सुभाष चंद्र बोस – नेताजी सुभाष चंद्र बोस |सुभाष चंद्र बोस की जीवनी | सुभाष चंद्र बोस जयंती | सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय | नेताजी | Subhash Chandra Bose | Subhash Chandra Bose Jayanti | Subhash Chandra Bose Quotes | Subhash Chandra Bose in Hindi | Slogan of Subhash Chandra Bose | Biography of Subhash Chandra Bose | Subhash Chandra Bose Biography | Subhash Chandra Bose Biography in Hindi | Subhash Chandra Bose Childhood
सुभाष चंद्र बोस
Subhash Chandra Bose Biography
“अगर आपको स्वदेशभिमान सीखना है। तो एक मछली से सीखो। जो अपने स्वदेशी पानी के लिए तड़प-तड़प कर, अपनी जान दे देती है।”
~ सुभाष चंद्र बोस
सन 1947 में हमारे देश की स्वतंत्रता के समय, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली थे। स्वतंत्रता के बाद, पहली बार एटली अक्टूबर 1950 में भारत आए थे। उस वक्त उनकी मेहमान नवाजी तत्कालीन गवर्नर मणि भूषण चक्रवर्ती ने की थी। इस मुलाकात के दौरान, मणि भूषण ने बातों-बातों में ए पीटली से एक सवाल पूछ लिया सवाल था।
आपने किन कारणों से भारत को आजादी दी। उन कारणों में महात्मा गांधी के स्वतंत्रता संग्राम का योगदान कितना था। इसका एटली ने जवाब दिया- minimum यानी की बहुत ही कम। सच में एटली का यह जवाब गलत नहीं था।
मणि भूषण ने पूछा कि फिर क्या कारण था। ब्रिटिश को भारत छोड़ना पड़ा। आप लोगों ने लगभग ढाई सौ साल भारत पर राज्य किया। लेकिन एकदम से आपने भारत क्यों छोड़ा। आप द्वितीय विश्वयुद्ध भी जीत चुके हैं। तब प्रधानमंत्री कहते हैं कि अगर सुभाष चंद्र बोस नहीं होते। तो शायद हम इतनी आसानी से भारत नहीं छोड़ते।
जब एक ब्रिटिश प्रधानमंत्री यह बात कह रहा है। तब इस बात में कितनी सच्चाई है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है। बाकी लोगों ने योगदान नहीं दिया। सभी ने अलग-अलग तरीके से, अपना योगदान दिया। चाहे वह मंगल पांडे हो। शहीद भगत सिंह या चंद्र शेखर आजाद हो। महात्मा गांधी या जवाहरलाल नेहरू हो।
सभी ने अपना-अपना योगदान दिया। लेकिन वह कहावत है- सौ सुनार की, एक लोहार की। मतलब वह लोहार वाला हथोड़ा, नेताजी ने हीं चलाया था। जिसके कारण अंग्रेजों को भागना पड़ा था ।
जब बात विचारधारा की हो। तो गांधीजी और सुभाष चंद्र बोस की विचारधारा में जमीन आसमान का अंतर था। गांधी जी की विचारधारा के अनुसार, अगर कोई आपके एक गाल पर तमाशा मारे। तो उसे दूसरा गाल आगे कर दो।
लेकिन सुभाष चंद्र बोस की विचारधारा बिल्कुल अलग थी। उनके अनुसार, यदि कोई आपके एक गाल पर तमाचा मारे। तो आप उसका दूसरा गाल लाल कर दो। नेताजी का मानना था कि लोग तब तक आपको दबायेंगे, जब तक आप दबते रहोगे।

सुभाष चंद्र बोस - एक परिचय
नेताजी सुभाष चंद्र बोस | |
व्यक्तिगत जीवन – एक नजर | |
पूरा नाम (Full Name) | नेताजी सुभाष चंद्र बोस |
उपनाम (Nick Name) | सुभाष बाबू, नेताजी |
जन्म (Birth-Date) | 23 जनवरी 1897 |
जन्म स्थान (Birth-Place) | कटक उड़ीसा |
पिता (Father) | जानकीनाथ बोस |
माता (Mother) | प्रभावती देवी |
बड़े भाई (Elder Brother) | शरद चंद्र बोस |
भतीजा (Nephew) | शिशिर बोस |
भाई-बहन (Siblings) | 7 भाई व 6 बहने |
