कल्कि अवतार का रहस्य | कल्कि अवतार की कथा | Kalki Puran

कल्कि अवतार की कथा – कल्कि अवतार का रहस्य
Kalki Avatar Of Vishnu

हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई हर धर्म को मानने वाले जानते हैं। कि उनके ईष्ट ने फिर से इस मृत्युलोक में आने की भविष्यवाणी की है। हिंदू धर्म के प्राचीन ग्रंथ गरुण पुराण, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण व कल्कि पुराण में कलयुग का वर्णन देखने को मिलता है। आज का मनुष्य, यदि कलयुग के वर्णन को पढ़ेगा। तो वह भयभीत हो जाएगा।

     कलयुग का वर्णन, भगवान श्री कृष्ण ने जो हजारों वर्षों पहले किया था। उसका एक-एक शब्द, आज सच साबित हो रहा है। यह हमारा सौभाग्य ही है कि हमने इस धरती पर जन्म लिया। यहां की संस्कृति में पले-बढ़े। भारत ऋषि-मुनियों, संत-महात्माओं, श्रेष्ठ गुरुजनों, दिव्य पुरुषों का देश है। इन दिव्य श्रेष्ठ गुरु ने कई धार्मिक ग्रंथ, कई शास्त्र, बहुत सारे उपनिषद और 18 पुराणों की रचना की।

      उन्हीं 18 पुराणों में से एक पुराण है – कल्कि पुराण। हम सभी लोग कल्कि भगवान, कलि पुरुष, कलयुग, कलयुग में धरती का अंत, यहां बढ़ते अधर्म, अत्याचार, मोक्ष और भी बहुत सी तरह की भविष्यवाणियों के बारे में  सुनते आ रहे हैं। तो जानते हैं, इन सभी बातों के बारे में, कल्कि पुराण में क्या-क्या कहा गया है।

Kalki Puran - Kalki Avatar

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कल्कि पुराण
कलयुग की उत्पत्ति

भगवान श्री कृष्ण के बैकुंठ लोक जाने के बाद, कलयुग की शुरुआत हुई। जब द्वापर युग समाप्त हो गया। तो ब्रह्मा जी ने अपनी पीठ, पृथ्वी की तरफ कर ली। ब्रह्मा जी की पीठ से ही अधर्म की उत्पत्ति हुई। इसी अधर्म के सहयोग से काम, क्रोध, लोभ, मद, अहंकार आदि की भी उत्पत्ति हुई। इन्हीं सब से मिलकर, कलयुग की रचना हुई।

        कलयुग के प्रभाव से ब्राह्मणों को वेदों का ज्ञान नहीं प्राप्त होगा। स्त्रियां परपुरुष का अनुसरण करेंगी। वही इंसान सभी धार्मिक कार्य व अनुष्ठान बंद कर देंगे। मनुष्य 16 वर्ष की आयु में ही बूढ़े हो जाएंगे। लोग बेवजह ही आपस में कलह करेंगे। लोग ब्याज से अपनी आजीविका चलाएंगे।

      वे निर्धनों का शोषण करेंगे। कलयुग के प्रभाव से ही शिष्य, अपने गुरु की निंदा करेंगे। न्यायाधीश दंड देने असमर्थ और कमजोर हो जाएंगे। जो अधिक बोलेंगे, वही पंडित और ज्ञानी कहलायेंगे।  धन की कामना से ब्राह्मण शूद्रों के यहां भोजन, भजन व पूजा आदि करेंगे। स्वयं राजा ही प्रजा का शोषण करेगा। जिसके कारण सारी प्रजा कर्ज में डूब जाएगी।

     तब सारी प्रजा जंगल में रहने के लिए विवश हो जाएगी। कलयुग के प्रथम चरण में लोग भगवान की निंदा करेंगे। कलयुग के दूसरे चरण में लोग भगवान को भूल जाएंगे। तीसरे चरण में वर्णसंकर उत्पन्न होंगे। चौथे चरण में लोग जाति, पाती, धर्म सब भूल जाएंगे।

    जिससे पृथ्वी पर उपस्थित सभी देवता पीड़ित होंगे। वे पृथ्वी की रक्षा और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए ब्रह्मा जी की स्तुति करेंगे। तब ब्रह्मा जी सभी देवताओं के साथ भगवान विष्णु की स्तुति करेगें। कलयुग में पुनः धर्म की स्थापना करने के लिए प्रार्थना करेंगे।

