Milkha Singh Motivational Biography in Hindi| फ्लाइंग सिख की प्रेरणादायक ज़िंदगी

Milkha singh Biography in Hindi। Milkha Singh as a Flying Sikh। दुनिया की सबसे प्रेरणादायक जिंदगी। फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह की कहानी। मिल्खा सिंह का जीवन परिचय।Flying Sikh इतने संघर्ष के बाद कैसे उभरे। Motivational Biography of Milkha Singh। Life Story of Milkha Singh। Success Story of Milkha Singh- zero to Hero। Legendary sprinter Biography in Hindi

  एक बच्चा जो भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद, महिला बोगी में सीट के नीचे छुपकर दिल्ली पहुंचा। वह लड़का जिसने अपने पेट पालने के लिए, फुटपाथ पर बने ढाबों में बर्तन साफ किए। विभाजन के वक्त, जब देश के बड़े-बड़े घराने आजादी का जश्न मना रहे थे। तब वह बच्चा अपने परिजनों को, अपनी आंखों के सामने मरता हुआ देख रहा था। 

   वह बच्चा जो अपने घर से 10 किलोमीटर दूर, स्कूल दौड़कर जाया करता था। जिस बच्चे ने भागकर भारत पाकिस्तान विभाजन के दौरान, अपनी जान बचाई। आगे चलकर इसी बच्चे ने दौड़ कर, भारत के लिए बड़े-बड़े कीर्तिमान हासिल किए। जी हां बात हो रही है- फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह की।

हाथ की लकीरों से जिंदगी नहीं बनती, अजम हमारा भी कुछ हिस्सा है जिंदगी बनाने में…….

     अजम – संकल्पशक्ति – will power

जो लोग सिर्फ भाग्य के सारे रहते हैं। वह कभी सफलता नहीं पा सकते। सफलता पाने के लिए, हमें अपनी संकल्पशक्ति को मजबूत करना होगा। एक साक्षात्कार में मिल्खा सिंह ने यह बातें कहीं। उनके संघर्ष के दिनों से, सफलता के शिखर तक पहुंचने की कहानी को बयां करती है। धावक बनने से पहले, उनकी जिंदगी कांटों भरी थी।

A Flying Sikh- Milkha Singh

Milkha Singh - A Flying Sikh
An Introduction

 

Flying Sikh Milkha Singh 

एक परिचय

नाम

मिल्खा सिंह

उपनाम

फ्लाइंग सिख,Legendary sprinter

जन्म

20 नवंबर 1929 (पाकिस्तान दस्तावेजों के अनुसार)

17 अक्टूबर 1935

(अन्य आधिकारिक दस्तावेजों में)

जन्म स्थान

गोविंदपुरा, लायलपुर (अविभाजित पाकिस्तान)

नागरिकता

भारतीय

पत्नी

निर्मल कौर 

(पूर्व कप्तान महिला वॉलीबॉल) 

बच्चे

जीव मिल्खा सिंह 

सोनिया संवलका

गृह नगर

चंडीगढ़

शिक्षा

पाकिस्तान के गांव के विद्यालय में

व्यवसाय

सेवानिवृत्त भारतीय सेना

धावक (sprinter)

भाई बहन

मलखान सिंह (बड़े भाई)

ईशर (बहन)

12 अन्य भाई-बहन

शौक

गोल्फ खेलना

टहलना

कसरत करना

Award

पद्मश्री

कोच

गुरदेव सिंह

चार्ल्स जेनकिन्स

डॉ आर्थर हॉवर्ड

मृत्यु

18 जून 2021

मृत्यु का कारण

Covid-19

मृत्यु स्थान

PGI चंडीगढ़

Early Life of Milkha Singh

 मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा, लायलपुर (अविभाजित पाकिस्तान) में हुआ था। इनके पिता बहुत सम्मानित किसान थे। इनका परिवार एक सिख राठौर परिवार था। मिल्खा सिंह के athletic training की शुरुआत उस समय हो गई थी। जब वह स्कूल जाया करते थे। वह अपने गांव से 10 किलोमीटर दूर स्कूल जाते थे। इस 10 किलोमीटर के सफर में, वह कई बार दौड़ कर भी जाया करते।

     भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद कत्लेआम मच गया। इसीलिए बहुत से लोग पाकिस्तान से भारत और भारत से पाकिस्तान अपनी जान बचाने को भाग रहे थे। लेकिन मिल्खा सिंह के पिता ने यह फैसला लिया कि वह अपनी धरती, अपनी जमीन छोड़कर नहीं जाएंगे। कुछ दिनों के बाद मिल्खा सिंह के माता-पिता, एक भाई और दो बहनों को उनके सामने ही जलाकर मार दिया गया।

मिल्खा सिंह के कुल 15 भाई-बहन थे। उनके कई भाई-बहनों की मौत, छोटी उम्र में ही हो गई थी। बंटवारे के बाद हुए, कत्लेआम का मंजर बड़ा वीभत्स था। हालात इतने खराब थे। पाकिस्तान में उन्हें सहारा देने वाला कोई नहीं था। तब उनकी उम्र लगभग 18 साल थी। मिल्खा सिंह, किसी तरह अपनी जान बचते हुए। वहां से निकल आये।

मिल्खा सिंह के भारत मे शुरुआती दिन

 मिल्खा सिंह पाकिस्तान से किसी तरह बचते हुए निकले। वह ट्रेन में महिला बोगी की सीट के नीचे छिपकर, किसी तरह दिल्ली पहुंचे। उन्होंने कुछ समय पुरानी दिल्ली के स्टेशन पर बिताया। इस दौरान उन्होंने पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के सामने, फुटपाथ पर बने ढाबों में बर्तन साफ किये। जहाँ पर उन्हें खाने व रात बिताने की जगह मिल सके।

यहीं पर उनकी मुलाकात अपनी बिछ्ड़ी बड़ी बहन से हो गई। माता-पिता के बाद, उनकी बड़ी बहन ही थी। जो उनका ख्याल रखती थी। इसके बाद, वह अपनी बहन के साथ लाल किला के रिफ्यूजी कैंप में रहने लगे। कुछ दिनों रिफ्यूजी कैंप में रहने के बाद, मिल्खा और उनकी बहन को रहने के लिए घर मिल गया। भारत आकर मिल्खा ट्रेनों के साथ भी रेस लगाते थे। वह बहुत फुर्तीले थे।

मिल्खा सिंह की आर्मी मे नौकरी

  मिल्खा सिंह के भाई मलखान सिंह भारतीय सेना में थे। उन्होंने ही मिल्खा सिंह को सेना में भर्ती होने की सलाह दी। उनके कहने पर, मिल्खा सिंह ने सेना में भर्ती होने का निर्णय लिया। लेकिन तीन बार वह सेना के लिए अयोग्य साबित हुए। लेकिन हार मानना तो उन्होंने कभी सीखा ही नहीं था। चौथी कोशिश के बाद, साल 1952 में मिल्खा सिंह सेना में भर्ती हो गए।

       Army में शामिल होने से पहले भी, मिल्खा सिंह ने कटक में 200 व 400 मीटर की रेस में हिस्सा लिया था। उन्होंने न सिर्फ यह रेस जीती थी। बल्कि उन्होंने यहां national record भी बना दिया। मिल्खा सिंह Army में पहुंचकर भी, sports  में हिस्सा लेने लगे। मिल्खा को दूध पीना बहुत पसंद था। इसीलिए उन्होंने आर्मी में sports quota चुना।

        Army में दौड़ करते देख, एक सीनियर धावक ने, उन्हें Challenge किया। उसके Challenge को accept करते हुए। मिल्खा सिंह ने उस रेस में हिस्सा लिया। फिर सबको हराकर हैरान कर दिया। इसके बाद उन्हें, सेना में athletic की special training के लिए चुन लिया गया।