शिक्षा (Education) | बी०ए (ऑनर्स) प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता विश्वविद्यालय ICS (1920) |
विवाह (Marriage) | एमिली शेंकल 26 दिसम्बर 1937 बादगास्तीन, ऑस्ट्रिया |
बच्चे (Children) | अनिता बोस फाफ |
मृत्यु (Death) | 18 अगस्त 1945 (संदिग्ध) |
राजनीतिक जीवन – एक नजर | |
राजनीतिक पार्टी (Political Party) | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1921 से 1940) फारवर्ड ब्लाक (1939 से 1940) भारतीय राष्ट्रीय सेना |
प्रसिद्धि (Famous For) | भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बड़े नेताओं में |
गठन (Establishment) | आजाद हिंद फौज 21 अक्टूबर 1943 |
अनुयाई (Followers) | स्वामी विवेकानंद |
राजनीतिक विचारधारा (Political Ideology) | साम्यवाद; फासीवाद; राष्ट्रवाद |
राजनीतिक गुरु (Political Guru) | देशबंधु चितरंजन दास |
प्रसिद्ध कथन (Famous Slogan) | “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा” ” जय हिंद” ” दिल्ली चलो” “इत्तेफाक, एतेमद, कुर्बानी” |
सुभाष चन्द्र बोस का बचपन
Subhash Chandra Bose Childhood
23 जनवरी सन 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में, नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म हुआ था। नेता जी के पिता का नाम जानकीनाथ बोस था। उनकी माता का नाम प्रभावती था। जानकीनाथ बोस कटक शहर में एक जाने-माने अधिवक्ता थे। वे पहले एक सरकारी अधिवक्ता थे। लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने सरकारी अधिवक्ता का पद छोड़कर, अपनी खुद की वकालत करने लगे। उन्होंने काफी समय तक कटक की महापालिका में भी काम किया।
इसके साथ ही, वह बंगाल विधानसभा के सदस्य भी रहे। उन्हें रायबहादुर का खिताब से अंग्रेजी सरकार द्वारा नवाज गया। सुभाष बोस के नाना का गंगा नारायण दत्त था। दत्त परिवार को, कोलकाता के एक कुलीन परिवार के रूप में जाना जाता था। सुभाष चंद्र बोस के कुल 14 भाई-बहन थे। जिनमें 8 भाई और 6 बहने थी। सुभाष चन्द्र अपने माता-पिता के पांचवें बेटे और नौवीं संतान थे। सुभाष को अपने बड़े भाई शरद चंद्र बोस से, अधिक लगाव था। शरद बाबू , जानकीनाथ और प्रभावती के दूसरे बेटे थे। उन्हें सुभाष मेजदा कहते थे। शरद बाबू की पत्नी का नाम भी विभावती था।
कटक के प्रोटेस्टैंट यूरोपियन स्कूल से प्राइमरी शिक्षा पूरी की। फिर 1909 में Ravenshaw Collegiate School में दाखिला लिया। कालेज के प्रिंसिपल बेनी माधव दास के व्यक्तित्व का प्रभाव, बोस के मन पर बहुत गहरा पड़ा। जब वह मात्र 15 वर्ष के थे। तभी उन्होंने विवेकानंद जी के साहित्य का पूर्ण अध्ययन कर लिया था। बीमार होने के बावजूद, 1915 में उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा, द्वितीय श्रेणी में पास की।
1916 में जब वे दर्शनशास्त्र ऑनर में बीए के छात्र थे। तब किसी बात पर, प्रेसीडेंसी कॉलेज के अंग्रेज अध्यापकों और छात्रों के बीच विवाद हो गया। तब बोस जी ने छात्रों का नेतृत्व किया। जिसके कारण, उन्हें प्रेसीडेंसी कॉलेज से 1 साल के लिए rusticate कर दिया गया। फिर परीक्षा देने पर भी प्रतिबंध लगा दिया।