कल्कि अवतार कब होगा
Kalki Avatar Kab Hoga

सभी देवताओं की स्तुति सुन, भगवान विष्णु ने कहा कि मैं शीघ्र ही कलयुग में, संभल ग्राम में जन्म लूगाँ। मेरा जन्म विष्णुयश ब्राह्मण के यहां, उनकी पत्नी सुमति के गर्भ से होगा। भगवान विष्णु वैशाख शुक्ल द्वादशी के दिन, इस धरती पर जन्म लेंगे।

     भगवान विष्णु के इस धरती पर आते ही, स्वयं गंगा जी उनका अभिषेक करेंगी। सभी लोग वेदों का अनुसरण करेंगे। सहृदय ब्राह्मण विष्णुयश पुत्र के नामकरण के लिए, यजु और सामवेदी ब्राह्मणों को आमंत्रित करेंगे। भगवान कल्कि के बालक रूप का दर्शन करने के लिए। सप्त चिरंजीवी भिक्षुक का भेष बनाकर, संभल ग्राम में आएंगे।

       विष्णुयश आदरपूर्वक, सभी का सम्मान करेंगे। सभी भिक्षुक विष्णुयश की गोद में बैठे। भगवान कल्कि के बालक रूप का दर्शन  करेंगे। वे उन्हें पहचान लेंगे कि यह श्री हरि विष्णु हैं। जिन्होंने कलयुग के पापों का नाश करने के लिए, अवतार लिया है। अतः इनका नाम कल्कि होगा। जो कलि का अंत करेंगे। इस प्रकार सभी उनका नामकरण कर, वहां से चले जाएंगे।

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कल्कि पुराण
कल्कि अवतार की शिक्षा

माता सुमति ने कल्कि का पालन-पोषण किया। वे दिन प्रतिदिन शीघ्रता से बड़े होंगे। भगवान कल्कि के 3 बड़े भाई कवि, राग, और सुमंत्रक होंगे। इनके बड़े होने पर विष्णुयश, उन्हें ब्रह्म संस्कार, उपनयन और सावित्री का श्रवण कराएंगे। इसके बाद सभी वेदों का अध्ययन करेंगे।

      विष्णुयश भगवान कल्कि को बताएंगे। कि वेद ब्रह्मा जी की वाणी है, और सावित्री प्रतिष्ठा है। वेद 10 संस्कारों से युक्त ब्राह्मणों के पास निवास करते हैं। विष्णुयश उन्हें 10 संस्कारों ज्ञान प्रदान कर, उनका उपनयन संस्कार करेंगे। तब भगवान कल्कि कहेंगे कि मैं 10 संस्कारों से युक्त और वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण से शिक्षा लेना चाहता हूं।

      इस पर विष्णुयश कहेंगे कि ऐसा ब्राह्मण, अधर्मी और ब्राह्मण के शत्रु कलि के सताने से। सभी ब्राह्मण यह स्थान छोड़कर चले गए। जो शेष रह गए हैं। वह कलि के भय से, अपने धर्म मार्ग से भटक गए हैं। ऐसे ब्राह्मण की खोज में, तुम्हें दूर जाना होगा। तब भगवान कल्की अपने पिता को वचन देंगे कि वह ब्राह्मण के शत्रु कलि का विनाश करेंगे। पुनः धर्म की स्थापना करेंगे।

कल्कि पुराण
कल्कि अवतार के गुरु परशुराम की खोज

कल्कि पुराण के अनुसार, जब भगवान कल्कि घर से गुरु की तलाश में, गुरुकुल की ओर निकलेंगे। तब महेंद्र गिरी पर्वत पर रहने वाले, परशुराम उन्हें अपने आश्रम ले जाएंगे। परशुराम उन्हें बताएंगे कि वह रघुवंश में जन्मे जमदग्नि के पुत्र है। वे वेदों को जानने वाले और युद्ध विद्या में निपुण परशुराम है।

     उन्होंने कई बार इस धरती को, क्षत्रियों से विहीन कर, ब्राह्मणों को दान में दे दिया है। आप मुझे धर्मपूर्वक, अपना गुरु मानो। मैं आपको वेद तथा युद्ध की शिक्षा दूंगा। परशुराम उन्हें बताएंगे कि वह कई वर्षों से, महेंद्र गिरी पर्वत पर, उनकी प्रतीक्षा में तपस्या कर रहे हैं। आप यहां अपने वेदों का अध्ययन कीजिए।