मिल्खा सिंह इतनी कठिन training किया करते थे। उनके पसीने से 2 लीटर की बोतल भर जाती थी। Training करते हुए, कई बार उनके पैरों से खून भी आने लगता था। यह उनकी कड़ी मेहनत का ही नतीजा था। जब उसी दौरान जब पटियाला में एक रेस प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। वहां उन्होंने 400 मीटर की दौड़ में, एक national record बना दिया। उन्होंने यह रेस 47.9 सेकेंड में पूरी कर दी। इससे पहले यह रिकॉर्ड 48 सेकंड का था।

मिल्खा सिंह को मेलबर्न ओलंपिक मे जाने का मौका

   पटियाला में record breaking performance देने के बाद। मिल्खा सिंह को 1956 में होने जा रही, मेलबर्न ओलंपिक में जाने का मौका मिल गया। मेलबर्न ओलंपिक मिल्खा का पहला ओलंपिक था। Experience की कमी के वजह से, वहां कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाए। लेकिन इस ओलंपिक में भाग लेने के बाद उनका आत्मविश्वास बढ़ गया।

       मेलबर्न में हार के बाद, उनको खुद पर बहुत गुस्सा आया। उन्होंने यहां कुछ ऐसी गलतियां की थी। जो नहीं करनी चाहिए थी। इससे सबक लेकर मिल्खा सिंह ने अपने ट्रेनिंग का टाइम और फोकस बढ़ा दिया। इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक रेस जितनी शुरू कर दी।

बीबीसी हिंदी को दिए, एक interview में मिल्खा सिंह ने बताया। मैने 1960 में रोम ओलंपिक में जाने से पहले, 80 रेसों में भाग लिया था। जिनमें से 77 रेस, मैंने जीती थी। इसके बाद उन्होंने बताया कि पूरी दुनिया ने उम्मीद लगा रखी थी। रोम ओलंपिक में 400 मीटर की दौड़ में, अगर कोई जीतेगा। तो वह भारत के मिल्खा सिंह ही होंगे।

कॉमनवेल्थ गेम्स मे शानदार प्रदर्शन

  साल 1958 में मिल्खा सिंह ने शानदार प्रदर्शन किया। उन्होंने एशियन गेम्स में 200 व 400 मीटर दौड़ में, गोल्ड मेडल अपने नाम किए। 1958 में ही, उन्होंने कॉमनवेल्थ गेम की 400 मीटर में गोल्ड मेडल जीता। ओलंपिक से पहले उनके इस गोल्ड मेडल ने इतिहास रच दिया। कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने पाकिस्तान के अब्दुल खालिक को हराया था। इस हार का पाकिस्तानी athletic अब्दुल खालिक को बहुत दुख हुआ था।

मिल्खा सिंह को 1958 के Commonwealth में गोल्ड मेडल जीतने के लिए, पदमश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसके बाद जब उन्हें 2001 में अर्जुन अवार्ड की पेशकश की गई। तो उन्होंने यह कह कर अवार्ड ठुकरा दिया। कि यह ऐसा होगा जैसे किसी को Master Degree के बाद SSC Certificate दिया जा रहा हो।

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मिल्खा सिंह का रोम ओलंपिक मे प्रदर्शन

   जब मिल्खा सिंह रोम ओलंपिक में उतरे। तो लोग कहते थे कि यह तो कोई साधु है। उनके सर के जुड़े की वजह से, वह विदेशियों को साधु की तरह ही लगते थे। रोम ओलंपिक में मिल्खा सिंह की जीत लगभग तय मानी जा रही थी। लेकिन मिल्खा सिंह इसे लेकर बहुत नर्वस थे।

      रोम ओलंपिक में मिल्खा सिंह ने लगातार अच्छा प्रदर्शन किया। एक के बाद एक रेस जीतते हुए। वे फाइनल में पहुंच गए। रोम ओलंपिक का फाइनल मुकाबला शुरू होता है। मिल्खा सिंह को पांचवीं लेन मिली थी। जैसे ही रेस शुरू हुई। मिल्खा सिंह ने तेजी से भागना शुरू किया। पहले 250 मीटर तक वह lead कर रहे थे।