नेता जी ने बंगाल रेजीमेंट (49 वीं) में भर्ती के लिए, प्रवेश परीक्षा दी। लेकिन उन्हें आँखे खराब होने के कारण, सेना के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया। किसी तरीके से उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज में प्रवेश तो ले लिया। लेकिन सुभाष सिर्फ सेना में ही जाना चाहते थे। खाली समय का उपयोग करने के लिए, उन्होंने टेरिटोरियल आर्मी की परीक्षा दी। फोर्ट विलियम सेनालय में रेंज रुट के रूप में प्रवेश पा लिया। उन्होंने सोचा कि इंटरमीडिएट की तरह बीए में भी कम नंबर न आ जाए। सुभाष में खूब मन लगाकर पढ़ाई की।
सुभाष चन्द्र बोस - ICS मे सफलता
1919 में बीए ऑनर्स की परीक्षा, प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। कोलकाता विश्वविद्यालय में, उनका दूसरा स्थान था। पिता की इच्छा थी, कि सुभाष ICS ( Imperial Civil Service) बने। पिता की इच्छा पर, उन्होंने ICS परीक्षा देने का फैसला किया। इसके लिए वह 15 सितंबर 1919 को इंग्लैंड चले गए। लंदन के किसी स्कूल में, उन्हें परीक्षा की तैयारी के लिए दाखिला नही मिल पाया। इस कारण, उन्होंने किड्स विलियम हॉल में मानसिक एवं नैतिक विज्ञान के ट्राई पास की परीक्षा का अध्ययन करने हेतु, प्रवेश ले लिया। इसके बाद 1920 में, उन्होंने ICS की परीक्षा चौथा स्थान प्राप्त करके पास कर ली।
लेकिन अंग्रेजों की गुलामी नामंजूर करते हुए। 22 अप्रैल 1921 को भारत सचिव यस मांटेग्यू को ICS से त्यागपत्र दे दिया। कोलकाता के स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु चितरंजन दास के कार्य से प्रेरित होकर। सुभाष उनके साथ काम करना चाहते थे। इंग्लैंड से उन्होंने दास बाबू को खत लिखकर। उनके साथ काम करने की इच्छा जाहिर की। फिर सुभाष जून 1921 में मानसिक एवं नैतिक विज्ञान में ट्राई पास की डिग्री के साथ, स्वदेश वापस लौट आए।
सुभाष चंद्र बोस
नेताजी की गाँधी जी से पहली मुलाक़ात
रविंद्र नाथ ठाकुर की सलाह के अनुसार, भारत आने पर, सबसे पहले वह मुंबई गए। वहां पर वह महात्मा गांधी से मिले। महात्मा गांधी उस वक्त मुम्बई में मणि भवन में रहा करते थे। मणि भवन में 20 जुलाई 1921 को सुभाष चंद्र बोस की, पहली बार गाँधी जी से मुलाकात हुई। गांधी जी ने कोलकत्ता जाकर, नेता जी को दास बाबू के साथ काम करने की सलाह दी।
सुभाष बाबू, गाँधी जी की सलाह पर कोलकाता में दास बाबू से मिले। गांधी जी ने उन दिनों, अंग्रेज सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन चला रखा था। दास बाबू , बंगाल से असहयोग आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे। दास बाबू के साथ नेता जी, इस आंदोलन में उनके सहभागी हो गए।
सन 1922 में चितरंजन दास ने स्वराज पार्टी की स्थापना की। अंग्रेज सरकार का विरोध करने के लिए, कोलकाता महापालिका का चुनाव स्वराज पार्टी ने लड़कर जीता। चितरंजन दास को कोलकता का महापौर नियुक्त किया गया। दास बाबू ने महापालिका का प्रमुख कार्यकारी अधिकारी, सुभाष चन्द्र को बनाया।
अपने कार्यकाल में, नेता जी ने कोलकाता महापालिका का पूरा ढांचा बदल दिया। वहाँ काम करने के तरीके में बदलाव किया। कोलकाता में सभी अंग्रेजी रास्तों के नाम बदलकर, उन्हें भारतीय नाम दिए गए थे। स्वतंत्रता संग्राम में प्राण निछावर करने वालों के परिजनों को महापालिका में नौकरी भी मिलने लगी थी।