      तब भगवान कल्कि वेदों का अध्ययन करेंगे। साथ ही 64 कलाओं का ज्ञान प्राप्त कर, संपूर्ण विद्या में पारंगत होगें। इसके बाद परशुराम से कहेंगे कि जिस दक्षिणा के देने से मुझे सर्व सिद्धि की प्राप्ति हो। जिस दक्षिणा की प्राप्ति से आप संतुष्ट हो। वह दक्षिणा मुझे बताइए।

      इस पर परशुराम जी भगवान कल्कि से कहेंगे। आप स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं। आपने मुझसे वेदों व युद्ध की शिक्षा प्राप्त की। अब आप भगवान शंकर से अस्त्र शस्त्र प्राप्त कीजिए। इस धरती से अधर्म और कलि का नाश कर, धर्म की स्थापना कीजिए। यही मेरी गुरु दक्षिणा होगी।

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कल्कि पुराण
कल्कि अवतार का भगवान महादेव से अस्त्र शस्त्र प्राप्त करना

भगवान कल्की परशुराम से आशीर्वाद ले। भगवान शंकर के पास अस्त्र-शस्त्र प्राप्त करने के लिए जाएंगे। तब भगवान कल्कि, बिल्केश्वर महादेव मंदिर पहुंचेंगे। जहां महादेव का विधिवत पूजन कर और उनका हृदय से ध्यान करेंगे। शस्त्र प्राप्ति के लिए स्तुति करेंगे। फिर शिव स्तोत्र की रचना करेंगे।

     भगवान कल्कि के शिव स्त्रोत को सुनकर, भगवान शंकर मां पार्वती के साथ वहां प्रकट होंगे। महादेव प्रसन्न होकर, भगवान कल्कि से वरदान मांगने को कहेंगे। भगवान शंकर, भगवान कल्कि को शीघ्रगामी, अनेक रूपधारी गरुण अश्व एवं सर्वज्ञ शुक्र प्रदान करेंगे। इसके साथ ही रत्न स्वरूप महाकाल कराल, अत्यंत चमकती हुई और पृथ्वी का भार सहन करने वाली तलवार कल्कि को प्रदान करेंगे।

       फिर भगवान कल्कि ने भगवान शंकर को प्रणाम किया। भगवान शंकर अपने धाम को चले गए। भगवान कल्कि भगवान शंकर द्वारा प्रदान किए गए। गरुड अश्व पर बैठकर, तीव्र वेग से अपने ग्राम संभल आएंगे। वह राजाओं को उपदेश देंगे। कि वेद ही उनका अंश है। जो ब्राह्मण वेदों का अध्ययन करते हैं। वेदों द्वारा प्राप्त ज्ञान का, संसार में प्रचार करते हैं। वह मेरी ही सेवा करते हैं। ऐसे ब्राह्मण को मैं नमस्कार करता हूं।

कल्कि पुराण
रानी पद्मावती को भगवान शंकर का वरदान

  शुकदेव जी ने भगवान कल्कि को बताया। सिंगल देव के राजा बृहदत की एक पुत्री है। जिनका नाम पद्मा है। उनकी माता कुमुदी हैं। पदमा का चरित्र पापों को नाश करने वाला है। उन्होंने बहुत समय तक श्रीहरि को पति रूप में प्राप्त करने के लिए तप किया।  उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर, भगवान भोलेनाथ ने उन्हें वरदान दिया।

        उनके पति स्वयं नारायण होंगे। भगवान नारायण के सिवा, जो कोई भी उन्हें काम भाव से देखेगा। वह स्त्री बन जाएगा। भगवान भोलेनाथ से मनचाहा वरदान प्राप्त करके पद्मावती, अपने पिता के घर आई। राजा बृहदत ने अपनी पुत्री को विवाह योग जानकर। उनके स्वयंबर का आयोजन करेंगे।

        इस स्वयंबर के लिए गुणवान, बलवान, महान ऐश्वर्या वाले अनेक राजाओं को आमंत्रित करेंगे। इस प्रकार सिंगल देश में पदमा के स्वयंवर का उत्सव मनाया जाने लगा। विवाह के उद्देश्य सभी देशों के राजा अपनी सेना के साथ, वहां पहुंचेंगे। तब राजा बृहदत ने, अपनी पुत्री पदमा को स्वयंवर में बुलाया। वह अत्यंत ही सुशोभित थी।