     अचानक मिल्खा सिंह को लगा कि वह इतनी तेज दौड़ते हुए। वो अंत में पिछड़ न जाएं। इसीलिए मिल्खा सिंह ने अपनी गति को थोड़ा कम किया। फिर पीछे आ रहे, अपने प्रतिद्वंद्वियों को देखने की कोशिश की। बस अपनी इसी छोटी-सी गलती की वजह से, उनके पीछे दौड़ रहे धावक। उनसे आगे निकल गए।

      इस ओलंपिक में 400 मीटर की रेस में खास बात यह थी। 4 धावकों ने पिछला ओलंपिक रिकॉर्ड जो कि 45.9 सेकंड का था। वह तोड़ दिया था। मिल्खा सिंह इस रेस में चौथे स्थान पर रहे। भले ही मिल्खा इस रेस को नहीं जीत पाए। लेकिन उनके बनाए राष्ट्रीय रिकॉर्ड को तोड़ने में 38 साल लग गए। उनके बनाए रिकॉर्ड को, ओलंपिक में किसी भी भारतीय ने नहीं दोहराया।

मिल्खा सिंह का सपना था कि वह किसी भारतीय को 400 मीटर की रेस में, ओलंपिक के किसी मेडल को जीतते हुए देखें। एक अरब से ज्यादा की आबादी के भारत में, आज भी हम उतने ज्यादा मेडल नहीं ला पा रहे। जितने हमे लाने चाहिए। हाल के दिनों में, कुछ खिलाड़ियों ने अच्छा प्रदर्शन किया है। लेकिन शिक्षा, खेल और अच्छी मेडिकल सुविधाएं सरकारों की प्राथमिकताओ में कम ही दिखती हैं।

मिल्खा सिंह कैसे बने फ्लाइंग सिख

  मिल्खा सिंह को उड़न सिख का खिताब पाकिस्तान में मिला था। तब पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने, उन्हें उड़न सिख (flying sikh) की पदवी से नवाजा था। साल 1960 में मिल्खा को पाकिस्तान की ओर से। एक challenge के तौर पर लाहौर में दौड़ने का आमंत्रण मिला। लेकिन वह भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद, हुए कत्लेआम व दंगों से दुखी थे। मिल्खा सिंह ने पाकिस्तान के निमंत्रण को ठुकरा दिया।

      मिल्खा सिंह की आंखों के सामने अपने परिवार व दंगों में मारे गए लोगों की लाशों के दृश्य घूम रहे थे। अगले दिन अखबार में, पाकिस्तान न जाने की खबर सुर्खियां बन गई। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने मिल्खा को बुलाया। उन्हें समझाया कि वक्त का मरहम, हर घाव भर देता है। आज देश के लिए, तुम इस प्रतियोगिता में हिस्सा लो।  इसके बाद मिल्खा सिंह वाघा बॉर्डर के रास्ते पाकिस्तान पहुंचे।

     उन्हें खुली जीप में लाहौर ले जाया गया। जहाँ रास्ते भर सड़क के दोनों तरफ भारी भीड़ जमा थी। जिनके हाथों में भारत और पाकिस्तान के झंडे लहरा रहे थे। इसमें उनका मुकाबला ‘एशिया का तूफान’ नाम से मशहूर पाकिस्तानी धावक अब्दुल खालिक से था। ये वही अब्दुल खालिक थे। जिन्हें मिल्खा सिंह कॉमनवेल्थ और टोक्यो ओलंपिक में हरा चुके थे। अब्दुल खालिक का इरादा उनसे का बदला लेने का था।

      मिल्खा सिंह के अनुसार, रेस शुरू होने से पहले कुछ मौलवी आए। उन्होंने खालिक से कहा कि खुदा तुमको दुश्मनों से लड़ने की ताकत दें। जब वह यह कहकर जाने लगे। तो मिल्खा सिंह ने कहा, रुकिए हम भी खुदा के बंदे हैं। तब मौलवी ने उन्हें भी कहा कि खुदा आपको भी ताकत दे। 