यह सारे काम सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में हुए। सुभाष बाबू बहुत जल्द ही देश के महत्वपूर्ण युवा नेता बन गए। सुभाष बाबू ने जवाहरलाल नेहरू के साथ, युवकों की independent League शुरू की ।
सुभाष चंद्र बोस
पूर्ण स्वराज की मांग व स्वतन्त्रता दिवस मनाया जाना
1928 में जब Simon Commission भारत आया। तब कांग्रेस ने, उन्हें काले झंडे दिखाए। कोलकाता में सुभाष ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया। साइमन कमीशन को जवाब देने के लिए। कांग्रेस ने भारत का भावी संविधान बनाने के लिए 8 सदस्यीय आयोग का गठन किया।
इस आयोग का अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू को बनाया गया। सुभाष इस आयोग के एक सदस्य थे। पूर्ण स्वराज की मांग से गांधीजी सहमत नहीं थे। अंग्रेज सरकार से गांधीजी, इस अधिवेशन में डोमिनियन स्टेटस मांगने की ठान चुके थे।
लेकिन इसी समय, जवाहरलाल नेहरू और नेता जी ने पूर्ण स्वराज की मांग कर दी। फिर यह तय हुआ कि डोमिनियन स्टेटस देने के लिए, अंग्रेज सरकार को एक वर्ष का समय दिया जाए। अगर एक साल में अंग्रेज सरकार ने, उनकी यह मांग पूरी नहीं की। तो कांग्रेस पूर्ण स्वराज की मांग करेगी।
लेकिन अंग्रेज सरकार ने, उनकी यह मांग पूरी नहीं की। इसलिए जब 1930 में, जवाहरलाल नेहरू के अध्यक्षता में, कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन लाहौर में हुआ। उस अधिवेशन में यह निर्णय लिया गया कि स्वतन्त्रता दिवस के रूप में, 26 जनवरी का दिन मनाया जाएगा।
सुभाष चंद्र बोस
नेताजी को जेल व भगत सिंह को न बचा पाने का आक्रोश
कोलकाता में 26 जनवरी 1931 को राष्ट्र ध्वज फहराकर, स्वतंत्रता दिवस मनाया। फिर नेता जी ने एक विशाल मोर्चे का नेतृत्व किया। इस मोर्चे के दौरान, पुलिस ने उन पर लाठी चला दी। उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। इसी बीच, जब सुभाष जेल में थे। तब गांधी जी ने अंग्रेज सरकार से एक समझौता किया।
जिसके तहत, भगतसिंह जैसे क्रांतिकारीयो को छोड़कर, अन्य सभी कैदियों को रिहा कर दिया। लेकिन अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों को रिहा करने से साफ इनकार कर दिया। गाँधी जी ने अंग्रेजी सरकार से भगत सिंह की फांसी माफ कराने के लिए बात की। लेकिन उन्होंने बहुत नरमी के साथ बात की।
सुभाष बाबू चाहते थे कि गांधीजी अंग्रेज सरकार के साथ किया गया, समझौता रद्द कर दें। लेकिन गांधीजी अंग्रेजी सरकार को दिए गए, अपने वचन को तोड़ने के लिए राजी नहीं थे। अंग्रेज सरकार भी अपनी जगह बात पर अड़ी रही।
अन्ततः अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी दे दी गई। भगत सिंह को न बचा पाने पर, नेताजी कांग्रेस और गाँधी के तौर-तरीकों से बहुत नाराज हो गए थे। सुभाष चंद्र बोस को कुल 11 बार अपने जीवन में कारावास हुआ।
उन्हें पहली बार, 16 जुलाई 1921 को उन्हें पहली बार 6 महीने की जेल हुई। इसके बाद तो सुभाष बाबू का जेल में आना-जाना लगा रहा। 1930 का चुनाव सुभाष बाबू ने कारावास से ही लड़ा। चुनाव जीतने पर उन्हें, कोलकाता का महापौर चुन लिया गया। इसी कारण अंग्रेजी सरकार को, नेताजी को रिहा करना पड़ा।
