लिंग वेदी महादेवी लिंगं साक्षात् महेश्वर

अर्थात शिवलिंग में जो अरघा की आकृति होती है। जिसे जलहरि या शिवलिंग का आधार कहा जाता है। वह स्वयं में, मां शक्ति का स्वरुप है। वही लिंग को साक्षात महादेव का स्वरूप माना जाता है। शक्ति और प्रकृति दोनों का मेल ही शिवलिंग है। इसी प्रकार जाने : सोमवार व्रत कथा, सोलह सोमवार व  सावन सोमवार व्रत कथा सोमवार व्रत के नियम। सोमवार व्रत के लाभ।

लड़कियों को शिवलिंग की पूजा क्यों नहीं करनी चाहिए

देवों के देव महादेव, इस संपूर्ण ब्रह्मांड के कण-कण में बसी हुई, असीम उर्जा हैं। शिव ही आदि हैं और शिव ही अनंत हैं। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति शिवलिंग से ही हुई है। जब इस ब्रह्मांड में कुछ भी नहीं था। तभी अचानक एक विशालकाय शिवलिंग प्रकट हुआ। संपूर्ण ब्रह्मांड प्रकाश और ऊर्जा से भर गया।

इसके पश्चात समस्त आकाशगंगा, तारों और ग्रहों का निर्माण हुआ। सर्वप्रथम शिवलिंग की पूजा ब्रह्मदेव और विष्णु जी ने की थी। सबसे पहला व्रत मां आदिशक्ति दुर्गा, लक्ष्मी और मां सरस्वती ने ही किया था। वैसे तो शिवजी की पूजा, इस संसार का हर प्राणी करता है। शिवजी सभी प्राणियों के पालनहार हैं।

लेकिन शिवलिंग की पूजा अविवाहित महिलाएं नहीं कर सकती। इसके शास्त्रों  और पुराणों में, कई सारे नियम बताए गए हैं। शिवलिंग की पूजा करते समय, कुछ गलतियां नहीं करनी चाहिए। नहीं तो पूजा सफल नहीं मानी जाती। इसके विपरीत परिणाम भी, मनुष्य को भुगतने पड़ते हैं।

क्योंकि शिवलिंग स्वयं ऊर्जा का स्रोत है। इसमें समस्त ब्रह्मांड का संतुलन बनाकर रखने वाली ऊर्जा होती है। यही शक्तिपुंज है। इसी से पंचतत्व का निर्माण हुआ है। शास्त्रों के अनुसार, शिवलिंग शक्ति का प्रतीक है। इसकी पूजा विवाहित पति-पत्नी या फिर कोई पुरुष ही कर सकता है। शास्त्रों के अनुसार, अविवाहित कन्या को माता पार्वती के साथ, शिवजी की पूजा करनी चाहिए।

ऐसा करने से उन्हें मनचाहा जीवनसाथी मिल जाता है। पुराणों के अनुसार, विवाहित स्त्रियां शिवलिंग की पूजा कर सकती हैं। लेकिन अविवाहित कन्या को, शिवलिंग को स्पर्श नहीं करना चाहिए। इसे शास्त्रों में वर्जित माना गया है। इसके पीछे कारण बताया जाता है कि शिवजी घनघोर तपस्या में लीन रहते हैं। शिव जी की तपस्या को भंग करना, अनुचित माना गया है।

शास्त्रों के अनुसार, अविवाहित कन्याओं को शिवलिंग की परिक्रमा नहीं करनी चाहिए। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, अप्सराएं भी शिवजी की पूजा के दौरान बेहद सावधान रहती थी। कई अप्सराएं शिव शक्ति से मोहित होकर, उन्हें पति रूप में पाने की तपस्या करने लग जाती थी। तब उन्हें मां पार्वती के क्रोध का सामना करना पड़ता था।

एक बार मां गंगा पर भी, मां पार्वती जी क्रोधित हुई थी। लेकिन मां गंगा की पवित्रता के कारण, उन्होंने गंगा जी को शिवजी की जटा में स्थान दिया। शिव जी बैरागी है। वह सिर्फ मां पार्वती के ही पति हैं। संसार की स्त्रियां शिवजी को, केवल पिता के रूप में ही प्राप्त कर सकती हैं।  अतः किसी भी अविवाहित कन्या को शिवलिंग को स्पर्श नहीं करना चाहिए।

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