    फिर रेस में जो हुआ। वो इतिहास बन गया है। मिल्खा सिंह ऐसे दौड़े कि उड़ रहे हो। उनके आसपास कोई भी नहीं था अब्दुल खालिक उनसे कई मीटर पीछे थे। उन्होंने रेस जीत ली। उस रेस को पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल अयूब खान भी देख रहे थे।

उन्होंने मिल्खा सिंह के गले में मेडल डालते हुए पंजाबी में कहा। ‘मिल्खा सिंह जी, तुस्सी पाकिस्तान दे विच आके दौड़े नई, तुस्सी पाकिस्तान दे विच उड़े ओ, अज्ज पाकिस्तान तुहानूं फ्लाइंग सिख दा खिताब देंदा ए।’ उसके बाद से वे उड़न सिख के नाम से मशहूर हो गए।

मिल्खा सिंह का विवाह

  1960 में मिल्खा सिंह को पंजाब सरकार की ओर से Sports Department का Deputy Director  बना दिया गया। इसी साल उनकी मुलाकात, उनकी होने वाली पत्नी निर्मल कौर से हुई। जो उस समय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर Volleyball player थी। 1962 में मिल्खा सिंह ने निर्मल कौर से विवाह कर लिया।

मिल्खा सिंह के एक बेटा और तीन बेटियाँ है। इनके बड़े बेटे जीव मिल्खा सिंह एक प्रसिद्ध गोल खिलाड़ी हैं। मिल्खा सिंह ने जो भी मेडल जीते। वह सभी देश को समर्पित कर कर दिए। उनके जीते हुए मेडल्स को पहले दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में रखा गया था। जिन्हें बाद में पटियाला के एक म्यूजियम में रखा गया।

मिल्खा सिंह पर बनी बायोपिक

  2013 में मिल्खा सिंह के जीवन पर बनी एक फिल्म बनी। जिसका नाम ‘भाग मिल्खा भाग’ था। जब मिल्खा सिंह के पिता का कत्ल हुआ। तो उनके यही आखिरी शब्द थे- भाग मिल्खा भाग। मिल्खा सिंह के जीवनी पर बनी यह फिल्म, सबसे अधिक मोटिवेशनल फिल्म है। इसमें मिल्खा सिंह के जीवन के संघर्षों को दिखाया गया है।

मिल्खा सिंह ने जब फिल्म भाग मिल्खा भाग फिल्म के लिए, अपनी जिंदगी की पूरी कहानी बताई। तब उन्होंने डायरेक्टर ओम प्रकाश मेहरा को, इसके लिए सिर्फ एक रुपए फीस ली थी। इस फिल्म में मिल्खा सिंह का किरदार फरहान अख्तर ने बखूबी निभाया है।

मिल्खा सिंह की जीवनी पर इस फिल्म के अतिरिक्त, एक किताब भी लिखी हुई है। जिसे मिल्खा सिंह और उनकी बेटी ने मिलकर लिखा। इस किताब का नाम Race of my Life है। मिल्खा सिंह का जीवन और उनका संघर्ष भारतीय खिलाड़ियों को हमेशा प्रेरणा देता रहेगा।

मिल्खा सिंह की म्रत्यु

18 जून 2021 को हमने महान एथलीट मिल्खा सिंह को खो दिया। 91 वर्ष की उम्र में मिल्खा सिंह का निधन हो गया। वह चंडीगढ़ के PGI में भर्ती थे। करीब एक महीने पहले मिल्खा और उनकी पत्नी निर्मल कौर Covid-19 पॉजिटिव पाए गए थे। मिल्खा सिंह की report तो negative आ गई थी। लेकिन तब तक उनके शरीर को काफी नुकसान हो चुका था।

     उनके निधन से पहले ही, 13 जून को उनकी पत्नी निर्मल कौर का भी निधन हो गया। उनकी हालत को देखते हुए। परिवार ने निर्मल कौर की मृत्यु के बारे में उन्हें नहीं बताया। मिल्खा सिंह की चंडीगढ़ में पूरे राजकीय सम्मान के साथ, अंतिम विदाई दी गई। मिल्खा सिंह को उनकी अंतिम व अनंत उड़ान के लिए, भावपूर्ण श्रद्धांजलि।

 

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