सन 1932 में, एक बार फिर से कारावास हुआ। उन्हें इस बार, अल्मोड़ा की जेल में रखा गया। जहाँ पर, उनकी तबीयत अचानक खराब हो गई। उनके चिकित्सकों ने उन्हें, इलाज के लिए यूरोप जाने की सलाह दी। नेता जी ने वियना में इलाज के दौरान तय किया। वह भारतीय छात्रो को, जो यूरोप में रह रहे थे। उन्हें आजादी की लड़ाई के लिए एकजुट करेंगे।
सुभाष चन्द्र बोस का प्रेम व विवाह
यूरोप में नेताजी को, एक यूरोपीय प्रकाशक ने The Indian Struggle किताब लिखने का काम सौंपा। इसके लिए, सुभाष चन्द्र ने 23 साल की एमिली शेंकल को टाइपिंग के लिए रख लिया। एमिली ने बोस के साथ काम करना शुरू कर दिया।
इसी बीच 35 साल के सुभाष को एमिली से प्यार हो गया। 1934 लेकर मार्च 1936 के बीच सुभाष जी व एमिली ऑस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया में साथ-साथ रहे। इस दौरान उनके रिश्ते मधुर होते गए।
एमिली ने शिशिर बोस (शरद चंद्र बोस के पुत्र) की पत्नी कृष्णा बोस को बताया था। उनकी शादी 26 दिसंबर 1937 को ऑस्ट्रिया के बादगास्तीन में हुई थी। उन्होंने 19 नवंबर 1942 को बेटी को जन्म दिया। उसका नाम उन्होंने अनीता रखा।
सुभाष चन्द्र बोस का काँग्रेस अध्यक्ष पद
1937 में जापान ने चीन पर आक्रमण कर दिया। सुभाष की अध्यक्षता में कांग्रेस ने चीनी जनता की सहायता करने की योजना बनाई। जिसके तहत एक चिकित्सीय दल को, डॉक्टर द्वारकानाथ कोटनीस के नेतृत्व में भेजने का निर्णय लिया। जब सुभाष ने जापान से, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग लिया।
तब लोग उन्हें Fascist और जापान की कठपुतली कहने लगे थे। कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन 1938 में, हरिपुरा में होना तय हुआ। गाँधी जी ने सुभाष बाबू को, इस अधिवेशन से पहले ही कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुन लिया था।
कांग्रेस का 51 वां अधिवेशन होने के कारण, कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चंद्र बोस का स्वागत रथ में किया गया। जिसे 51 बैलो ने खिंचा था। इस अधिवेशन में सुभाष बाबू का अध्यक्षीय भाषण बहुत ही प्रभावी था। किसी भी भारतीय राजनीतिक व्यक्ति ने शायद ही कभी इतना प्रभावशाली भाषण दिया हो।
अपने अध्यक्ष के कार्यकाल में सुभाष चंद्र ने योजना आयोग की स्थापना की। जवाहरलाल नेहरू इसके पहले अध्यक्ष बनाए गए। सुभाष ने बंगलुरु में मशहूर वैज्ञानिक सर विश्वेश्वरैया की अध्यक्षता में, एक विज्ञान परिषद की स्थापना भी की। कांग्रेस के अंदर कुछ मतभेदों के चलते सुभाष बाबू ने 29 अप्रैल 1939 को कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।
सुभाष चंद्र बोस
फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना व कार्य
नेता जी ने 3 मई 1939 को Forward Block के नाम से, अपनी पार्टी की स्थापना की। द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने से पहले ही, नेता जी ने स्वतंत्रता संग्राम की गति को अधिक तीव्र करने के लिए। Forward Block में जन जागृत अभियान शुरू कर दिया। 3 सितंबर 1939 को मद्रास में, सुभाष को ब्रिटेन और जर्मनी के बीच युद्ध छिड़ जाने की सूचना मिली। उन्होंने कहा कि ये भारत के लिए, सुनहरा मौका है।