      शुकदेव भगवान कल्कि से कहते हैं कि उन्होंने स्वयंवर में देखा। कि जैसे-जैसे रानी पद्मावती आगे बढ़ रही थी। उनके रूप को देखकर, सभी राजा मोहित हो गए। उनके मन में पद्मावती को पत्नी के रूप में प्राप्त करने की इच्छा जागृत हुई। उनमें काम भाव प्रकट हुआ।

      भगवान शंकर के वरदान अनुसार, सभी राजाओं ने स्त्री का रूप धारण कर लिया। जब सभी राजा स्त्री रूप में हो गए। तो रानी पद्मावती अत्यंत दुखी हुई। वह अपनी सखी से कहने लगी। भगवान ने मेरे भाग्य में कोई वर नहीं लिखा। मैंने ऐसा कौन-सा पाप कर दिया। कि भगवान शंकर का वरदान मेरे लिए, अभिशाप बन गया है।

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कल्कि पुराण
कल्कि अवतार द्वारा विवाह का प्रस्ताव

पदमा भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए कहती हैं। कि अगर भगवान विष्णु ने मुझे पत्नी रूप में स्वीकार नहीं किया। तो मैं देह त्याग दूंगी। पदमा के व्याकुल होने पर, भगवान कल्कि ने शुक से कहा। मेरा संदेश लेकर, शीघ्र ही सिंगल देश प्रस्थान करो। मेरी प्रिया पदमा को आश्वासन दो। मैं शीघ्र ही उनसे विवाह करूंगा। निश्चित ही पदमा मेरी पत्नी होंगी।

      विधाता ने यह संयोग नियत किया है। शुकदेव शीघ्र ही सिंगल देश पहुंचे। वह रानी पद्मावती के कक्ष के निकट पहुंचकर, मनुष्यों की वाणी में बोला। आप चंचल नेत्रों से सुशोभित, द्वितीय लक्ष्मी जी प्रतीत हो रही हैं। विधाता ने संपूर्ण विश्व का रूप आपको ही दे दिया है। इन वचनों को सुनकर, पद्मा ने शुक के बारे में जानने की इच्छा जाहिर की।

      जब शुक ने अपना परिचय दिया। तो रानी पद्मावती ने उसे अपनी तपस्या और भगवान शंकर के वरदान को बताया। पद्मावती ने शुक को भगवान शंकर द्वारा बताये गए, पूजन विधि को बताया। वह शुक से कहती हैं कि मैं बहुत समय से भगवान विष्णु की प्रतीक्षा कर रही हूं। भगवान शंकर का वरदान, मेरे लिए अभिशाप बन गया है।

      तब शुक ने बताया कि भगवान श्री हरि ने धर्म की स्थापना के लिए, संभल गांव में विष्णुयश के यहां अवतार ले लिया है। वह धर्म की स्थापना हेतु, धर्म का प्रचार कर रहे हैं। यह जानकर पद्मा ने शुक को रत्नों से सुसज्जित कर, कल्कि भगवान को संदेश भिजवाया।

कल्कि पुराण
कल्कि अवतार का पद्मावती से विवाह

 शुक ने शीघ्र ही संभल पहुंचकर, भगवान कल्कि को रानी पद्मावती का संदेश बताया। भगवान कल्कि शीघ्र ही, अपने अश्व पर सवार होकर, सिंगल देश पहुंचे। वे सिंगल देश के समीप, एक वन में पहुंचे। भगवान कल्कि ने वहाँ एक सरोवर में स्नान किया। शुक ने रानी पद्मावती को भगवान कल्कि के आगमन की सूचना दी।

     यह संदेश पाकर पद्मावती,अपनी सखियों के साथ शीघ्र ही सरोवर के निकट पहुंची। उन्होंने वहां भगवान कल्कि को सिला पर सोते हुए देखा। उन्होंने देखा कि नीलकमल के समान पीतांबरधारी, कमल जैसे नेत्र वाले, विशाल भुजाओं वाले भगवान कल्कि सिला पर शयन कर रहे हैं। उनके अद्भुत रूप को देखकर, पदमा मोहित हो गई।

      उन्होंने भगवान कल्कि के आगमन का संदेश, अपने पिता को बताया। स्वयं नारायण अवतार भगवान कल्कि के आगमन की सूचना पाकर, विष्णुयश अत्यंत हर्षित हुए। फिर उन्होंने भगवान कल्कि का विधिवत पूजन किया। तत्पश्चात राजा ने अपनी पुत्री पदमा का विवाह भगवान कल्कि के साथ विधिपूर्वक कर दिया।