हमे अपनी स्वतंत्रता के लिए, अभियान की रफ्तार को तेज कर देना चाहिए। सुभाष बाबू ने 8 सितंबर 1939 को युद्ध के प्रति पार्टी का रुख तय करते हुए कहा। अगर कांग्रेस यह काम नहीं कर सकती। तो Forward Block अपने दम पर ब्रिटिश राज्य के खिलाफ, युद्ध शुरू कर देगा।
जुलाई 1940 में हालवेट स्तम्भ, जो अंग्रेजों की गुलामी का प्रतीक था। सुभाष की यूथ ब्रिगेड ने रातो-रात, स्तंभ को मिट्टी में मिला दिया। यह एक प्रतीकात्मक शुरुआत थी। इसके माध्यम से सुभाष ने, यह संदेश दिया कि जैसे उन्होंने यह स्तंभ धूल में मिला दिया। उसी तरह ब्रिटिश साम्राज्य की ईट से ईट बजा देंगे।
इसके फलस्वरूप अंग्रेज सरकार ने, सुभाष सहित फॉरवर्ड ब्लॉक के सभी नेताओं को कैद कर लिया। सुभाष ने जेल में ही आमरण अनशन शुरू कर दिया। जिसमें उनकी हालत खराब होने लगी। तब अंग्रेजों ने सुभाष बाबू को उनके ही घर में नजरबंद कर दिया।
सुभाष चंद्र बोस
आजाद हिन्द फोज की स्थापना व गतिविधियाँ
16 जनवरी 1941 को सुभाष बोस ने नजरबंदी से मुक्त होने की योजना बनाते हुए। एक पठान मोहम्मद जलालुद्दीन के वेश में, अपने घर से निकल गए। वह यहां से पेशावर पहुंचे। यहां पर उन्हें फारवर्ड ब्लाक के मियां अकबर से मिले। उन्होंने सुभाष की मुलाकात कीर्ति किसान पार्टी के भगतराम तलवार से करवा दी। सुभाष बोस, भगतराम के साथ अफगानिस्तान की राजधानी काबुल की ओर निकल पड़े। काबुल में उन्होंने पहले रूसी दूतावास व जर्मन दूतावास में प्रवेश पाना चाहा। लेकिन उन्हें नाकामी मिली। आखिरकार, इटालियन दूतावास में उनकी कोशिश सफल हुई। जर्मन और इटालियन दूतावासो ने उनकी सहायता की।
आखिर में, वे ऑरलैंडो मोजेन्टा नामक इटालियन बनकर। काबुल से निकलकर रूस की राजधानी मोरक्को होते हुए। जर्मनी की राजधानी बर्लिन पहुंचे। बर्लिन में सबसे पहले सुभाष, वोन रिब्बेन ट्रॉप जैसे बर्लिन के अन्य नेताओं से मिले। उन्होंने जर्मनी में भारतीय स्वतंत्रता संगठन और आजाद हिंद रेडियो की स्थापना की।
इसी दौरान सुभाष, नेताजी के नाम से जाने जाने लगे। आखिर में 29 मई 1942 को जर्मनी के सर्वोच्च नेता एडोब हिटलर से सुभाष चंद्र बोस मिले। लेकिन हिटलर ने भारत को लेकर, अधिक रुचि नहीं दिखाई। अंत में जर्मनी और हिटलर से कुछ न मिलने की उम्मीद छोड़ दी।
वह 8 मार्च 1943 को जापान पहुंचे। वहां जापान के प्रधानमंत्री जर्नल हिदेकी तोजो ने नेताजी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर। उन्हें सहयोग करने का आश्वासन दिया। 21 अक्टूबर 1943 के दिन नेता जी ने सिंगापुर में आर्जी-हुकूमते-आजाद-हिंद स्वाधीन भारत की अंतरिम सरकार की स्थापना की। वह खुद इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और युद्ध मंत्री बने। इस सरकार को कुल 9 देशों में मान्यता दी।
नेताजी आजाद हिंद फौज के प्रधान सेनापति भी बन गए। आजाद हिंद फौज में जापानी सेना ने अंग्रेजों की पोस्ट से पकड़े गए। भारतीय युद्ध बंदियों को भी भर्ती किया था। आजाद हिंद फौज में औरतों के लिए, रानी लक्ष्मीबाई रेजीमेंट भी बनाई गई।
पूर्वी एशिया के स्थाई भारतीय लोगों से “आजाद हिंद फौज” में भर्ती होने और उन्हें आर्थिक मदद देने का आह्वान किया। उन्होंने अपने आवाहन में संदेश दिया- तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा। उन्होंने जापानी सेना के सहयोग से, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत पर आक्रमण किया। सुभाष चंद्र बोस ने अपनी सेना में उत्साह भरने के लिए ने दिल्ली चलो का नारा भी दिया। अंडमान और निकोबार द्वीप को दोनों फोजों ने मिलकर, अंग्रेजों से जीत लिए।
यह दोनों द्वीप आर्जी-हुकूमते-आजाद-हिंद के अनुशासन में रहें। नेता जी ने इन द्वीपों को शहीद द्वीप और स्वराज द्वीप का नाम दिया। दोनों फौजों ने मिलकर, इंफाल और कोहिमा पर हमला किया। लेकिन अंग्रेजों का पलड़ा इस बार भारी पड़ा।
जिसमें दोनों फौजों को पीछे हटना पड़ा। जब आजाद हिंद फौज पीछे रही थी। तब जापानी सेना ने नेताजी के भाग जाने की व्यवस्था की। लेकिन नेता जी ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई रेजीमेंट की लड़कियों के साथ, सैकड़ों मील चलते रहने रहना पसंद किया। इस प्रकार, नेता जी ने एक आदर्श प्रस्तुत किया।
नेताजी की मृत्यु या गायब होना
Subhash Chandra Bose Death
6 जुलाई 1944 को आजाद हिंद रेडियो में, नेता जी ने अपने भाषण के माध्यम से गांधीजी को संबोधित किया। उन्होंने अपने संबोधन में जापान से सहयोग लेने का कारण स्पष्ट किया। आर्जी-हुकूमते-आजाद-हिंद और आजाद हिंद फौज की स्थापना के उद्देश के बारे में बताया।
द्वितीय विश्व युद्ध में जब जापान हार गया। तो नेता जी ने एक नया विकल्प तलाशना शुरू किया। जिसके लिए उन्होंने रूस से सहायता मांगने का निश्चय किया।
नेताजी हवाई जहाज से, 18 अगस्त 1945 को मंचूरिया की तरफ जा रहे थे। इसी सफर के दौरान वह लापता हो गए। इसके बाद, किसी ने भी नेता जी को नहीं देखा। टोक्यो रेडियो ने 23 अगस्त 1945 को बताया।
नेताजी एक बड़े बम वर्षक विमान से आ रहे थे। उनका विमान 18 अगस्त को ताइहोकू हवाई अड्डे के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया। जिसमें कई लोग मारे गए। नेताजी इस दुर्घटना में काफी बुरी तरह से जल गए थे। उन्हें ताईहोकू के सैनिक अस्पताल में ले जाया गया। जहां उन्होंने अंतिम सांस ली।
कर्नल हबीबुर्रहमान के अनुसार, उनका अंतिम संस्कार ताइहोकू में ही कर दिया गया। सितंबर के मध्य में, उनकी अस्थियों को संचित कर। जापान की राजधानी टोक्यो के रैंकोजी मंदिर में रख दी गई। भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार के दस्तावेजों के अनुसार नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताईहोकू के सैनिक अस्पताल में रात्रि 9:00 बजे हुई।
सुभाष चंद्र बोस
नेताजी की रहस्यमई मौत का राज
भारत के आजाद होने के बाद, भारत सरकार ने 1956 और 1970 में दो बार आयोग नियुक्त किए। दोनों बार ही आयोग ने बताया। कि नेताजी उस विमान दुर्घटना में ही मारे गए। इसके बाद 1999 में मुखर्जी आयोग बनाया गया।
2005 में ताइवान सरकार ने, मुखर्जी आयोग को बताया कि 1945 में ताइवान में कोई भी विमान दुर्घटना नहीं हुई। 2005 में मुखर्जी आयोग ने, भारत सरकार को बताया। उस विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु के होने का कोई सबूत नहीं मिला। लेकिन मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को, भारत सरकार ने मानने से इनकार कर दिया।
क्या गुमनामी बाबा ही सुभाष चन्द्र बोस थे ?