      अब भगवान कल्कि, अपनी पत्नी पदमा को लेकर संभल आ गए। भगवान कल्कि और पद्मा ने माता-पिता का आशीर्वाद लिया। इसके बाद भगवान कल्कि और पदमा कई वर्षों तक संभल में रहे। भगवान कल्कि के पत्नी पद्मा ने जय और विजय नाम के दो पुत्रों को जन्म दिया।

       यह दोनों ही महाबली और वेदों के ज्ञानी होंगे। तब भगवान कल्कि को ज्ञात हुआ कि उनके पिता की अश्वमेध यज्ञ करने की प्रबल इच्छा है।

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कल्कि पुराण
कल्कि अवतार का अश्ममेघ यज

   भगवान कल्कि ने अपने पिता से कहा कि मैं कीकटपुर जीतकर, धन अर्जित करूंगा। जिससे हमारा अश्वमेध यज्ञ संपन्न होगा। फिर भगवान कल्कि पिता की आज्ञा लेकर, सेना सहित कीकटपुर की ओर चल दिए। अत्यंत विस्तार वाला वाले कीकटपुर में लोग कुल धर्म और जाति धर्म को न मानने वाले थे।

       वह धन और स्त्री आदि के भोग में लिप्त रहने वाले होंगे। कल्कि की सेना ने युद्ध भूमि में लाखों सैनिकों को धराशाई कर दिया। तब जिन्न युद्ध भूमि से डरकर भागने लगा। तभी भगवान कल्कि ने, उसके केश और हाथ पकड़ लिए। उसको धराशाई कर दिया। जिन्न को धराशाई देखकर, बुद्ध सेना डर गई। भगवान कल्कि अपने घोड़े पर सवार होकर, तलवार से सारी सेना का  विनाश करने लगे।

       भगवान कल्कि का संग्राम देखकर, सभी लोग भयभीत हो गए। कीकटपुर की संपूर्ण बुद्ध सेना और मंचल सेना का नाश हो गया। यहां से भगवान कल्कि चक्रतीर्थ पहुंचे। यहां पर अपनी सेना सहित, कुछ समय निवास किया। यहां से वह हरिद्वार आ गए।

      यहां पर सतयुग तथा धर्म भगवान  कल्कि का दर्शन करने आए। उन्होंने भगवान कल्कि को बताया कि कलि ने उन्हें हराकर बंदी बना लिया है। इस समय सभी संतगण कलयुग के प्रभाव से पीड़ित हैं। हे प्रभु! हमारी रक्षा कीजिए।

कल्कि पुराण
कल्कि अवतार द्वारा कलि का अंत

 भगवान कल्कि धर्म के साथ कलयुग के राक्षस कली के निवास स्थान पर पहुंचे। यहां पर कलयुग अपने पूर्ण प्रभाव में दिखाई दे रहा था। जब भगवान कल्कि के आगमन की सूचना कलि को मिली। तब आपने वाहन उल्लू पर सवार होकर बाहर आया। उसके बाहर आते ही भगवान कल्कि ने उसके साथ युद्ध शुरू कर दिया।

      कलि की सेना में कोप और विकोप नाम के दो राक्षस हैं। जिन्हें ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त हुआ। दोनों भाई एक जैसी शक्ल के होंगे। इन दोनों के साथ भगवान कल्कि का घोर युद्ध हुआ। दूसरी ओर धर्म ने कलि के साथ युद्ध शुरू किया। धर्म का साथ देने के लिए, सतयुग भी आ गया।

     कलि अपने आपको हारा हुआ देख, अपने भवन में भाग गया। अंततः भगवान  कल्कि ने कोप और विकोप का संघार किया। इधर भगवान कल्कि की सेना, कलि की सेना का संघार कर रही थी। कल्कि की सेना ने कलि की सम्पूर्ण सेना का संघार कर दिया। फिर धर्म सत्य को साथ लेकर, राक्षस कली की राजधानी में प्रविष्ट हुए।

      धर्म ने अपने अग्निबाण से कलि के संपूर्ण नगर को जला दिया। जिसमें कलि की पत्नी भी जलकर मुत्यु को प्राप्त हुई। तब कलि रोता हुआ, अदृश्य रूप में अन्य युग में प्रवेश कर गया। इस प्रकार कलि यह युग छोड़कर भाग गया। जब भगवान कल्कि, राक्षस कलि, कोप विकोप पर विजय प्राप्त कर लेंगे। तब वे वहां से अपने अश्व पर सवार होकर, अपनी सेना सहित मलाड नगर में पहुंचेंगे।

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