उत्तर प्रदेश के अयोध्या और छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में नेताजी के होने को लेकर। बहुत सारे दावे सामने आए। जहां वे गुमनामी बाबा का भेष बदलकर रह रहे थे। लेकिन इन दावों की प्रमाणिकता संदिग्ध है। फैजाबाद के लोगों के अनुसार, गुमनामी बाबा 1970 में आए थे। वे लाल कोठी में बतौर किराएदार रहा करते थे। इसके बाद फैजाबाद के राम भवन के पास, एक मकान में 16 सितंबर 1985 को उनकी मृत्यु हो गई।
गुमनामी बाबा की मृत्यु के गवाह रहे। कुछ स्थानीय लोगों ने बताया कि स्थानीय प्रशासन में उनके घर पर पहरा लगा दिया। उनके पार्थिव शरीर का गुप्तार घाट में, गुपचुप तरीके से अंतिम संस्कार कर दिया गया। बाद में उसी जगह पर उनकी समाधि भी बनवाई गई।
गुमनामी बाबा के कमरे से बरामद सामान पर नजर डाली जाए। तो उसमें सुभाष चंद्र बोस के, माता-पिता और उनके परिवार की निजी तस्वीरें थी। कोलकाता में नेताजी के जन्मदिन मनाए जाने की कुछ तस्वीरें थी। नेताजी जैसे गोल चश्मा पहनते थे। वैसे दर्जनों चश्मे और एक रोलेक्स हाथ घड़ी थी। आजाद हिंद फौज की एक यूनिफॉर्म। ताईहोकू विमान दुर्घटना की अखबारों की कटिंग, उनके सम्मान में मौजूद थी।
जर्मन, जापानी और अंग्रेजी साहित्य की बहुत-सी किताबें भी मिली। हाथ से बने नक्शे पर जहां विमान दुर्घटनाग्रस्त को इंगित किया गया था। सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु पर बने आयोग की बहुत सी रिपोर्ट। सैकड़ों टेलीग्राम और पत्र भी मिले। आजाद हिंद फौज की गुप्तचर शाखा के प्रमुख पवित्र मोहन राय के लिखे गए, बधाई संदेश भी मिले।
दोस्तों आपको इस विषय में क्या लगता है। यह हमे कमेंट करके अवश्य बताएं।
सुभाष चंद्र बोस जयंती
Subhash Chandra Bose Jayanti
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के अवसर पर, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया गेट पर नेता जी की भव्य प्रतिमा स्थापित करने की घोषणा की। इसके पहले पांच दशकों से प्रज्वलित ‘अमर जवान ज्योति’ को ‘राष्ट्रीय समर स्मारक’ स्थित अमर चक्र की ज्योति में विलीन कर दिया गया।
नेताजी की भव्य प्रतिमा के निर्माण होने तक, उस तय स्थान पर नेताजी की होलोग्राफिक प्रतिमा दिखाई देगी। जिसका अनावरण प्रधानमंत्री, उनकी जयंती के अवसर पर करेंगे। नेताजी की ग्रेनाइट से बनने वाली प्रतिमा की ऊंचाई 28 फीट तथा चौड़ाई 6 फीट होगी। उनकी प्रतिमा एक छतरी के नीचे स्थापित की जाएगी। जहां पहले किंग जॉर्ज पंचम की प्रतिमा हुआ करती थी। जिसे 1968 में हटा दिया गया था।
Subhash Chandra Bose Quotes
◆ “मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि हमारे देश की प्रमुख समस्यायों जैसे गरीबी ,अशिक्षा , बीमारी , कुशल उत्पादन एवं वितरण का समाधान सिर्फ समाजवादी तरीके से ही की जा सकती है ! “
◆ “समझोतापरस्ती बड़ी अपवित्र वस्तु है !”
◆ “मुझमे जन्मजात प्रतिभा तो नहीं थी ,परन्तु कठोर परिश्रम से बचने की प्रवृति मुझमे कभी नहीं रही !”
◆ “श्रद्धा की कमी ही सारे कष्टों और दुखों की जड़ है !”
◆ “असफलताएं कभी कभी सफलता की स्तम्भ होती हैं !”
◆ “निसंदेह बचपन और युवावस्था में पवित्रता और संयम अति आवश्यक है !”
◆ “मैंने जीवन में कभी भी खुशामद नहीं की है ! दूसरों को अच्छी लगने वाली बातें करना मुझे नहीं आता ! “
◆ “चरित्र निर्माण ही छात्रों का मुख्य कर्तव्य है !”
◆ “व्यर्थ की बातों में समय खोना मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगता !”
◆ “याद रखें अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना सबसे बड़ा अपराध है !”
◆ “माँ का प्यार सबसे गहरा होता है ! स्वार्थ रहित होता है ! इसको किसी भी प्रकार नापा नहीं जा सकता !”
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Subhash Chandra Bosh ko Sadar naman